वर्षा ऋतु में वायु की प्रधानता की ऋतु है। इन दिनों में सूर्य की किरणें कम मिलने से जठराग्नि मंद होकर अन्न का पाचन कम होता है और शरीर में कच्चा रस (आम) उत्पन्न होने लगता है। इससे गैस, अम्लपित्त, अफरा, डकारें, सिरदर्द, अपच, कब्ज, विभिन्न वायुरोग, अजीर्ण एवं पेट की अन्य छोटी-मोटी असंख्य बीमारियों की उत्पत्ति होने की सम्भावना होती है। इनमें हींगादि हरड़ चूर्ण का सेवन हितकारी है।
लगातार 7 दिन गोमूत्र में हरड़ को भिगोने के बाद उसे सुखाकर व पीस के उसमें हींग, अजवायन, सेंधा नमक, इलायची आदि मिला के बनाये गये गुणकारी योग को हींगादि हरड़ चूर्ण कहते हैं।
यह वर्षा ऋतुजन्य समस्त रोगों में रामबाण औषधि का कार्य करता है और इसके अलावा चर्मरोग, यकृत (लीवर) व गुर्दों (किडनियों) के रोग, खाँसी, सफेद दाग, कील-मुहाँसे, संधिवात, हृदयरोग, बवासीर, सर्दी, कफ एवं स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोगों में भी लाभदायी है। इस अत्यंत लाभप्रद आयुर्वेदिक योग को बनाना सभी के लिए आसान नहीं होगा, यह विचार के इसे साधकों द्वारा उत्तम गुणवत्तायुक्त घटक द्रव्यों से निर्मित कर आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध कराया गया है। इसका अवश्य लाभ लें।
सेवन विधिः 1 से 2 छोटे चम्मच चूर्ण सुबह और दोपहर को भोजन के बाद थोड़े से गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं। आवश्यक लगने पर रात्रि में भोजन के बाद इस चूर्ण का सेवन कर सकते हैं किंतु उस रात दूध बिल्कुल न लें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2017, पृष्ठ संख्या 33, अंक 295
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