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होटलों में और शराब बनाने में बरबाद हो जाता है लाखों लीटर पानी


संत आशारामजी बापू का दो दिवसीय सत्संगः ट्रेन में सवार हो खेली होली

दैनिक भास्कर, जयपुर, 22 मार्च।

संत आशारामजी बापू ने कहा कि फाइव स्टार होटलों में और शराब बनाने में लाखों लीटर पानी बरबाद हो जाता है। हम साल में एक बार पलाश के फूलों की होली खेलते हैं तो हिन्दू विरोधी शक्तियाँ इसे गलत बताती हैं।

रामबाग के एसएमएस इन्वेस्टमेंट ग्राउंड में दो दिवसीय सत्संग व पलाश फूलों के रंग से होली उत्सव में गुरुवार को बापू जी ने कहा कि “हमने पानी का उपयोग मुंबईवासियों के लिए किया है, घर में तो ले नहीं गये। क्रिश्चियन पर्व पर कितनी ही गायें कटती हैं। वेलेन्टाइन डे से कितने ही बच्चे संस्कृति से दूर होते हैं ! होली के त्यौहार का गला घोंटना, दीपावली के पर्व पर प्रदूषण का आकलन करना, हिन्दू पर्वों के साथ कहाँ का न्याय है ? ऐसा करने वाले हिन्दुओं के पर्व को ठेस पहुँचाते हैं।”

फँसाने वाले अब तक आरोपों से बरी नहीं

“बापू को झूठे आरोपों में फँसाने की कोशिश करने वाले अभी तक बरी नहीं हो पा रहे हैं। चाहे वह सुखाराम ठग हो या कोई और। साँच को आँच नहीं। रामसुखदासजी कितने ऊँचे संत थे ! उन पर भी आरोप लगाये गये तो उन पवित्र संत ने अऩ्न-त्याग कर दिया था।”

यदि मेरे पास अरबों की जमीन है तो खरीद लो

पिछले दिनों अरबों की जमीन के मामले में संत आशारामजी बापू ने कहा कि “यदि मेरे पास अरबों की जमीन है तो 1 करोड़ 10 लाख रूपये दे दें और जमीन ले जाओ। दूसरा, गैंग-रेप के मामले में यदि मैंने पीड़िता को दोषी बताया है तो उसे सिद्ध कर दो और पचास लाख रूपये इनाम के ले जाओ। हम तो बार-बार कह चुके हैं लेकिन इन अफवाहों को फैलाने वाले लोग अभी तक सामने ही नहीं आये।”

हिन्दू पर्वों का विरोध हुआ तो वोट बैंक बिगड़ जायेगा

“बापू और बापू के प्यारों को ऐरे-गैरे मर समझना। चंदन से भी आग निकलती है। विदेशी ताकतें हिन्दुस्तान को तोड़ना चाहती हैं। एक भक्त से 20 आदमी जुड़े हैं। यदि ऐसे ही चलता रहा को वोट बैंक बिगड़ जायेगा। हिन्दू धर्म यूरोप, रोम या मिश्र का नहीं है, यह साक्षात् परब्रह्म है, सनातन है। इसको मिटाने वाले खुद मिट जाते हैं।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 8, अंक 244

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हे युवान ! गुलाम नहीं स्वामी बनो


मैकाले कहा करता थाः “यदि इस देश को हमेशा के लिए गुलाम बनाना चाहते हो तो हिन्दुस्तान की स्वदेशी शिक्षा पद्धति को समाप्त कर उसके स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति लाओ।

फिर इस देश में शरीर से तो हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे। जब वे लोग इस इस देश के विश्वविद्यालय से निकल कर शासन करेंगे तो वह शासन हमारे हित में होगा।ʹ यह मैकाले का सपना था। आश्चर्य है कि मैकाले शिक्षा पद्धति से प्रभावित भारतीय युवान आज खुद ही अपने को गुलामी, अनैतिकता, अशांति देने वाले के सपनों को साकार करने में लगा है।

अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के बढ़ते कुप्रभावों से गांधी जी की यह बात प्रत्यक्ष हो रही है कि “विदेशी भाषा ने बच्चों को रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है।” अंग्रेजी भाषा और मैकाले शिक्षा-पद्धति की गुलामी का ही परिणाम है कि आज के विद्यार्थियों में उच्छृंखलता, अधीरता व मानसिक तनाव जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

ऐसी अंग्रेजी शिक्षा से प्रभावित श्री अरविंदजी के विद्यार्थी राजाराम पाटकर को अपनी स्वतंत्र भाषा छोड़कर अंग्रेजी भाषा पर प्रभुत्व पाने का शौक हुआ। एक दिन मौका देखकर उसने श्री अरविंद जी से पूछाः “सर ! मुझे अपनी अंग्रेजी सुधारनी है, अतः मैं मैकाले पढूँ ?”

श्री अरविंदजी देशभक्त तो थे ही, साथ ही भारत की सांस्कृतिक ज्ञान धरोहर की महिमा का अनुभव किये हुए योगी भी थे। भारत में रहकर जिस थाली में खाया उसी में छेद करने वाले अंग्रेजों की कूटनीति को वो जानते थे। जिनका एकमात्र उद्देश्य भारतीय जनता को प्रलोभन देकर बंदर की तरह जिंदगीभर अपने इशारों पर नचाना था, ऐसे अंग्रेजों की नकल करके विद्यार्थी करें यह श्री अरविंद को बिल्कुल पसंद नहीं था। उन्होंने स्वयं भी अंग्रेजों की अफसरशाही नौकरी से बचने के लिए आई.सी.एस. जैसी पदवी के लिए लैटिन और ग्रीक भाषा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने पर भी घुड़सवारी की परीक्षा तक नहीं दी थी।

श्री अरविंद का मानना था कि हर व्यक्ति को अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाना ही चाहिए। उन्होंने कड़क शब्दों में कहाः”किसी के गुलाम मत बनो। तुम स्वयं अपने स्वामी बनो।

उसकी सोयी चेतना जाग उठी। अपने सच्चे हितैषी के मार्गदर्शन को शिरोधार्य कर राजाराम ने मैकाले का अनुसरण नहीं किया। यही कारण था कि वह अपनी मौलिक प्रतिभा को विकसित कर पाया। यदि मैकाले का अनुसरण करता तो शायद वह मात्र एक नकलची रह जाता।

मैकाले पद्धति से ऊँची शिक्षा प्राप्त करके भी अपने जीवन को संतृप्त न जानकर गांधी जी ने भारतीय शास्त्रों व विवेकानंद जी ने सदगुरु की शरण लेकर अंग्रेजों की इस पद्धति को निरर्थक साबित कर दिया।

भारत के युवानों को गर्व होना चाहिए कि वे ऐसी भारत माँ की सौभाग्यशाली संतान हैं, जहाँ शास्त्रों एवं सदगुरुओं का मार्गदर्शन सहज-सुलभ है। आज ही प्रण कर लो कि हम अंग्रेजों की गुलामी नहीं करेंगे, भारतीय शिक्षा पद्धति ही अपनायेंगे। अपने ऋषियों-महापुरुषों द्वारा चलायी गयी सर्वोत्कृष्ट गुरुकुल शिक्षा-पद्धति अपनाकर जीवन को महान और तेजस्वी बनायेंगे, समग्र विश्व में अपनी संस्कृति की सुवास फैलायेंगे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 14, अंक 244

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संस्कृति भक्षकों से सावधान !


पूज्य बापू जी के कारण देशभर में प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का रूझान हर वर्ष बढ़ रहा है। जो शिवरात्रि को शिवजी को अभिषेक पानी की बरबादी है, दीपावली पर दीये जलाना तेल की बरबादी है ऐसी बकवास करते हैं, उन्होंने निशाना बनाया अब होली को। ऐरोली (मुंबई) व सूरत कार्यक्रमों के दिन कुछ चैनलों द्वारा देशवासियों को महाराष्ट्र के बीड़, जालना, सांगली, उस्मानाबाद आदि उन स्थानों के अकालग्रस्तों के इन्टरव्यू दिखाये गये जहाँ होली कार्यक्रम हुआ ही नहीं था। इन क्षेत्रों में अकाल की स्थिति होली के कारण नहीं, शराब, कोल्डड्रिंक्स, निर्दोष गायों व पशुओं की हत्या आदि के लिए पानी की विपुल मात्रा में बरबादी तथा पीने के पानी के रख-रखाव में प्रशासनिक लापरवाही के कारण पैदा हुई है। वेटिकन फंड से चलने वाले मीडिया के तबके ने अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुए उऩ असंख्य स्थानों पर अपनी बगुला छाप आँखें मूँद लीं, जहाँ वास्तव में पानी की बरबादी हो रही है। वे शराब कबाब आदि को बरबादी से जोड़ना ही नहीं चाहते, क्यों ? क्योंकि जो बिकाऊ मीडिया है, वह सत्य का पक्षधर नहीं हो सकता।

महाराष्ट्र में शराब बनाने की मात्र एक कम्पनी द्वारा पानी की बरबादी 20,14,00,00,000 लिटर।

कोल्डड्रिंक्स की मात्र एक कम्पनी द्वारा पानी की बरबादी 5,16,80,00,000 लिटर।

महाराष्ट्र में आई पी ऐल मैचों के मात्र तीन मैदानों के लिए पानी की बरबादी 64,80,000 लिटर।

केवल मुंबई में पीने के पानी की पाइपलाइनें फटने से पानी की बरबादी 6,50,00,000 लिटर।

महाराष्ट्र के मात्र एक कत्लखाने में गोहत्या के लिए रोज पानी की बरबादी 18,00,000 लिटर।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 2, अंक 244

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