चातुर्मास महात्म्य

'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मखण्ड के अन्तर्गत 'चातुर्मास महात्म्य' में आता है:


सूर्य के कर्क राशि पर स्थित रहते हुआ आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक, वर्षकालीन इन चार महिनों में भगवान विष्णु शेषशय्या पर शयन करते है। श्री हरि की आराधना के लिये यह पवित्र समय है। सब तीर्थ, देवस्थान, दान और पुन्य चतुर्मास आने पर भगवान विष्णु की शरण लेके स्थित होते है। जो मनुष्य चातुर्मास में नदी में स्नान करता है। वह सिद्धि को प्राप्त होता है। तीर्थ में स्नान करने पर पापों का नाश होता है।

चातुर्मास मे निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिये:

१) जल में तिल और आवले का मिश्रण अथवा बिल्वपत्र डालकर स्नान करने से अपने मे दोष का लेशमात्र नही रह जाता।
२) जल में बिल्वपत्र डालकर 'ॐ नम: शिवाय' का ४-५ बार जप करके स्नान करने से विशेष लाभ तथा वायुप्रकोप दूर होता है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।
३) चातुर्मास में भगवान नारायण जल में शयन करते है, अत: जल में भगवान विष्णु के अंश व्याप्त रहता है। इसलिये उस तेज़ से युक्त जल का स्नान समस्त तीर्थों से भी अधिक फ़ल देता है।
४) ग्रहण के सिवाय के दिनों में सन्ध्याकाल में और रात को स्नान न करे। गर्म जल से भी स्नान नही करना चाहिये।
५) चातुर्मास सब गुणों से युक्त उत्क्रिष्ट समय है। उसमें श्रद्धा पूर्वक धर्म का अनुष्ठान करान चाहिये।
६) अगर मनुष्य चातुर्मास में भक्तिपूर्वक योग के अभ्यास मे तत्पर न हुआ तो नि:सन्देह उसके हाथ से अमृत गिर गया।
७) बुद्धि मन मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखकर पुरातनज्ञान कि प्राप्ति करनी चाहिये।
८) चातुर्मास में परद्रव्य का अपहरण और परस्त्री गमन आदि कर्म सब मनुष्य के लिये वर्जित है।
९) चातुर्मास मे जीवों पर दया तथा अन्न-जल व गौओं का दान, रोज वेदपाठ और हवन-ये सब महान फ़ल देनेवाले है। अन्न शत्रुओं को देना भी मना नही है और किसी भी समय दिया जाता है।
१०) चातुर्मास में धर्म का पालन, सत्पुरुषों की सेवा, सन्तों के दर्शन, सत्सन्ग-श्रवण भगवान विष्णु का पूजन और दान में अनुराग दुर्लभ है।
११) जो भगवान कि प्रीति के लिये श्रद्धा पूर्वक प्रिय वस्तु और भोग का त्याग करता है, वह अनन्त फ़ल पाता है।
१२) चातुर्मास में धातु के पात्रों का त्याग करके पलाश के पत्तों पर भोजन करने से ब्रह्मभाव प्राप्त होता है। तांबे के पात्रों भी त्याज्य है।
१३) चातुर्मास में काला और नीला वस्त्र पहनना हानिकर है। इन दिनों में हजामत (केश संवारना) करना त्याग दे तो तीनों तापो से रहित हो जाता है।
१४) इन चार महिनों मे भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन (उत्तम व्रत-अनन्त फ़लदायी), पत्तल मे भोजन, उप्वास, मौन, जप, ध्यान, दान-पुन्य आदि विशेष लाभप्रद होते है।
१५) चातुर्मास में परनिन्दा करना और सुनना दोनो का त्याग करे। परनिन्दा महापापं।
१६) चातुर्मास में नित्य परिमित भोजन से पातकों का नाश और एक अन्न का भोजन करने वाला रोगी नही होता और एक समय भोजन करने से द्वादशः यज्ञ फ़ल मिलता है।
१७) चातुर्मास में केवल दूध अथवा फ़ल खाकर रहता है, उसके सहस्त्र पाप नष्ट होते है और केवल जल पीकर रहता है, उसे रोज रोज अश्वमेघ यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है।
१८) १५ दिनो में सम्पूर्ण उपवास शरीर के दोष जला देता है और १४ दिनों के भोजन को ओज में बदल देता है। इसलिये एकादशी के उपवास की महिमा है।
१९) वैसे तो ग्रहस्थ को शुक्ल पक्ष की एकादशी रखनी चहिये किन्तु चातुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिये।

नोटः चातुर्मास में भगवान नारायण योग निद्रा में शयन करते है इसलिये चार मास शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नही होते। ये चार मास तपस्या करने के हैं। 

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