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Sharir Swasthya

विभिन्न दालों के गुण-दोष उनकी उपयोग-विधि व उपयोगिता
प्रोटीन्स का उत्तम स्रोत



प्रोटीन्स शारीरिक विकास हेतु आवश्यक मूलभूत पोषक तत्त्व हैं ।
ये कोशिकाओँ को स्वस्थ रखने एवं उनके पुनर्निर्माण में तथा रक्त,
त्वचा, मांसपेशियों, पाचक स्रावों, अंतःस्रावों (हारमोन्स) आदि की संरचना
में मुख्य भूमिका निभाते हैं । कुछ विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन्स जिन्हें
एंटीबॉडीज़ कहते हैं, ये विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से शरीर की रक्षा
करते हैं ।
आवश्यक मात्रा में प्रोटीन्स न लेने से अनेक प्रकार की समस्याएँ
उत्पन्न होती हैं, जैसे चिड़चिड़ापन, त्वचा का रूखापन, हाथ के नाखूनों
पर धारीदार लकीरें आना, बाल झड़ना, कमजोरी एवं थकान लगना, घाव
का जल्दी न भरना, पैरों में सूजन, रोगप्रतिकारक शक्ति घटना, बच्चों
के शारीरिक एवं मानसिक विकास में अवरोध होना, मांसपेशियों व
हड्डियों की कमजोरी आदि ।
प्रोटीन्स को संग्रहित करने की शरीर की क्षमता मर्यादित है अतः
आहार के माध्यम से प्रोटीन्स की नियमित आपूर्ति करनी चाहिए ।
बालकों, किशोरों एवं गर्भवती महिलाओं को इनकी विशेष आवश्यकता
रहती है ।
कई लोग प्रोटीन्स की कमी को पूरा करने के लिए मांसाहार करते
हैं परंतु प्रोटीन्स की पूर्ति के लिए अपनी मनुष्यता और मनुष्य-जन्म के
परम लक्ष्य की सिद्धि में आवश्यक सत्त्वगुण को खोने की कतई
आवश्यकता नहीं है, दालें सात्त्विक आहार होने के साथ प्रोटीन्स का
समृद्ध स्रोत हैं ।

प्रोटीन्स के अतिरिक्त दालें एंटी ऑक्सीडेंट्स, फॉलिक एसिड,
विटामिन ई तथा पोटेशियम, मैग्नेशियम, लोह, जिंक, ताँबा, मैंगनीज
आदि खनिजों का अच्छा स्रोत हैं । बायोएक्टिव घटकों के कारण ये
मधुमेह (डायबिटीज़), मोटापा, कैंसर एवं हृदय व रक्तवाहिनियों से
संबंधित रोगों से सुरक्षा करने में सहायक हैं । प्रीबायोटिक्स का अच्छा
स्रोत होने से आँतों में लाभदायी जीवाणुओं का पोषण कर विभिन्न प्रकार
की पाचन-संबंधी समस्याओं में लाभदायी हैं ।
भिन्न-भिन्न दालों के विविध रोगों में लाभ
मूँग, मसूर, मोठ की दालः मंदाग्नि, बुखार, दस्त, पेचिश, मासिक
धर्म की अधिकता, बवासीर, श्वेतप्रदर आदि में लाभकारी ।
कुलथी की दाल, दमा, खाँसी, पुराना जुकाम आदि कफजन्य
विकारों, पथरी, कृमिरोग, संधिवात व गठिया में लाभदायी ।
चने की दालः कफ-पित्तजन्य व रक्त विकारों में उपयोगी ।
अरहर की दालः कफ-पित्तशामक ।
उड़द की दालः विशेषरूप से वायुशामक, वज़न बढ़ाने, पौरूष शक्ति
की वृद्धि, प्रसूता माताओं के दूध की वृद्धि तथा मुँह के लकवे में
लाभकारी ।
दालों के सेवन संबंधी महत्त्वपूर्ण बिन्दु
मूँग, मसूर, मोठ, चना, अरहर, राजमा, उड़त, मटर, कुलथी, सेम
आदि विभिन्न दालों से शरीर को विभिन्न प्रकार के जीवनावश्यक
अमीनो एसिड्स प्राप्त होते हैं । प्रत्येक अमीनो एसिड शरीर के विशिष्ट
कार्य से जुड़ा होता है । इसलिए एक ही प्रकार की दाल का सेवन करने
की अपेक्षा दालों को बदल-बदलकर सेवन करना चाहिए ।

अलग-अलग भौगोलिक स्थानों पर उगने वाली दालों में अमीनो
एसिड्स की विविधता पायी जाती है, जो उस स्थान पर रहने वाले लोगों
के लिए विशेष अनुकूल होती है । जैसे – सोयाबीन प्रोटीन्स का प्रचंड
स्रोत है पर वह भारतवासियों के लिए हितकारी नहीं है क्योंकि यह
मूलरूप से भारत की उपज नहीं है । अतः जो अपने भौगोलिक स्थान
की उपज नहीं है उन दालों का सेवन यदा-कदा ही करें, अधिक न करें ।
आयुर्वेद के अनुसार सभी दालों में मूँग श्रेष्य व नित्य सेवनीय है व
उड़द निकृष्ट होने से यदा-कदा सेवन-योग्य है ।
दालें रुक्ष, कसैली एवं वायुकारक होने से तेल अथवा घी में राई,
जीरा, हींग, लहसुन, अदरक, हल्दी, कढ़ीपत्ता आदि की छौंक लगाकर
खायें । इससे ये सुपाच्य व कम वायुकारक हो जाती हैं ।
आचार्य चरक कहते हैं-
सस्नेहा बलिभिर्भोज्या विविधाः शिम्बिजातयः ।।
‘बलवान पुरुष को अऩेक जातियों के शिम्बी धान्यो (दालो) को घी
के साथ खाना चाहिए ।’ (चरक संहिताः 27.31)
दालें नयी अवस्था में अभिष्यदी (स्रोतों में अवरोध पैदा करने वाली)
व पचने में भारी होती हैं लेकिन 1 साल पुरानी होने पर पचने में हलकी
हो जाती हैं ।
छिलके रहित दालों की अपेक्षा साबुत दालें अधिक बलदायक हैं ।
पाचनशक्ति कमजोर हो तो छिलके रहित दालें लें ।
अंकुरित दालें पचने में भारी होती हैं, यदा-कदा ले सकते हैं ।
दाल को कूकर में पकाने से आवश्यक पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं
अतः दाल तपेली में पकानी चाहिए ।

दाल पतली बनानी चाहिए (10 गुना पानी डालकर) । दाल फ्राई,
दाल बड़े स्वास्थ्यकर नहीं हैं अतः इनका सेवन न करें ।
सेम और कुलथी गर्म प्रकृति की होने से पित्त प्रकृति के लोगों के
लिए व पित्त संबंधी समस्याओं से असेवनीय है ।
अत्यंत वायुवर्धक होने से मटर व सेम का सेवन कम-से-कम करना
चाहिए ।
सावधानीः
कार्तिक महीने में दालें नहीं खानी चाहिए ।
वातरक्त (गाउट) व गुर्दों (किडनी) के विकारों में दालों का सेवन
कम-से-कम करना चाहिए । छिलके रहित मूँग की दाल ले सकते हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2023 पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 364
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शारीरिक मानसिक आरोग्य हेतु संजीवनी बूटी – पैदल भ्रमण
कैसा भ्रमण है लाभदायी ?



पैदल भ्रमण करते समय शरीर सीधा व वस्त्र कम रहें । दोनों हाथ
हिलाते हुए और नाक से गहरे-गहरे श्वास लेते हुए भ्रमण करना चाहिए
। गहरे श्वास लेने से प्राणायाम का भी लाभ मिलता है । शारीरिक के
साथ यह मानसिक स्वास्थ्य में भी लाभदायी है । इससे काम, क्रोध,
ईर्ष्या आदि मनोदोषों का शमन होता है तथा एकाग्रता विकसित होती है
। ओस की बूँदों से युक्त हरी घास पर टहलना अधिक हितकारी है । यह
नेत्रों के लिए विशेष लाभकारी है । वर्षा के दिनों में भीगी घास पर टहल
सकते हैं ।
भ्रमण सामान्यरूप से अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार मध्यम
गति से ही करें । सुश्रुत संहिता (चिकित्सा स्थानः 24.80) में आता हैः
यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत् ।
तदायुर्बलमेधाग्नप्रदमिन्दियबोधनम् ।।
‘जो भ्रमण शरीर को अत्यधिक कष्ट नहीं देता वह आयु, बल एवं
मेधा (धारणाशक्तिसम्पन्न श्रेष्ठ मति) प्रदान करने वाला होता है,
जठराग्नि को बढ़ाता है और इन्द्रियों की शक्ति को जागृत करता है ।’
डॉ. जे.बी. स्क़ॉट ने लिखा हैः ‘मध्यम गति से भ्रमण करना
अधिकांश व्यक्तियों के लिए एक सुंदर व्यायाम है ।’
भ्रमण है अनेक रोगों में लाभकारी
स्नाय़ु दौर्बल्य, मानसिक रोग, अऩिद्रा, स्वप्नदोष, सर्दी, खाँसी,
सिरदर्द, कब्ज, दुबलापन और कमजोरी आदि में टहलना रामबाण औषधि
है । इन रोगों में प्रातः भ्रमण का लाभ बताते हुए डॉ. कार्नेलिया ई.
फिलिप्स, डी.ओ. कहते हैं- “मैं यह बात अपने 30 वर्षों के अऩुभव से

कह रहा हूँ, जिस अवधि में मैंने इन रोगों से पीड़ित न जाने कितने
निराश, हताश और निरुपाय रोगियों को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कराया है ।
इसलिए मुझे दृढ़ विश्वास हो गया है कि खोये हुए स्वास्थ्य को फिर से
पाने का यह कुदरती तरीका इतना प्रभावशाली है कि इसके बारे में चाहे
जितना भी कहा जाय उसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी ।”
भ्रमण से मोटापा कम होता है, भूख खुलकर लगती है, पुराने कब्ज
व अपच में यह उत्तम औषधि का काम करता है । यह युवकों में काम-
वासना को नियंत्रित करता है ।
आधुनिक अनुसंधानों के परिणाम
आधुनिक अनुसंधानों में पाया गया है
पैदल चलने से संधिवात संबंधी दर्द कम हो जाता है । हर हफ्ते 5-
6 मील (8-10 कि.मी.) तक पैदल चलने से संधिवात की बीमारी होने से
भी बचा जा सकता है ।
जैसे-जैसे पैदल चलना बढ़ जाता है वैसे-वैसे कोरोनेरी हृदयरोगों
(हृदय की रक्तवाहिनियों में अवरोध) के होने का जोखिम कम होता
जाता है । आम जनता में कोरोनेरी हृदयरोगों की रोकथाम के लिए
भ्रमण को एक आदर्श व्यायाम के रूप में बढ़ावा देना चाहिए ।
पैदल चलने से व्यक्ति की रचनात्मकता में औसतन 60 प्रतिशत
तक की वृद्धि होती है ।
भ्रमण उच्च रक्तचाप व टाइप 2 मधुमेह होने के जोखिम को कम
करता है ।
जापान में हुए एक शोध में यह पाया गया कि निर्धारित दैनिक
भ्रमण करने वाले वृद्धों के एक समूह में 12 सप्ताह बाद स्मरणशक्ति,
ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता, विभिन्न कार्यों को बीच में आपस में

बदलने की क्षमता और कार्यशील स्मृति में एक से अधिक कार्य रखने
की क्षमता में काफी वृद्धि हुई ।
ध्यान रखें
घास न हो तो नंगे पैर भ्रमण न करें । नंगे पैर भ्रमण रोगकारक,
नेत्रज्योति व आयु नाशक है । भ्रमण प्रदूषणरहित स्थान पर करें । यदि
यह सुविधा न हो सके तो अपने घर की छत के ऊपर गमलों में तुलसी,
मोगरा, गुलाब आदि लगाकर सुबह-शाम उनके आसपास पैदल चल सकते
हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2023, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 362
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स्वास्थ्य रक्षा व शारीरिक सुडौलता दायक मोटे अनाज



मोटे अनाज अत्यंत पोषक, पचने में तथा उगाने में आसान होते हैं
। ये कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं । इनकी
खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की भी जरूरत नहीं पड़ती इसलिए ये
हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी अच्छे हैं । मोटे
अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, मकई, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावाँ आदि
का समावेश होता है ।
मोटे अनाज खनिजों, विटामिन बी-काम्पलेक्स एवं रेशों के अच्छे
स्रोत होते हैं । साथ ही इनमें फाइटोकेमिकल्स भी पाये जाते हैं, जो रोग
प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने एवं शरीर में से विषाक्त द्रव्यों को दूर करने
में लाभदायी हैं । ये हृदयरोग, मधुमेह, कैंसर, मोटापा, जोडों का दर्द,
गठिया आदि रोगों में हितकर हैं। इनका सेवन पाचन-तंत्र, श्वसन-
संस्थान, तंत्रिका-तंत्र एवं मांसपेशियों को स्वस्थ एवं मजबूतर बनाता है

पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “बारह महीनों गेहूँ
खाना माने पेट सम्बन्धी तकलीफों को बुलाना है । विज्ञानी बोलते हैं कि
गेहूँ में ग्लुटोन प्रोटीन अधिक होता है जो हाजमे सम्बन्धी तकलीफें
करता है इसलिए साल में 3 महीने गेहूँ से परहेज करना चाहिए । इससे
स्वास्थ्य की सुरक्षा करने में व लम्बा आयुष्य पाने में आप सफल हो
जायेंगे और आपका शरीर बड़ा सुड़ौल रहेगा । तो 3 महीने गेहूँ को
भूलकर ज्वारा, बाजरा, मकई, रागी आदि खा सकते हैं ।
मकई पौष्टिक है, इसे सुपर फूड कहा विज्ञानियों ने । मकई का
कुछ भी बनाओ तो अधिक तेल अथवा घी नहीं लगेगा । मकई
पौष्टिकता से सम्पन्न है, उसमें भरपूर मात्रा में विटामिन्स हैं । मकई

का उपमा बना सकते हैं । नासमझी से लोग उपमा के लिए मकई का
मोटा-मोटा आटा पीसते हैं । सब लोग जितना चबाना चाहिए उतना चबा
के नहीं खाते हैं इसलिए सूजी जैसा मोटा नहीं पीसो, सूजी से कम मोटा
आटा हो और बनाने के एक डेढ़ घंटे पहले उसे भिगोना चाहिए, तब
उसका उपमा बढ़िया बनेगा ।
गेहूँ के आटे में 10 से 20 प्रतिशत मकई का आटा डालते हैं तो
रोटी मुलायम, स्वादिष्ट व पौष्टिक होती है । मकई का तेल कोलेस्ट्रोल
को बढ़ने नहीं देता । मकई में बहुत सारे गुण हैं । मकई में उत्तम
पोषक तत्त्व होते हैं और यह कई बीमारियों को भी दूर रखती है ।
सर्दियों में पुष्टि के लिए मकई खायें – चाहे मकई का उपमा बना के
खायें, हलवा बना के खायें, रोटी बना के खायें । अगर गर्भवती महिला
मकई खाती है तो उसके शिशु को तो गजब का लाभ होता है ।
ज्वार, बाजरा, रागी आदि भी मजबूती देते हैं और आयरन,
कैल्शियम से भरपूर हैं । बाजरा रुक्ष है तो थोड़ा घी, मक्खन या गुड़ के
साथ खायें तो अच्छा है सभी के लिए । बाजरा के साथ लस्सी का सेवन
करें तो यह वायु-नाश करेगी ।
महाराष्ट्र में तो लोग बच्चों को रागी के लड्डू व खीर खिलाते हैं ।
हड्डियों को मजबूत बनाना है तो रागी का उपयोग भी किया जा सकता
है भोजन में, मकई भी मजबूती देती है ।
तो खान-पान का स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ता है । अगर विरुद्ध
आहार करते हैं तो उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है, जैसे खमण (भाप में
पकायी हुई बेसन की एक खाद्य चीज) स्वादिष्ट है परंतु खाली पेट
खमण खाओ तो पेट की खराबियाँ हो जायेंगी । लेकिन मकई का उपमा

खाली पेट खाओ-खिलाओ तो कोई बात नहीं, यह पेट की बीमारियाँ नहीं
पौष्टिकता देगा ।”
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 30,32 अंक 361
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