पीपल-वृक्ष के समान वटवृक्ष भी हिन्दू धर्म का एक पूजनीय वृक्ष है
। वटवृक्ष विशाल एवं अचल होता है । हमारे अनेक ऋषि-मुनियों ने
इसकी छाया में बैठकर दीर्घकाल तक तपस्याएँ की हैं । यह मन में
स्थिरता लाने में मदद करता है और संकल्प को अडिग बना देता है ।
यह स्मरणशक्ति व एकाग्रता की वृद्धि करता है । वैज्ञानिक दृष्टि से
यह पृथ्वी में जल की मात्रा का स्थिरिकरण करने वाला वृक्ष है । यह
भूमिक्षरण को रोकने वाला वृक्ष है ।
शास्त्रों में महिमा
वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श, परिक्रमा तथा सेवा से पाप दूर होते हैं
तथा दुःख, समस्याएँ एवं रोग नष्ट होते हैं । वटवृक्ष रोपने से अशेष
(अपार) पुण्य-संचय होता है । वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की
जड़ में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-
सम्पदा प्राप्त होती है ।
‘घर की पूर्व दिशा में’ वट (बरगद) का वृक्ष मंगलकारी माना गया
है ।’ (अग्नि पुराण)
‘वटवृक्ष लगाना मोक्षप्रद है ।’ (भविष्य पुराण)
महान पतिव्रता सावित्री के दृढ़ संकल्प व ज्ञानसम्पन्न प्रश्नोत्तर की
वजह से यमराज ने विवश होकर वटवृक्ष के नीचे ही उनके पति
सत्यवान को जीवनदान दिया था । इसीलिए वटसावित्रि व्रत (ज्येष्ठ
मास की पूर्णिमा या अमावस्या) के दिन विवाहित महिलाएँ अपने सुहाग
की रक्षा, पति की दीर्घायु और आत्मोन्नति हेतु वटवृक्ष की 108
परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटकर संकल्प करती हैं । साथ में
अपने पुत्रों की दीर्घ आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी संकल्प किया
जाता है ।
वटवृक्ष मं देवताओं का वास बताया गया हैः
वटमूले स्थितो ब्रह्मा वटमध्ये जनार्दनः ।
वटाग्रे तु शिवो देवः सावित्री वटसंश्रिता ।।
‘वट के मूल में ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन, अग्रभाग में शिव
प्रतिष्ठित रहते हैं तथा देवी सावित्री भी वटवृक्ष में स्थित रहती हैं ।’
वटवृक्ष पूजा-अर्चना, तप-साधना तथा मनोकामनाओं की पूर्ति के
लिए अत्यधिक उपयोगी माना गया है । कार्तिक मास में करवाचौथ के
अवसर पर भी महिलाएँ वटवृक्ष की पूजा-अर्चना मोवांछित फल पाने की
लालसा से करती हैं ।
वटवृक्षों में भी विशेष प्रभावशाली बड़ बादशाह की परिक्रमा क्यों ?
पूज्य बापू जी ने विभिन्न संत श्री आशाराम जी आश्रमों में वटवृक्षों
पर शक्तिपात किया है, जिनकी परिक्रमा करके अनगिनत लोगों की
मनोकामनाएँ पूर्ण हुई हैं और हो रही हैं । ये कल्पवृक्ष बड़ बादशाह
(बड़दादा) के नाम से जाने जाते हैं ।
स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए अत्यंत उपयोगी
वटवृक्ष मानव-जीवन के लिए अत्यंत कल्याण कारी है । यदि
व्यक्ति इसके पत्ते जड़, छाल एवं दूध आदि का सेवन करता है तो रोग
उससे कोसों दूर रहते हैं । आयुर्वेद के ग्रंथ ‘भावप्रकाश निघंटु’ में वटवृक्ष
को शीतलता-प्रदायक होने के साथ कई रोगों को दूर करने वाला बताया
गया है । यह वायु प्रदूषण को भी रोकता है । वायुमंडल में प्राणवायु
छोड़ता रहता है । इसकी छाँव तथा पत्तों में होकर आने वाली वायु शुद्ध
व शीतल हो जाती है और शरीर एवं मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती है
।
मूल की तरफ लौटने का संदेश
वटवृक्ष की व्याख्या इस प्रकार की गयी हैः
वटानि वेष्टयति मूलेन वृक्षांतरमिति वटे ।
‘जो वृक्ष स्वयं को ही अपनी जड़ों से घेर ले उसे वट कहते हैं ।’
वटवृक्ष हमें इस परम हितकारी चिंतनधारा की ओर ले जाता है कि
किसी भी परिस्थिति में हमें अपने मूल की ओर लोटना चाहिए और
अपना संकल्पबल, आत्म-सामर्थ्य जगाना चाहिए । इसी से हम मौलिक
रह सकते हैं । मूलतः हम सभी एक ही परमात्मा के अभिन्न अंग हैं ।
हमें अपनी मूल प्रवृत्तियों को, दैवी गुणों को महत्त्व देना चाहिए । यही
सुखी जीवन का सर्वश्रेष्ठ उपाय है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2022, पृष्ठ संख्या 23,24 अंक 356
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