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नमस्कार क्यों ?



नमस्कार अर्थात् क्या ?
पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “अब नमस्कार का
अर्थ समझ लो । वैष्णव शास्त्र नमस्कार का अर्थ करता हैः न मे इति
नमः । यह शरीर मैं नहीं हूँ, यह मेरा नहीं है, मन मैं नहीं हूँ, यह मेरा
नहीं है और आधिभौतिक चीजें मेरी नहीं हैं… तो मैं क्या हूँ ? मैं
सच्चिदानंद का हूँ, सच्चिदानंद मेरे हैं । इस प्रकार भक्त जो कुछ चीज
लेता-देता है उसमें से मेरा पन हटाता जाता है ।
देने वाले राम, लेने वाले राम… लोग भले यश दे दें कि इन्होंने यह
किया है, इन्होंने इतना दिया है… परंतु भक्त समझता है कि मैं आया
था तो अंग पर कपड़ा भी नहीं था और जाऊँगा तो शरीर भी छोड़कर
जाऊँगा, यह तो तेरी रहमत है कि तेरी दी हुई चीज मेरे द्वारा तू काम
में लगवा रहा है । ऐसा अगर विचार करता है तो वह उत्तम दाता है और
उत्त्म फल को पाता है । इसलिए जो कुछ काम करो, ईश्वर को मन ही
मन नमस्कार करके करो – न मे इति नमः । यह मेरा नहीं । हे प्रभु
सेवा मैंने नहीं की, यह तो तूने अवसर दिया । ध्यान, जप मैंने
किया… दान-पुण्य मैंने किया… । ना-ना… यह तेरी चीज़ तूने मेरे द्वारा
दिलवायी है, इसमें मेरा बड़प्पन किस बात का है ? यह तो तेरी बड़ाई है
। इस प्रकार का अगर आपका चिंतन रहता है तो आपका कीर्तन, जप
सतत हो जायेगा ।
तो वेदांत मत में नमस्कार का अर्थ क्या है ? कि जहाँ-जहाँ दृष्टि
जाय वहाँ-वहाँ नाम-रूप की गहराई में ईश्वर का अस्तित्व देखें । पंखा,
बल्ब… जो भी उपकरण देखें, उसकी गहराई में उसे चलाने वाली
सत्तास्वरूप बिजली का हमें ज्ञान हो । ऐसे ही सबकी गहराई में परमेश्वर

तत्त्व का ज्ञान होना यह वेदांतिक नमस्कार है, वैदिक ढंग का, वेदांतिक
शास्त्रों का नमस्कार है । भगवान के स्वभाव का कीर्तन करना यह
शरणागत भक्तों का नमस्कार है ।
भारतीय संस्कृति की सुंदर व्यवस्था
हमारी उँगलियों के नुकीले भागों द्वारा जीवन की आभा (ओरा)
बिखरती रहती है । जब दोनों हाथ जोड़ते हैं तो एक वृत्त बनता है,
जिससे आभा का बिखरना तो रुकता है, साथ-साथ में हमारा अहं और
हमारा चिंतन शांत होता है । कुछ लोग आपस में मिलते हैं तो अंग्रेजी
पद्धति के अनुसार एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं । लेकिन यह ध्यान में
रखना चाहिए कि हर मनुष्य के अपने संस्कार, अपने बीमारी के जीवाणु
आदि होते हैं । एक दूसरे को उन जीवाणुओं का या हलके परमाणुओं का
संक्रमण न हो, वे ध्यान-भजन में कमी न लायें, इस दृष्टि से भारतीय
संस्कृति को मानने वाले लोग हाथ मिलाने से परहेज करते हैं ।
अभिवादन द्वारा भीतर किसी कोने में जो अहं छुपा है वह पिघल जाय,
ऐसा नहीं कि हमारी बीमारी दूसरे को लग जाय । इसलिए हमारे यहाँ
हाथ न मिलाकर हाथ जोड़ते हैं । (जब कोरोना जैसे संक्रामक रोग फैलते
हैं तब विदेशियों को भी न चाहने पपर भी हाथ मिलाने से परहेज करना
पड़ता है और भारतीय संस्कृति की दूरदर्शिता का आदर करना पड़ता है
।) यह पद्धति स्वास्थ्य के लिए, मन की प्रसन्नता के लिए बहुत
बढ़िया है ।
हमारी संस्कृति में ऐसी सुन्दर व्यवस्था है कि जब प्रेम के भाव में
आ गये तो हाथ जोड़ लिये, जिससे अपनी एक धारा दूसरी धारा से,
ऋणात्मक धारा धनात्मक धारा से मिल गयी और अपना उल्लास अपने

अंदर प्रकट हुआ । ऐसे ही सामने वाले व्यक्ति ने भी हाथ जोड़े तो
उसका उल्लास उसके अंदर प्रकट हुआ ।
परंतु जब सामने गुरु है तो हाथ जोड़ने से काम पूरा नहीं होता ।
गुरुदेव या तत्त्ववेत्ता महापुरुष जब मिलते हैं तो हमें उऩका मन-ही-मन
सुमिरन-नमन करके उनके हृदय में, उनके जीवन में जो मस्ती छलकती
है, आत्मानंद क स्वपंदन छलकते हैं वे उनकी कृपाशक्ति के द्वारा प्राप्त
करने चाहिए । इससे हमें सहज में ही आनंद की प्राप्ति हो जाती है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2023 पृष्ठ संख्या 22,23 अंक 362
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गणेश शंकर विद्यार्थी का संस्कृति प्रेम – पूज्य बापू जी



गाँधी जी गणेश शंकर विद्यार्थी की खूब सराहना करते थे । वे
अपने विद्यार्थी काल में विद्यालय में धोती-कुर्ता और टोपी पहन के
जाते थे । उनके भारतीय परिधान (पोशाक) की मनचले मूर्ख लोगों ने
हँसी उड़ायी तो उन्होंने कहाः “मैं अपनी संस्कृति के, अपने देश के
वातावरण के अनुकूल परिधान पहन के आया हूँ । विदेश में ठंड पड़ती है
इसलिए वहाँ के लोग टाई बाँधते हैं ताकि नाक बहे तो उससे पोंछ लें
और ठंड अंदर न घुसे । हमारे देश में इतनी ठंड नहीं है, गर्म देश है ।
यहाँ कुर्ता-पाजामा, धोती आदि पहने जाते हैं और सिर पर टॉपी पहनी
जाती है जिससे धूप न लगे, ज्ञानतंतु कमजोर न हों और बुढ़ापे में
स्मरणशक्ति खत्म न हो ।
मैंने हमारे देश व सभ्यता के अनुरूप और स्वास्थ्य के अनुकूल
वस्त्र पहने हैं तो तुमको आश्चर्य लगता है लेकिन तुम्हें यह आश्चर्य नहीं
लगता है कि पैंट-शर्ट, टाई आदि जो विदेश के कपड़े हैं वे इस वातावरण
के अनुकूल नहीं हैं फिर भी अंग्रेज अपने कल्चर का ही परिधान पहनकर
दूसरे देशों में रहते हैं ! वे विदेशों में प्रतिकूलता सहकर भी अपने कल्चर
के परिधान पहन के घूम-फिर सकते हैं तो हम अपने देश में अपने
परिधान को पहनकर विद्यालय में क्यों नहीं आ सकते हैं ?”
गणेश शंकर विद्यार्थी के तर्क से सभी का सिर झुक गया और वे
पूरे विद्यालय में छा गये ।
ऋषि प्रसाद, फरवरी 2023 पृष्ठ संख्या 18 अंक 361
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पीपल वृक्ष का महत्त्व क्यों ?


पीपल को सभी वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसे ‘वृक्षराज’ कहा जाता है । पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः ″पीपल की शास्त्रों में बड़ी भारी महिमा आयी है । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैः अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां… ‘मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ ।’ ( गीताः 10.26 )

पीपल में विष्णु जी का वास, देवताओं का वास बताते हैं अर्थात् उसमें सत्त्व का प्रभाव है । पीपल सात्त्विक वृक्ष है । पीपल-देव की पूजा से लाभ होता है, उनकी सात्त्विक तरंगें मिलती हैं । हम भी बचपन में पीपल की पूजा करते थे । इसके पत्तों को छूकर आने वाली हवा चौबीसों घंटे आह्लाद और आरोग्य प्रदान करती है । बिना नहाये पीपल को स्पर्श करते हैं तो नहाने जितनी सात्त्विकता, सज्जनता चित्त में आ जाती है और नहा धोकर अगर स्पर्श करते हैं तो दुगनी आती है ।

शनिदेव स्वयं कहते हैं कि ‘जो शनिवार को पीपल का स्पर्श करता है, उसको जल चढ़ाता है, उसके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उसको कोई पीड़ा नहीं होगी ।’

पीपल का पेड़ प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन देता है और थके हारे दिल को भी मजबूत बनाता है । पीपल के वृक्ष से प्राप्त होने वाले ऋण आयन, धन ऊर्जा स्वास्थ्यप्रद हैं । पीपल को देखकर मन प्रसन्न, आह्लादित होता है । पीपल ऑक्सीजन नीचे को फेंकता है और 24 घंटे ऑक्सीजन देता है । अतः पीपल के पेड़ खूब लगाओ । अगर पीपल घर या सोसायटी की पश्चिमदिशा में हो तो अनेक गुना लाभकारी है ।″

पीपल की शास्त्रों में महिमा

‘पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से वह क्रमशः धन, पुत्र, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है । अश्वत्थ के दर्शन से पाप का नाश और स्पर्श से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । उसकी प्रदक्षिणा करने से आयु बढ़ती है । पीपल की 7 प्रदक्षिणा करने से 10000 गौओं के और इससे अधिक बार परिक्रमा करने पर करोड़ों गौओं के दान का फल प्राप्त होता है । अतः पीपल-वृक्ष की परिक्रमा नियमित रूप से करना लाभदायी है । पीपल को जल देने से दरिद्रता, दुःस्वप्न, दुश्चिंतता तथा सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो जाते हैं । जो बुद्धिमान पीपल-वृक्ष की पूजा करता है उसने अपने पितरों को तृप्त कर दिया ।

मनुष्य को पीपल के वृक्ष के लगाने मात्र से इतना पुण्य मिलता है जितना यदि उसके सौ पुत्र हों और वे सब सौ यज्ञ करें तब भी नहीं मिल सकता है । पीपल लगाने से मनुष्य धनी होता है । पीपल की जड़ के पास बैठकर जो जप, होम, स्तोत्र-पाठ और यंत्र-मंत्रादि के अनुष्ठान किये जाते हैं उन सबका फल करोड़ गुना होता है ।’ ( पद्म पुराण )

‘घर की पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष मंगलकारी माना गया है ।’ (अग्नि पुराण )

‘जो मनुष्य एक पीपल का पेड़ लगाता है उसे एक लाख देववृक्ष ( पारिजात, मंदार आदि विशिष्ट वृक्ष ) लगाने का फल प्राप्त होता है ।’ ( स्कंद पुराण )

‘सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए पीपल और बड़ के मूलभाग में दीपदान करना अर्थात् दीपक जलाना चाहिए ।’ ( नारद पुराण )

बुद्धिवर्धक पीपल

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः ″अन्य वृक्षों की अपेक्षा पीपल व वटवृक्ष की हवा थकान मिटाती है, ऑक्सीजन ज्यादा देती है । पीपल के नीचे बैठने से बुद्धि बढ़ती है ।

विपरीत बुद्धिवाले ( उलटा ही सोचने वाले ) व्यक्ति को पीपल का फायदा न मिले तो कोई बड़ी बात नहीं परंतु भारत के ऋषियों ने पीपल-पूजा की जो परम्परा आरम्भ की है उससे फायदा होता ही है । जल, दूध और सिंदूर का मिश्रण करके पीपल को चढ़ाया जाता है । हम बच्चे थे तो घर से आधा-पौना किलोमीटर दूर पीपल का वृक्ष था, वहाँ हम जाते थे और कई वर्षों तक हमने यह किया । उस समय पता नहीं चला कि इससे कितना फायदा होता है लेकिन नये-नये विचार, नये-नये भाव आते थे और ‘पीपल में भी मेरा भगवान है’ – इस भाव को जागृत करने का भी अवसर मिला ।

तामसी-राजसी लोग हमारी यह बालचेष्टा देखकर हँसते थे परंतु हमको तो आनंद, मस्ती आती थी तो फिर हम उनकी बातों को नगण्य कर देते थे । एक तो सिद्धपुर में माधुपावड़ी के पीपल की हम पूजा-वूजा करते थे, 2-3 वर्ष सिद्धपुर में रहे थे और दूसरा पीपल पिकनिक हाऊस के पीछे कांकरिया ( अहमदाबाद ) में था, उसकी हमने बचपन में पूजा-आराधना की । नन्हें-मुन्ने थे और सुन रखा था कि शनिवार को पीपल देवता को जल चढ़ाना चाहिए, किसी को पूजा करते देखा था । पूजा के निमित्त से अनजाने में प्रचुर ऑक्सीजनयुक्त वायु भी मिलती गयी और पीपल की बुद्धिमत्तावर्धक विशेषता का भी फायदा मिला तथा भावना को पोषण मिलता रहा ।

इमली आदि वृक्षों के नीचे रात को सोने से जीवनीशक्ति का ह्रास होता है, दिन में भी ह्रास होता है और थकान आदि होती है परंतु पीपल आदि से जीवनीशक्ति का विकास होता है । पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है । बालकों को इसका विशेषरूप से लाभ लेना चाहिए । रविवार को पीपल का स्पर्श न करें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2022, पृष्ठ संख्या 22, 23 अंक 354

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