शरीर स्वास्थ्य

आम्रकल्पः एक मधुर कल्प

 

नमकीन, चरपरे, तले हुए व चीनी से बने पदार्थों की अधिकता वाला आज का असंतुलित भोजन पाचनशक्ति को बिगाड़ रहा है, साथ ही सारे रक्त में अम्लता बढ़ाकर अनेक रोग पैदा कर रहा है । सारे अप्राकृतिक खाद्यों पिंड छुड़ा के उपर्युक्त दोषों को दूर कर कायाकल्प करने वाला प्रयोग है आम्रकल्प (आम का कल्प)  । माँ पार्वती जी का प्रिय यह स्वर्गीय फल भगवान शिवजी ने धरती पर प्रकट किया

 

आम का पका फल वीर्य, बल, जठराग्नि, शुक्र व कफ वर्धक, वातनाशक, मधुर, स्निग्ध, शीतल, हृदय के लिये हितकर, वर्ण निखारने वाला होता है । इसमें कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा, क्षार, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह एवं विटामिन ए, बी, सी व डी पाये जाते हैं । गाय का दूध अत्यन्त स्वादिष्ट, स्निग्ध, मधुर, शीतल, रूचिकर तथा रक्त, बल वीर्य, स्मृति, बुद्धि व आयुष्य वर्धक एवं रोगनाशक है । आम के प्रोटीन-बाहुल्य व दूध के स्निग्धता-बाहुल्य का सुमेल शरीर के लिए अमृततुल्य प्रभाव दिखाता है

 

कल्प के लिए आमः जिस आम में रेशा बहुत कम, गूदा अधिक व जिसका स्वाद खूब मीठा होता है वह उत्तम है । कल्प के लिए उत्तम जाति के पतले रसवाले देशी आम लें, खट्टे आम हानि करते हैं । पतले रस वाले आम न मिलें तो गाढ़े रस वाले ले सकते हैं

 

प्रयोग विधिः एक दिन उपवास कर फिर कल्प शुरू करें । उपवास के दिन केवल गुनगुना पानी लें । आमों को 4 घंटे जल में भिगो दें (आम फ्रिज में न रखें), फिर अच्छी तरह धोकर उसके मुँह के ऊपर का हिस्सा अलग करके वहाँ से दो-चार बूँद रस निकाल दें। फिर धीरे-धीरे चूसें। रस को लार में खूब घुला-घुलाकर लेना चाहिए। आम का रस निकाल कर उपयोग में लाने पर वह भारी हो जाता है, अतः चूसकर खाना ही उत्तम है।

 

कल्प के प्रथम तीन-चार दिन केवल आमरस व पानी पर ही रहें, जिससे आँतों में पुराने मल की सड़न से पैदा हुए कृमियों का नाश हो जाएगा एवं मित्र कृमियों की संख्या बढ़ेगी, फलतः पाचन व निष्कासन क्रिया दुरूस्त होगी एवं यदि वायु होती है तो शांत होगी।

सामान्य पाचनशक्ति वाले व्यक्ति दिन में दो बार आम का रस व दो बार दूध ले सकते हैं। आम उतनी ही मात्रा में लें कि दुग्धाहार के समय भूख कसकर लगे। शुरूआत में एक बार में 250 मि.ली. दूध पर्याप्त है। आम एवं दूध की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ायें। आम व दूध के सेवन में 2-3 घंटे का अंतर रखें तथा सूर्यास्त के बाद आम का सेवन न करें। दूध को चुसकी लेते हुए पीयें, इससे दूध और भी सुपाच्य हो जाएगा।

 

इस प्रयोग के दौरान अन्य आहार नहीं लेना है। प्यास लगने पर पानी ज़रूर पीयें। यदि वायु या कफ का जोर दिखाई पड़े तो आम-सेवन से पूर्व सेंधा नमक के साथ अदरक के टुकड़े खायें। इस प्रकार 40 दिन तक केवल आम और दूध पर रहें। कल्प का विशेष लाभ लेना हो तो 40 दिन के बाद एक-दो माह तक दिन में एक बार सुपाच्य भोजन और सुबह आम व रात को दूध को सेवन करें।

 

(जो 2-3 हफ्ते से ज़्यादा समय तक कल्प न कर पायें, वे दोपहर को मूँग की दाल व रोटी तथा सुबह आम एवं रात को दूध का सेवन कर सकते हैं।)

 

लाभः आम्रकल्प से पाचनक्रिया शुद्ध होकर पुराने कब्ज, मंदाग्नि, अम्लपित्त, संग्रहणी, अरूचि, क्षय, यकृतवृद्धि, स्नायु व धातु दौर्बल्य, वायु, अनिद्रा, रक्तचाप की कमी या अधिकता तथा हृदय रोग में बहुत लाभ पहुँचता है।

 

आम का विटामिन ए बाहर के विषों से शरीर की रक्षा करता है व विटामिन सी चर्मरोगों को खत्म करता है। इस कल्प से रक्त, वीर्य, बल व कांति की वृद्धि होती है।

 

स्वास्थ्य व स्वादप्रद अमावट (अमरस): पके आम के रस को निकाल के कपड़े पर पसार कर धूप में सुखायें। जब सूख जाय तब उसी पर पुनः रस डालें व सुखायें। इससे जो मोटी परत तैयार होती है उसी को अमावट कहते हैं। यह प्यास, वमन, वात व पित्त का नाशक, सारक, रोचक तथा सुपाच्य होता है।