Monthly Archives: July 2017

स्वास्थ्य-रक्षा हेतु कुछ घरेलु प्रयोग


अम्लपित्त (Acidity) जीरा और धनिया बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसमें समभाग मिश्री मिला लें। 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करें।

अफराः 1 गिलास छाछ में 2-3 ग्राम अजवायन का चूर्ण व थोड़ा सा सेंधा नमक मिला के लेने से अफरा दूर होता है व दूषित वायु का शीघ्र निष्कासन होता है।

पेटदर्दः 2 चम्मच नींबू का रस, 1 चम्मच अदरक का रस और थोड़ी सी मिश्री मिला के पीने से पेटदर्द में लाभ होता है।

पेचिशः 3-3 ग्राम बेल चूर्ण दिन में  3-4 बार छाछ के साथ सेवन करने से आँवयुक्त पेचिश में लाभ होता है। (बेल चूर्ण आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2017, पृष्ठ संख्या 33 अंक 295

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सत्पुरुषों का यही है निश्चय….


भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज

आत्मा स्वतः सिद्ध है। केवल महापुरुष एवं सदगुरु ही उसका ज्ञान कराते हैं कि ‘भाई ! तुम जो स्वयं को शरीर समझ रहे हो, वह तुम नहीं हो। तुम आनंदस्वरूप परमात्मा हो, न कि जीव।’

जो आँखें रूपों को देखती हैं, वे जड़ हैं। शरीर न सुंदर है न प्रेमस्वरूप और न ‘सत्’ ही है। यह शरीर रूधिर (रक्त), रोगाणु, मांस, मैल का थैला और मुर्दा है। इस जैसी गंदी वस्तु दूसरी कोई भी दुनिया में नहीं है।

मन दौड़ता है रूप आदि विषयों और गंदे पदार्थों की ओर। किंतु यदि ‘यह जो कुछ दिख रहा है वास्तव में है ही नहीं’ – ऐसा विवेक जगाया तो फिर मन जायेगा कहाँ ? ‘वे विषय, पदार्थ हैं ही नहीं’ – ऐसा समझकर उनसे दूर रहना चाहिए। इसे ‘वैराग्य’ कहा जाता है। ‘अभ्यास’ का अर्थ है – बार आत्मा का चिंतन करना अर्थात् उसका स्मरण करना, ध्यान करना, उसका ज्ञान-कथन करना। आनंद में स्थिर होने से मन वश में हो जायेगा। बहुत अभ्यास करने से मन का बिल्कुल अभाव हो जायेगा।

शरीर का जैसा प्रारब्ध होगा, वैसे इधर-उधर आता-जाता रहेगा और काम आदि करता रहेगा। यह शरीर न पहले था न बाद में रहेगा और न बीच में ही है, केवल सच्चिदानंद ही है। आत्मज्ञानियों-सत्पुरुषों का यही निश्चय है। तुम भी सदैव यही निश्चय रखो कि ‘मैं सच्चिदानंद-ही-सच्चिदानंद हूँ। सब कुछ मैं हूँ और अन्य कुछ कुछ नहीं।’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2017, पृष्ठ संख्या 7, अंक 295

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वर्षा ऋतु में अनुपम हितकारी हींगादि हरड़ चूर्ण


वर्षा ऋतु में वायु की प्रधानता की ऋतु है। इन दिनों में सूर्य की किरणें कम मिलने से जठराग्नि मंद होकर अन्न का पाचन कम होता है और शरीर में कच्चा रस (आम) उत्पन्न होने लगता है। इससे गैस, अम्लपित्त, अफरा, डकारें, सिरदर्द, अपच, कब्ज, विभिन्न वायुरोग, अजीर्ण एवं पेट की अन्य छोटी-मोटी असंख्य बीमारियों की उत्पत्ति होने की सम्भावना होती है। इनमें हींगादि हरड़ चूर्ण का सेवन हितकारी है।

लगातार 7 दिन गोमूत्र में हरड़ को भिगोने के बाद उसे सुखाकर व पीस के उसमें हींग, अजवायन, सेंधा नमक, इलायची आदि मिला के बनाये गये गुणकारी योग को हींगादि हरड़ चूर्ण कहते हैं।

यह वर्षा ऋतुजन्य समस्त रोगों में रामबाण औषधि का कार्य करता है और इसके अलावा चर्मरोग, यकृत (लीवर) व गुर्दों (किडनियों) के रोग, खाँसी, सफेद दाग, कील-मुहाँसे, संधिवात, हृदयरोग, बवासीर, सर्दी, कफ एवं स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोगों में भी लाभदायी है। इस अत्यंत लाभप्रद आयुर्वेदिक योग को बनाना सभी के लिए आसान नहीं होगा, यह विचार के इसे साधकों द्वारा उत्तम गुणवत्तायुक्त घटक द्रव्यों से निर्मित कर आश्रम व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध कराया गया है। इसका अवश्य लाभ लें।

सेवन विधिः 1 से 2 छोटे चम्मच चूर्ण सुबह और दोपहर को भोजन के बाद थोड़े से गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं। आवश्यक लगने पर रात्रि में भोजन के बाद इस चूर्ण का सेवन कर सकते हैं किंतु उस रात दूध बिल्कुल न लें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2017, पृष्ठ संख्या 33, अंक 295

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