Monthly Archives: August 2021

सद्गुरु की युक्ति को मूर्खता से त्यागो मत


पूज्य श्री के पावन सान्निध्य में श्री योगवासिष्ठ महारामायण का पाठ चल रहा हैः महर्षि वसिष्ठ जी बोलेः ″हे राम जी ! एक दिन तुम वेदधर्म की प्रवृत्ति सहित सकाम यज्ञ, योग आदिक त्रिगुणों से रहित होकर स्थित हो और सत्संग व सत्शास्त्र परायण हो तब मैं एक ही क्षण में दृश्यरूपी मैल दूर कर दूँगा । हे राम जी ! गुरु की कही युक्ति को जो मूर्खता से त्याग देते हैं उनको सिद्धान्त प्राप्त नहीं होता ।″

इन वचनों को सुनते ही पूज्य बापू जी के श्रीमुख से सहसा निकल पड़ाः ″ओहो ! क्या बहादुरों-के-बहादुर हैं ! कैसे हैं भगवान श्रीराम के गुरु जी !

वसिष्ठजी महाराज कहते हैं कि ″सकाम भावना से ऊपर उठो तो एक ही क्षण में मैं दृश्यरूपी मैल दूर कर दूँगा अर्थात् परमात्म-साक्षात्कार करा दूँगा ।″

जैसे लाइट फिटिंग हो गयी हो तो बटन दबाने पर एक ही क्षण में अँधेरा भाग जाता है । बटन दबाने में देर ही कितनी लगती है ? उतनी ही देर आसोज सुद दो दिवस, संवत बीस इक्कीस (इसी दिन पूज्य बापू जी को आत्मसाक्षात्कार हुआ था) को लगी थी । दृश्य की सत्यता दूर हो गयी । गुरु जी को तो इतनी-सी देर लगी और अपना ऐसा काम बना कि अभी तक बना-बनाया है । इस काम को मौत का बाप भी नहीं बिगाड़ सकता ।

गुरु जी की कही हुई युक्ति को, उपदेश को जो मूर्खता से सुना-अनसुना कर देते हैं उनको सफलता नहीं मिलती । गुरु जी की युक्ति, गुरु जी के संकेत को महत्त्व देना चाहिए । उत्तम सेवक तो सेवा खोज लेगा, मध्यम को संकेत एवं कनिष्ठ को आज्ञा मिलने पर वे सेवा करेंगे और कनिष्ठतर को तो आज्ञा दो फिर भी कार्य करने में आलस्य करेगा, टालमटोल करेगा । गुरु की युक्ति को महत्त्व न देना, उनके उपदेश का अनादर करना ऐसे दुर्गुण छोड़ते जायें तो सभी ईश्वरप्राप्ति के पात्र हैं । कुपात्रता छोड़ते जायें तो पात्र ही पात्र हैं । यह मनुष्य जीवन ईश्वरप्राप्ति की पात्रता है लेकिन ये दुर्गुण पात्रता को कुपात्रता में बदल देते हैं । दुर्गुण छोड़ें तो बस पात्रता ही है और दुर्गुण छोड़ने के पीछे मत लगे रहो, ईश्वरप्राप्ति के लिए लगो तो दुर्गुण छूटते जायेंगे । ईश्वरप्राप्ति का उद्देश्य बनायेंगे न, उद्देश्य ऊँचा होगा तो दुर्गुण छूटेंगे और सेवा भी बढ़िया होगी ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 32 अंक 344

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

मन को युक्ति से सँभाल लो तो बेड़ा पार हो जायेगा


एक बार बीरबल दरबार में देर से आये तो अकबर ने पूछाः ″देर हो गयी, क्या बात है ?″

बीरबल ने कहाः ″हुजूर ! बच्चा रो रहा था, उसको जरा शांत कराया ।″

″…तो बच्चे को शांत कराने में दोपहर कर दी तुमने ! कैसे बीरबल ?″

″हुजूर बच्चे तो बच्चे होते हैं । राजहठ, स्त्रीहठ, योगहठ, बालहठ…. जैसे राजा का हठ होता है वैसे ही बच्चों का होता है जहाँपनाह !″

अकबरः ″बच्चों को रिझाना क्या बड़ी बात है !″

बीरबलः हुजूर ! बड़ी कठिन बात होती है ।″

″अरे, बच्चे को तो यूँ पटा लो ।″

″नहीं पटता महाराज ! बच्चा हठ ले ले तो फिर देखो । आप तो मेरे माई-बाप हैं, मैं बच्चा बन जाता हूँ ।″

″हाँ चलो, तुमको हम राजी कर दें ।″

बीरबल रोयाः ″पिताजी !…. पिता जी ! ऐंऽऽऽ….ऐंऽऽऽ…″

अकबरः ″अरे, क्या चाहिए ?″

ऊँऽऽऽ…. ऊँऽऽऽ…

″अरे, क्या चाहिए ?″

″मेरे को हाथी चाहिए ।″

अकबर ने महावत को बोलाः ″हाथी ला के खड़ा कर दो ।″

बीरबल ने फिर रोना चालू कर दियाः ″ऐंऽऽऽ ऐंऽऽऽ ऐँऽऽऽ

″क्या है ?″

″मेरे को देगचा (खाना पकाने का एक छोटा बर्तन) ला दो ।″

″अरे, चलो एक देगचा मँगा दो ।″

देगचा लाया गया ।

अकबर बोलाः ″देगचा ला दिया… बस ?″

″ ऊँऽऽऽ…. ऊँऽऽऽ…″

″अब क्या है ?″

″हाथी देगचे में डाल दो ।″

अकबर बोलता हैः ″यह कैसे होगा !″

बोलेः ″डाल दो… ।″

″अरे, नहीं आयेगा ।″

″नहीं, आँऽऽ… आँऽऽ…″

बच्चे का हठ… और क्या है ! अकबर समझाने में लगा ।

बीरबलः ″नहीं ! देगचे में हाथी डाल दो ।″

अकबर बोलाः ″भाई ! मैं तो तुमको नहीं मना सकूँगा । अब मैं बेटा बनता हूँ, तुम बाप बनो ।″

बीरबलः ″ठीक है ।″

अकबर रोया । बीरबल बोलता हैः ″बोलो बेटे अकबर ! क्या चाहिए ?″

अकबरः ″हाथी चाहिए ।″

बीरबल ने नौकर को कहाः ″चार आने के खिलौने वाले एक नहीं, दो हाथी ले आ ।″

नौकर ने लाकर रख दिये ।

″ले बेटे ! हाथी ।″

″ऐंऽऽऽ ऐंऽऽऽ ऐंऽऽ देगचा चाहिए ।″

″लो ।″

बोलेः ″इसमें हाथी डाल दो ।″

बीरबलः ″एक डालूँ कि दोनों के दोनों रख दूँ ?″

बीरबल ने युक्ति से बच्चा बने अकबर को चुप करा दिया । ऐसे ही मन भी बच्चा है ।मन को देखो कि उसकी एक वृत्ति ऐसी उठी तो फिर वह क्या कर सकता है । उसको ऐसे ही खिलौने दो जिन्हें आप सेट कर सको । उसको ऐसा ही हाथी दो जो देगचे में रह सके । उसकी ऐसी ही पूर्ति करो जिससे वह तुम्हारी लगाम में, नियंत्रण में रह सके । तुम अकबर जैसा करते हो लेकिन बीरबल जैसा करना सीखो । मन बच्चा है, उसके कहने में चलोगे तो गड़बड़ कर देगा । उसके कहने में नहीं उसे पटाने में लगो । उसके कहने में लगोगे तो वह अशांत रहेगा । फिर बाप भी अशांत, बेटा भी अशांत । उसको घुमाने में लगोगे तो बेटा भी खुश हो जायेगा, बाप भी खुश हो जायेगा ।

मन की कुछ ऐसी-ऐसी आकांक्षाएँ, माँगें होती हैं जिनको पूरा करते-करते जीवन पूरा हो जाता है । और उनसे सुख मिला तो आदत बन जाती है और दुःख मिला तो उसका विरोध बन जाता है । लेकिन उस समय मन को और कोई बहलाने की चीज़ दे दो । हलका चिंतन करता है तो बढ़िया चिंतन दे दो । हलका बहलाव करता है तो बढ़िया बहलाव दे दो । उपन्यास पढ़ता है तो सत्शास्त्र दे दो, इधर-उधर की बात करता है तो माला पकड़ा दो, किसी का वस्त्र-अलंकार देखकर आकर्षित होता है तो शरीर की नश्वरता का ख्याल करो, किसी के द्वारा किये अपने अपमान को याद करके जलता है तो जगत के स्वप्नत्व को याद करो । मन को ऐसे ही खिलौने दो जिससे वह आपको परेशान न करे । लोग जो मन में आया उसमें लग जाते हैं । मन में आया कि यह करूँ तो कर दिया, मन में आया फैक्ट्री बनाने का तो खड़ी करदी, मन का करते-करते फिर फँस जाओगे, सँभालने की जवाबदारी बढ़ जायेगी और अंत में देखो तो कुछ नहीं, जिंदगी बिनजरूरी आवश्यकताओं में पूरी हो गयी !

इसलिए संत कबीर जी ने कहाः

साँईं इतना दीजिये, जा में कुटुम्ब समाय ।

मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाये ।।

अपनी आवश्यकता कम करो और बाकी का समय जप में, आत्मविचार में, आत्मध्यान में, कभी-कभी एकांत में, कभी सत्कर्म में, कभी सेवा में लगाओ । अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताएँ कम करो तो आप स्वतंत्र हो जायेंगे ।

अपने व्यक्तिगत सुखभोग की इच्छा कम रखो तो आपके मन की चाल कम हो जायेगी । परहित में चित्त को, समय को लगाओ तो वृत्ति व्यापक हो जायेगी । परमात्मा के ध्यान में लगाओ, वृत्ति शुद्ध हो जायेगी । परमात्मा के तत्त्व में लगाओ तो वृत्ति के बंधन से आप निवृत्त हो जायेंगे ।

भाई ! सत्संग में तो हम आप लोगों को किसी प्रकार की कमी नहीं रखते, आप चलने में कमी रखें तो आपकी मर्जी की बात है ।

मन बिनजरूरी माँगें करे और आप वे पूरी करेंगे तो वह आपको पूरा कर देगा (विनष्ट कर देगा ) । जो जरूरी माँग है वह अपने आप पूरी होती है इसलिए गलत माँगें, गलत लालसाएँ करें नहीं और मन करता है तो वे पूरी न करें और हों तो युक्ति से कर लें । जैसे वह नकली हाथी देगचे में डाल दिया । ऐसे ही मन की कोई इच्छा वासना हुई तो उस समय उसके अनुरूप हितकारी व्यवहार करें । समझो बीड़ी पीने की इच्छा है तो कीर्तन में चले गये, किसी को गुस्से से गाली देने की इच्छा है तो उस समय जोर से राम-राम-राम चिल्लाने लग जायें । ऐसा करके युक्ति से मन को सँभाल लो तो बेड़ा पार हो जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 6, 7 अंक 344

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

श्री कृष्ण के जीवन से सीखें कृष्ण-तत्त्व उभारने की कला


जन्माष्टमी 30 अगस्त 2021

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ !

जन्माष्टमी महापर्व है । परात्पर ब्रह्म, निर्गुण-निराकार, पूर्णकाम, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर, परमेश्वर, देवेश्वर, विश्वेश्वर…. क्या-क्या कहें… वही निराकार ब्रह्म नन्हा-मुन्ना होकर मानवीय लीला करते हुए मानवीय आनंद, माधुर्य, चेतना को ब्रह्मरस से सम्पन्न करने के लिए अवतरित हुआ जिस दिन, वह है जन्माष्टमी का दिन ।

श्रीकृष्ण मध्यरात्रि को और श्रीराम मध्याह्न को अवतरित हुए । तप्त मध्याह्न में धर्म की मर्यादा का प्रसाद बाँटकर चित्त में शीतलता, शांति और स्व का साम्राज्य देने के लिए जो अवतार हुआ वह रामावतार है और अंधाधुध कालिमा को अपने प्रेम-प्रकाश से प्रकाशित करने के लिए जो अवतार हुआ वह श्रीकृष्णावतार है । श्रीकृष्णावतार की बधाइयाँ हों !

ये अवतार नहीं होते तो….

सर्वेश्वर, परमेश्वर आप्तकाम (पूर्णकाम, इच्छारहित) होते हुए भी हजारों-लाखों के दिलों की पुकार से प्रसन्न होकर उस-उस समय के अनुरूप नर-तन धारण कर लेता है तो उसे ‘अवतार’ कहते हैं ।

अवतरति इति अवतारः

अगर धरती पर श्रीकृष्ण अवतरण नहीं होता तो भारतवासी भी विदेशियों की तरह हो जाते । जैसे विदेशी बेचारे इंजेक्शन व कैप्सूल लेने के बावजूद रात को ठीक से नींद नहीं ले पाते हैं और इतनी सुविधा व व्यवस्था होने पर भी उनके जीवन में कोई सुमधुर गीत नहीं, संगीत नहीं, माधुर्य नहीं । हाँ, वहाँ रॉक-पॉप और डिस्को-विस्को, वाइन है, सम्भोग है और सम्भोग से समाधि बकने वाले के प्रेरक फ्रायड का मनोविज्ञान है लेकिन यहाँ परमात्मा की प्रीति से समाधि यह भारतीय अवतारों के लीलामृत का प्रसाद है ।

इस प्रेमावतार को आप पूजो या उसकी जय बोलो यह मैं नहीं कहता । भले उसको गाली दे दो, भले उससे उठ-बैठ कराओ या ओखली से बाँधो फिर भी वह यशोदा का मंगलकारी है तो तुम्हारा अहित कैसे करेगा ! वह प्यारा कन्हैया कैसा है यह तो वही जाने ! थोड़ा-थोड़ा भक्त और संत जानें !

श्रीकृष्ण की दिनचर्या अपना कर तो देखो !

श्रीकृष्ण सुबह उठकर जो करते थे वह आप करो । आप उनकी नकल तो करो ! अरे, कृष्ण की नकल से भी तुम्हारा कृष्ण-तत्त्व उभरेगा । श्रीकृष्ण नींद में से उठते तो शांत होकर अपने स्वभाव में बैठ जाते, थोड़ा विश्रांति पाते और सोचते कि ‘यह दिखने वाला शरीर और संसार बदलता है परंतु देखने वाला मैं अमर आत्मा हूँ । इस मोहमाया और क्रियाकलाप का मुझ चैतन्य पर कोई असर नहीं होता ।’ नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त अपने आत्मस्वभाव का श्रीकृष्ण अमृतपान करते थे ।

फिर सोचते थे कि आज के दिन मुझे क्या-क्या शुभ कर्म करने हैं ? फलाने ब्राह्मणों के समाज को इतनी गौएँ भेजनी हैं और गौओं के सींगों पर यह लगा दिया जाये तथा साथ में यह-यह दक्षिणा हो…..।

अब मैं आपको बोलूँ कि गौएँ भेजने का सोचो तो अनुचित होगा, फिर भी कुछ तो सोचो । सुबह-सुबह आप उठो, थोड़े शांत रहो । बिस्तर, खटिया या पलंग के पास 2 बर्तन पड़े रहें । एक बर्तन में चावल, चने, जौ, तिल या और कोई अनाज हो अथवा कोई तुम्हारी प्रिय वस्तु हो, दूसरा बर्तन खाली हो, उसमें 4 दाने डाल दो – श्रीकृष्णार्पणमस्तु… समाजरूपी कृष्ण की सेवा में लगें । फिर वे 4 दाने चाहे पक्षियों या कीड़ियों को डाल दो, चाहे कहीं और उनका सदुपयोग करो । सत्यस्वरूप ईश्वर की प्रीति के लिए आप सुबह देना शुरु करो । 4 दाने तो आप दे सकते हैं, आप इतने कंजूस या कंगाल नहीं हैं । आप तो मुट्ठी भरकर भी डाल दोगे, 2 मुट्ठियाँ भी डाल दोगे, 4 पैसे ही डाल दो ईश्वरप्रीत्यर्थ… ‘ऐ प्रेमी ! ऐ पिया (परमात्मा) ! तेरे प्यारवश तेरे को यह अर्पण करता हूँ ।’ मुझे लगता है कि इससे आपका बड़ा मंगल होगा !

फिर 4 मिनट आप शांत बैठ जाओ । घर में कलह है, नौकरी में समस्या है, शरीर में बीमारी है तो उसका उपाय क्या है ? 1-1 मिनट तीनों प्रश्नों पर दृष्टि डालो और चौथे मिनट में उसका समाधान अंदर से जो आयेगा वह आपको दिनभर तो क्या, वर्षोंभर मदद करेगा ।

इस प्रकार का प्रयोग आप करो तो आपको बहुत लाभ होगा । फिर क्या करोगे ?

हैं तो दोनों हाथ उसी के, सारा शरीर, जीवन उसी का है पर हम बेईमानी करते हैं कि ‘यह मैं हूँ और यह मेरा है ।’ कम-से-कम सुबह तो बेईमानी का हिस्सा आधा कर दो । ‘एक हाथ तुझ प्यारे का और एक हाथ मेरा, मिला दे हाथ !’ ऐसा करके दोनों हाथ आपस में मिला दो और प्रभु से कहोः ‘बिन फेरे हम तेरे ! हजारों शरीर मिले और मर गये लेकिन तू नहीं मिटा…. दूर नहीं हुआ मेरे से । हजारों पिता-माता, पति-पत्नियाँ, मित्र मिले, धन-दौलत मिली… ये आये और गये किंतु उसको देखने वाला तू और मैं वहीं के वही ! मेरे प्रभु ! मेरे गुरुदेव ! बिन फेरे हम तेरे !’ आप सुबह-सुबह हस्तमिलाप कर लीजिये । आपकी सुबह बहुत सुहावनी हो जायेगी, आपका दिन सुहावना हो जायेगा, आपका मन, मति और गति सुहावनी हो जायेगी ।

परमात्मा से रोज प्रीति करो

आप रोज उसकी शरण में जाओ । ऐसा नहीं कि समस्या आये तब जायें… जैसे आप समस्या आने पर ही अपने अधिकारी के पास जाते हैं तो वह समझ आता है कि यह तो स्वार्थी है किंतु आप उससे मिलते-जुलते रहते हो और कभी कुछ समस्या आ जाती है तो वह उसको सहानुभूतिपूर्वक सुनता है उसे दूर करने में अपनी सहायता भी देता । ऐसे ही आप परमात्मा से रोज प्रीति करते जाइये । कभी कोई कष्ट, विघ्न-बाधा आये तो उसे प्रेम से कह दीजिये कि ‘प्रभु ! अब ऐसा है ।’ वह सुनेगा और भीतर से सत्प्रेरणा और सामर्थ्य भी देगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 344

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ