सेवा साधक के लिए अपनी क्षुद्र वासना व अहं मिटाने की परम औषधि है । सेवा से अंतःकरण की शुद्धि होती है और शुद्ध अंतःकरण का ब्रह्मज्ञान से सीधा संबंध है । यह सेवा ही है जो सर्वेश्वर तक पहुँचने का पथ प्रशस्त करती है । निष्काम भाव से सभी की सेवा करने से स्वयं की सेवा का भी द्वार खुल जाता है ।
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू