193 ऋषि प्रसाद जनवरी 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

समस्याएँ – विकास का साधन


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) ज्ञान का और जीवन का नज़रिया ऊँचा होने से आदमी सभी समस्याओं को पैरों तले कुचलते हुए ऊपर उठ जाता है । दुनिया में ऐसी कोई समस्या या मुसीबत नहीं है जो आपके विकास का साधन न बने । कोई भी समस्या, मुसीबत आपके विकास का साधन है यह …

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निद्रा-विचार


त्रय उपस्तम्भा इत्याहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति । ‘आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य शरीर के तीन उपस्तंभ हैं अर्थात् इनके आधार पर शरीर स्थित है ।’ (चरक संहिता, सूत्रस्थानम्- 11.35) इनके युक्तिपूर्वक सेवन से शरीर स्थिर होकर बल-वर्ण से सम्पन्न व पुष्ट होता है । ‘निद्रा’ की महत्ता का वर्णन करते हुए चरकाचार्य जी कहते हैं- जब कार्य …

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वे पाप जो प्रायश्चितरहित हैं


धर्मराज (मृत्यु के अधिष्ठाता देव) राजा भगीरथ से कहते हैं- “जो स्नान अथवा पूजन के लिए जाते हुए लोगों के कार्य में विघ्न डालता है, उसे ब्रह्मघाती कहते हैं । जो परायी निंदा और अपनी प्रशंसा में लगा रहता है तथा जो असत्य भाषण में रत रहता है, वह ब्रह्महत्यारा कहा गया है । जो …

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