|| ॐ श्री
सदगुरु परमात्मने नमः ||
साथी-सगे सब स्वार्थ के
हैं,
स्वार्थ का संसार
है |
निःस्वार्थ सदगुरुदेव
हैं,
सच्चा
वही हितकार
है ||
ईश्वरकृपा होवे
तभी,
सदगुरुकृपा जब होये है |
सदगुरु कृपा
बिनु ईश भी, नहीं मैल मन
का धोय है ||
निर्जीव
सारे शास्त्र सच्चा मार्ग
ही दिखलाय
है |
दृढ़ ग्रन्थि
की जड़ खोलने कि युक्ति
नहीं बतलाय
है ||
निस्संग होने
के सबब से ईश भी रुक जाय
है |
गुरु गाँठ
खोलन रीति
तो, गुरुदेव ही बतलाय हैं ||
गुरुदेव अदभुत
रूप हैं, परधाम माहीं विराजते
|
उपदेश देने
सत्य का, इस लोक में आ जावते ||
दुर्गम्य का
अनुभव करा, भय से परे ले
जावते |
परधाम में
पहुँचाय कर, स्वराज्यपद दिलवावते ||
छुड़वाय कर
सब कामना, कर देय
हैं
निष्कामना |
सब कामनाओं
का बता घर, पूर्ण करते
कामना ||
मिथ्या
विषयसुख से
हटा,
सुखसिंधु देते
हैं बता |
सुखसिंधु जल
से पूर्ण अपना, आप देते
हैं जता ||
तन इन्द्रियाँ
मन बुद्धि सब, संबंध
छुड़वा देय हैं
|
अणु ग्रहण
करत सूर्य ज्युँ, जग माहीं चमका
देय है ||
आधार सारे
विश्व का, सबका
ही
जो
अध्यक्ष है |
सो ही बनाते
जीव को, ब्रह्माण्ड जिसका
साक्ष है ||
इक तुच्छ
वस्तु छीनकर, आपत्तियाँ सब मेट
कर |
प्याला
पिला कर अमृत का, मर को बनाते
हैं अमर ||
सब भाँति
से कृत कृत्य कर, परतंत्र को निज
तंत्र कर |
अधिपति
रहित देते बना, भय से छुड़ा
करते निड़र ||
कंचन बनाते
देह को, रज मैल सब हर लेय हैं |
ले कांच
कच्चा हाथ से, कौश्टब मणि दे
देय हैं ||
इस लोक से
परलोक से, सब कर्म से सब
धर्म से |
परतत्त्व में
पहुँचाय कर, ऊँचा करे हैं
सर्व से ||
सदगुरु जिसे
मिल जाये सो ही, धन्य
है जग मन्य
है ||
सुर सिद्ध
उसको पूजते, ता सम न कोऊ अन्य है
||
अधिकारी
हो गुरुदेव
से, उपदेश जो नर
पाय है |
भोला! तरे संसार से, नहीं
गर्भ में फ़िर आय है
||
ईश्वर कृपा
से, गुरु
कृपा से, मर्म मैंने पा
लिया |
ज्ञानाग्नि में
अज्ञान कूड़ा, भस्म
सब है कर दिया ||
अब हो गया
है स्वस्थ सम्यक, लेष नहीं
भ्रांत है |
शंका हुइ निर्मूल
सब, अब चित्त मेरा
शांत है ||
-- भोले बाबा