341 ऋषि प्रसादः मई 2021

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

सज्जनों और दुर्जनों का स्वभाव


मृदघटवत् सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च दुर्जनो भवति । सुजनस्तु कनकघटवद्दुर्भद्याश्चाशु सन्धेयः ।। ‘दुर्जन मनुष्य मिट्टी के घड़े के समान सहज में टूट जाता है और फिर उसका जुड़ना कठिन होता है । सज्जन व्यक्ति सोने के घड़े के समान होता है जो टूट नहीं सकता और टूटे भी तो शीघ्र जुड़ सकता है ।’ नारिकेलासमाकारा दृश्यन्ते हि …

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सेवा-अमृत


(पूज्य बाप जी के सत्संग से संकलित) भलाई करके ईश्वर को अर्पण करोगे तो ईश्वरप्रीति मिलेगी, ईश्वरप्रीति मिलेगी तो बुद्धि ईश्वर-विषयिणी हो जायेगी । जितना हो सके भलाई करो, किसी भी प्रकार से बुराई न करो तो ईश्वर को प्रकट होना ही है । जो जबरन परोपकार करता है उसके हृदय में ज्ञान प्रकट नहीं …

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शास्त्रानुकूल आचरण का फल क्या ? – पूज्य बापू जी


शास्त्रानुकूल आचरण, धर्म-अनुष्ठान का फल यह है कि ससांर से उबान आ जाय, वैराग्य आ जाय । अगर वैराग्य नहीं आता तो जीवन में धर्म नहीं किया तुमने, शास्त्रों का पूरा अर्थ नहीं समझा । सत्संग का, शास्त्र अध्ययन का, धर्म का फल यही हैः धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना । ग्यान मोच्छप्रद बेद …

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