Tag Archives: Rishi Prasad Jayanti

जीवन में धर्म, सुख-समृद्धि और परमानंद लाना है तो ‘ऋषि प्रसाद’ के अभ्यासी बन जाइये- श्री धनंजय देसाई, संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू राष्ट्र सेना


आप टाइम पास करने के लिए बहुत सारे संसाधनों का उपयोग करते हैं । वास्तव में आप समय बिताते नहीं हैं, वह तो अपने-आप बीत रहा है, वह आपके रोकने से रुकेगा नहीं और भगाने से भागेगा नहीं । वास्तव में जो स्वाभाविक रूप से बीत रहा है आप उसका सदुपयोग कर सकते हैं लेकिन उसका सदुपयोग न करते हुए आप भारतभूमि के चरित्र को कलंकित करने वाले फालतू मीडिया चैनलों को देखते हैं, समाचार पत्र, कॉमिक्स या ऐसी वैसी पत्रिकाएँ पढ़ते हैं और अपना नैतिक पतन कर लेते हैं, मानसिक आरोग्य खराब कर लेते हैं ।

सुबह उठते ही आप जो पहला साहित्य पढ़ते हैं, उसका आपके चित्त पर विशेष व गहरा प्रभाव पड़ता है । आप सुबह-सुबह कोई भी अखबार मत पढ़िये । आपके वचन में, विचारों में, चिंतन मनन आदि में दुःख, क्लेश, वासनाओं के साहित्य नहीं होने चाहिए ।  आप ऐसा साहित्य पढ़ें जिससे मन की शांति प्राप्त हो, आप अध्यात्म की ओर बढ़ें, आपका विवेक जागृत हो, आपके ज्ञानचक्षु खुलें, आपकी आनंद-अवस्था जागृत हो । तो वह साहित्य कौन-सा है ?

मैं अधिकार और अनुभव से कहता हूँ कि अगर आपके घर में पवित्र शक्तियों का विचरण चाहिए, सकारात्मक ऊर्जा चाहिए, नकारात्मक ऊर्जा को हटाना है तो संतश्रेष्ठ आशाराम जी बापू के साहित्य को पढ़िये । ‘ऋषि-प्रसाद’ और ‘लोक-कल्याण-सेतु’ – ये साहित्य आपके आसपास में होने चाहिए ।

इनमें मन की शक्ति और समृद्धि को बढ़ाने वाले प्रयोग हैं, तन को तन्दुरुस्त बनाने के लिए आयुर्वेद का ज्ञान दिया हुआ है । किस समय क्या खाना, क्या पीना चाहिए ? कैसे रहना चाहिए ? कौन-से देवता की कैसे साधना-उपासना करनी चाहिए ? … यह सारा कुछ सार रूप में और सरल भाषा में इन सत्साहित्यों में आता है ।

आप छोटी-मोटी पुस्तकें भी लेंगे तो उनकी कीमत 200-200, 500-500 रुपये होती है परंतु 65 रुपये में पूरे वर्ष भर हर महीने आपके घर ऋषि प्रसाद पहुँच रही है । यह पुस्तक नहीं है अपितु भगवद्गीता, वेद व सारे आध्यात्मिक ग्रंथों का सहज, सुलभ ज्ञान है ।

ऋषि प्रसाद में सहजता और सरलता से आप सभी गुरुओं के चरित्रों का पारायण कीजिये, सारे धर्मग्रंथों का अभ्यास कीजिये । अपने कुल में धर्म को बोना है, परमानंद घर में लाना है तो ऋषि प्रसाद के साधक, अभ्यासी बन जाइये । एक ही ऋषि प्रसाद को बार-बार जब भी पढ़ते हैं तो नये रूप से दिखती है, मुझे भी आश्चर्य होता है । मैंने खुद ऋषि प्रसाद का एक ही अंक कई बार पढ़ा है और हर बार मुझे हर पंक्ति में नयापन लगता है, हर सूत्र में फिर से कोई नया सूत्र दिखता है, आप घर में ऋषि प्रसाद लाइये और उसे पढ़कर अपने आत्मानंद, तेजस्वरूप प्रकाश को पाइये ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2022, पृष्ठ संख्या 17 अंक 350

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

ऋषि प्रसाद सेवाधारियों को पूज्य बापू जी का अनमोल प्रसाद – इस प्रसाद के आगे करोड़ रुपये की भी कीमत नहीं


(ऋषि प्रसाद जयंतीः 23 जुलाई 2021)

ऋषि प्रसाद के सेवाधारियों को मैं ‘शाबाश’ देने से इन्कार कर रहा हूँ । न शाबाश देना है, न धन्यवाद देना है और न ही कोई चीज़-वस्तु या प्रमाणपत्र देना है क्योंकि दी हुई चीज तो छूट जायेगी । जो है

हाजरा-हुजूर जागंदी ज्योत ।

आदि सचु जुगादि सचु ।।

है भी सच नानक होसी भी सचु ।।

उसमें इनको जगा देना है, बस हो गया !

ऋषि प्रसाद के एक-एक सेवाधारी को एक-एक करोड़ रुपये दें तो वे भी कोई मायना नहीं रखते हैं इस प्रसाद के आगे । करोड़ रुपये देंगे तो ये शरीर की सुविधा बढ़ा देंगे और भोगी बन जायेंगे । और भोगी आखिर नरकों में जाते हैं । लेकिन यह ज्ञान दे रहे हैं तो ये ज्ञानयोगी बन जायेंगे और ज्ञानयोगी जहाँ जाता है वहाँ नरक भी स्वर्ग हो जाता है ।

श्वास स्वाभाविक चल रहा है, उसमें ज्ञान का योग कर दो – सोऽ….हम्…’ । बुद्धि की अनुकूलता में जो आनंद आता है वह मेरा है । आपका आनंद कहाँ रहता है ? खोजो ! यह जान लो और आनंद लूटो, जान लो और मुक्ति का माधुर्य लो, जान लो और बन जाओ हर परिस्थिति के बाप, अपने आप ! स्वर्ग भी नन्हा, नरक भी प्रभावहीन… सोऽहंस्वरूप… भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिस माधुर्य में रहते हैं उसके द्वार पहुँचा देता है यह ।

‘ऋषि प्रसाद’ वालों का क्या देना ? जो समाज औऱ संत के बीच सेतु बने हैं उनको क्या बाहर की खुशामद, वाहवाही, शाबाशी दें ? यह तो उनका अपमान है, उनसे ठगाई है । ये तो नेता लोग दे सकते हैं- ‘भई,  इन्होंने यह सेवा की, बेचारों ने यह किया… यह किया…. ।’

ऋषि प्रसाद के लाखों सदस्य हैं और लाखों लोगों को ऋषि प्रसाद हाथों-हाथ मिलती है यह सब यश ऋषि प्रसाद के सदस्य बनाने वालों व उसे बाँटने वालों के भाग्य में जाता है किंतु इससे तो उनका कर्तापन मजबूत बनेगा कि ‘हमने सेवा की है, हमने ऋषि प्रसाद बाँटी है । हम बाँटने वाले हैं, हम सेवा करने वाले हैं….’ उसका को जरा-सा पुण्य भोगेंगे – वाहवाही भोग के बस खत्म ! सेवा का फल वाहवाही, भोग नहीं चाहिए । सेवा का फल चीज-वस्तु नहीं, सेवा का फल कुछ नहीं चाहिए । तो तुच्छ अहं का जो कचरा पड़ा है वह ऐसी निष्काम सेवा से हटता जायेगा और अपना-आप जो पहले था, अभी है और जिसको काल का काल भी मार नहीं सकता वह अमर फल, आत्मफल प्रकट हो जायेगा, अपने-आप में तृप्ति, अपने-आप में संतुष्टि मिल जायेगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 17, अंक 343

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

ऋषि प्रसाद सेवाधारियों को पूज्य बापू जी का अनमोल प्रसाद


इस प्रसाद के आगे करोड़ रुपये की भी कीमत नहीं

(ऋषि प्रसाद जयंतीः 23 जुलाई 2021)

ऋषि प्रसाद के सेवाधारियों को मैं ‘शाबाश’ देने से इन्कार कर रहा हूँ । न शाबाश देना है, न धन्यवाद देना है और न ही कोई चीज़-वस्तु या प्रमाणपत्र देना है क्योंकि दी हुई चीज तो छूट जायेगी । जो है

हाजरा-हुजूर जागंदी ज्योत ।

आदि सचु जुगादि सचु ।।

है भी सच नानक होसी भी सचु ।।

उसमें इनको जगा देना है, बस हो गया !

ऋषि प्रसाद के एक-एक सेवाधारी को एक-एक करोड़ रुपये दें तो वे भी कोई मायना नहीं रखते हैं इस प्रसाद के आगे । करोड़ रुपये देंगे तो ये शरीर की सुविधा बढ़ा देंगे और भोगी बन जायेंगे । और भोगी आखिर नरकों में जाते हैं । लेकिन यह ज्ञान दे रहे हैं तो ये ज्ञानयोगी बन जायेंगे और ज्ञानयोगी जहाँ जाता है वहाँ नरक भी स्वर्ग हो जाता है ।

श्वास स्वाभाविक चल रहा है, उसमें ज्ञान का योग कर दो – सोऽ….हम्…’ । बुद्धि की अनुकूलता में जो आनंद आता है वह मेरा है । आपका आनंद कहाँ रहता है ? खोजो ! यह जान लो और आनंद लूटो, जान लो और मुक्ति का माधुर्य लो, जान लो और बन जाओ हर परिस्थिति के बाप, अपने आप ! स्वर्ग भी नन्हा, नरक भी प्रभावहीन… सोऽहंस्वरूप… भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिस माधुर्य में रहते हैं उसके द्वार पहुँचा देता है यह ।

‘ऋषि प्रसाद’ वालों का क्या देना ? जो समाज औऱ संत के बीच सेतु बने हैं उनको क्या बाहर की खुशामद, वाहवाही, शाबाशी दें ? यह तो उनका अपमान है, उनसे ठगाई है । ये तो नेता लोग दे सकते हैं- ‘भई,  इन्होंने यह सेवा की, बेचारों ने यह किया… यह किया…. ।’

ऋषि प्रसाद के लाखों सदस्य हैं और लाखों लोगों को ऋषि प्रसाद हाथों-हाथ मिलती है यह सब यश ऋषि प्रसाद के सदस्य बनाने वालों व उसे बाँटने वालों के भाग्य में जाता है किंतु इससे तो उनका कर्तापन मजबूत बनेगा कि ‘हमने सेवा की है, हमने ऋषि प्रसाद बाँटी है । हम बाँटने वाले हैं, हम सेवा करने वाले हैं….’ उसका को जरा-सा पुण्य भोगेंगे – वाहवाही भोग के बस खत्म ! सेवा का फल वाहवाही, भोग नहीं चाहिए । सेवा का फल चीज-वस्तु नहीं, सेवा का फल कुछ नहीं चाहिए । तो तुच्छ अहं का जो कचरा पड़ा है वह ऐसी निष्काम सेवा से हटता जायेगा और अपना-आप जो पहले था, अभी है और जिसको काल का काल भी मार नहीं सकता वह अमर फल, आत्मफल प्रकट हो जायेगा, अपने-आप में तृप्ति, अपने-आप में संतुष्टि मिल जायेगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2021, पृष्ठ संख्या 17, अंक 343

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ