केला एक ऐसा विलक्षण फल है जो शारीरिक व बौद्धिक विकास के साथ उत्साहवर्धक भी है। पूजन-अर्चन आदि कार्यों में भी केले का महत्वपूर्ण स्थान है। केले में शर्करा, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन्स, विटामिन ए, बी, सी, डी एवं लौह, ताँबा, आयोडीन आदि तत्वों के साथ ऊर्जा का भरपूर खजाना है।
लाभः पका केला स्वादिष्ट, भूख बढ़ाने वाला, शीतल, पुष्टिकारक, मांस एवं वीर्यवर्धक, भूख-प्यास को मिटाने वाला तथा नेत्ररोग एवं प्रमेह में हितकर है।
केला हड्डियों और दाँतों को मजबूती प्रदान करता है। छोटे बच्चों के शारीरिक व बौद्धिक विकास के लिए केला अत्यन्त गुणकारी है।
एक पका केला रोजाना खिलाने से बच्चों का सूखा रोग मिटता है।
यह शरीर व धातु की दुर्बलता दूर करता है, शरीर को स्फूर्तिवान तथा त्वचा को कांतिमय बनाता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।
केला अन्न को पचाने में सहायक है। भोजन के साथ 1-2 पके केले प्रतिदिन खाने से भूख बढ़ती है।
खून की कमी को दूर करने के लिए तथा वजन बढ़ाने के लिए केला विशेष लाभकारी है।
आसान घरेलु प्रयोग
स्वप्नदोषः 2 अच्छे पके केलों का गूदा खूब घोंटकर उसमें 10-10 ग्राम शुद्ध शहद व आँवले का रस मिला के सुबह शाम कुछ दिनों तक नियमित लेने से लाभ होता है।
प्रदर रोगः महिलाओं को सफेद पानी पड़ने की बीमारी- सुबह शाम एक-एक खूब पका केला 10 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से करीब एक सप्ताह में ही लाभ होता है।
शीघ्रपतनः एक केले के साथ 10 ग्राम शुद्ध शहद लगातार कम-से-कम 15 दिन तक सेवन करें। शीघ्रपतन के रोगियों के लिए यह रामबाण प्रयोग माना जाता है।
आमाशय व्रण (अल्सर) पके केले खाने और भोजन में दूध व भात लेने से अल्सर में लाभ होता है।
उपरोक्त सभी प्रयोगों में अच्छे से पके चित्तीदार केले धीरे-धीरे, खूब चबाते हुए खाने चाहिए। इसमें केले आसानी से पच जाते हैं, अन्यथा पचने में भारी भी पड़ सकते हैं। अधिक केले खाने से अजीर्ण हो सकता है। केले के साथ इलायची खाने से वह शीघ्र पच जाता है। अदरक भी केला पचाने में सहायता करता है।
सावधानियाँ– केला भोजन के समय या बाद में खाना उचित है। मंदाग्नि, गुर्दों से संबंधित बीमारियों, कफजन्य व्याधियों से पीड़ित व मोटे व्यक्तियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। केले का छिलका हटाने के बाद तुरंत खा लेना चाहिए। केले, अन्य फल व सब्जियों को फ्रिज में उनके पौष्टिक तत्व नष्ट होते हैं।
तिथि अनुसार आहार विहार
चतुर्दशी को उड़द खाना महापापकारी है। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्म खण्डः 27.35)
अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी, अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन रक्तवर्ण का साग और काँसे के पात्र में भोजन निषिद्ध है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराणः ब्रह्म खण्ड) 27.37-38
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 261
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