बाल
संस्कार
केन्द्र
एक
महत्त्वपूर्ण
कदम
बालकों के भीतर सामर्थ्य का असीम भण्डार छुपा हुआ है, जिसे प्रकट करने के लिए जरूरी है – उत्तम संस्कारों का सिंचन, उत्तम चारित्रिक शिक्षा एवं भारतीय संस्कृति के गौरव का परिचय।
पूज्य बापू जी
बालक को संस्कार प्राप्त होते हैं – परिवार से, पाठशाला से एवं उसके आस-पास के वातावरण से। प्राचीन समय में इन तीनों का सामंजस्य था। गुरूकुल में शिक्षा भी तदनुसार ही होती थी एवं बाहर के वातावरण में वे ही आचार-विचार देखने को मिलते थे, जिनकी शिक्षा उन्हें घर तथा गुरूकुल में मिलती थी।
परंतु आज की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है। आज बालक घर में कुछ और ही देखता है, पाठशालाओं में कुछ दूसरा ही पढ़ता है और बाहरी, संसार का अनुभव कुछ भिन्न ही होता है। जिसके कारण वह अपने गौरवमय अतीत से न तो परिचित हो पाता है और न ही उसका अनुसरण करके एक श्रेष्ठ नागरिक ही बन पाता है।
आजकल के दूषित वातावरण में मांसाहार, व्यसनों के प्रति आकर्षण, अश्लीलता को भड़काने वाले दृश्य आदि को प्रोत्साहन मिलता है लेकिन जीवन के उत्थान, नीतिपूर्ण आचरण, सफलता के सुलभ उपाय, आज के गतिमान युग में बढ़ रहे चिन्ता-तनावों से बचने के नुस्खे, माता-पिता अध्यापक, सबके प्रिय बनने की युक्तियाँ आदि बातों का वर्त्तमान शिक्षा में नितांत अभाव है।
हमारे देश
के बालकों में
सुसंस्कार
सिंचन हेतु,
उनके जीवन के
सर्वांगीण
विकास हेतु
श्रोत्रिय
ब्रह्मनिष्ठ
संत श्री आसाराम
जी बापू के
पावन-प्रेरक
मार्गदर्शन
में अनेक
कार्यक्रम
आयोजित किये
जाते हैं,
जैसे कि 'विद्यार्थी
सर्वांगीण
विकास शिविर', युवाधन
सुरक्षा
अभियान, विद्यालयों
में सुसंस्कार
सिंचन
कार्यक्रम एवं
पूज्य श्री के
सत्साहित्य
पर आधारित प्रतियोगिताओं
का आयोजन आदि।
इसी श्रृंखला
में एक कड़ी
है बाल
संस्कार
केन्द्र।
सभी सज्जनों, साधकों, देशवासियों से अनुरोध है कि वे इसका लाभ अधिक-से-अधिक बालकों को दिलायें एवं सेवा के इस स्वर्ण-अवसर का लाभ उठाकर अपना जीवन धन्य बनायें।
श्री योग वेदान्त सेवा समिति, संत श्री आसारामजी आश्रम, अमदावाद।
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'बाल संस्कार
केन्द्रः' एक महत्त्वपूर्ण
कदम
'हर घर हो बाल
संस्कार केन्द्र' अभियान
'बाल संस्कार
केन्द्र' की
आवश्यकता एवं परिचय़
बाल संस्कार
केन्द्र की शुरूआत
कैसे करें ?
सारस्वत्य
मंत्र दीक्षा का
प्रभाव
विद्यालयों
में इस अभियान
को कैसे चलायें
?
विद्यालयों
को इस कार्यक्रम
से होने वाले अद्वितीय
लाभ
बाल संस्कार
केन्द्र के 21 अनमोल
रत्न
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पूज्य सदगुरूदेव की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन द्वारा भारत भर में पूज्य बापू जी के सेवाभावी साधकों द्वारा अनेक 'बाल संस्कार केन्द्र' चलाये जा रहे हैं। इन बाल संस्कार केन्द्रों में गुरूदेव द्वारा बताये गये उपदेशों एवं अनोखे प्रयोगों से बच्चों की सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत किया जाता है ताकि उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो और उनका जीवन गुलाब की तरह महक उठे।
क्या आप भी अपने बच्चों के जीवन में संस्कार-सिंचन की जरूरत महसूस करते हैं ?
क्या आप भी अपने घर अथवा आस-पास के क्षेत्र में 'बाल संस्कार केन्द्र' चलाना चाहते हैं ?
क्या आप 'बाल संस्कार केन्द्र' चलाने हेतु मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण पाना चाहते हैं ?
गुरूपूर्णिमा के शुभ पर्व पर पूज्य बापूजी के आशीर्वाद से राष्ट्रीय स्तर पर हर घर हो बाल संस्कार केन्द्र अभियान का शुभारंभ हुआ है। जिसके अंतर्गत भारतभर में एक लाख 'बाल संस्कार केन्द्र' खोलने का संकल्प लिया गया। यह महासंकल्प पूरा होने हेतु पूज्य बापू जी ने आशीर्वाद के पुष्प बरसाये। इस अभियान के तहत पूज्य श्री से दीक्षित साधक भाई-बहन अपने घर या आस-पास के क्षेत्र में बाल संस्कार केन्द्र स्वयं भी खोलें और अपने संपर्क में आने वाले योग्य साधकों को केन्द्र खोलने हेतु प्रेरित करें। 'बाल संस्कार केन्द्र' की सेवा आपके द्वारा सुचारू रूप से चले और समय-समय पर मुख्यालय द्वारा उचित मार्गदर्शन मिलता रहे, इस हेतु सभी साधक अपना 'बाल संस्कार केन्द्र' अमदावाद आश्रम में अवश्य पंजीकृत करायें।
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बाल्यकाल के संस्कार एवं चरित्रनिर्माण ही मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला हैं।
बालक ही देश का असली धन है। भारत का भविष्य, विश्व का गौरव और अपने माता-पिता की शान हैं। बच्चे देश के भावी नागरिक हैं और आगे चलकर उन्हीं के कंधों पर देश की स्वतंत्रता, संस्कृति की रक्षा तथा उसकी परिपुष्टि का भार पड़ने वाला है।
आज प्रत्येक माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे न केवल स्कूली विद्या में ही सफल हों, अपितु अन्य कलाओं जैसे – खेलकूद, वक्तृत्व आदि तथा विभिन्न सामाजिक प्रवृत्तयों में भी आगे आयें और सफल बनें। विद्यालय में शिक्षक एवं प्रधानाचार्य भी अपने विद्यार्थियों से अपेक्षा रखते हैं कि उनकी बुद्धि कुशाग्र बने एवं वे परीक्षा में अच्छे परिणाम लायें ताकि समाज में उनकी संस्था का गौरव बढ़े। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण के दौर में विदेशी टी.वी. चैनलों, चलचित्रों, व्यसनों, अशुद्ध खान-पान आदि ने वातावरण इतना दूषित बना दिया है कि हमारे बच्चे अगर जीवन में अच्छे संस्कार पाना भी चाहें तो उन्हें ऐसी कोई राह ही नहीं दिखती, जिस पर चलकर वे सुसंस्कारी बालक बन सकें।
ऐसे समय में
ब्रह्मनिष्ठ
संत श्री
आसाराम जी बापू
के मार्गदर्शन
से हो रही
विभिन्न
सेवा-प्रवृत्तियों
द्वारा
बच्चों को
ओजस्वी,
तेजस्वी,
यशस्वी बनाने
हेतु भारतीय
संस्कृति की
अनमोल
कुंजियाँ
प्रदान की जा
रही हैं।
इन्हीं
सत्प्रवृत्तियों
में मुख्य
भूमिका निभा
रहे हैं देश
में व्यापक
स्तर पर चल
रहे बाल
संस्कार
केन्द्र।
बाल संस्कार केन्द्र माता पिता एवं गुरूजनों का आदर व आज्ञापालन जैसे उच्च संस्कार, प्राणायाम, योगासन, सूर्यनमस्कार, ध्यान, स्मरणशक्ति बढ़ाने की युक्तियाँ, बाल कथाएँ, पर्व-महिमा, देशभक्तों व संतों-महापुरूषों के दिव्य जीवनचरित्र बताना, श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोक, संतों द्वारा कही गयी साखियाँ, भिन्न-भिन्न स्पर्धाएँ, खेल, वार्षिकोत्सव आदि के द्वारा विद्यार्थियों की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करके उनके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक-सर्वांगीण विकास की कुंजियाँ प्रदान की जाती हैं। अभ्यासक्रम पूरा होने के बाद बालक को प्रमाणपत्र भी दिया जाता है।
अपने
बालकों के
उज्जवल
भविष्य के
निर्माण हेतु
बालकों
में
सुसंस्कार
सिंचन करना हम
सबका नैतिक
कर्त्तव्य
है।
पूज्य
बापू जी
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बाल संस्कार केन्द्र का कार्यक्रम सप्ताह में एक बार (रविवार, शनिवार अथवा संचालक और बच्चों की सुविधानुसार कोई भी दिन) दो घंटे की अवधि में करना है। आवश्यकतानुसार सप्ताह में अधिक बार एवं कोई पर्व आने पर भी आयोजन कर सकते हैं। केन्द्र संचालक अथवा अन्य साधक का घर, मन्दिर का परिसर, स्कूल की कक्षा अथवा किसी सार्वजनिक स्थल पर 'बाल संस्कार केन्द्र' का शुभारंभ किया जा सकता है। 6 से 15 वर्ष के भीतर के बच्चों को इसमें प्रवेश दिया जाच सकता है। बालव एवं बालिकाओं को अलग-अलग बिठायें तथा उनके अभिभावकों और अन्य साधकों को पीछे बिठाया जाये।
अभिभावकों को उदबोधनः पूज्य सदगुरूदेव एवं भगवान के फोटो के समक्ष धूप दीप, अगरबत्ती आदि करके वातावरण को सात्त्विक बनायें एवं फूल-मालादि से सजावट करें। सभी बच्चों को एवं अभिभावकों को यथायोग्य स्थान पर बिठाने के बाद थोड़ी देर हरिनाम-उच्चारण एवं गुरूवंदना करें। केन्द्र के शुभारंभ के दिवस पर बच्चों एवं अभिभावकों का अभिवादन करते हुए उन्हें मुख्य संस्था के उद्देश्य, 'बाल संस्कार केन्द्र' के उद्देश्य, कार्यक्रम-प्रणाली आदि की जानकारी दें एवं आश्रम के अन्य सेवाकार्यों का विवरण तथा आश्रम का पता भी बतायें। विवरण संक्षिप्त एवं स्पष्ट हो। अंत में बालकों के नाम पूज्यश्री का संदेश सुनाते हुए अपना वक्तव्य समाप्त करें और बच्चों के कार्यक्रम की शुरूआत करें।
सभी बाल संस्कार केन्द्रों के संचालन में एकरूपता व उच्च कार्यदक्षता लाने हेतु कार्यप्रणाली तैयार की गयी है। बच्चे केन्द्र में नियमितरूप से आयें, इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों को हर सत्र में कुछ नया जानने, सीखने व करने को मिले। इसके अभाव में कभी-कभी केन्द्र के आरम्भ होने के कुछ समय बाद बच्चों की संख्या में कमी दिखाई पड़ती है। इसलिए दो घंटे की समयावधि को भिन्न-भिन्न क्रियाओं में बाँट दिया गया है ताकि बच्चों की रूचि वह जिज्ञासा बनी रहे तथा उनका सर्वांगीण विकास हो।
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प्रार्थना (10 मिनट)- हरिनाम उच्चारणः हरि ॐ का 7 अथवा 11 बार दीर्घ उच्चारण करवायें। मंत्रोच्चारण। ॐ गं गणपतये नमः। ॐ श्री सरस्वत्यै नमः। ॐ श्री गुरूभ्यो नमः। इसके पश्चात गुरूवन्दना, सरस्वती वंदना करायें।
प्राणायाम (5 मिनट)- (भ्रामरी, अनुलोम, विलोम, ऊर्जायी) महत्त्व, विधि, प्रायोगिक प्रशिक्षण। बच्चों के लिए विशेष उपयोगी भ्रामरी प्राणायाम हर सत्र में 5-7 बार करवायें तथा इसे घर भी नियमित रूप से करने के लिए प्रेरित करें। अनुलोम-विलोम प्राणायाम और ऊर्जायी प्राणायाम का भी अभ्यास करवायें।
योगासन, सूर्यनमस्कार, मुद्राएँ (15 मिनट)- महत्त्व, विधि, प्रायोगिक प्रशिक्षण। आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तकों योगासन और बालसंस्कार से आसन, सूर्यनमस्कार एवं मुद्रायें सिखाएँ। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए 2 सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, शशांकासन, पादपश्चिमोत्तानासन एवं अंत में श्वासन नियमित रूप से करने जैसे हैं।
पर्व महिमा, ऋतुचर्या (10 मिनट)- विभिन्न पर्वों पर उनका सामाजिक, धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व कथासहित रूचिपूर्ण ढंग से बतायें। वर्त्तमान ऋतु के अनुसार बच्चों को जानकारी दें कि किस ऋतु में खान-पान, रहन सहन से सम्बन्धित क्या-क्या सावधानियाँ रखनी हैं, कौन-सा आहार स्वास्थ्य के लिए हितकारी है और कौन सा हानिकारक है।
श्लोक, स्तोत्रपाठ, साखियाँ, प्राणवान पंक्तियाँ (10 मिनट)- बाल संस्कार पुस्तक में से साखियाँ एवं प्राणायाम पंक्तियाँ सिखायें तथा साथ ही उनसे जुड़ी कुछ वार्ता अथवा कथा सुनायें एवं चर्चा करें। बालक इन्हें जीवन में गहरा उतार लें ऐसा प्रयास केन्द्र संचालक करें। श्रीमद् भगवद् गीता के 2-5श्लोकों का उच्चारण करवायें और अर्थ बतायें। गुर्वष्टकम का पाठ भी कंठस्थ करा सकते हैं।
कथा प्रसंग, अन्य महत्त्वपूर्ण विषय (25 मिनट)- देशभक्तों एवं संतों के प्रेरक जीवन-प्रसंग बताकर बच्चों को अपने जीवन में दिव्य गुण अपनाने की प्रेरणा दें।
सदगुण अपनोओः एकाग्रता, संयम, सत्यप्रियता, श्रद्धा, दया, परोपकार, धर्म-रक्षा, ब्रह्मचर्य, देशप्रेम, अडिगता, भक्ति, त्याग, सेवा, अहिंसा, ईमानदारी, सत्संग श्रवण आदि सदगुण कथाओं एवं प्रसंगों के द्वारा समझायें।
दुर्गुण त्यागोः दुर्गुणों से होने वाली हानि यथासंभव कथा द्वारा बतायें तथा दुर्व्यसनों के घातक प्रभाव पर प्रकाश डालकर बच्चों को उनसे सावधान करें। उन्हें अपने जीवन में कभी भी न अपनाने का संकल्प करायें।
सुषुप्त शक्तियाँ जगाने का प्रयोगः मौन, त्राटक, जप, ध्यान, संध्या-वंदन आदि।
शिष्टाचार के कुछ नियम, दिनचर्या, आदर्श बालक की पहचान, मातृ-पितृ भक्ति, सदगुरू-महिमा, मंत्र-महिमा, यौगिक चक्र, भारतीय संस्कृति की परंपराओं का महत्त्व, परीक्षा में सफलता कैसे पायें ? विद्यार्थी छुट्टियाँ कैसे मनायें ? जन्मदिन कैसे मनायें ?
प्रश्नोत्तरीः (10 मिनट)- कार्यक्रम के अंत में अथवा बीच-बीच में सिखाये हुए विषयों पर प्रश्न पूछें।
मनोरंजन के साथ ज्ञान (20 मिनट)- इसमें विभिन्न प्रकार के खेल, ज्ञानप्रद चुटकुले, पहेलियाँ, शौर्यगीत तथा भजन-कीर्तन के माध्यम से बच्चों का ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन भी करायें।
व्यक्तित्व-विकास के प्रयोग- वक्तृत्व स्पर्धा, लेखन स्पर्धा, चित्रकला प्रतियोगिता इत्यादि के द्वारा बालक की छुपी हुई योग्यता विकसित हो ऐसा प्रयास करें।
स्वास्थ्य संजीवनी (5 मिनट) ऋषि प्रसाद, लोक कल्याण सेतु, तथा आरोग्यनिधि 1, 2 से बालकोपयोगी स्वास्थ्यप्रद बातें, सरल व सचोट घरेलु नुस्खे बच्चों को बतायें।
आरती, प्रसाद-वितरण (10 मिनट)- पूज्य श्री की आरती तथा प्रसाद वितरण करके कार्यक्रम की पूर्णाहूति करें।
नोटः यह सारणी मार्गदर्शन हेतु है, आवश्यकतानुसार समय कम-ज्यादा कर सकते हैं। आश्रम द्वारा प्रकाशित हमारे आदर्श, तू गुलाब होकर महक, परम तप, जीवन विकास, मधुर व्यवहार, योगलीला, मन को सीख, नशे से सावधान, योगयात्रा-4, पुरूषार्थ परमदेव, यौवन-सुरक्षा- भाग 1 व 2 आदि पुस्तकों का अध्ययन करें। विद्यार्थियों से सम्बन्धित ऑडियो कैसेट विद्यार्थियों के लिए – भाग 1 से 5, भाग 6 से 10, विनोद में वेदान्त, बाल-भक्तों की कहानियाँ – भाग 1 व 2, ज्ञान के चुटकुले – भाग 1 व 2, सफलता के सूत्र, आदि का नित्य श्रवण करें तथा कभी-कभी इस कार्यक्रम में बच्चों को भी 15 से 20 मिनट तक पूज्यश्री का सत्संग सुनाकर प्रश्न पूछें। विद्यार्थियों के लिए भाग 1 से 5 विडियो सी.डी. भी दिखा सकते हैं।
उत्साही एवं जागरूक साधकों द्वारा किया गया प्रयास एवं उनकी निःस्वार्थ सेवापरायणता उन्हें इस दिशा में कार्यरत करके पूज्यश्री के दैवी कार्यों में सहभागी बनने का सुअवसर प्रदान कर रही है। तो आप भी इस सेवाकार्य में जुडकर हर घर हो बाल संस्कार केन्द्र अभियान में सम्मिलित होकर अपना तथा भारत के नौनिहालों, हमारे देश के इन भावी कर्णधारों का भविष्य उज्जवल बनायें।
अधिक जानकारी हेतु अहमादबाद आश्रम में संपर्क करें।
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परम पूज्य बापू के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।
पूज्य बापूजी की कृपा से मुझे सितंबर 18 में पुष्कर ध्यानयोग शिविर में सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा मिली।
मैं नित्य सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके प्राणायाम, श्री गुरूगीता एवं श्री आसारामायण का पाठ तथा सारस्वत्य मंत्र का जप करता हूँ। जिसके फलस्वरूप तथा पूज्य गुरूदेव की असीम कृपा से मैंने 10 वीं कक्षा में 93.33% अंक प्राप्त करके राजस्थान राज्य की बोर्ड की वरीयता सूची में 11 वाँ स्थान प्राप्त किया है।
मैं प्रत्येक रविवार सत्संग में जाता हूँ तथा ऋषि प्रसाद पत्रिका एवं बाल संस्कार पुस्तक का पठन-मनन करता हूँ। नित्य प्राणायाम करने से मेरी एकाग्रता में वृद्धि हुई है व आत्मबल बढ़ा है। मुझे 8वीं कक्षा से स्कूल द्वारा छात्रवृत्ति प्राप्त हो रही है।
चेतन कुमार मौर्य
ए-22, बालनगर, करतारपुरा, जयपुर (राज.)।
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मैं पढ़ने में बचपन से ही कमजोर थी। डॉक्टर का कहना था कि मेरे दिमाग की नसों में आवश्यक मात्रा में खून नहीं पहुँच पाता है।
कक्षा 10वीं में कठोर परिश्रम के बावजूद परिणाम संतोषकारकन था। मैं हताशा-निराशा के बीच झूल रही थी, तभी चमत्कार हुआ ! कक्षा 11 वीं में मुझे सूरत में पूज्य बापू जी से सारस्वत्य मंत्र लेने का अवसर मिला। उसके बाद मेरा भाग्योदय शुरू हो गया।
पूज्य गुरूदेव से प्राप्त सारस्वत्य मंत्र का नियमित जप करने के बाद मैं पढ़ने में सदैव आगे रही हूँ। कक्षा 12वीं में डिस्टिंक्शन के साथ पास हुई और मुझे प्रमाणपत्रों के साथ दो ट्राफियाँ भी मिली।
प्राध्यापक बनने के इरादे से मैंने आर्टस में एडमिशन लिया। प्रथम-द्वितीय वर्ष में तो प्रथम श्रेणी से पास हुई किंतु अंतिम वर्ष में मुझे चिंता होने लगी। मैंने और माता-पिता ने बड़-बादशाह की मनौती मानी और उस वर्ष चमत्कार हो गया।
प्रथम श्रेणी के साथ मुझे पूरे विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान मिला ! मुझे कालेज की तरफ से 5 स्वर्णपदक और 1 कांस्यपदक तथा 8 रजत पदक गाँधीनगर, पाटण तथा चांदखेड़ा क्षेत्रों में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए मिले। इस प्रकार मुझे कुल 14 पदक प्राप्त हुए।
पूज्य बापू जी की कृपा से प्राप्त मेरी जिंदगी का यह खुशनसीब दिन मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी....
शिल्पा डाह्याभाई धारवा,
छात्रा – एम.ए. (समाजशास्त्र), चांदखेड़ा, अमदावाद (गुज.)।
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बाल्यकाल ही जीवन की नींव है और बालक-बालिकाएँ ही घर, समाज व देश की धरोहर हैं। नींव सँभली तो सब सँभला, बाल्यकाल को सँवारा तो समझो जीवन सँवरा। अतः बालकों में सुसंस्कारों का सिंचन करना हम सबका राष्ट्रीय कर्त्तव्य है।
जिस दीपक में तेल नहीं वह प्रकाशित नहीं हो सकता, इसी प्रकार जिस शरीर में संयम-बल नहीं, ओज-वीर्य नहीं, उसकी इन्द्रियों, मन, बुद्धि में विशेष निखार नहीं आ पाता। अतः हर व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह अपनी युवावस्था में संयम-सदाचारपूर्वक रहकर अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आत्मिक शक्ति का विकास करे।
भारत का सर्वांगीण विकास व उज्जवल भविष्य सुसंस्कारी बालकों व चारित्र्यवान एवं संयमी युवानों पर आधारित है। अपने देश के विद्यार्थियों में सुसंस्कार सिंचन हेतु, उनका विवेक जाग्रत करने हेतु एवं उनके जीवन को संयमी, सदाचारी, स्वस्थ व सुखी बनाकर उनके सुंदर भविष्य निर्माण हेतु परम पूज्य संत श्री आसाराम जी बापू के पावन प्रेरक मार्गदर्शन में देशभर में संस्कार सिंचन अभियान व्यापक रूप से चलाया जा रहा है।
संत श्री आसाराम जी आश्रम द्वारा बाल संस्कार व युवाधन सुरक्षा पुस्तकें आज लाखों विद्यार्थियों को सर्वांगीण विकास की कुंजियाँ प्रदान कर रही हैं। संस्कार सिंचन अभियान के अंतर्गत इन दो पुस्तकों को विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाता है। आप भी इस अभियान में, राष्ट्र-जागृति के दैवी कार्य में सहभागी होकर ऋषिज्ञान की पावन गंगा विद्यार्थियों के जीवन में बहायें।
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साधकों को इस अभियान के अंतर्गत बाल संस्कार व युवाधन सुरक्षा पुस्तकें विद्यार्थियों तक पहुँचाने का दैवी कार्य करना है।
200 पुस्तकें (बाल संस्कार व युवाधन सुरक्षा मिलाकर) खरीदने पर एक रजत कार्ड दिया जायेगा और ऐसे 10 रजत कार्ड जमा करने पर एक स्वर्ण कार्ड दिया जायेगा।
स्वर्ण कार्ड धारक को पूज्यश्री के सान्निध्य में होने वाले एक सत्संग कार्यक्रम अथवा ध्यान योग शिविर में आगे बैठने का लाभ प्राप्त होगा। ध्यान दें-
एक स्वर्ण कार्ड धारक एक ही कार्यक्रम या शिविर में इस व्यवस्था का लाभ ले सकता है।
ध्यान योग शिविर में कार्ड धारकों हेतु विशेष बैठक व्यवस्था मर्यादित रहेगी, अतः वे अमदावाद मुख्यालय का संपर्क कर अपना स्थान सुनिश्चित कर लें। सत्संग-कार्यक्रमों में यह व्यवस्था विस्तृत रूप में उपलब्ध होगी।
गुरूपूर्णिमा के समय यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी।
प्रतियोगी को स्वर्ण कार्ड अमदावाद मुख्यालय अथवा सत्संग स्थल पर लगी बाल संस्कार प्रदर्शनी में ही प्राप्त हो सकेगा।
भारत को 10 परिक्षेत्रों में विभाजित कर हर परिक्षेत्र में सर्वाधिक स्वर्ण कार्ड पाने वाले 3 धारकों को सन् 2006 की गुरूपूर्णिमा के अवसर पर पूज्य श्री के कर कमलों द्वारा प्रमाणपत्र एवं क्रमशः स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक प्राप्त होगा।
इस स्वर्णिम अवसर के साथ-साथ इन पुस्तकों पर विशेष छूट योजना का भी लाभ इस अभियान में सहभागी होने वालों को मिल सकेगा। योजना इस प्रकार हैः
साधक अगर 200 पुस्तकें (बाल संस्कार व युवाधन सुरक्षा मिलाकर) किसी भी आश्रम से खरीदता है तो उसे बाल संस्कार पर 15 % एवं युवाधन सुरक्षा पर 28.5 % छूट प्राप्त होगी। जिन भाषाओं में युवाधन सुरक्षा पुस्तक नहीं छपी है, उन भाषाओं में अगर यौवन सुरक्षा पुस्तक उपलब्ध है तो उस पर 15 % छूट प्राप्त होगी।
रजत कार्ड प्राप्त करने हेतु खरीदी जाने वाली हर 200 पुस्तकों में युवाधन सुरक्षा पुस्तक की संख्या कम से कम 50 होना अनिवार्य है।
इस अभियान के प्रचार प्रसार हेतु घर घर व विद्यालयों में जाकर इन पुस्तकों की बिक्री की जा सकती है। बैंकों, कंपनियों, शासकीय, अर्धशासकीय, निजी व अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों एवं स्वयंसेवी संस्थानों आदि में भी इन पुस्तकों की बिक्री की जा सकती है। इसमें शैक्षणिक संस्थाओं व विद्यालयों पर विशेष ध्यान दिया जाये।
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सर्वप्रथम विद्यालय के प्रधानाचार्य से भेंट कर अपनी संस्था का परिचय देते हुए उन्हें संस्कार सिंचन कार्यक्रम के बारे में बतायें। उनसे कार्यक्रम के लिए 30-40 मिनट का समय व पुस्तकें वितरित करने हेतु अनुमति ले लें। उन्हें युवाधन सुरक्षा व बाल संस्कार पुस्तकें भेंटरूप में दे सकते हैं।
अनुमति मिलने पर संस्कार सिंचन कार्यक्रम के अन्तर्गत विद्यार्थियों को नैतिक मूल्यों तथा आसन-प्राणायाम आदि की शिक्षा प्रदान करें।
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इस कार्यक्रम से विद्यार्थियों में संयम सदाचार बढ़ेगा, जिससे विद्यालय में अनुशासन का स्तर भी बढ़ेगा।
विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होगा और वे अध्ययन के अतिरिक्त खेलकूद, वक्तृत्व-स्पर्धा आदि अन्य विविध क्षेत्रों में भी विद्यालय का नाम रोशन करने में सक्षम बनेंगे।
उनमें अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम पैदा होने से वे अपनी संस्कृति की विविध परंपराओं का अनुसरण करते हुए गुरूजनों एवं माता-पिता का आदर करना शुरू करेंगे।
कार्यक्रम में सिखाये जाने वाले प्राणायाम, प्राणवान पंक्तियों आदि के माध्यम से वे प्राणबल-संपन्न बनेंगे एवं कार्यक्रम में सेवा की महत्ता जानकर परोपकारमय जीवन जीने की ओर अग्रसर होंगे।
उन्हें पुरूषार्थी बनने की प्रेरणा मिलेगी, जिससे वे जीवन के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे।
कार्यक्रम में राष्ट्रभक्तों के जीवन के प्रेरक प्रसंग सुनकर उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत हो जायगी।
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पूज्य बापू जी द्वारा सत्संग में बतायी गयी विद्यार्थी-जीवन के विकास में उपयोगी बातें बताकर उनके द्वारा कराये जाने वाले यौगिक प्रयोगों का परिचय दें। विद्यार्थियों के जीवन में इनसे होने वाले चमत्कारिक लाभों की जानकारी देते हुए कार्यक्रम की शुरूआत करें।
हरिनाम उच्चारण व प्रार्थना (गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः......संक्षेप में) करें।
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शास्त्रवचनः
स्नानं दानं
तपो होमो
देवतापितृकर्म
च।
तत्सर्वं
निष्फलं याति
ललाटे तिलकं
विना।।
'ललाट पर तिलक किये बिना स्नान, दान, तपस्या, होम, देव-पूजन, पितृकर्म – सब निष्फल हो जाते हैं।'
ब्रह्मवैवर्त पुराण
वैज्ञानिक तथ्यः ललाट पर दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक्र (शिवनेत्र) है और उसके पीछे के भाग में दो महत्त्वपूर्ण अंतः स्रावी ग्रंथियाँ स्थित हैं- पीनियल ग्रंथी, पीयूष ग्रन्थी।
तिलक लगाने से इन दोनों ग्रंथियों का पोषण होता है। फलतः विचारशक्ति का विकास होता है। इससे नाड़ियों का शोधन भी होता है।
विधिः सीधे खड़े होकर दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंद करके हाथों को शरीर से सटाकर अपना सिर पीछे की तरफ ले जायें और दृष्टि आसमान की ओर रखें। इस स्थिति में तेजी से 25 बार श्वास लें और छोड़ें। फिर मूल स्थिति में आ जायें। इस प्रयोग के नियमित अभ्यास से ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं। चोटी के स्थान के नीचे गाय के खुर के आकारवाला बुद्धिमंडल होता है, जिस पर इस प्रयोग का विशेष प्रभाव पड़ता है और बुद्धिशक्ति का विकास होता है।
विधिः सीधे खड़े होकर दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंद करके हाथों को शरीर से सटाकर रखें। आँखें बन्द करके सिर को नीचे की तरफ इस तरह झुकायें कि ठोढ़ी कंठकूप से लगी रहे और कंठकूप पर हलका सा दबाव पड़े। अब इस स्थिति में उपरोक्त विधि से 25 बार श्वास लें और छोड़ें। फिर मूल स्थिति में आ जायें। इस प्रयोग से मेधाशक्ति बढ़ती है।
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ताड़ासन – विद्यार्थियों को इस आसन के लाभ बतायें एवं इसे करना सिखायें।
5वीं व 6वीं कक्षा के विद्यार्थियों को लालबहादुर शास्त्री जी के जीवन प्रसंग साहसिक लड़का (हमारे आदर्श पुस्तक देखें) जैसा एक प्रेरणादायक प्रसंग बता सकते हैं।
7वीं से 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को संयम-सदाचार की महिमा बताते हुए युवाधन सुरक्षा अथवा यौवन सुरक्षा भाग 1 व 2 से कोई प्रेरणादायक दृष्टांत दें। जैसे स्वामी विवेकानन्द का आँखों में मिर्च वाला प्रसंग बता सकते हैं।
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एक युवान शाम के समय तेजी से स्कूटर चलाकर आ रहा था। स्कूटर की हेड लाइट नहीं थी। सामने से पुलिस अधिकारी ने उसे रोकते हुए कहाः "रूक, तेरे स्कूटर पर लाइट नहीं है, मैं चालान करूँगा, रूक जा !"
युवान ने कहाः "पुलिसवाले ! हट जा मेरे स्कूल में ब्रेक भी नहीं है, तुम पर गिरूँगा।"
हमारे जीवनरूपी स्कूटर में ज्ञान के प्रकाश की हेड लाइट और संयम की ब्रेक भी चाहिए।
बालकों को इस प्रकार के ज्ञानवर्धक चुटकुले सुनायें। (ज्ञान के चुटकुले कैसेट सुनें।)
वक्तृत्व संक्षेप में पूरा करने के बाद विद्यार्थियों को युवाधन सुरक्षा और बाल संस्कार पुस्तकों का परिचय व महिमा बताते हुए उन्हें ये पुस्तकें खरीदने हेतु प्रेरित करें। वहाँ पर बिक्री हेतु यथासंभव उसी दिन पुस्तकें साथ ले जायें। कार्यक्रम की अवधि 30-40 मिनट से अधिक न हो।
यह प्रारूप मात्र मार्गदर्शन हेतु है, आवश्यकतानुसार समय तथा वक्तृत्व में बदलाव ला सकते हैं।
अपने क्षेत्र में संस्कार सिंचन अभियान को सफल बनाने हेतु सभी साधक व्यापक रूप से दोनों पुस्तकों का प्रचार-प्रसार करें। स्वर्ण कार्ड प्राप्त कर पूज्य श्री का सान्निध्य-लाभ पायें व अपनी आध्यात्मिक उन्नति करें। इस अभियान के द्वारा इन दो पुस्तकों के माध्यम से पूज्य श्री की अमृतवाणी अधिक से अधिक विद्यार्थियों तक पहुँचाने के पुनीत कार्य में सभी सहयोगी बनें।
यौवन-सुरक्षा अर्थात् अपने सर्वस्व की सुरक्षा.... सर्वेश्वर को पाने की योग्यता की सुरक्षा और बाल संस्कार अर्थात् बालकों के उन्नत जीवन का आधार.... अतः 'संस्कार सिंचन अभियान' चलाने वाले पुण्यात्माओं के साथ आप भी कंधे-से-कंधा मिलाकर मानवता की सेवा और सुरक्षा में साझीदार बनें। आप भी इन पुस्तकों को इस ढंग से बेचें या बाँटें कि सामने वाला व्यक्ति 'युवाधन सुरक्षा' पुस्तक पाँच बार पढ़ने को सहमत हो जाय और बालक एवं अभिभावक 'बाल संस्कार' पुस्तक का लाभ लें।
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अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें- 'बाल संस्कार केन्द्र विभाग
श्री अखिल भारतीय योग वेदान्त सेवा समिति,
संत श्री आसाराम जी आश्रम,
संत श्री आसाराम जी बापू आश्रम मार्ग,
अमदावाद – 380005, फोनः 079- 27505010,11
Email: balsanskar@ashram.org
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प्रतिदिन
पालनीय नियम
1.
सूर्योदय
से पहले
ब्रह्ममुहूर्त
में उठना।
2.
प्रातः
शुभ चिंतन,
शुभ संकल्प,
इष्टदेव अथवा
गुरूदेव का
ध्यान।
3.
करदर्शन।
4.
प्रार्थना,
जप, ध्यान, आसन,
प्राणायाम।
5.
सूर्य
को अर्घ्य एवं
सूर्यनमस्कार।
6.
तुलसी
के 5 पत्तों का
सेवन कर 1
गिलास पानी
पीना।
7.
माता-पिता
एवं गुरूजनों
को प्रणाम।
8.
नियमित
अध्ययन।
9.
अच्छी
संगत।
10.
भोजन
से पूर्व गीता
के पंद्रहवें
अध्याय का पाठ
व सात्त्विक,
सुपाच्य तथा
स्वास्थ्कर
भोजन।
11.
त्रिकाल
संध्या।
12.
सत्शास्त्र-पठन
और
सत्संग-श्रवण।
13.
सेवा,
कर्त्तव्यपालन
व परोपकार।
14.
सत्य
एवं मधुर
भाषण, अहिंसा,
अस्तेय (चोरी
न करना)।
15.
समय
का सदुपयोग।
16.
परगुणदर्शन
(दूसरों के
अच्छे गुणों
पर दृष्टि
रखना)।
17.
घरकाम
में मदद और
स्वच्छता।
18.
खेलकूद।
19.
त्राटक,
मौन।
20.
जल्दी
सोना-जल्दी
उठना।
21.
सोने
से पहले
आत्मनिरीक्षण,
ईश्वर-गुरूदेव
का चिंतन,
धन्यवाद।
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