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पीपल वृक्ष का महत्त्व क्यों ?


पीपल को सभी वृक्षों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसे ‘वृक्षराज’ कहा जाता है । पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः ″पीपल की शास्त्रों में बड़ी भारी महिमा आयी है । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैः अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां… ‘मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ ।’ ( गीताः 10.26 )

पीपल में विष्णु जी का वास, देवताओं का वास बताते हैं अर्थात् उसमें सत्त्व का प्रभाव है । पीपल सात्त्विक वृक्ष है । पीपल-देव की पूजा से लाभ होता है, उनकी सात्त्विक तरंगें मिलती हैं । हम भी बचपन में पीपल की पूजा करते थे । इसके पत्तों को छूकर आने वाली हवा चौबीसों घंटे आह्लाद और आरोग्य प्रदान करती है । बिना नहाये पीपल को स्पर्श करते हैं तो नहाने जितनी सात्त्विकता, सज्जनता चित्त में आ जाती है और नहा धोकर अगर स्पर्श करते हैं तो दुगनी आती है ।

शनिदेव स्वयं कहते हैं कि ‘जो शनिवार को पीपल का स्पर्श करता है, उसको जल चढ़ाता है, उसके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उसको कोई पीड़ा नहीं होगी ।’

पीपल का पेड़ प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन देता है और थके हारे दिल को भी मजबूत बनाता है । पीपल के वृक्ष से प्राप्त होने वाले ऋण आयन, धन ऊर्जा स्वास्थ्यप्रद हैं । पीपल को देखकर मन प्रसन्न, आह्लादित होता है । पीपल ऑक्सीजन नीचे को फेंकता है और 24 घंटे ऑक्सीजन देता है । अतः पीपल के पेड़ खूब लगाओ । अगर पीपल घर या सोसायटी की पश्चिमदिशा में हो तो अनेक गुना लाभकारी है ।″

पीपल की शास्त्रों में महिमा

‘पीपल को रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से वह क्रमशः धन, पुत्र, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है । अश्वत्थ के दर्शन से पाप का नाश और स्पर्श से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । उसकी प्रदक्षिणा करने से आयु बढ़ती है । पीपल की 7 प्रदक्षिणा करने से 10000 गौओं के और इससे अधिक बार परिक्रमा करने पर करोड़ों गौओं के दान का फल प्राप्त होता है । अतः पीपल-वृक्ष की परिक्रमा नियमित रूप से करना लाभदायी है । पीपल को जल देने से दरिद्रता, दुःस्वप्न, दुश्चिंतता तथा सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो जाते हैं । जो बुद्धिमान पीपल-वृक्ष की पूजा करता है उसने अपने पितरों को तृप्त कर दिया ।

मनुष्य को पीपल के वृक्ष के लगाने मात्र से इतना पुण्य मिलता है जितना यदि उसके सौ पुत्र हों और वे सब सौ यज्ञ करें तब भी नहीं मिल सकता है । पीपल लगाने से मनुष्य धनी होता है । पीपल की जड़ के पास बैठकर जो जप, होम, स्तोत्र-पाठ और यंत्र-मंत्रादि के अनुष्ठान किये जाते हैं उन सबका फल करोड़ गुना होता है ।’ ( पद्म पुराण )

‘घर की पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष मंगलकारी माना गया है ।’ (अग्नि पुराण )

‘जो मनुष्य एक पीपल का पेड़ लगाता है उसे एक लाख देववृक्ष ( पारिजात, मंदार आदि विशिष्ट वृक्ष ) लगाने का फल प्राप्त होता है ।’ ( स्कंद पुराण )

‘सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए पीपल और बड़ के मूलभाग में दीपदान करना अर्थात् दीपक जलाना चाहिए ।’ ( नारद पुराण )

बुद्धिवर्धक पीपल

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः ″अन्य वृक्षों की अपेक्षा पीपल व वटवृक्ष की हवा थकान मिटाती है, ऑक्सीजन ज्यादा देती है । पीपल के नीचे बैठने से बुद्धि बढ़ती है ।

विपरीत बुद्धिवाले ( उलटा ही सोचने वाले ) व्यक्ति को पीपल का फायदा न मिले तो कोई बड़ी बात नहीं परंतु भारत के ऋषियों ने पीपल-पूजा की जो परम्परा आरम्भ की है उससे फायदा होता ही है । जल, दूध और सिंदूर का मिश्रण करके पीपल को चढ़ाया जाता है । हम बच्चे थे तो घर से आधा-पौना किलोमीटर दूर पीपल का वृक्ष था, वहाँ हम जाते थे और कई वर्षों तक हमने यह किया । उस समय पता नहीं चला कि इससे कितना फायदा होता है लेकिन नये-नये विचार, नये-नये भाव आते थे और ‘पीपल में भी मेरा भगवान है’ – इस भाव को जागृत करने का भी अवसर मिला ।

तामसी-राजसी लोग हमारी यह बालचेष्टा देखकर हँसते थे परंतु हमको तो आनंद, मस्ती आती थी तो फिर हम उनकी बातों को नगण्य कर देते थे । एक तो सिद्धपुर में माधुपावड़ी के पीपल की हम पूजा-वूजा करते थे, 2-3 वर्ष सिद्धपुर में रहे थे और दूसरा पीपल पिकनिक हाऊस के पीछे कांकरिया ( अहमदाबाद ) में था, उसकी हमने बचपन में पूजा-आराधना की । नन्हें-मुन्ने थे और सुन रखा था कि शनिवार को पीपल देवता को जल चढ़ाना चाहिए, किसी को पूजा करते देखा था । पूजा के निमित्त से अनजाने में प्रचुर ऑक्सीजनयुक्त वायु भी मिलती गयी और पीपल की बुद्धिमत्तावर्धक विशेषता का भी फायदा मिला तथा भावना को पोषण मिलता रहा ।

इमली आदि वृक्षों के नीचे रात को सोने से जीवनीशक्ति का ह्रास होता है, दिन में भी ह्रास होता है और थकान आदि होती है परंतु पीपल आदि से जीवनीशक्ति का विकास होता है । पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है । बालकों को इसका विशेषरूप से लाभ लेना चाहिए । रविवार को पीपल का स्पर्श न करें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2022, पृष्ठ संख्या 22, 23 अंक 354

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आज विश्व को अगर किसी चीज की जरूरत है तो… ( पूज्य बापू जी की सारगर्भित अमृतवाणी )


जीवन दुःख, क्लेश, मुसीबतों का बोझ बनाकर पिस मरने के लिए नहीं है, जीवन है आनंदित-उल्लसित होते हुए, माधुर्य भरते हुए, छिड़कते हुए, छलकाते हुए आगे बढ़ने के लिए । सबका मंगल हो, सबकी उन्नति हो, सबका कल्याण हो यही अपना लक्ष्य हो । इससे आपकी वृत्ति, आपकी बुद्धि और आपका हृदय विशाल होता जायेगा । आप व्यक्तिगत स्वार्थ को तिलांजलि दो ।

अगर कुटुम्ब का स्वार्थ सिद्ध होता है तो व्यक्तिगत स्वार्थ की परवाह मत करो, कुटुम्ब के भले के लिए अपने व्यक्तिगत भले को अलविदा करो । पूरे पड़ोस का बढ़िया भला होता है तो अपने कुटुम्ब के भले का दुराग्रह छोड़ो और पूरी तहसील का भला होता है तो पड़ोस के भले का दुराग्रह छोड़ो । जिले का भला होता है तो तहसील का दुराग्रह छोड़ो । अगर राज्य का भला होता है तो जिले का दुराग्रह छोड़ो । अगर देश का भला हो रहा है तो राज्य के भले का दुराग्रह छोड़ो और विश्व-मानवता का मंगल हो रहा है तो फिर ये सीमाएँ और भी विशाल बनाओ और विश्वेश्वर में आराम पाने की कला मिल रही है तो वह सर्वोपरि है, सर्वसुंदर है, मंगल-ही-मंगल है । जितना दायरा विशाल उतना व्यक्ति महान, जितना दायरा छोटा उतना व्यक्ति छोटा ।

जो नेता लोग जातिवाद का जहर फैलाकर अपनी रोटी सेंक लेते हैं वे भले 4 दिन की कुर्सी तो पा लेते हैं लेकिन देश के साथ विद्रोह करने का, मानव जाति के साथ विश्वासघात करने का भारी पाप करते हैं इसलिए उनका प्रभाव ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता है । गांधी जी का प्रभाव क्यों ज्यादा टिका है ? गौतम बुद्ध का, महावीर स्वामी का, संत कबीर जी का, गुरु नानक जी का, साँईं श्री लीलाशाह ही का प्रभाव अब भी विश्वभर में क्यों है ? वे विश्वात्मा के साथ एकाकार होने की दिशा में चले थे और आप उससे एकाकार होने के लिए ही मनुष्य-तन पा सके हैं ।

गंगा जी कभी यह नहीं सोचतीं कि ‘गाय को तो अमृततुल्य पानी दूँ और शेर हरामजादा हिंसक है तो उसको विष मिलाकर दूँ । गंगा जी सबको समानरूप से शीतल पानी, प्यास बुझाने वाला मधुर जल देती हैं ।

‘काफिरों को तपाकर मार डालूँ और मुसलमानों को ही प्रकाश दूँ’ सूरज ऐसा नहीं करता । चाँद ऐसा नहीं करता कि ‘हिंदुओं को ही चाँदनी दूँ और मुसलमानों को वंचित रखूँ’, नहीं ।

भगवान के 5 भूत सभी के लिए हैं, अल्लाह, भगवान सभी के लिए हैं तो तुम्हारा हृदय भी सभी के लिए उदार हो, यह भारतीय संस्कृति का महान ज्ञान सभी के अंतःकरण में होना चाहिए ।

आज विश्व को बमों की जरूरत नहीं है, आतंक की जरूरत नहीं है, शोषकों की जरूरत नहीं है, विश्व को अगर जरूरत है तो भारतीय संस्कृति के योग की, ज्ञान की और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव की जरूरत है, विश्व में उपद्रव की नहीं, शांति की जरूरत है । अतः इस संस्कृति की सुरक्षा करना, इस संस्कृति में आपस में संगठित रहना यह मानव-जाति की, विश्वमानव की सेवा है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 2 अंक 352

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शंखनाद व शंखजल पवित्र क्यों ?


हमारी संस्कृति में पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, स्वागत सत्कार आदि शुभ अवसरों पर शंख बजाया जाता है, जो विजय समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना जाता है । मंदिरों में प्रातःकाल और सायं-संध्या के समय शंख बजाना, शंख में जल भरकर पूजा स्थल पर रखना और पूजा-पाठ अनुष्ठान आदि समाप्त होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़कना यह परम्परा अनादि काल से चली आ रही है ।

अथर्ववेद ( कांड 4 सूक्त 10, मंत्र 1 ) में कहा गया है कि ‘शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिर्मण्डल एवं सुवर्ण से उत्पन्न हुआ है ।’

शंख की ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है । इस संदर्भ में श्रीकृष्ण का ‘पांचजन्य’ व अर्जुन का ‘देवदत्त’ आदि शंख प्रसिद्ध हैं ।

भारत के महान वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने अपने प्रयोगों से सिद्ध करके बताया कि ‘एक बार शंख फूँकने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि जाती है वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणु मूर्च्छित हो जाते हैं । यदि यह क्रिया निरंतर जारी रखी जाय तो कुछ ही समय में वायुमंडल इस प्रकार के कीटाणुओं से सर्वथा रहित हो जाता है ।’

शंख दो प्रकार के होते हैं- दक्षिणावर्ती और वामावर्ती । अधिकतर शंख वामावर्ती ही मिलते हैं परंतु शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख की विशेष महत्ता बतायी गयी है ।

पूज्य बापू के सत्संग-वचनामृत में आता हैः ″संध्या के समय आरती होती है और शंख बजाया जाता है । शंख युद्ध के मैदान में भी बजाया जाता है । बोलते हैं कि ‘संध्या के समय राक्षस, दैत्य आते हैं ।’ दैत्य-राक्षस तो क्या हानिकारक जीवाणुरूपी राक्षस ही संध्या के समय आते हैं । प्रभातकाल में सूर्योदय के पहले और संध्या के समय स्वास्थ्य को नुकसान करने वाले जीवाणुओं का प्रभाव ज्यादा हो जाता है । तो आरती जलाओ, शंख बजाओ, जिससे श्वासोच्छ्वास में हानिकारक जीवाणु आक्रमण न करें ।

आधुनिक विज्ञान को भी होना पड़ा ऋषियों की खोज के साथ सहमत

भारत के ऋषियों ने शरीर की तंदुरुस्ती, आरोग्यता और मन की प्रसन्नता के लिए जो हजारों वर्ष पहले खोजा है उस बात पर आज के विज्ञानियों को सहमत होना पड़ा है ।

बर्लिन विश्वविद्यालय ( जर्मनी ) में अनुसंधान से सिद्ध हुआ कि 27 घन फीट प्रति सेकेण्ड वायु शक्ति से शंख बजाने से 2200 घन फीट दूरी तक के हानिकारक जीवाणु ( बेक्टीरिया ) नष्ट हो जाते हैं और 2600 घन फीट दूरी तक के मूर्च्छित हो जाते हैं । हैजा, मलेरिया और गर्दनतोड़ ज्वर के कीटाणु भी शंखध्वनि से नष्ट हो जाते हैं ।

शिकागो के डॉ. डी. ब्राइन ने 1300 बहरे लोगों को शंख ध्वनि से ठीक किया था लेकिन भारत के ऋषियों ने तो करोड़ों-करोड़ों जीवों को कल्याण के, परमात्मा के पथ पर लगाने के लिए शंखध्वनि मंदिरों में सुबह-शाम बजवाकर बड़ा उपकार कर दिया है । युद्ध के आरम्भ में शंखध्वनि, युद्ध की समाप्ति में शंखध्वनि, पूजा के समय शंखध्वनि, मंगलाचरण के समय शंखध्वनि… जहाँ लाभ हुआ वहाँ वह लाभ सबको पहुँचे, यह हमारे ऋषियों की कैसी सर्वहितदृष्टि है !

शंखध्वनि को धार्मिक परम्परा में नियुक्त करने वाले उन ऋषियों को हमारा प्रणाम है । यह भारतीय ऋषियों की खोज है । धर्म के नाम से भी शरीर में आरोग्यता और प्रसन्नता का संचार करने की उन्होंने व्यवस्था की । इस बात पर आप लोगों को गर्व होना चाहिए कि विश्व में शोध करने वाले आधुनिक वैज्ञानिक पैदा ही नहीं हुए थे उसके पहले ही जिन ऋषियों ने शोध करके शंखनाद की व्यवस्था की उनकी समझ कितनी बढ़िया होगी ! वैज्ञानिकों के दिमाग में बैक्टीरियाओं का गणित है, वे बैक्टीरिया बताते हैं कि हमारे ऋषियों ने बताया की सात्त्विकता का संचार होता है, रजो और तमो गुण क्षीण होता है । शंख से वीर ध्वनि पैदा होती है इसलिए श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में शंख फूँका ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 22, 23 अंक 351

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