आप भारतीय संस्कृति की, त्रिकालज्ञानी ऋषियों की जो सामाजिक व्यवस्था है उसका फायदा उठाओ। संत कबीर जी ताना बुन रहे हैं, कपड़ा बहुत बढ़िया बना रहे हैं। उनसे पूछाः “क्यों इतनी मेहनत कर रहे हैं ?”
बोलेः “राम जी पहनेंगे।” कपड़ा बाजार में ले जाते हैं। लोग कपड़ा व उसकी बुनाई देखकर चौंकते हैं कि ‘यह तो महँगा होगा, हम नहीं ले सकते हैं।’
कबीर जी बोलेः “नहीं, नहीं। जिस दाम में तुमको साधारण कपड़ा मिलता है उसी दाम का है। इसकी बनावट ऐसी है कि आपके काम में आ जाये। मेरे राम को बार-बार कपड़ा खरीदने में समय न गँवाना पड़े इसलिए मैंने बढ़िया बनाया है। यह कपड़ा ले जाओ।” गरीब से गरीब आदमी कबीर जी का कपड़ा खरीद सकता है।
गोरा कुम्हार मटका बनाते हैं तो ऐसा बनाते हैं कि घर ले जाते-जाते फूटे नहीं। मटका बाप ले जाय तो बेटा भी पानी पिये और जरूरत पड़े तो पोते के भी काम में आये। यह भारतीय संस्कृति की देन है। लेकिन अभी तो हम पाश्चात्य जगत से ऐसे बंध गये कि और हो !… ‘अपना अधिक-से-अधिक नफा हो और सामने वाले का चाहे भले सत्यानाश हो जाय।’ यह उनका कल्चर है।
कितनी उदार है भारतीय संस्कृति !
गुरुकुल में श्रीरामचन्द्र जी सामने वाले अन्य विद्यार्थी हारते हों तो लखन और भरत को भी खुद हारकर दूसरों का उत्साह और खुशी बढ़ाने का संकेत देते हैं। उनके छोटे भाई भी श्रीरामजी का अनुकरण करते हैं। यह कैसी है भारतीय संस्कृति ! कितनी उदार संस्कृति !
एक वह कल्चर है जिसमें अपने बाप को पकड़ के जेल में डालकर राजा बन जाता है औरंगजेब और दूसरी यह महान संस्कृति है कि अपने बड़े भाई को राज्य मिले इसलिए भरत भैया हाथाजोड़ी करने जा रहे हैं। बड़ा कहता हैः “छोटा राज्य का अधिकारी है” और भरत भैया कहते हैं- “नहीं, बड़े राज्य करें और छोटे उनकी आज्ञा का पालन करें।” अयोध्या का विशाल राज्य…. जहाँ देवता भी अयोध्या के नरेश से मदद माँगते थे, ऐसा राज्य गेंद की नाईँ छोटा भाई बड़े भाई की गोद में और बड़ा भाई छोटे भाई की गोद में डालता है। आखिर इस त्याग और प्रेम की भारतीय संस्कृति ने एक नया रास्ता निकाला।
राम जी ने कहाः “राज्य नहीं करना है, मैं तो ऋषि मुनियों के दर्शन करूँगा। साधुओं व देवताओं का कार्य करूँगा। वन की सात्त्विक हवा में रहूँगा। भैया ! राज्य तुम सम्भालो।” हाँ-ना करते हुए एक कठोर आदेश मिल गया कि “भरत ! अब तुम मेरी आज्ञा मानो।”
भरत बोलेः “तो भैया ! आपके राज्य की मैं सेवा तो करूँगा लेकिन राजा होकर नहीं, सेवक होकर। आप अपनी खड़ाऊँ मुझे दे दो।”
राज्यसिंहासन पर राम जी की खड़ाऊँ रहती हैं और भरत भैया राज्य व्यवस्था करते हैं। कैसी सुन्दर व्यवस्था है ! कैसी भारतीय संस्कृति की महान छवि दिख रही है !
सच्चा हिन्दुस्तानी वह है……
दुःख की बात है कि भारतीय संस्कृति की परम्परा में हम लोगों का जन्म हुआ लेकिन भारतीय संस्कृति का ज्ञान पाने के लिए हमारे पास समय नहीं है। भारतीय संस्कृति के महापुरुषों का रहस्य समझने वाली हमारे पास इस समय व्यवस्था ही नहीं रही।
अदंर की सरलता, अदंर का आनंद, भगवान की भक्ति और रस को त्यागकर बाहर के भौतिकवादी जीवन को सच्चा हिन्दुस्तानी महत्त्व नहीं देता है। हिन्दुस्तानी समझता है कि मनुष्य जीवन ईश्वरीय सुख, ईश्वरीय आनंद, इश्क इलाही, इश्क नूरानी पाने के लिए है, फिर चाहे रामरूप में, कृष्णरूप में, गुरुरूप में, आत्मरूप में या आनंदरूप में…. ईश्वर के अनेक रूपों में से किसी भी रूप की तरफ लग पड़ा तो देर-सवेर उसकी स्थिति वहाँ हो जाती है। यह हिन्दुस्तानी की महानता का लक्षण है।
यह वैदिक संस्कृति है, अऩादिकाल से चली आ रही है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिवजी इसी वैदिक संस्कृति में प्रकट हुए हैं। शबरी भीलन को मार्गदर्शन देनेवाले मतंग ऋषि ने भी इसी संस्कृति के ज्ञान से शबरी का मार्गदर्शन किया और इसी संस्कृति के ज्ञान से हमारे गुरुदेव ने हमको ईश्वरप्राप्ति करायी और हम आपको भी इसी रास्ते से ईश्वर के सुख की तरफ ले जा रहे हैं, देर-सवेर प्राप्ति भी हो जायेगी…. स्थिति हो के प्राप्ति !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 267
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ