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लोभ करना हो तो इसका करो… – पूज्य बापू जी


प्रतिदिन हजार बार भगवन्नाम लेने से जीवात्मा के पतन का द्वार बन्द हो जाता है । कितनी भी उन्नति हो जाय पर 10 माला भूलना मत, सारस्वत्य मंत्र, गुरुमंत्र की कम-से-कम 10 माला जरूर करना । और 10 माला ही करके रुकना मत, अधिकं जपं अधिकं फलम् । तुकाराम महाराज केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते थे, दिनभर लेते थे । हम केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते या केवल 10 माला नहीं करते… बहुत करना चाहिए । जैसे जो नहीं कमाता है उसको तो माँ-बाप बोलेंगे कि ‘चलो भाई ! इतना कमा लो ।’ लेकिन जो कमाने वाला है उसको बोलेंगे कि ‘और कमाओ ।’ तो यह रुपया पैसा जो यहीं छोड़कर जाने वाली चीज है उसकी कमाई में लोभी लगता है और उससे माँ-बाप खुश होते हैं तो भक्त भगवान की ( भगवन्नाम-जप, सत्संग, ध्यान, भगवत्प्रीत्यर्थ सत्कर्म आदि की ) कमाई में लोभ करेगा तो भगवान खुश होते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 351

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कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा – पूज्य बापू जी


अगर अशांति मिटानी है तो दोनों नथुनों से श्वास लें और ‘ॐ शांतिः… शांतिः’ जप करें और फिर फूँक मारके अशांति को बाहर फेंक दें । जब तारे नहीं दिखते हों, चन्द्रमा नहीं दिखता हो और सूरज अभी आने वाले हों तो यह समय मंत्रसिद्धि योग का है, मनोकामना-सिद्धि योग का है । इस काल में किया हुआ यह प्रयोग अशांति को भगाने में बड़ी मदद देगा । अगर निरोगता प्राप्त करनी है तो आरोग्यता के भाव से श्वास भरें और आरोग्य का मंत्र नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।। जपकर ‘रोग गया’ ऐसा भाव करके फूँक मारें । ऐसा 10 बार करें । कैसा भी रोग, कैसा भी अशांत और कैसा भी बिखरा हुआ जीवन हो, सँवर जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 33 अंक 345

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सुखमय जीवन की अनमोल कुंजियाँ


समस्त रोगनाशक उपाय

स्वास्थ्यप्राप्ति हेतु सिर पर हाथ रख के या संकल्प कर इस मंत्र का 108 बार उच्चारण करें-

अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् ।

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यम् ।।

‘हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविन्द ! – इस नामोच्चारणरूप औषध से समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य कहता हूँ…. सत्य कहता हूँ ।

ज्वरनाशक मंत्र

इस मंत्र के जप से ज्वर दूर होता हैः

ॐ भंस्मास्त्राय विद्महे । एकदंष्ट्राय धीमहि । तन्नो ज्वरः प्रचोदयात् ।।

बुखार दूर करने हेतु…

चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में ज्वर (बुखार) की चिकित्सा का विस्तृत वर्णन करने के बाद अंत में आचार्य श्री चरक जी ने कहा हैः

विष्णुं सहस्रमूर्धानं चराचरपतिं विभुम् ।।

स्तुवन्नामसहस्रेण ज्वरान् सर्वानपोहति ।

‘हजार मस्तक वाले, चर-अचर के स्वामी, व्यापक भगवान की सहस्रनाम का पाठ करने से सब प्रकार के ज्वर छूट जाते हैं ।’

(पाठ रुग्ण स्वयं अथवा उसके कुटुम्बी करें । ‘श्रीविष्णुसहस्रनाम’ पुस्तक नजदीकी संत श्री आशाराम जी आश्रम में व समितियों के सेवाकेन्द्रों से प्राप्त हो सकती है ।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2021, पृष्ठ संख्या 33 अंक 342

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