इस मंत्र के जप में ध्यान परमावश्यक है । शिव पुराण में यह ध्यान इस प्रकार बतलाया गया है :
हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धॄत्य तोयं शिरः सिंचन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वांके सकुम्भौ करौ ।
अक्षस्रङ्मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत् पीयूषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युंजयम्
जो अपने
दो करकमलों
मे रखे
हुए दो
कलशों से जल निकाल कर
उनसे ऊपरवाले
दो हाथों
द्वारा अपने मस्तक
को सीचते
हैं । अन्य
दो हाथों
में दो
घड़े लिए
उन्हें अपनी गोद
में रखे
हुए हैं
तथा शेष
दो हाथों
में रुद्राक्ष
एवं मृगमुद्रा
धारण करते
हैं, कमलासन
पर बैठे
हैं, सिर
पर स्थित
चंद्रमा से निरंतर
झरते हुए
अमृत से
जिनका सारा शरीर
भीगा हुआ
है तथा
जो तीन
नेत्र धारण करने
वाले हैं
उन भगवान
मृत्युंजय,
जिनके साथ गिरीराजनन्दिनी
उमा भी
विराजमान
हैं, उनका
मैं भजन
(चिन्तन) करता हूँ
। (सती
खण्ड: ३८.२४)
इस प्रकार
ध्यान करके रुद्राक्षमाला
से महामृत्युंजय
मंत्र का निश्चित
संख्या में जप
करना चाहिए
।
मंत्रजाप प्रारंभ
करने से
पूर्व हाथ में
जल लेकर
निम्न श्लोक पढ़कर
संकल्प करें
ॐ
अस्य श्री
महामृत्युंजय
मंत्रस्य
वसिष्ठ ऋषिः , अनुष्टुप
छन्दः , श्री
महामृत्युंजय
रुद्रो देवता,
हौं
बीजं, जूँ शक्तिः,
सः
कीलकं, श्री
आशारामजी
सद्गुरुदेवस्य,
आयुः,
आरोग्य,
यशः,
कीर्ति,
पुष्टिः
वृद्धि अर्थे
जपे विनियोगः l
जप हेतु
महामृत्युंजय
मंत्र
ॐ
हौं जूँ सः l ॐ
भूर्भुवः
स्वः l ॐ त्रयम्बकं
यजामहे
सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्
l
उर्वारुकमिव
बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय
मामृतात l ॐ
स्वः भुवः भूः
ॐ l सः
जूँ हौं ॐ l
मंत्रजप की पूर्वनिर्धारित
संख्या पूर्ण होने
पर उस
संख्या की ददांश
संख्या में महामृत्युंजय
मंत्र के अंत
में "स्वाहा"
शब्द जोड़कर
आहुतियाँ
देते हुए
हवन करें
।
अपना संकल्प
अर्पण करने हेतु
हाथ में
जल लेकर
निम्न मंत्र बोलें
अनेन कृतेन भगवान महारुद्रः प्रीयतां न मम ।