Monthly Archives: March 2015

स्वाइन फ्लू से सुरक्षा


 

स्वाइन फ्लू एक संक्रामक बीमारी है, जो श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है।

लक्षणः नाक ज्यादा बहना, ठंड लगना, गला खराब होना, मांसपेशियों में दर्द, बहुत ज्यादा थकान, तेज सिरदर्द, लगातार खाँसी, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि।

सावधानियाः लोगों से हाथ मिलाने, गले लगने आदि से बचें। अधिक भीड़वाले थिएटर जैसे बंद स्थानों पर जाने से बचें।
बिना धुले हाथों से आँख, नाक या मुँह छूने से परहेज करें।
जिनकी रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो उन्हें विशेष सावधान रहना चाहिए।
जब भी खाँसी या छींक आये तो रूमाल आदि का उपयोग करें।
स्वाइन फ्लू से कैसे बचें- यह बीमारी हो तो इलाज से कुछ ही दिनों में ठीक हो सकती है, डरें नहीं। प्रतिरक्षा व श्वसन तंत्र को मजबूत बनायें व इलाज करें।
पूज्य बापू जी द्वारा बतायी गयी जैविक दिनचर्या से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है। सुबह 3 से 5 बजे के बीच में किये गये प्राणायाम से श्वसन तंत्र विशेष बलशाली बनता है। घर में गौ-सेवा फिनायल से पोंछा लगायें व गौ-चंदन धूपबत्ती पर गाय का घी डालकर धूप करें। कपूर भी जलायें। इससे घर का वातावरण शक्तिशाली बनेगा। बासी, फ्रिज में रखी चीजें व बाहर के खाने से बचें। खुलकर भूख लगने पर ही खायें। सूर्य स्नान, सूर्यनमस्कार, आसन प्रतिदिन करें। कपूर इलायची व तुलसी पत्तों को पतले कपड़े में बाँधकर बार-बार सूँघें। तुलसी के 5-7 पत्ते रोज खायें। आश्रमनिर्मित होमियो तुलसी गोलियाँ, तुलसी अर्क, संजीवनी गोली से रोगप्रतिकारक क्षमता बढ़ती है।

कुछ वर्ष पहले जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब पूज्य बापू जी ने इसके बचाव का उपाय बताया थाः “नीम की 21 डंठलियाँ (जिनमें पत्तियाँ लगती हैं, पत्तियाँ हटा दें) व 4 काली मिर्च पानी डालकर पीस लें और छान के पिला दें। बच्चा है तो 7 डंठलियाँ व सवा काली मिर्च दें।”

स्वाइन फ्लू से बचाव के कुछ अन्य उपायः
5-7 तुलसी पत्ते, 10-12 नीम पत्ते, 2 लौंग, 1 ग्राम दालचीनी चूर्ण, 2 ग्राम हल्दी 200 मि.ली. पानी में डालकर उबलने हेतु रख दें। उसमे 4-5 गिलोय की डंडियाँ कुचलकर डाल दें अथवा 2 से 4 ग्राम गिलोय चूर्ण मिलायें। 50 मि.ली. पानी शेष रहने पर छानकर पियें। यह प्रयोग दिन में 2 बार करें। बच्चों को इसकी आधी मात्रा दें।
दो बूँद तेल नाक के दोनों नथुनों के भीतर उँगली से लगायें। इससे नाक की झिल्ली के ऊपर तेल की महीन परत बन जाती है, जो एक सुरक्षा कवच की तरह कार्य करती है, जिससे कोई भी विषाणु, जीवाणु तथा धूल-मिट्टी आदि के कण नाक की झिल्ली को संक्रमित नहीं कर पायेंगे।

स्वाइन फ्लू के लिए विशेष रूप से बनायी गयी आयुर्वेदिक औषधि (सुरक्षा चूर्ण व सुरक्षा वटी) संत श्री आशाराम जी औषधि केन्द्रों पर उपलब्ध है। सम्पर्क करें- 09227033056

स्वाइन फ्लू से बचाव की होमियोपैथिक दवाई हेतु सम्पर्क करें- 09541704923
(यदि किसी को स्पष्ट रूप से रोग के लक्षण दिखाई दें तो वैद्य या डॉक्टर से सलाह लें।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 31, अंक 267
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समस्या बाहर, समाधान भीतर


 

एक राजा बड़ा सनकी था। एक बार सूर्यग्रहण हुआ तो उसने राजपंडितों से पूछाः “सूर्यग्रहण क्यों होता है ?”

पंडित बोलेः “राहू के सूर्य को ग्रसने से।”

“राहू क्यों और कैसे ग्रसता है ? बाद में सूर्य कैसे छूटता है ?” जब उसे इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर नहीं मिले तो उसने आदेश दियाः “हम खुद सूर्य तक पहुँचकर सच्चाई पता करेंगे। एक हजार घोड़े और घुड़सवार तैयार किये जायें।”

राजा की इस बिना सिर-पैर की बात का विरोध कौन करे ? उसका वफादार मंत्रि भी चिंतित हुआ। मंत्री का बेटा था वज्रसुमन। उसे छोटी उम्र में ही सारस्वत्य मंत्र मिल गया था, जिसका वह नित्य श्रद्धापूर्वक जप करता था। गुरुकुल में मिले संस्कारों, मौन व एकांत के अवलम्बन से तथा नित्य ईश्वरोपासना से उसकी मति इतनी सूक्ष्म हो गयी थी मानो दूसरा बीरबल हो।

वज्रसुमन को जब पिता की चिंता का कारण पता चला तो उसने कहाः “पिता जी ! मैं भी आपके साथ यात्रा पर चलूँगा।”

पिताः “बेटा ! राजा की आज्ञा नहीं है। तू अभी छोटा है।”
“नहीं पिता जी ! पुरुषार्थ व विवेक उम्र के मोहताज नहीं हैं। मुसीबतों का सामना बुद्धि से किया जाता है, उम्र से नहीं। मैं राजा को आने वाली विपदा से बचाकर ऐसी सीख दूँगा जिससे वह दुबारा कभी सनकभरी आज्ञा नहीं देगा।”

मंत्रीः “अच्छा ठीक है पर जब सभी आगे निकल जायें, तब तू धीरे से पीछे-पीछे आना।”

राजा सैनिकों के साथ निकल पड़ा। चलते-चलते काफिला एक घने जंगल में फँस गया। तीन दिन बीत गये। भूखे प्यासे सैनिकों और राजा को अब मौत सामने दिखने लगी। हताश होकर राजा ने कहाः “सौ गुनाह माफ हैं, किसी के पास कोई उपाय हो तो बताओ।”

मंत्रीः “महाराज ! इस काफिले में मेरा बेटा भी है। उसके पास इस समस्या का हल है। आपकी आज्ञा हो तो….”
“हाँ-हाँ, तुरंत बुलाओ उसे।”

वज्रसुमन बोलाः “महाराज ! मुझे पहले से पता था कि हम लोग रास्ता भटक जायेंगे, इसीलिए मैं अपनी प्रिय घोड़ी को साथ लाया हूँ। इसका दूध-पीता बच्चा घर पर है। जैसे ही मैं इसे लगाम से मुक्त करूँगा, वैसे ही यह सीधे अपने बच्चे से मिलने के लिए भागेगी और हमें रास्ता मिल जायेगा।” ऐसा ही हुआ और सब लोग सकुशल राज्य में पहुँच गये।

राजा ने पूछाः “वज्रसुमन ! तुमको कैसे पता था कि हम राह भटक जायेंगे और घोड़ी को रास्ता पता है ? यह युक्ति तुम्हें कैसे सूझी ?”

“राजन् ! सूर्य हमसे करोड़ों कोस दूर है और कोई भी रास्ता सूरज तक नहीं जाता। अतः कहीं न कहीं फँसना स्वाभाविक था।

दूसरा, पशुओं को परमात्मा ने यह योग्यता दी है कि वे कैसी भी अनजान राह में हों उन्हें अपने घर का रास्ता ज्ञात होता है। यह मैंने सत्संग में सुना था।

तीसरा, समस्या बाहर होती है, समाधान भीतर होता है। जहाँ बड़ी-बड़ी बुद्धियाँ काम करना बंद करती हैं वहाँ गुरु का ज्ञान, ध्यान व सुमिरन राह दिखाता है। आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ ?”
“बिल्कुल निःसंकोच कहो।”

“यदि आप ब्रह्मज्ञानियों का सत्संग सुनते, उनके मार्गदर्शन में चलते तो ऐसा कदम कभी नहीं उठाते। अगर राजा सत्संगी होगा तो प्रजा भी उसका अनुसरण करेगी और उन्नत होगी, जिससे राज्य में सुख-शांति और समृद्धि बढ़ेगी।”

राजा उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ, बोलाः “मैं तुम्हें एक हजार स्वर्ण मोहरें पुरस्कार में देता हूँ और आज से अपना सलाहकार मंत्री नियुक्त करता हूँ। अब मैं भी तुम्हारे गुरु जी के सत्संग में जाऊँगा, उनकी शिक्षा को जीवन में लाऊँगा।” इस प्रकार एक सत्संगी किशोर की सूझबूझ के कारण पूरे राज्य में अमन चैन और खुशहाली छा गयी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 15 अंक 267
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वसंत ऋतु में बीमारियों से सुरक्षा


वसंत ऋतु में शरीर में संचित कफ पिघल जाता है। अतः इस ऋतु में कफ बढ़ाने वाले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। दिन में सोने से भी कफ बढ़ता है। इस ऋतु में नमक का कम उपयोग स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। तुलसी पत्ते व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्यस्नान से कफ का शमन होता है। मुँह में कफ आने पर उसे अंदर न निगलें। कफ निकालने के लिए जलनेति, गजकरणी का प्रयोग कर सकते हैं। (देखें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन’, पृष्ठ संख्या 43,44)
वसंत ऋतु में सर्दी-खांसी, गले की तकलीफ, दमा, बुखार, पाचन की गड़बड़ी, मंदाग्नि, उलटी दस्त आदि बीमारियाँ अधिकांशतः देखने को मिलती हैं। नीचे कुछ सरल घरेलु उपाय दिये जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आसानी से इन रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।
मंदाग्निः 10-10 ग्राम सोंठ, काली मिर्च, पीपर व सेंधा नमक – सभी को कूटकर चूर्ण बना लें। इसमें 400 ग्राम काली द्राक्ष (बीज निकाली हुई) मिलायें और चटनी की तरह पीस के काँच के बर्तन में भरकर रख दें। लगभग 5 ग्राम सुबह खाने से भूख खुलकर लगती है।
कफ, खाँसी और दमाः 4 चम्मच अडूसे के पत्तों के ताजे रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2 बार खाली पेट लें। (रस के स्थान पर अडूसा अर्क समभाग पानी मिलाकर उपयोग कर सकते हैं। यह आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है।) खाँसी, दमा, क्षयरोग आदि कफजन्य तकलीफों में यह उपयोगी है। आश्रमनिर्मित गोझरण वटी की 2 से 4 गोलियाँ दिन में 2 बार पानी के साथ लेने से कफ का शमन होता है और कफ व वायु जन्य तकलीफों में लाभ होता है।
दस्तः इस्बगोल में दही मिलाकर लेने से लाभ होता है। अथवा मूँग की दाल की खिचड़ी में देशी घी अच्छी मात्रा में डालकर खाने से पानी जैसे पतले दस्त में फायदा होता है।
दमे का दौराः साँस फूलने पर 20 मि.ली. तिल का तेल गुनगुना करके पीने से तुरंत राहत मिलती है।
सरसों के तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर पीठ पर मालिश करें। इससे बलगम पिघलकर बाहर आयेगा और साँस लेने में आसानी होती है।
उबलते हुए पानी में अजवायन डालकर भाप सुँघाने से श्वास-नलियाँ खुलती हैं और राहत मिलती है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 30, अंक 267
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