ये प्रेम पंथ ऐसा ही है

 

ये प्रेम पंथ ऐसा ही है

जिस पे सब कोई चल ना सके

कितने ही बढ़े थके फ़िसले

कुछ आगे गये संभल ना सके

 

हरि हरि हरि हरि

 

जो कु ना चाहते हैं जग में

वह कहीं ना रुकते हैं पथ में

हैं सुन्दर सच्ची प्रीति वही

जो उर से कभी निकल ना सके

 

ये प्रेम पंथ ऐसा ही है

जिस पे सब कोई चल ना सके