गुरु पूर्णिमा

और पूनम तो हम मनाते हैं, लेकिन गुरुपूनम हमे मनाती है...

गुरु स्तवन

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम् |
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ||
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम् ||
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||

 श्री गुरुभ्यो नमः

 श्री परम गुरुभ्यो नमः

 श्री परात्पर गुरुभ्यो नमः

 श्री परमेष्टी गुरुभ्यो नमः

ऐसे महिमावान श्री सदगुरुदेव के पावन चरणकमलों का षोड़शोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है | मानसपूजा इस प्रकार कर सकते हैं |

मन ही मन भावना करो कि हम गुरुदेव के श्री चरण धो रहे हैं … सर्वतीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं | खूब आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर … श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं … उनके तेजोमय ललाट में शुद्ध चन्दन से तिलक कर रहे हैं … अक्षत चढ़ा रहे हैं … अपने हाथों से बनाई हुई गुलाब के सुन्दर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं … पाँच कर्मेन्द्रियों की, पाँच ज्ञानेन्द्रियों की एवं ग्यारवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित कर रहे हैं …

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैवा
बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् |

करोमि यद् यद् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ||

शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो जो करते करते हैं वह सब समर्पित करते हैं | हमारे जो कुछ कर्म हैं, हे गुरुदेव, वे सब आपके श्री चरणों में समर्पित हैं … हमारा कर्त्तापन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है |

इस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सदगुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को, हृयद में भरते हुए, उनके अमृत वचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख हो जाओ … आनन्दमय बनते जाओ …
ॐ आनंद ! ॐ आनंद ! ॐ आनंद !

पूज्य बापूजी का गुरुपूर्णिमा सन्देश - 16 जुलाई 2019

*  पूज्य बापूजी का गुरुपूर्णिमा संदेश 
दिनांक - 16-7-2019

*  हरि ॐ, आज गुरुपूनम है । 

*  गुरुपूनम का सबको खूब-खूब धन्यवाद । 

*  व्यासपूर्णिमा की सबको खूब-खूब बधाई हो । 

 (भगवान शिवजी कहते हैं -) 
 गुरुमंत्रो मुखे यस्य तस्य सिद्धि नान्यथा । 
 गुरुलाभात्सर्वलाभो गुरुहीनस्तु बालिशः ।। 

*  पार्वती ! जिसके जीवन में गुरुमंत्र है उसे सिद्धि मिलती है, बाकी के लोग ऐसे ही बेचारे रगड़े जाते हैं । 

 कबीरजी ने कहा - गुरुबिन माला क्या सटकावै । मनुवा दश दिशाओं जाय, कैसे हो कल्याण ? निगुरा नहीं रहना, सुन लो चतुर सुजान । 
 तो आज गुरुपूनम है और इसको व्यासपूर्णिमा भी बोलते हैं ।जिन्होंने वेदों का विभाग करके मानवजाति का बड़ा कल्याण किया उन महापुरुष (वेदव्यासजी) की स्मृति में, जिनको परमात्मा का साक्षात्कार हुआ ऐसे सद्गुरुओं की पूजा का दिवस है; लल्लु-पंजुओं की पूजा का दिवस नहीं है । 

*  हरमोनियम ले के गुरु बन के बैठ गये या दूसरे झोलाछापों की पूजा का दिवस नहीं है । कन्या-मन्या कुर्र... तू मेरा चेला, मैं तेरा गुर्र... ऐसे लोगों की पूजा का दिन नहीं है ।  

*  जिनको सद्गुरु-तत्त्व का, 'सत्' तत्त्व का साक्षात्कार हुआ है ऐसे ब्रह्मज्ञानी गुरुओं के पूजन का दिवस है । 

 कबीरजी बोलते हैं : 

*  सद्गुरु मेरा सूरमा करे शब्द की चोट । 
 मारे गोला प्रेम का हरे भरम की कोट ।। 

*  'मैं शरीर हूँ और संसार सच्चा है और सुख सच्चा है, दुःख सच्चा है' - यह भरम हटा दे ज्ञान से । और तू इन सबका साक्षी है, तू आत्मा है और परमात्मा का सनातन अंश है । 

*  ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । 
 ऐसे गुरु, श्रीकृष्ण-तत्त्व का जिनको साक्षात्कार हुआ है वे ब्रह्वेत्ता ही कल्याण करते हैं । बाकी के लोग तो पुजवाने के लिए जैसे झोलाछाप डॉक्टर, झोलाछाप वैद्य खतरनाक होते हैं, ऐसे पुजवानेवाले गुरु तो बहुत खतरनाक होते हैं । तो कन्या-मन्या कुर्र... वाले गुरु अपनी जगह पर होते हैं लेकिन कबीरजी जैसे, नानकजी जैसे, व्यासजी जैसे, लीलाशाह भगवान जैसे (ब्रह्मवेत्ता) गुरु कभी-कभी ही मिलते हैं । 

*  जैसे माँ काली ने रामकृष्ण को कहा कि ''तोतापुरी गुरु से दीक्षा लो ।'' रामकृष्ण बोले : ''माँ तुम्हारा दर्शन होता है...'' बोलीं : ''दर्शन होता है लेकिन तीव्र भावना से दर्शन होता है, भावना बदलते ही अंतर्धान हो जाती हूँ । तू अंतरात्मा को पहचान ले तोतापुरी गुरु के उपदेश से ।'' तो ऐसे गुरुओं की पूजा का, आदर का दिन है गुरुपूनम ।... और फिर सुख-दुःख सपना और अंतर्यामी अपना । 

*  शिवजी कहते हैं :  
 उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत्य हरि भजन जगत सब सपना ।। 

*  हरि-भजन का फल क्या है ? किं लक्षणं भजनम् ? रसनं लक्षणं भजनम् । आत्मा का रस आ जाय, परमेश्वर का रस आ जाय, आदमी को विकारी रस से बचने का अवसर मिल जाय इसका नाम है भजन । 

*  ऐसा नहीं कि भाई धंधा बना लिया पूजा को या इसको या उसको, उनकी पूजा का दिवस नहीं है । 

*  ब्रह्मवेत्ता सद्गुरुओं की पूजा का दिवस है । जो पुजवाने के लिए भटकते हैं उनकी पूजा का दिवस नहीं है । 
*   नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! 

- पूज्य बापूजी 

Rishi Prasad Jayanti

On the occasion of 25th Rishi Prasad Jayanti, new section of Rishi Prasad is now added to website.

 

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