त्याग और पवित्रता

त्याग और पवित्रता


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से

त्याग और पवित्रता – ये भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक खजाने की दो अनुपम कुंजियाँ हैं।

जीवन में त्याग होना चाहिए। आप कोई काम करते हैं और उसमें आपकी स्वार्थ बुद्धि होती है तो बुद्धि कुंठित हो जाती है और आपकी योग्यता कम हो जाती है। अगर स्वार्थरहित काम करते हैं तो थोड़ी-सी योग्यता वाले की योग्यता भी बहुत निखर जाती है।

दूसरी कुंजी है पवित्रता। खानपान में आहार-विहार में, वाणी में और कर्म में पवित्रता होनी चाहिए। कोई व्यक्ति हमसे प्रभावित हो जाय अथवा हमें उससे कुछ मिल जाय इस प्रकार की लालच होने से भी अपना कर्म नन्हा सा हो जाता है, तुच्छ हो जाता है। चाहे कोई संसार में हो अथवा ईश्वर के मार्ग पर हो… उसके जीवन में जितनी ईमानदारी होगी उतना ही जीवन सहज होता जायेगा, साधना सहज होती जायेगी।

त्याग और पवित्रता से अंतःकरण शुद्ध होता है और शुद्ध अंतःकरण में ज्ञान शीघ्र फलित होता है। शुद्ध अंतःकरण वाले का सहज साधन होता है अर्थात् उसे साधना करनी नहीं पड़ती बल्कि उससे साधना होने लगती है।

स्वाभाविक साधन में दो बाते हैं। एक तो यह कि इसमें गलती नहीं होती और दूसरी यह कि थकान भी नहीं होती। शरीर में कभी थकान होती भी है लेकिन मन प्रसन्न रहता है जिससे थकान का प्रभाव नहीं पड़ता है।

सहज साधन में सहज विश्राम है। सहज विश्राम में सब सहज हो जाता है। कबीर जी ने कहा है-

सहजो सहजो सब कहे, सहजो जाने न कोई।

इन्द्रिय आकर्षण विषय तजे, सो ही सहजो होई।।

जगत का आकर्षण, बाहर से सुखी होने का आकर्षण मिटाने के लिए साधन की आवश्यकता है। अतः, सुख लेने की जगह सुख दें, मान लेने की जगह मान दें। इससे हृदय शुद्ध होगा, साधन सहज में होगा।

सहज साधन क्या है ?

उचित श्रम और उचित विश्राम।

उचित श्रम क्या है ?

आलस्य न हो। मैं थका हूँ…. ऐसा कहकर व्यर्थ की थकान न बने और उचित विश्राम क्या है ? अति परिश्रम करके शरीर को श्रमित न बनायें। जब आराम की आवश्यकता हो तब शरीर को आराम दें ताकि फिर ध्यान-भजन में बैठने के काबिल बन जाय।

सुबह तो रातभर का आराम किया हुआ रहता है, अतः सूर्योदय से पहले नहा-धोकर बैठ जायें और भगवन्नाम सहित श्वासोच्छ्वास की गिनती करें। इससे मन की चंचलता मिटती है। प्रभात के समय में मन शांत और दिव्य भावों से जल्दी भरता है। कोई अगर सुबह दो घंटे यह साधन करे तो छः महीने में इतनी ऊँचाई पर पहुँच सकता है जहाँ सामान्यतया आठ साल में नहीं पहुँच सकता।

साधना में शीघ्र उन्नति के चार सोपान हैं-

पहला है विश्रांति, दूसरा है सजगता, तीसरा है भगवान की शरण और चौथा है कुछ भी नहीं करना। छः महीने के अंदर चौथे में पहुँच गये तो समझो, पूरा काम बन गया, लेकिन शर्त यह है कि विवेक, वैराग्य एवं तत्परता से चलना पड़ेगा। उस ईश्वर के होकर चलना पड़ेगा और उसकी कृपा होगी तब काम बनेगा।

परमात्मा कृपा कब करेंगे ?

जब आप कृपा के लायक बनते जायेंगे तो कृपा मिलती जायेगी। सूर्य का  प्रकाश तो मिलता ही रहता है लेकिन किसान बीज बोये तभी सूर्य की कृपा को पा सकता है। ऐसे ही आप परमात्मा के लिए त्यागमय एवं पवित्र जीवन बितायें तो उसकी कृपा तो राह देख ही रही है।

जीवन में पवित्रता और त्याग जितना ईमानदारी पूर्वक होगा उतना ही आप परमात्मा की शरण जा पाओगे तथा जितनी शरणागति होगी मन-बुद्धि उतनी ही विश्रांति पा सकेंगे, उतने ही आप विकारों से सजग रह सकेंगे, उतने ही विलक्षण अनुभव कर पायेंगे और उतने ही परमात्मा में रहकर दिव्य अनुभव पाते जायेंगे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2002, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 111

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *