उस परम सत्ता की शक्ति को निरंतर विश्वास और अखंड प्रार्थना
से जगाया जा सकता है । आपको उचित आहार लेना चाहिए और शरीर
की उचित देखभाल के लिए जो भी करना आवश्यक है वह अवश्य करना
चाहिए । परंतु इससे भी अधिक भगवान से निरंतर प्रार्थना करनी
चाहिएः ‘प्रभु ! आप ही मुझे ठीक कर सकते हैं क्योंकि प्राणशक्ति के
अणुओं को और शरीर की सूक्ष्म अवस्थाओं को, जिन तक कोई डॉक्टर
कभी अपनी औषधियों के साथ पहुँच ही नहीं सकता, उन्हें आप ही
नियंत्रित करते हैं ।’
औषधियों और उपवास के बाह्य घटकों का शरीर में लाभप्रद
परिणाम उत्पन्न होता है परंतु वे उस आंतरिक शक्ति पर कोई प्रभाव
नहीं डाल सकते जो कोशिकाओं को जीवित रखती है । केवल जब आप
ईश्वर की ओर मुड़ते हैं और उसकी रोग-निवारक शक्ति को प्राप्त करते
हैं तभी प्राणशक्ति शरीर की कोशिकाओं के अणुओं में प्रवेश करती है
और तत्क्षण रोग-निवारण कर देती है । क्या आपको ईश्वर पर अधिक
निर्भर नहीं होना चाहिए ?
परंतु भौतिक पद्धतियों पर निर्भरता छोड़कर आध्यात्मिक
पद्धतियों पर निर्भर होने की प्रक्रिया धीरे-धीरे होनी चाहिए । यदि कोई
अति खाने की आदतवाला मनुष्य बीमार पड़ जाता है और मन के द्वारा
रोग को हटाने के इरादे से अचानक उपवास करना शुरु कर देता है तो
सफलता न मिलने पर हतोत्साहित हो सकता है । अन्न पर निर्भरता की
विचारधारा को आत्मसात् करने में समय लगता है । ईश्वर की रोग
निवारक शक्ति के प्रति ग्रहणशील बनने के लिए पहले मन को ईश्वर
की सहायता में विश्वास होना चाहिए ।
उस परम सत्ता की शक्ति के कारण ही समस्त आणविक ऊर्जा
कम्पायमान है और जड़ सृष्टि की प्रत्येक कोशिका को प्रकट कर रही है
और उसका पोषण भी कर रही है । जिस प्रकार सिनेमाघर के पर्दे पर
दिखने वाले चित्र अपने अस्तित्व के लिए प्रोजेक्शन बूथ से आने वाली
प्रकाश-किरणों पर निर्भर होते हैं उसी प्रकार हम सब अपने अस्तित्व् के
लिए ब्रह्मकिरणों पर निर्भर हैं, अनंतता के प्रोजेक्शन बूथ से निकलने
वाले दिव्य प्रकाश पर निर्भर हैं । जब आप उस प्रकाश को खोजेंगे और
उसे पा लेंगे तब आपके शरीर की समस्त अव्यवस्थित कोशिकाओं की,
अणुओं, विद्युत अणुओं एवं जीव अणुओं की पुऩर्रचना करने की उसकी
असीम शक्ति को आप देखेंगे । उस परम रोग-निवारक के साथ सम्पर्क
स्थापित कीजिये । (एकाकार होइये )।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 20 अंक 363
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