गुरु स्तुति मंत्र

श्री सुरेशानन्दजी के सत्संग से:

 

 

श्री गुरुभ्यो नमः

श्री परम गुरुभ्यो नमः

श्री परात्पर गुरुभ्यो नमः

श्री परमेष्टी गुरुभ्यो नमः

 

अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम

तस्मात कारुण्य भावेन, रक्षस्व परमेश्वर

 

 

ये जो मंत्र है, शास्त्रों में गुरु की स्तुति में कहे गए है :-

ज्ञान मूर्तये नमः

ज्ञान योगिने नमः

तीर्थ स्वरूपाय नमः

जितेन्द्रियाय नमः

उदारहृदयाय नमः

भारत गौरवाय नमः

पावकाय नमः

पावनाय नमः

परमेश्वराय नमः

महर्षये नमः

 

शास्त्रों मे ज्ञानदाता, भक्ति दाता गुरु की स्तुति मे बड़े सुन्दर मंत्र है,मंत्र इस प्रकार है :-

 

अविनाशिने नमः

सच्चिदानंदाय नमः

सत्यसंकल्पाय नमः

संयासिने नमः

श्रोत्रियाए नमः --- श्रोत्रियाए - माने जो सारे शास्त्रों का रहस्य जानते हैं, ऐसे गुरु को हम प्रणाम करते हैं

समबुद्धये नमः --- वे सम बुद्धिवाले हैं, पक्षपात नहीं हैं जहाँ

सुमनसे नमः --- उनका मन कैसा, बोले मन सुमन हैं, खिले हुए फूल की तरह; खिला हुआ फूल जैसे सब को सुगंध देता हैं, ऐसे वे सबको सुगंध , दिव्य जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं, इसलिये गुरु की यह मन्त्र बोलकर स्तुति की- सुमनसे नमः - उनके संपर्क में आते रहने से हमारा मन भी सुमन हो जाता हैं फूल की तरह खिला हुआ रहता हैं; उदास, बेचैन, उद्विग्न, परेशान नहीं रहता

स्वयं ज्योतिषे नमः --- माने साधक का भविष्य कैसे सुखद होगा, वो बता देते हैं

शान्तिप्रदाय नमः --- वो सबको शान्ति का दान करते हैं, मन की शान्ति

श्रुतिपारगाये नमः - श्रुति माने वेद-उपनिषद

सर्वहितचिन्ताकाय नमः --- सबके हित का ख्याल करने वाले और सबके हित की बात करनेवाले गुरु को प्रणाम हैं

साधवे नमः --- जो सच्चे साधु हैं, सच्चे संत हैं वास्तव में, उन्हे हमारा प्रणाम हैं

सुहृदे नमः --- जो सबके सुहृद हैं, जैसे भगवान सबके सुहृद हैं, ऐसे सद्गुरु भी सबके सुहृद हैं

क्षमाशीलाय नमः --- जो क्षमाशील हैं, हमारे दोषों को माफ कर देते हैं, ऐसे गुरु को हमारा प्रणाम हैं

स्थितप्रज्ञयाय नमः

कृतात्माने नमः

अद्वितीयाये नमः --- अद्वितीय हैं, माने उनसे श्रेष्ट कोई नहीं हैं, ऐसे गुरु को हमारा प्रणाम हैं

करुणासागराये नमः --- जो करुणा के सागर हैं, ऐसे गुरु को हमारा प्रणाम हैं

उत्साहवर्धकाय नमः

उदारहृदयाय नमः --- जिनका हृदय उदार हैं, ऐसे गुरु को प्रणाम हैं

आनंदाय नमः --- आनंद और शांति का दान करनेवाले गुरु को प्रणाम हो

तापनाशनाय नमः --- आदिदैविक ताप, आदिभौतिक ताप, आध्यात्मिक ताप - इन तीन तापों को दूर करनेवाले गुरु को प्रणाम हैं

{गुरु की वाणी वाणी-गुर, वाणी विच अमॄत सारा}

दृद निश्चयाय नमः ------दृद निश्चय होने की प्रेरणा देने वाले गुरु को प्रणाम हैं

जनप्रियाय नमः --- जो सबके प्रिय हैं, ऐसे गुरु को प्रणाम हैं

छिन्नसंषयाय नमः

जितेन्द्रियाय नमः --- जो जितेन्द्रिय हैं, जिनके सुमिरन से हम भी जितेन्द्रिय हो सकते हैं इन्द्रियों को जीतनेवाले ऐसे गुरु को प्रणाम हैं

द्वन्द्वातीताय नमः --- जो द्वन्द्वों से परे हैं, ऐसे गुरु को प्रणाम हैं

धर्मसंस्थापकाय नमः --- धर्म का रहस्य बताने वाले और जन-जन के हृदय में धर्म की स्थापना करनेवाले गुरु को प्रणाम हैं

नारायणाय नमः --- गंगाजी कोई साधारण नदी नहीं हैं, हनुमानजी कोई साधारण वानर नहीं हैं, उसी प्रकार गुरु भी कोई साधारण नर नहीं हैं, वो साक्षात नारायण हैं

प्रसन्नात्मने नमः --- जो सदैव प्रसन्न रहते हैं और सबको प्रसन्नता बाँटते हैं, ऐसे गुरु को प्रणाम हैं

धैर्यप्रदाय नमः --- जिनके दर्शन से, अपने आप धैर्य और शान्ति जाती हैं

मधुरस्वाभावये नमः --- जिनका मधुर स्वभाव हैं, ऐसे गुरु को हमारा प्रणाम हैं

बंधमोक्षकाय नमः --- बंधनों से मुक्ति दिलाने वाले गुरु को प्रणाम हैं

मनोहराय नमः --- हमारे मन का हरण करने वाले गुरु को प्रणाम हैं व्यक्ति के अन्तर मन में से संसार का आकर्षण हठ जाता हैं, गुरु के प्रति , ईश्वर के प्रति, ईश्वर के नाम के प्रति स्वभाविक ही रुचि होने लगती हैं