आध्यात्मिकता का आखरी सोपान है - श्री वसिष्ठ जी का उपदेश । यह एकदम ऊँचा है, विहंग मार्ग है ।  यह अगर जम जाय न, तो सुनते-सुनते बात बन जाय और अगर नहीं जमता तो बार-बार सुनें, बहुत फायदा होगा ।  धनवान या निर्धन होना, विद्वान या अविद्वान होना, सुंदर या कुरूप होना- यह शाश्वत नहीं हैं ।  सुरूपता या कुरुपता यह 25 -50 साल के खिलवाड़ में दिखती है ।  शाश्वत तो आत्मा है और उस पर कुरूपता का प्रभाव है न स्वरूपता का, न विद्वत्ता का प्रभाव है न आविद्वत्ता का ।  तरंग चाहे कितनी भी बड़ी हो लेकिन है तो अंत में सागर में ही लीन होने वाली और चाहे कितनी भी छोटी हो लेकिन है तो पानी ही ।  ऐसे ही बाहर से आदमी चाहे कितना भी बड़ा या छोटा दिखता हो किंतु उसका वास्तविक मूल तो चैतन्य परमात्मा ही है । उस चेतन परमात्मा के ज्ञान को प्रकट करने का काम यह ग्रंथ करता है । 

यह वह ग्रंथ है जिसे स्वामी रामतीर्थ को, घाटवाले बाबा को, मेरे गुरु जी (स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज) को और दूसरे अच्छे-अच्छे उच्च कोटि के महापुरुषों को अपने आत्मा की मुलाकात हुई ।  इसे पढ़ने-सुनने एवं विचार ने से श्रीराम जी का अनुभव, मेरे गुरुजी का अनुभव तुम्हारा अनुभव हो जाएगा और "सत्यम ज्ञानम अन्नतं ब्रह्म" । ब्रह्म सत्यस्वरूप, ज्ञानस्वरूप और अनंत है तथा मेरा ही स्वरुप है'- ऐसा साक्षात्कार हो जायेगा । 

स्वामी रामतीर्थ बोलते थे: "राम (स्वामी रामतीर्थ ) के विचार से अत्यंत आश्चर्यजनक और सर्वोपरि श्रेष्ठ ग्रंथ, जो इस संसार में सूर्य के तले कभी लिखे गये, उनमें से ‘श्री योगवासिष्ठ’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति इस मनुष्यलोक में आत्मज्ञान पाये बिना नहीं रह सकता । 

Ashram Press

Lucknow Press

English Version

  • Laghu Yoga Vasistha By K. Narayanswami Iyer

Articles

Audios

Videos