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स्वास्थ्य कल्याण की बातें


त्रिदोष शमन के लिए वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम् । शयनं पित्तनाशाय ज्वरनाशाय लंघनम् ।। ‘कफनाश करने के लिए वमन (उलटी), वातनाश के लिए मर्दन (मालिश), पित्तनाश हेतु शयन तथा ज्वरनाश के लिए लंघन (उपवास) करना चाहिए ।’ तो वैद्य की आवश्यकता ही क्यों ? दिनान्ते च पिबेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत् । भोजनान्ते पिबेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम् ।। ‘दिन के अंतिम भाग में अर्थात् रात्रि को शयन से 1 घंटा पूर्व दूध, प्रातःकाल उठकर जल (लगभग 250 मि.ली. गुनगुना) और भोजन के बाद तक्र (मट्ठा) पियें तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े ?’ बिना औषधि के रोग दूर विनापि भेषजं व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते । न तु पथ्यविहीनोऽयं भेषजानां शतैरपि ।। पथ्य सेवन से व्याधि बिना औषधि के भी नष्ट हो जाती हैं परंतु जो पथ्य सेवन नहीं करता, यथायोग्य आहार-विहार नहीं रखता, वह चाहे सैंकड़ों औषधियाँ ले ले फिर भी उसका रोग दूर नहीं होता । दीर्घायु के लिए… वामशायी द्विभुञ्जानो षण्मूत्री द्विपुरीषकः । स्वल्पमैथुनकारी च शतं वर्षाणि जीवति ।। ‘बायीं करवट सोने वाला, दिन में दो बार भोजन करने वाला, कम-से-कम छः बार लघुशंका व दो बार शौच जाने वाला, (वंशवृद्धि के उद्देश्य से) स्वल्प-मैथुनकारी व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है ।’ हरिनाम-संकीर्तन से रोग-शमन सर्वरोगोपशमनं सर्वोपद्रवनाशनम् । शान्तिदं सर्वारिष्टानां हरेर्नामानुकीर्तनम् ।। ‘हरि नाम-संकीर्तन सभी रोगों का उपशमन करने वाला, सभी उपद्रवों का नाश करने वाला और समस्त अरिष्टों की शांति करने वाला है ।’ स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022, पृष्ठ संख्या 26 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

रोग से छुट्टी भी और रुग्णावस्था का सदुपयोग भी – पूज्य बापूजी


मन की अस्वस्थता के समय भी आप दिव्य विचार करके लाभान्वित हो सकते हैं । आपके शरीर को रोग ने घेर लिया हो, आप बिस्तर पर पड़ें हो अथवा आपको कोई शारीरिक पीड़ा सताती हो तो इन (निम्नलिखित) विचारों को अवश्य दोहराना । इन विचारों को अपने विचार बनाना । अवश्य लाभ होगा । ऐसे समय में अपने-आपसे पूछोः ‘रोग या पीड़ा किसे हुई है ?’ ‘शरीर को हुई है । शरीर पंचभूतों का है, इसमें तो परिवर्तन होता ही रहता है । दबी हुई कोई अशुद्धि रोग के कारण बाहर निकल रही है अथवा इस देह मे जो मेरी ममता है उसको दूर करने का सुअवसर आया है । पीड़ा इस पंचभौतिक शरीर को हो रही है, दुर्बल तन-मन हुए हैं, इनकी दुर्बलता को, इनकी पीड़ा को जानने वाला मैं इनसे पृथक हूँ । प्रकृति के इस शरीर की रक्षा अथवा इसमें परिवर्तन प्रकृति ही करती है । मैं परिवर्तन से निर्लेप हूँ । मैं प्रभु का, प्रभु मेरे । मैं चैतन्य आत्मा हूँ, परिवर्तन प्रकृति में है । मैं प्रकृति का भी साक्षी हूँ । शरीर की आरोग्यता, रुग्णता या मध्यावस्था – सबको देखने वाला हूँ ।’ ‘ॐ… ॐ… ॐ…’ का पावन रटन करके अपनी महिमा में, अपनी आत्मशुद्धि में जाग जाओ । फिर रोग के बाप की ताकत नहीं कि आपको सताय और ज्यादा समय टिके । अरे भैया ! चिंता किस बात की ? क्या तुम्हारा कोई नियंता नहीं है ? हजारों तन बदलने पर, हजारों मन के भाव बदलने पर भी सदियों से तुम्हारे साथ रहने वाला परमात्मा, द्रष्टा, साक्षी, वह अबदल आत्मा क्या तुम्हारा रक्षक नहीं है ? क्या पता, इस रुग्णावस्था से भी कुछ नया अनुभव मिलने वाला हो, शरीर की अहंता और संबंधों की ममता तोड़ने के लिए तुम्हारे प्यारे प्रभु ने यही यह स्थिति पैदा की हो तो ? तू घबरा मत, चिंता मत कर बल्कि ‘तेरी मर्जी पूरण हो !…’ ऐसा भाव रख । यह शरीर प्रकृति का है, पंचभूतों का है । मन और मन के विचार एवं तन के संबंध स्वप्नमात्र हैं । उन्हें बीतने दो भैया ! ॐ शांति… ॐ आनंद… ॐ… ॐ… इस प्रकार के विचार करके रुग्णावस्था का पूरा सदुपयोग करें, आपको खूब लाभ होगा । खान-पान में सावधानी बरतें, पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखें, निद्रा जागरण-विहार का ख्याल रखें, उचित उपचार करें और यह (उपरोक्त) प्रयोग करें तो आप शीघ्र स्वस्थ हो जायेंगे । स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022, पृष्ठ संख्या 34 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

रोगों को मिटाने और भगवान को पाने का सुंदर उपाय अजपाजप – पूज्य बापू जी


सभी रोगों की अचूक दवा है ‘अजपाजप’ । श्वास अंदर जाय तो भगवन्नाम, बाहर आये तो गिनती अथवा श्वास अंदर जाय तो ‘सोऽ’ बाहर आये तो ‘हम्’… यह ‘सोऽहम्’ की साधना अजपाजप कहलाती है । ईश्वरप्राप्ति तो होगी लेकिन उसके पहले शरीर निरोग हो जायेगा, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ निरोग हो जायेंगे । ‘अजपाजप’ को ‘अजपा गायत्री’ भी बोलते हैं । बाहर की औषधि एक अंग को ठीक करती है किंतु दूसरे अंगों पर उसका बुरा असर भी पड़ता है । वह शरीर में जाने पर उन सब अंगों में भी जाती है जहाँ उसकी जरूरत नहीं है । इसीलिए कई थेरेपियाँ निकलीं, कई ऑपरेशन निकले, इंजेक्शन निकले, कैप्सूल निकले… परंतु मनुष्य और भी बीमार होता गया । इलाज करता गया, मर्ज बढ़ता गया । मर्ज मानसिक भी होते हैं, प्राणमय भी होते हैं । प्राण का ठीक संचरण नहीं होने से भी कई मर्ज बनते हैं, अंदर काम-विकार है तो भी मर्ज बनते हैं, क्रोध आने से भी मर्ज बनते हैं, लोभ, अहंकार, चिंता आने से भी मर्ज होते हैं । इनका इलाज न तो एलोपैथिक डॉक्टरों के पास है, न आयुर्वेद के वैद्यों के पास है । कारण की 5 विकारों से मर्ज बनते हैं यह पता ही नहीं है और 5 विकारों का मूल है – राग-द्वेष । राग-द्वेष को काटने के लिए… निंदा किसी की हम किसी से भूलकर भी न करें, ईर्ष्या कभी भी हम किसी, भूलकर भी न करें ।। सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें ।… यह प्रार्थना राग-द्वेष पर कुल्हाड़ा है । लेकिन सिर्फ यह पाठ करने से काम नहीं होता है, इस पर अमल करना चाहिए, तत्पर रहना चाहिए तभी आप निरोग रहेंगे । सब अंगों के ठीक-ठाक कार्य करने के लिए अनिवार्य आवश्यकता है उचित रक्त-परिभ्रमण की और रक्त को परिभ्रमण करने की सत्ता प्राण देता है । प्राण तालबद्ध नहीं होगा अथवा प्राणबल नहीं होगा तो मनोबल भी नहीं होगा, आरोग्यबल भी नहीं होगा । इसलिए प्राणबल बढ़ाना चाहिए । नाम-सुमिरन से प्राण की तालबद्धता होती है और प्राण की तालबद्धता होती है तो तन व मन के रोग मिटते हैं । उससे भी ज्यादा श्वासोच्छ्वास की साधना से, अजपा गायत्री से प्राण की तालबद्धता होती है अतः इससे बुद्धि के रोग भी मिटते हैं । औषधियों से इतने रोग नहीं मिटते हैं जितने इससे मिटते हैं । एलोपैथिक औषधियों से तो कई रोग दब जाते हैं, कई रोग विकृत भी हो जाते हैं और समय पाकर रोगप्रतिकारक शक्ति से कुछ रोग मिटते भी हैं लेकिन निर्मूल नहीं होते । अजपाजप तो रोगों को निर्मूल करने का अचूक उपाय है । रोगों को भगाने, मिटाने और भगवान को पाने का सुंदर उपाय है – अजपाजप । स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022 पृष्ठ संख्या 2 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ