आज पेट के कृमि एक बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है । साधारण-सी मालूम पड़ने वाली यह समस्या बच्चों के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए अत्यंत हानिकारक है । यह समस्या बड़ी उम्र के व्यक्तियों में भी पायी जाती है । कारणः पहले किये हुए भोजन के पूर्णरूप से पचने के पहले दोबारा खाना, दूध के साथ नमकयुक्त, खट्टे पदार्थों, फल, गुड़ आदि का सेवन, बेकरी के पदार्थ, फास्ट-फूड, चायनीज़ फूड, बिस्कुट, चॉकलेट आदि का सेवन, गुड़, मैदे व चावल के आटे से बने पदार्थों का अधिक सेवन, दही, दूध, मावा, पनीर, मिठाई, गन्ना – इनका लगातार अधिक सेवन, सफाई का ध्यान रखे बिना भोजन करना, दिन में सोना, आसन-व्यायाम का अभाव तथा कब्ज से पेट में कृमि होते हैं । मुँह में उँगली डालने, मुँह से नाखून चबाने तथा मिट्टी खाने की आदत से बच्चों में कृमि होने की सम्भावना अधिक होती है । लक्षण व दुष्प्रभावः शौच में कीड़े दिखना, गुदा में खुजली, अधिक खाने की इच्छा, पेट का फूलना व दर्द, जी मिचलाना, शरीर का कद न बढ़ना, वज़न कम होना, खून की कमी, बुद्धि की मंदता, कभी-कभी बेहोशी आना, बिस्तर में पेशाब होना – ये सभी या इनमें से कुछ लक्षण दिखते हैं । कृमि कभी-कभी पित्तवाहिनी में अवरोध करके पीलिया तथा आँतों के मार्ग को ही बंद कर देते हैं । ये मज्जा का भक्षण कर सिर के रोग तथा नेत्रों को हानि पहुँचा के नेत्ररोग उत्पन्न करते हैं । इन दुष्परिणामों को न जानने से बच्चों के पेट में होने वाले कृमि को नज़रअंदाज करते हैं । कृमिरोग से सुरक्षा के उपाय अथर्ववेद (कांड 2, सूक्त 32, मंत्र 1) में आता हैः ‘उदय होता हुआ प्रकाशमान सूर्य कृमियों को मारे और अस्त होता हुआ भी सूर्य अपनी किरणों से कृमियों को मारे ।’ भगवान सूर्य से उपरोक्तानुसार प्रार्थना करें । रोज सुबह सूर्यस्नान करें । रोज तुलसी के 5-7 पत्ते खायें । आहारः जौ, कुलथी, पपीता, अनानास, अजवायन, हींग, सोंठ, सरसों, मेथी, जीरा, अरंडी का तेल, पुदीना, करेला, बैंगन, सहजन की फली, परवल, लहसुन आदि का उपयोग अपनी प्रकृति, ऋतु आदि का ध्यान रखते हुए विशेषरूप से करें । फलों एवं सब्जियों को अच्छे से धोकर प्रयोग करें व बाजारू अपवित्र खाद्य पदार्थों से बचें । पूज्य बापू जी द्वारा बताये गये कृमिनाशक प्रयोग 1 लगभग 70 प्रतिशत बच्चों के पेट में कृमि की शिकायत होती है । इंजेक्शन और कैप्सूल के कोर्स करने के बाद भी कृमियों के सूक्ष्ण जीवाणुओं के अंडे रह जाते हैं और समय पाकर पनपते हैं । सुबह खाली पेट पपीते के 7 बीज व तुलसी के 5-7 पत्ते लम्बा समय खिलायें (सप्ताह में 4-5 दिन) । पपीते का नाश्ता करायें । इससे कृमि तो जायेंगे, साथ ही उनके अंडे भी चले जायेंगे । तुलसी कृमियों को भगायेगी और बच्चा होनहार होगा, निरोग होगा । 7 वर्ष तक अगर बच्चे को निरोग रख पाओ तो फिर उसे कोई बीमारी चिपकेगी नहीं, आयी तो रुकेगी नहीं । साल-दो साल में फिर से ऐसा प्रयोग कर लीजिये । बड़ी उम्र वालों में 100 में से 50 व्यक्तियों को पेट में कृमि की शिकायत होती है । इसलिए खाते-पीते हुए भी उनका शरीर पुष्ट नहीं होता और कमजोरी-सी महसूस होती है । उनको भी यह प्रयोग करना चाहिए । सुबह उठते ही कुल्ला आदि करके बच्चे 10 ग्रा गुड़ के साथ आधा ग्राम अजवायन-चूर्ण तथा बड़ 25 ग्राम गुड़ के साथ 1 से 2 ग्राम अजवायन चूर्ण बासी पानी के साथ खायें । इससे आँतों में मौजूद सबी प्रकार के कृमि नष्ट हो जाते हैं । यह प्रयोग 3 दिन से एक सप्ताह तक कर सकते हैं । कृमिनाशक औषधि प्रयोगः 1. सुबह खाली पेट 1 से 3 गोली कोष्ठशुद्धि कल्प 10 मि.ली. नीम अर्क के साथ गर्म पानी से लें । 2. 1-1 तुलसी बीज टेबलेट सुबह-शाम भोजन के बाद चबाकर सेवन करें । 3. 1-1 लीवर टॉनिक टेबलेट सुबह-शाम लें । विशेषः कृमि का शरीर पर अधिक दुष्प्रभाव दिखाई तो वैद्यकीय सलाह से उपचार करें । स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 32, 33 अंक 360 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
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घटता पशुधन फिर भी दूध की भरमार…
कहाँ से आ रहा है इतना दूध ? लम्पी रोग से झुलसती, मरती गायें लम्पी रोग की वजह से देश के कई राज्यों का पशुधन काफी स्तर तक प्रभावित हो चुका है । राजस्थान में इसकी भीषणता और अधिक गम्भीर रूप ले चुकी है । लम्पी रोग के कारण प्रदेश में 60 हजार गायों की मौत हो चुकी है जबकि 13 लाख से अधिक संक्रमित हुई हैं । इस कारण त्यौहारों के दिनों में दूध की कमी का संकट खड़ा हो जाना चाहिए लेकिन हैरत की बात यह है कि बाजार में दूध, पनीर और मावा की उपलब्धता में कोई कमी नहीं आयी है । दूध की कमी होने पर भी पूर्ति कहाँ से हो रही है ? बाजार का अधिकांश दूध पीने योग्य नहीं दैनिक भास्कर द्वारा कैनंस संस्था के साथ मिलकर जयपुर की दूध मंडियों, दूधियों और प्राइवेट डेयरियों से लिए 300 नमूनों की प्रतिष्ठित जाँच एजेंसी से जाँच कराने पर दूध के 200 नमूनों में से 5 नमूने ही पीने योग्य पाये गये, बाकी ‘फूड सेफ्टी एक्ट’ के मानकों के तहत खरे नहीं उतरे । फेल नमूनों में वसा, विटामिन, कैल्शियम और मिनरल्स नहीं पाये गये । दूध के नमूनों में पाम तेल, नमक और चीनी की मिलावट तथा हाई लेवल एसिडिटी पायी गयी । मावा के 50 नमूनों में से 2 तथा पनीर के 50 नमूनों में से 3 नमूने ही पास हुए । यहाँ की कुछ दूध मंडियों के दूध व पनीर के 20-20 नमूनों में से एक भी सेवन योग्य नहीं मिला । थकान, खून की कमी एवं दर्द देगा ऐसा दूध विशेषज्ञों के अनुसार शारीरिक पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और खनिज नहीं मिलने पर थकान, खून की कमी, हड्डियों और मांसपेशियों की कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं । बच्चों की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है । हाथ-पैरों में दर्द होने लगता है । शरीर पोषण के लिए आवश्यक उपरोक्त तत्त्व जो शुद्ध दूध से प्राप्त होते हैं वे तो आज बाजार में बिक रहे अधिकांश दूध में मिल नहीं रहे हैं, इसके विपरीत उसमें हानिकारक केमिकलों की मिलावट होने से उसे पीने वालों को पाचन-तंत्र की कमजोरी आदि अन्य भी समस्याएँ भोगनी पड़ रही हैं । देश में तीन में से दो लोग पीते हैं डिटेर्जेंट वाला दूध वर्ष 2016 में तत्कालीन केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्यौगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि देश में 3 में से 2 लोग डिटर्जेंट, कॉस्टिक सोडा, यूरिया और पेंट वाला दूध पीते हैं । देश में बिकने वाला 68 फीसदी दूध भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है । (देख में इतना गोधन मरने व संक्रमित होने के बाद तो स्थिति क्या हो गयी होगी अनुमान भी नहीं लगा सकते ।) जिंदगी पर भारी है यह दूध… आई. एम.ए. के अध्यक्ष डॉ. एस.एस. अग्रवाल के अनुसार मिलावटी दूध का शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है । यूरिया, कॉस्टिक सोडा और इसमें मौजूद फॉर्मेलिन के कारण आँतों की सूजन से लेकर इम्पेयरमेंट (शारीरिक या मानसिक क्षमता का आंशिक या पूरी तरह से खोना), हृदयरोग व कैंसर जैसी बीमारियाँ होने के साथ मौत तक हो सकती है । डिटर्जेंट से पाचन तंत्र की गड़बड़ियाँ और भोजन की विषाक्तता हो सकती है । इसके उच्च अल्कलाइन होने से शरीर के तंतु क्षतिग्रस्त और प्रोटीन नष्ट हो सकते हैं । इन खतरों को देखते हुए जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा जरूरी है । उपरोक्त आँकड़े एवं तथ्य यही दर्शाते हैं कि अब दूध, दूध नहीं बचा, वह तो बन गया है जहर ! लोगों की जिंदगी दाँव पर लगाकर भी अपनी जेब भरने वाले किस हद तक जा सकते हैं इसका यह उदाहरण है । शुद्ध सात्त्विक दूध व उससे बने पदार्थों का लाभ लें क्या कहीँ शुद्ध दूध मिल सकता है ? हाँ, संत श्री आशाराम जी आश्रमों के मार्गदर्शन में संचालित गौशालाओं से देशी गाय का शुद्ध एवं गुणवत्तायुक्त दूध प्राप्त हो सकता है । लोगों को शुद्ध, सात्त्विक दूध, छाछ, मक्खन, घी एवं दूध से बने सात्त्विक पदार्थ किफायती मूल्य में आसानी से मिल सकें तथा गौरक्षण-संवर्धन हो सकते इसी उद्देश्य से ये गौशालाएँ चलायी जा रही हैं । आप नकली एवं जहरीले दूध व उससे बने पदार्थों से बच के इन गौशालाओं के विभिन्न गुणकारी उत्पादों का लाभ ले के अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा व पोषण प्राप्त कर सकते हैं । यह लाभ अब जयपुर वालों को भी जयपुर में शुरु हो रहे सेवाकेन्द्रों के माध्यम से जल्द ही मिल सकेगा । (संकलकः धीरज चव्हाण )
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
स्वास्थ्य कल्याण की बातें
त्रिदोष शमन के लिए वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम् । शयनं पित्तनाशाय ज्वरनाशाय लंघनम् ।। ‘कफनाश करने के लिए वमन (उलटी), वातनाश के लिए मर्दन (मालिश), पित्तनाश हेतु शयन तथा ज्वरनाश के लिए लंघन (उपवास) करना चाहिए ।’ तो वैद्य की आवश्यकता ही क्यों ? दिनान्ते च पिबेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत् । भोजनान्ते पिबेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम् ।। ‘दिन के अंतिम भाग में अर्थात् रात्रि को शयन से 1 घंटा पूर्व दूध, प्रातःकाल उठकर जल (लगभग 250 मि.ली. गुनगुना) और भोजन के बाद तक्र (मट्ठा) पियें तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े ?’ बिना औषधि के रोग दूर विनापि भेषजं व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते । न तु पथ्यविहीनोऽयं भेषजानां शतैरपि ।। पथ्य सेवन से व्याधि बिना औषधि के भी नष्ट हो जाती हैं परंतु जो पथ्य सेवन नहीं करता, यथायोग्य आहार-विहार नहीं रखता, वह चाहे सैंकड़ों औषधियाँ ले ले फिर भी उसका रोग दूर नहीं होता । दीर्घायु के लिए… वामशायी द्विभुञ्जानो षण्मूत्री द्विपुरीषकः । स्वल्पमैथुनकारी च शतं वर्षाणि जीवति ।। ‘बायीं करवट सोने वाला, दिन में दो बार भोजन करने वाला, कम-से-कम छः बार लघुशंका व दो बार शौच जाने वाला, (वंशवृद्धि के उद्देश्य से) स्वल्प-मैथुनकारी व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है ।’ हरिनाम-संकीर्तन से रोग-शमन सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम् । शान्तिदं सर्वारिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम् ।। ‘हरि नाम-संकीर्तन सभी रोगों का उपशमन करने वाला, सभी उपद्रवों का नाश करने वाला और समस्त अरिष्टों की शांति करने वाला है ।’ स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022, पृष्ठ संख्या 26 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ