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Tatva Gyan

ईश्वर का संबंध और सत्य का आश्रय – पूज्य बापू जी



बस दो ही तो बातें हैं !
मैं गुरु को और ईश्वर को साक्षी रख के बोलता हूँ कि तुम्हारा और
ईश्वर का शाश्वत संबंध है और तुम्हारा व शरीर का नश्वर संबंध है ।
तुम्हारा और ईश्वर का संबंध कभी, किसी भी स्थिति में मिट नहीं
सकता और तुम्हारा और संसार का संबंध सदा टिक नहीं सकता । जो
टिक नहीं सकता है उसका सदुपयोग करो, उसमें आसक्ति मत करो और
जो मिट नहीं सकता उसको खोजो तो मिल जायेगा ।
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ ।
हेरत हेरत रह्या कबिरा हेराई ।
खोजते खोजते मैं खो गया,
जिसको खोजता था मैं वही हो गया ।
जिससे संबंध टिकता नहीं है उसका उपयोग करो और जिससे
मिटता नहीं है उसका अनुभव करो । बस, दो ही तो बातें हैं ! क्या
डरना-मरना ? जिससे तुम्हारा संबंध कभी टूट नहीं सकता उसको
पहचानने का दृढ़ संकल्प करो तो तुम अमर पद को पाने की यात्रा कर
लोगे । चाहे तुम चोर बन जाओ, डाकू बन जाओ, दुराचारी बन जाओ,
पापी-पापिन बन जाओ फिर भी ईश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कोई तोड़
नहीं सकता ।
सत्य का आश्रय लो
बड़े-से-बड़ा पापी हो, उससे अलग से पूछोः “तू जो करता है वह
अच्छा काम है ?”
बोलेगाः “यार ! काम तो बुरा है लेकिन छूटता नहीं है, क्या करूँ !”

तो क्या उसके अंदर ईश्वर को पाने की प्यास, ईश्वर की तरफ
जाने की योग्यता नहीं है ? है ।
मैंने साधना करके यह पाया कि सत्य ही ईशवर है । तो फिर झूठ
न बोलने का विचार किया । फिर भी कभी-कभी गड़बड़ हो जाती है तो
मैं उस गड़बड़ के लिए बोलता हूँ कि भाई ! यह मेरी मिलावट थी । तो
मेरे को संतोष होता है और मेरी बात पर लोग विश्वास भी करते हैं कि
‘बापू ने कहा है, बस हो गया !’
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच हैं, ताके हिरदै आप ।।
अति जरूरी हो तब भी झूठ नहीं बोलना चाहिए । झूठ बोलने से
पुण्य और प्रभाव का नाश हो जाता है । जो झूठ बोलते हैं उनको दूसरे
जन्म में जिह्वा नहीं मिलती है । ईश्वर सत्यस्वरूप हैं तो सत्य का
आश्रय लेना चाहिए ।
ऐसे जगेगी भगवत्प्राप्ति की तड़प – पूज्य बापू जी
आपके मन में 2 शक्तियाँ हैं – एक तो प्रेम करने की शक्ति और
दूसरी तड़पने की शक्ति । तुम संसार की चीजों के लिए तड़पते हो और
संसार की वस्तुओं, व्यक्तियों को प्रेम करते हो, यदि तड़प भी भगवान
की हो और प्रेम भी भगवान में हो तो हृदय जल्दी शुद्ध होकर
भगवत्प्राप्ति की तड़प जगेगी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 364
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हमेशा सिंह की तरह निर्भय रहो



हमेशा सिंह की तरह निर्भय रहो । बाहर की परिस्थिति चाहे
कितनी ही भयंकर दिखे, दुःख चाहे पर्वत जैसा बड़ा दिखे, चारों तरफ
अंधकार-ही-अंधकार दिखाई पड़े, कोई मार्ग दिखाई न दे, सब स्वजन
विरोधी हो जायें, सारा विश्व तलवारें ले के तुम्हारे सामने आ जाये फिर
भी डरो मत ! हिम्मत रखो ! उसे वास्तविकता मत दो । अपने निर्भय
आत्मस्वरूप का स्मरण करके उस विपरीत परिस्थिति की अवहेलना कर
दो तो विकट परिस्थतियों का तूफान शांत हो जायेगा ।
परिस्थिति की ऐसी कौन सी गम्भीरता है कि जिसे तुम हटा नहीं
सकते ? जिसे तुम फूँक मारकर तुम उड़ा नहीं सकते ? अनंत-अनंत
ब्रह्मांडों को चलाने वाला परमात्मा तुम्हारे साथ है ।
ऋषि प्रसाद, फरवरी 2023, पृष्ठ संख्या 18 अंक 362
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परमात्म साक्षात्कार के लिए यह भजन नींव का काम करेगा –
पूज्य बापू जी



जिनका आयुष्य पूरा हो रहा है (जो मृत्युशैय्या पर हो) अथवा
जिनका शरीर शांत हो गया है उनके लिए एक भजन बनाया है ताकि
उनको ऊँची गति, मोक्षप्राप्ति में मदद मिले । मृतक व्यक्ति के लिए
रुदन नहीं करना चाहिए, कीर्तन करना चाहिए । कीर्तन तो लोग करते हैं
लेकिन मृतक व्यक्ति की सदगति करने वाला ऐसा भजन बना है कि
यह सुनो-सुनाओ तो महाकीर्तन हो जायेगा ।
ऐसा कोई शरीर है ही नहीं जो मरे नहीं । चो आप जिसका शरीर
शांत हो गया है उसकी सद्गति के लिए इस भजन के द्वारा प्रार्थना
करना और उसके लिए यह भाव करना, उसे प्रेरणा देना कि ‘तुम
आकाशरूप हो, चैतन्य हो, व्यापक हो…।’
यह भजन मृतक व्यक्ति के लिए सद्गतिदायक बनेगा और अपने
लिए भी अब से ही काम में आयेगा । सद्गति की सूझबूझ, सत्प्रेरणा
और सत्स्वरूप अंतरात्मा की मदद सहज में पायें, मृतक और आप स्वयं
अपने सत्स्वरूप में एक हो जायें ।
मृतक व्यक्ति सत्स्वरूप परमात्मा से पृथक नहीं होता, वह
पुण्यात्मा पुण्यस्वरूप ईश्वर का अविभाज्य अंग है । अपनी और उस
महाभाग की परमात्मा-स्मृति जगाइये । अर्जुन कहते हैं- नष्टो मोहः
स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत । स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं
तव ।।
ऐसे ही सभी की स्मृति जगह । भगवत्प्रसाद, भगवद्ज्ञान, भगवद्-स्मृति,
अंतरात्मा भगवान की भक्ति, प्रीति पाइये, जगाइये… जगाइये, पाइये ।

मृत्यु के जो नजदीक हैं वे भी लगें, जिनकी हो गयी हैं उनके लिए भी
करें । इससे अपने पिया स्वभाव (परमात्म-स्वभाव) को पाओगे,
अंतरात्म-स्वभाव में आओगे, विकारों से, जन्म-मरण के चक्कर से छूट
जाओगे । ॐ आनंद… ॐ शांति… ॐॐॐ प्रभु जी… ॐॐॐ प्यारे
जी… ॐॐॐ मेरे जी… ॐॐॐ अंतरात्मदेव… परमात्मदेव…। मंगलमय
जीवन और मृत्यु भई मंगलमय ! ‘
मंगलमय जीवन-मृत्यु’ पुस्तक पढ़ना उसमें भी मृतक व्यक्ति के
लिए प्रेरणा है, उसके अनुसार उसे प्रेरणा देना और जहाँ भी कोई व्यक्ति
संसार से चले गये हों अथवा जाने वाले हों वहाँ इस भजन दोहरा दिया

यह भजन परमात्म-साक्षात्कार के लिए नींव का काम करेगा,
सत्संगी-सहयोगी साथी का काम करेगा । धन्य हैं वे लोग जो इसको
सुन पाते हैं, सुना पाते हैं ! देखें वीडियो
http://www.bit.ly/sadgatibhajan
https://www.youtube.com/watch?v=yzQBgMZviek
मृतक की सद्गति के प्रार्थना
परमात्मा उस आत्मा को शांति सच्ची दीजिये
हे नाथ ! जोड़े हाथ सब हैं प्रेम से ये माँगते ।
साँची शरण मिल जाय हिय से आपसे हैं माँगते ।।
जो जीव आया तव निकट ले चरण में स्वीकारिये ।
परमात्मा उस आत्मा को शांति सच्ची दीजिये ।।1।।
फिर कर्म के संयोग से जिस वंश में वह अवतरे ।
वहाँ पूर्ण प्रेम से आपकी गुरु भक्ति करे ।।
चौरासी लक्ष के बंधनों को गुरुकृपा से काट दे ।

है आत्मा परमात्मा ही ज्ञान पाकर मुक्त हो ।।2।।
इहलोक औ परलोक की होवे नहीं कुछ कामना ।
साधन चतुष्टय और सत्संग प्राप्त हो सदा ।।
जन्मे नहीं फिर वो कभी ऐसी कृपा अब कीजिये ।
परमात्मा निजरूप में उस जीव को भी जगाइये ।।3।।
संसार से मुख मोड़कर, जो ब्रह्म केवल ध्याय है ।
करता उसी का चिंतवन, निशदिन उसे ही गाय है ।।
मन में न जिसके स्वप्न में भी, अन्य आने पाय है ।
सो ब्रह्म ही हो जाय है, न जाय है ना आय है ।।4।।
आशा जगत की छोड़कर, जो आप में ही मग्न है ।
सब वृत्तियाँ हैं शांत जिसकी, आप में संलग्न है ।।
ना एक क्षण भी वृत्ति जिसकी, ब्रह्म से हट पाय है ।
सो तो सदा ही है अमर, ना जाय है ना आय है ।।5।।
संतुष्ट अपने आप में, संतृप्त अपने आप में ।
मन बुद्धि अपने आप में, है चित्त अपने आप में ।।
अभिमान जिसका गल गलाकर, आप में रत्न जाय है ।
परिपूर्ण है सर्वत्र सो, ना जाय है ना आय है ।।6।।
ना द्वेष करता भोग में, ना राग रखता योग में ।
हँसता नहीं है स्वास्थ्य में, रोता नहीं है रोग में ।।
इच्छा न जीने की जिसे, ना मृत्यु से घबराय है ।
सम शांत जीवन्मुक्त सो, ना जाय है ना आय है ।।7।।
मिथ्या जगत है ब्रह्म सत्, सो ब्रह्म मेरा तत्त्व है ।
मेरे सिवा जो भासता, निस्सार सो निस्तत्त्व है ।।
ऐसा जिसे निश्चय हुआ, ना मृत्यु उसको खाय है ।

सशरीर भी अशरीर है, ना जाय है ना आय है ।।8।।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं ।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं ।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ।।
ब्रह्मस्वरूपाय नमः ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2023, पृष्ठ संख्या 27, 29 अंक 362
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