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आत्मजागृति व कल्याणस्वरूप आत्मा में आत्मविश्रांति पाने का पर्व


महाशिवरात्रिः 4 मार्च 2019

महाशिवरात्रि धार्मिक दृष्टि से देखा जाय तो पुण्य अर्जित करने का दिन है लेकिन भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाय तो इस दिन आकाशमण्डल से कुछ ऐसी किरणें आती हैं, जो व्यक्ति के तन-मन को प्रभावित करती हैं । इस दिन व्यक्ति जितना अधिक जप, ध्यान व मौन परायण रहेगा, उतना उसको अधिक लाभ होता है ।

महाशिवरात्रि भाँग पीने का दिन नहीं है । शिवजी को व्यसन है भुवन भंग करने का अर्थात् भुवनों की सत्यता को भंग करने का लेकिन भँगेड़ियों ने ‘भुवनभंग’ भाँग बनाकर घोटनी से घोंट-घोंट के भाँग पीना चालू कर दिया । शिवजी यह भाँग नहीं पीते हैं जो ज्ञानतंतुओं को मूर्च्छित कर दे । शिवजी तो ब्रह्मज्ञान की भाँग पीते हैं, ध्यान की भाँग पीते हैं । शिवजी पार्वती जी को लेकर कभी-कभी अगस्त्य ऋषि के आश्रम में जाते हैं और ब्रह्म विद्या की भाँग पीते हैं ।

आप कौन सी भाँग पियोगे ?

तो आप भी महाशिवरात्रि को सुबह भाँग पीना । लेकिन कौन सी भाँग पियोगे ? ब्रह्मविद्या, ब्रह्मज्ञान की भाँग । सुबह उठकर बिस्तर पर ही बैठ के थोड़ी देर ‘हे प्रभु ! आहा… मेरे को बस, रामरस मीठा लगे, प्रभुरस मीठा लगे…. शिव शिव…. चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ।’ ऐसा भाव करके ब्रह्मविद्या की भाँग पीना और संकल्प करना कि ‘आज के दिन मैं खुश रहूँगा ।’ और ‘ॐ नमः शिवाय ।… नमः शम्भवाय च मयोभवाय  नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।’ बोल के भगवान शिव की आराधना करते-करते शिवजी को प्यार करना, पार्वती जी को भी प्रणाम करना । फिर मन-ही-मन तुम गंगा किनारे नहाकर आ जाना । इस प्रकार की मानसिक पूजा से बड़ी उन्नति, शुद्धि होती है । यह बड़ी महत्त्वपूर्ण पूजा होती है और आसान भी है, सब लोग कर सकते हैं ।

गंगा-किनारा नहीं देखा हो तो मन-ही-मन ‘गंगे मात की जय !’ कह के गंगा जी में नहा लिया । फिर एक लोटा पानी का भरकर धीरे-धीरे शिवजी को चढ़ाया, ऐसा नहीं कि उँडेल दिया । और ‘नमः शिवाय च मयस्कराय च…..’ बोलना नहीं आये तो ‘जय भोलानाथ ! मेरे शिवजी ! नमः शिवाय, नमः शिवाय….’ मन में ऐसा बोलते-बोलते फानी का लोटा चढ़ा दिया, मन-ही-मन हार, बिल्वपत्र चढ़ा दिये । फिर पार्वती जी को तिलक कर दिया और प्रार्थना कीः ‘आज की महाशिवरात्रि मझे आत्मशिव से मिला दे ।’ यह प्रारम्भिक भक्ति का तरीका अपना सकते हैं ।

व्रत की 3 महत्त्वपूर्ण बातें

महाशिवरात्रि वस्त्र-अलंकार से इस देह को सजाने का, मेवा-मिठाई खाकर जीभ को मजा दिलाने का पर्व नहीं है । यह देह से परे देहातीत आत्मा में आत्मविश्रांति पाने का  पर्व है, संयम और तप बढ़ाने का पर्व है । महाशिवरात्रि का व्रत ठीक से किया जाये तो अश्वमेध यज्ञ का फल होता है । इस व्रत में 3 बातें होती हैं ।

  1. उपवासः ‘उप’ माने समीप । आप शिव के समीप, कल्याणस्वरूप अंतर्यामी परमात्मा के समीप आने की कोशिश कीजिए, ध्यान कीजिए । महाशिवरात्रि के दिन अन्न-जल या अन्न नहीं लेते हैं । इससे अन्न पचाने में जो जीवनशक्ति खर्च होती है वह बच जाती है । उसको ध्यान में लगा दें । इससे शरीर भी तंदुरुस्त रहेगा ।
  2. पूजनः आपका जो व्यवहार है वह भगवान के लिए करिये, अपने अहं या विकार को पोसने के लिए नहीं । शरीर को तन्दुरुस्त रखने हेतु खाइये और उसकी करने की शक्ति का सदुपयोग करने के लिए व्यवहार कीजिए, भोग भोगने के लिए नहीं । योगेश्वर से मिलने के लिए आप व्यवहार करेंगे तो आपका व्यवहार पूजन हो जायेगा ।

पूजन क्या है ? जो भगवान के हेतु कार्य किया जाता है वह पूजा है । जैसे – बाजार में जो महिला झाड़ू लगा ही है, वह रूपयों के लिए लगा रही है । वह नौकरी कर रही है, नौकरानी है । और घर में जो झाड़ू लगा रही है माँ, वह नौकरानी नहीं है, वह सेवा कर रही है । लेकिन हम भगवान के द्वार पर झाड़ू लगा रहे हैं तो वह पूजा हो गयी, भगवान के लिए लगा रहे हैं । महाशिवरात्रि हमें सावधान करती है कि आप जो भी कार्य करें वह भगवत् हेतु करेंगे तो भगवान की पूजा हो जायेगी ।

  1. जागरणः आप जागते रहें । जब ‘मैं’ और ‘मेरे’ का भाव आये तो सोच लेना कि ‘यह मन का खेल है ।’ मन के विचारों को देखना । क्रोध आये तो जागना कि ‘क्रोध आया है ।’ तो क्रोध आपका खून या खाना खराब नहीं करेगा । काम आया और जग गये कि ‘यह काम विकार आया है ।’ तुरंत आपने हाथ पैर धो लिये, राम जी का चिंतन किया, कभी नाभि तक पानी में बैठ गये तो कामविकार में इतना सत्यानाश नहीं होगा । आप प्रेमी हैं, भक्त हैं और कोई आपकी श्रद्धा का दुरुपयोग करता है तो आप सावधान हो के सोचना कि ‘यह मेरे को उल्लू तो नहीं बना रहा है ?’

आप जगेंगे तो उसका भी भला होगा, आपका भी भला होगा । तो जीवन में जागृति की जरूरत है । जो काम करते हैं उसे उत्साह, ध्यान व प्रेम से करिये, बुद्धु, मूर्ख, बेवकूफ होकर मत करिये ।

‘जागरण’ माने जो भी कुछ जीवन में आप लेते देते, खाते-पीते या अपने को मानते हैं, जरा जगकर देखिये कि क्या आप सचमुच में वह हैं ? नहीं, आप तो आत्मा हैं, परब्रह्म के अभिन्न अंग है । आप जरा अपने जीवन में जाग के तो देखिये !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2019, पृष्ठ संख्या 11,12,13 अंक 314

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शव देह से शिव-तत्त्व की ओर….


महाशिवरात्रिः 13 फरवरी 2018

सत्यं ज्ञान अनन्तस्य चिदानन्दं उदारतः।

निर्गुणोरूपाधिश्च निरंजनोऽव्यय तथा।।

शास्त्र भगवान शिव के तत्त्व का बयान करते हुए कहते हैं कि शिव का अर्थ है जो मंगलमय हो, जो सत्य हो, जो ज्ञानस्वरूप हो, जिसका कभी अंत न होता हो। जिसका आदि और अंत है, जो बदलने वाला है वह शिव नहीं, अशिव है। जो अनंत है, अविनाशी है वह शिव है।

संत भोले बाबा कहते हैं-

शव देह में आसक्त होना, है तुझे न सोहता।

हमारी वृत्ति रात को निद्राग्रस्त हो जाती है तो हमारे शरीर में और शव में कोई खास फर्क नहीं रहता। साँप आकर चला जाये हमारे शरीर पर से तो कोई पता नहीं चलेगा, कोई संत पुरुष आ जायें तो स्वागत करने का पता नहीं…. तो हमारी यह देह शव-देह है। शिव-तत्त्व की तरफ यदि थोड़ा-सा भी आते हो तो देह की आसक्तियाँ, बंधन कम होने लगते हैं। हजारों-हजारों बार हमने अपनी देह को सँभाला लेकिन वे अंत में तो जीर्ण-शीर्ण होकर मर गयीं। शरीर मर जाय, देह जीर्ण शीर्ण हो जाये उसके पहले यदि हम अपने अहंकार को, अपनी मान्यताओं-कल्पनाओं को परमात्मशान्ति में शिव-तत्त्व में डुबा दें… तो श्रीमद् राजचन्द्र कहते हैं-

देह छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत।

ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणीत।।

देह होते हुए भी उससे परे जाने का सौभाग्य मिल जाय यह मनुष्य जन्म के फल की पराकाष्ठा है।

अपने देश में आयें

महाशिवरात्रि हमें संदेश देती है कि मनुष्य अपने देश (अंतरात्मा) में आने के लिए है। जो दिख रहा है यह पर-देश है। बाहर कितना भी घूमो, रात को थक के अपने देश आते ह (सुषुप्ति में) तो सुबह ताजे हो जाते हो…. लेकिन अनजाने में आते हो।

पंचामृत से स्नान कराने का आशय

मन-ही-मन तुम भगवान शंकर को जलराशि से, दूध से, दही से, घृत से फिर मधु से स्नान कराओ और प्रार्थना करोः ‘हे भोलेनाथ ! आपको जरा से दही, घी, शहद की क्या जरूरत है लेकिन आप हमें संकेत देते हैं कि प्रारम्भ में तो पानी जैसा बहता हुआ हमारा जीवन फिर धर्म कर्म से दूध जैसा कुछ सुहावना हो जाता है। ध्यान के द्वारा दूध जैसी धार्मिकता जब जम जाती है तो जैसे दही से मक्खन और फिर घी हो जाता है वैसे ही साधना का बल और ओज हमारे जीवन में आता है।’ जैसे घी पुष्टिदायक, बलदायक है ऐसे ही साधक के चित्त की वृत्ति दुर्बल नहीं होती, पानी जैसी चंचल नहीं होती बल्कि एकाग्र होती है, बलवान होती है, सत्यसंकल्प हुआ करती है और सत्यसंकल्प होने पर भी वह कटु नहीं होती, मधुर होती है इसलिए मधुरस्नानं समर्पयामि। साधक का जीवन शहद जैसा मधुर होता जाता है। इस प्रकार पंचामृत का स्नान कराओ। तुम्हारा मन देह की वृत्ति से हटकर अंतर्मुख वृत्ति में आ जायेगा। शिव शांत में लग जायेगा, आनंद अदभुत आयेगा।।

यह लाख-लाख चौरासियों का फल देने वाली महाशिवरात्रि हो सकती है। हजार-हजार कर्मों का फल जहाँ न पहुँचाये वहाँ महाशिवरात्र की घड़ियाँ पहुँचा सकती हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2018, पृष्ठ संख्या 12 अंक 301

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आपके जीवन में शिव-ही-शिव हो


आपके जीवन में शिव-ही-शिव हो
(आत्मनिष्ठ पूज्य बापूजी की कल्याणमयी मधुमय वाणी)
महाशिवरात्रि पर विशेष

चार महारात्रियाँ हैं – जन्माष्टमी, होली, दिवाली और शिवरात्रि। शिवरात्रि को ‘अहोरात्रि’ भी बोलते हैं। इस दिन ग्रह-नक्षत्रों आदि का ऐसा मेल होता है कि हमारा मन नीचे के केन्द्रों से ऊपर आये। देखना, सुनना, चखना, सूँघना व स्पर्श करना- इस विकारी जीवन में तो जीव-जंतु
भी होशियार हैं। यह विकार भोगने के लिए तो बकरा, सुअर, खरगोश और कई नीच योनियाँ हैं। विकार भोगने के लिए तुम्हारा जन्म नहीं हुआ है।

विकारी शरीरों की परम्परा में आते हुए भी निर्विकार नारायण का आनंद-माधुर्य पाकर अपने शिवस्वरूप को जगाने के लिए शिवरात्रि आ जाती है कि ‘लो भाई ! तुम उठाओ इस मौके का फायदा…।’

शिवजी कहते हैं कि ‘मैं बड़े-बड़े तपों से, बड़े-बड़े यज्ञों से, बड़े-बड़े दानों से, बड़े-बड़े व्रतों से इतना संतुष्ट नहीं होता हूँ जितना शिवरात्रि के दिन उपवास करने से होता हूँ।’ अब शिवजी का संतोष क्या है ? तुम भूखे मरो और शिवजी खुश हों, क्या शिव ऐसे हैं ? नहीं, भूखे नहीं मरोगे, भूखे रहोगे तो शरीर में जो रोगों के कण पड़े हैं, वे स्वाहा हो जायेंगे और जो आलस्य, तन्द्रा बढ़ानेवाले विपरीत आहार के कण हैं वे भी स्वाहा हो जायेंगे और तुम्हारा जो छुपा हुआ सत् स्वभाव, चित् स्वभाव, आनंद स्वभाव है, वह प्रकट होगा। शिवरात्रि का उपवास करके, जागरण करके देख लो। शरीर में जो जन्म से लेकर विजातीय द्रव्य हैं, पाप-संस्कार हैं, वासनाएँ हैं उन्हें मिटाने में शिवरात्रि की रात बहुत काम करती है।

शिवरात्रि का जागरण करो और ‘बं’ बीजमंत्र का सवा लाख जप करो। संधिवात (गठिया) की तकलीफ दूर हो जायेगी। बिल्कुल पक्की बात है ! एक दिन में ही फायदा ! ऐसा बीजमंत्र है शिवजी का। वायु मुद्रा करके बैठो और ‘बं बं बं बं बं’ जप करो, उपवास करो फिर देखो अगला दिन कैसा स्फूर्तिवाला होता है।

शिवरात्रि की रात का आप खूब फायदा उठाना। विद्युत के कुचालक आसन का उपयोग करना। भीड़भाड़ में, मंदिर में नहीं गये तो ऐसे ही ‘ॐ नमः शिवाय’ जप करना। मानसिक मंदिर में जा सको तो जाना। मन से ही की हुई पूजा षोडशोपचार की पूजा से दस गुना ज्यादा हितकारी होती है और अंतर्मुखता ले आती है।

अगर आप शिव की पूजा-स्तुति करते हैं और आपके अंदर में परम शिव को पाने का संकल्प हो जाता है तो इससे बढ़कर कोई उपहार नहीं और इससे बढ़कर कोई पद नहीं है। भगवान शिव से प्रार्थना करें : ‘इस संसार के क्लेशों से बचने के लिए, जन्म-मृत्यु के शूलों से बचने के लिए हे भगवान शिव ! हे साम्बसदाशिव ! हे शंकर! मैं आपकी शरण हूँ, मैं नित्य आनेवाली संसार की यातनाओं से हारा हुआ हूँ, इसलिए आपके मंत्र का आश्रय ले रहा हूँ। आज के शिवरात्रि के इस व्रत से और मंत्रजप से तुम मुझ पर प्रसन्न रहो क्योंकि तुम अंतर्यामी साक्षी-चैतन्य हो। हे प्रभु ! तुम संतुष्ट होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्राप्त कराओ। सुख और दुःख में मैं सम रहूँ। लाभ और हानि को सपना समझूँ। इस संसार के प्रभाव से पार होकर इस शिवरात्रि के वेदोत्सव में मैं पूर्णतया अपने पाप-ताप को मिटाकर आपके पुण्यस्वभाव को प्राप्त करूँ।’

शिवधर्म पाँच प्रकार का कहा गया हैः एक तो तप (सात्त्वि आहार, उपवास, ब्रह्मचर्य) शरीर से, मन से, पति-पत्नी, स्त्री-पुरुष की तरफ के आकर्षण का अभाव। आकर्षण मिटाने में सफल होना हो तो ‘ॐ अर्यमायै नमः… ॐ अर्यमायै नमः…’ यह जप शिवरात्रि के दिन कर लेना, क्योंकि शिवरात्रि का जप कई गुना अधिक फलदायी कहा गया है । दूसरा है भगवान की प्रसन्नता के लिए सत्कर्म, पूजन-अर्चन आदि (मानसिक अथवा शारीरिक), तीसरा शिवमंत्र का जप, चौथा शिवस्वरूप का ध्यान और पाँचवाँ शिवस्वरूप का ज्ञान। शिवस्वरूप का ज्ञान – यह आत्मशिव की उपासना है। चिता में भी शिवतत्त्व की सत्ता है, मुर्दे में भी शिवतत्त्व की सत्ता है तभी तो मुर्दा फूलता है। हर जीवाणु में शिवतत्त्व है। तो इस प्रकार अशिव में भी शिव देखने के नजरियेवाला ज्ञान, दुःख में भी सुख को ढूँढ़ निकालनेवाला ज्ञान, मरुभूमि में भी वसंत और गंगा लहरानेवाला श्रद्धामय नजरिया, दृष्टि यह आपके जीवन में शिव-ही-शिव लायेगी ।