Monthly Archives: February 2021

तो आप न चाहो तो भी भगवान मिल जायेंगे – पूज्य बापू जी


संसार की वासना छोड़ना कठिन है तो क्या वह पूरी करना आसान है ? नहीं, संसार को पाना कठिन है । मैं तो कहता हूँ कि भगवान को पाना कठिन लगता है लेकिन संसार को पाना असम्भव है । लगता है कि पा लिया, पा लिया, पा लिया…. पर आ-आ के चला जाता है, ठहरेगा नहीं । भगवान को छोड़ना असम्भव है । जिसको छोड़ना असम्भव है उससे प्रीति करके उसको ठीक से पहचानो और जिसको पाना असम्भव है उससे ममता हटाकर उसका सदुपयोग करो, बस हो गया काम । तो जहाँ से मन को हटाना चाहते हैं उसको नापसंद कर दो और जहाँ लगाना चाहते हैं उसको पसंद कर लो – एक बात । दूसरी बात – अपने में जो कमियाँ दिखती हैं ‘वे अपने में हैं’ ऐसा मानने की गलती न करो, मन में है, बुद्धि में है, शरीर में है.. उनको निकालने के लिए सत्संग का आश्रय लो, सत्प्रवृत्ति का आश्रय लो । सत्संग और सत्प्रवृत्ति में लगेंगे तो कुसंग और कुप्रवृत्ति से जो गलतियाँ हो रही हैं उनसे बचाव हो जायेगा ।

जो नहीं कर सकते हैं अथवा जिसको किये बिना चल सकता है उससे अपने को बचा लो । और जहाँ ममता फँसी है – पैसे में, पत्नी में, शरीर में…. वहाँ से उसे ऐसे नहीं मिटा सकते, ममता से ममता हटेगी । तो भगवान में ममता रख दो – ‘जो चेतन है वह मेरा है, जो ज्ञानस्वरूप है वह मेरा है, जो सुखस्वरूप है, साक्षीस्वरूप है, अविनाशी है, अमर है वह मेरा है, जो नित्य है, जो चिद्घन चैतन्य है वह मेरा है, जो कभी न बदले वह मेरा है, जो आनंदस्वरूप है, प्रेमस्वरूप है वह मेरा है, कीट-पतंग के अंदर जिसकी चेतना खिलवाड़ कर रही है वह मेरा है । ॐ’….’

‘घर मेरा है, बेटा मेरा है, 10-20 मेरे हैं…’ ऐसी सीमित ममता क्यों, यहाँ तो करोड़ों मेरे हैं, ऐसा कर ले न भाई ! ममता का विस्तार कर ले । अपना जहाँ मिलता है वहाँ मजा आता है – अपना बेटा मिल गया, अपना परिचित मिल गया – पति, पत्नी, मित्र पैसा या अपनी चाही वस्तु मिल गयी तो आनंद आता है ।

तो अपना तो वही परमात्मा है और जब वह जहाँ-तहाँ मिलने लग जायेगा यानी सभी को गहराई में जब अपने प्रिय परमात्मा को देखने की दृष्टि बन जायेगी तो आपका अविकम्प योग हो जायेगा । जब ध्यान में बैठोगे तो मन एकाग्र और ध्यान खुला तो अभी जैसा बताया वैसा भगवद्-चिंतन…. बड़ा आसान तरीका है, बड़ा सरल तरीका है ! नदी बह रही है, उधर ही नदी के पानी के साथ चलते-चलते जाओ, आप न चाहो तो भी समुद्र आ जायेगा । ऐसे ही आप ऐसा चिंतन करो तो तो आप न चाहो तो भी भगवान मिल जायेंगे ।

चित्त चेतन को ध्यावे तो चेतनरूप भयो है ।

शत्रु का चिंतन करने से मन गंवा होता है, अशुभ का चिंतन करने से अशुभ होता है, शुभ का चिंतन करने से शुभ होता है और भगवान का चिंतन करने से मन भगवन्मय हो जाता है । अभद्र में भद्र का चिंतन करो, अशुभ में भी शुभ की गहराई देखो, अमंगल में भी मंगल को देखो । क्या जरा-जरा बात में फरियाद ! क्या जरा-जरा बात में दुःखी होना ! क्या जरा-जरा बात में इच्छा का गुलाम बनना ! ‘ठीक है, इसका बढ़िया मकान है तो उस बढ़िया मकान में जो रह रहा है वहाँ भी वही रह रहा है, यहाँ भी वही रह रहा है । ॐ….’ खुशी मनाओ, आनंद लो । अपना मकान बन जाय तो बन जाय लेकिन दूसरे का बढ़िया मकान देखकर ईर्ष्या न करो, वासना न करो । प्रारब्ध में होगा, थोड़ा पुरुषार्थ होगा… हो गया तो हो गया बस !

चिंतन की धारा ऊँची कर दो, उद्देश्य ऊँचा कर लो, संग ऊँचा कर लो, प्राप्ति ऊँची हो जायेगी आप न चाहो तो भी ! परमात्म-चिंतन, परमात्म-अनुभव का उद्देश्य और उद्देश्य के अनुकूल संग कर लो तो न चाहने पर भी परमात्म-अनुभव हो जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 338

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

क्यों आते हैं कष्ट-मुसीबतें ? – पूज्य बापू जी


ईश्वरप्राप्ति के लिए जो भी सह लिया थोड़ा है । ईश्वर का इतना बड़प्पन है कि उसके लिए कुछ भी सहो, बहुत थोड़ा है । मीराबाई ने सहा, शबरी ने बहुत सहा फिर भी थोड़ा है ।

कोई बेवकूफ हो तो वह दुःख कहीं भी बना लेगा कि ‘हम तो दुःखी हैं ।’ उसका दुःख तो ब्रह्मा जी भी नहीं मिटा पायेंगे । जिसको फरियाद की आदत है उसका ईश्वर के रास्ते चलना सम्भव नहीं । फरियादी जीवन अपने-आपके लिए मुसीबत है और दूसरों के लिए भी ।

कष्ट तुम्हारी महिमा बताने को आते हैं कि ‘संसार की इच्छा करोगे तो लो यह हम (कष्ट) मिल रहे हैं पर हम फिर टिकते नहीं हैं, चले जाते हैं और तुम ज्यों-के-त्यों ! तुम कितने अमर हो, चेतन हो, ज्ञानस्वरूप हो किंतु हमको (कष्टों को) महत्त्व देते हो तो हमारा महत्त्व बढ़ जाता है और हमारी उपेक्षा करते हो तो फिर तुम मौज में रहते हो ।’

कष्ट तुम्हारा प्रभाव जगाने को आते हैं कि ‘भाई ! देखो, तुम कितने प्रभावशाली हो ! हमसे प्रभावित होते हो तो हम बड़े हो जाते हैं, नहीं तो हमारी उपेक्षा कर देते हो तो तुम ज्यों-के-त्यों !’

तो आप कष्टों के स्वामी हुए कि नहीं हुए ? फिर स्वामी होकर इनसे काहे को डरना, दबना अथवा अनुचित कर्म करना ?

आपके जीवन में जब कष्ट, विरोध-बाधाएँ आ जायें तो आप फरियाद मत करना कि ‘हम भगवान का भजन करते हैं और मुसीबत आ गयी ।’ मुसीबत आयी तो है लेकिन वह हर मुसीबत को कुचलने का सामर्थ्य जगाने के लिए आयी है, जन्म-मरण के चक्र को तोड़ने का सामर्थ्य जगाने के लिए आयी है – इस बात पर आप दृढ़ रहें । आप हिम्मत मत हारना, प्रह्लाद की नाईं अडिग रहना, मीराबाई की तरह अडिग रहना ।

ऐसा दुःख या परेशानी कोई नहीं है जिसमें हमारा कल्याण न छिपा हो । इसलिए कभी भी दुःख और परेशानी आयें तो समझ लेना विधाता का विधान है । ये हमारा कल्याण करने के लिए आये हैं, आसक्ति छुड़ाने को आये हैं, संसार से मोह-ममता छुड़ाने को आये हैं । ‘वाह प्रभु, वाह तेरी जय हो !’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 2 अंक 338

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

परिप्रश्नेन…


प्रश्नः मन वश क्यों नहीं होता ?

पूज्य बापू जीः मन में महत्त्व संसार का है और भगवान का भी उपयोग करते हैं जैसे नौकर का उपयोग करते हैं । भगवान तू यह कर दे, यह कर दे, यह कर दे…’ । महत्त्व है मिथ्या शरीर का और मिथ्या संसार का इसलिए मन वश नहीं होता । अगर भगवान का महत्व समझ में आ जाय और शरीर मरने वाला है, जो मिला वह छूटने वाला है… अहा ! शरीर दूसरा मिले कि न मिले इसमें संदेह है लेकिन जो मिला है वह छूटेगा कि नहीं छूटेगा इसमें संदेह नहीं है – ऐसा अगर दिमाग में ठीक से बैठ जाय तो धीरे-धीरे विषय-विकारों से मन उपराम होगा और भगवान में लगेगा । महत्त्व मिथ्या को देते हैं और भजन भगवान का करते हैं तो उसमें भगवान का भी उपयोग करते हैं । जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, महात्मा से कुछ माँगते हैं उनके हृदय में महात्मा से और भगवान से भी उनकी माँगी हुई चीज का महत्त्व ज्यादा है ।

कई लोग कहते रहते हैं कि ‘हमारे को ऐसा कर दो… हमारा ऐसा हो जाय, ऐसा हो जाय… ।’

अरे ! क्या अक्ल मारी गयी ! ‘मैं तो सदा तुम्हारा सुमिरन करूँ, मैं ऐसा करूँ… ।’ अरे ! जो हो रहा है उसमें सम रहो । ऐसा करूँ… सा करूँ…’

सोचा । अब यदि वैसा होगा तो आसक्ति हो जायेगी, नहीं होगा तो रोओगे । तुम न आसक्ति में आओ, न रोने में आओ, सम रहो । जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ।

जो अपनी मन की चाह पूरी करता रहेगा, मनचाहा सुख लेता रहेगा उसके चाहे 10 हजार जन्म बीत जायें, ईश्वरप्राप्ति नहीं होगी । मन के चाहे में सुखी होगा और न चाहे में दुःखी होगा तो ईश्वरप्राप्ति नहीं होगी । मन तो जिंदा रहेगा, वासना तो बढ़ेगी इसलिए सच्चे भक्त बोलते हैं- ‘मेरी सो जल जाय, हरि की हो सो रह जाय ।’ तो कोई घाटा नहीं पड़ता । हरि की चाह बहुत ऊँची है और हितकारी है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 34 अंक 338

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ