तुम निष्फिक्र परमात्मा की ओर आते हो तो बाकी का सब गौण हो जाता है और प्रकृति सहयोगी हो जाती है । अपने को बोझा नहीं उठाना पडता है । अपने को कर्तृत्व का अभिमान होता है तभी बोझा लगता है । कर्तृत्व का अभिमान नहीं है, देहाध्यास गल जाय, परमात्म-तत्त्व का साक्षात्कार हो जाय तो फिर तो तुम्हारे लिए सब खेल है विनोद है ।
विनोदमात्र व्यवहार जेनो ब्रह्मनिष्ठ प्रमाण ।
तुम्हारा व्यवहार विनोद जैसा हो जाय । व्यवहार को इतना महत्त्व नहीं दो कि बस, सिर पर चढ़ बैठे, हृदय का कब्जा ले ले कि ‘अब क्या होगा, अब क्या होगा ?….’ क्या होगा ? ज्यादा-से-ज्यादा तो…. हो-हो के क्या होगा !
हमारे गुरुजी (भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज) विनोदी बात कहा करते थे कि “हमारे गाँव में पुरसुमल ब्राह्मण थे । गाँव में जब बारिश देर से होती तो हमारे बुजुर्ग पुरसुमल ब्राह्मण के पास जाते तो मैं भी साथ में जाता । सब गाँव वाले पूछते कि “भूदेव ! आप बताओ, बरसात होगी कि नहीं होगी ?”
तो ब्राह्मण बोलतेः “भई देखो, अब मैं बुढ़ापे में दो बातें नहीं बताऊँगा, बात एक ही बताऊँगा । सच बताऊँ कि झूठ ?”
बोलेः “सब बताओ ।”
“देखो, आखिरी बात बता दूँ कि दो-चार बताऊँ ?”
बोलेः “एक ही बात बताओ ।”
सब हाथ जोड़ के बैठते और पुरसुमल ब्राह्मण खूब शांत हो के बोलते थे कि “भई, एक ही बात बताता हूँ, सच्ची बात बताता हूँ, विश्वास करना । सुन लेना, बरसात पड़ेगी या तो नहीं पड़ेगी ।”
“यह तो हम भी जानते हैं ।”
“हमसे झूठ मत बुलवाओ । या तो पड़ेगी या तो नहीं पड़ेगी, मैं बोल देता हूँ ।”
ॐ ॐ ॐ….. ऐसे ही संसार का हाल है । या तो अनुकूलता आयेगी या प्रतिकूलता आयेगी । तीसरा तो कुछ है नहीं ! है ? या तो यश आयेगा या तो अपयश आयेगा और क्या होगा ! तीसरा तो कुछ है नहीं । परमात्मा तो अपना स्वरूप है । परमात्मा तो आयेगा नहीं, जायेगा नहीं । और जो भी आयेगा वह जरूर जायेगा । तुम भी जाओगे । जाओगे कि नहीं जाओगे ?
तो सब जाने वाला ही है तो उसका बोझा अपने पर क्यों रखना !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 7 अंक 336
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ