रावण कौरव और कान्स का अहं ईश्वर से टकराया था |
सागर में कंकड़ मारने से उफान नहीं
आता ||
सागर में कंकड़ मारने से उफान नहीं
आता |
छींटे स्वयं पे आते हैं फिर भी क्यूं बाज नहीं आता? ||
निंदा और स्तुति की गुलाम सचाई नहीं होती है|
आकाश को तो स्वयं पर उठाने वाले उंगलियों की परवाह ही नहीं होती है
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कच्चे प्याले तो टूट जाते हैं जरा सा टकराने से |
पर गुरु के प्यारे तो और मजबूत होते हैं विपदा के आने से ||
कौवे के स्वर के आगे शंख की ध्वनि फीकी नहीं
होती है
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धर्म के सौदगरों के आगे श्रद्धा तो बिकी नहीं होती है ||
अधर्मी हैं वो कुकर्मी हैं वो जो कु-प्रचार किया करते हैं
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फिर भी मार्ग से हटते नहीं जो गुरु से प्यार किया करते हैं
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काली घटा से टकराने से पर्वत कभी डरते नहीं |
खाई कितनी भी गहरी हो पक्षी कभी उसमें गिरते नहीं हैं ||
हवा को तलवार से काटने की कोशिश तो मूर्ख ही करते हैं |
सय्त की जड़ें हिलाने की कोशिश तो धूर्त ही करते हैं ||
अंधे क्या निशाना सादेंगे भक्तों के विश्वास पर |
पंगु ही व्यर्थ अकड़ते हैं खोखले बाँस पर ||
श्रद्धा और भक्ति बिना कोई सिद्धि होती नहीं
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अफवाहें फैलाये बिना निंदकों की प्रसिद्धि होती नहीं
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