अज्ञान का नाश करने वाले तथा ज्ञान देने वाले सतगुरु के चरण कमलों मे कोटि कोटि प्रणाम। समदर्शी संत महात्मा और गुरु के सत्संग का एक भी मौका चूकना नहीं। अपने स्थूल मन के कहे अनुसार कभी चलना नहीं। अपने गुरु के वचनों का अनुसरण कर उच्च आत्माओं एवम् गुरु के स्मरण मात्र से सांसारिक मनुष्य की नास्तिक वृत्तियों का नाश होता है और अंतिम मुक्ति हेतु प्रयास करने के लिए प्रेरणा मिलती है तो फिर गुरु सेवा की महिमा का तो पूछना ही क्या।
अहम भाव का नाश करने से शिष्यत्व की शुरुवात होती है।शिष्यत्व की कुंजी है ब्रह्मचर्य और गुरु सेवा। गुरु ज्ञान देने से पहले कभी कभी शिष्य की परीक्षा लेते है ताकि यह पता चले की उसकी पात्रता कितनी है, शिष्य को अपने गुरु की कसौटी पर खरा उतरना ही पड़ता है। तभी वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
एक दिन अचानक एक शिष्य अपनी मनोकामना लेकर अपने गुरुदेव के पास पहुंचा, उसने नतमस्तक होकर गुरुदेव को प्रणाम किया और उनसे प्रार्थना करने लगा भगवन मेरी प्रार्थना स्वीकर कीजिए। गुरु ने कहा क्या चाहते हो? प्रभु मैं चाहता हूं कि मेरे सभी प्रियजन हमेशा प्रसन्न और स्वस्थ रहे। शिष्य की प्रार्थना सुनकर गुरुदेव मन ही मन मुस्कराए। उन्होंने सोचा कि शिष्य की प्रार्थना पूरी करने के लिए पहले इसे थोड़ा परखा जाए। तुम्हारे सभी प्रियजन हमेशा स्वस्थ और खुश रहे यह संभव नहीं तुम कोई भी चार दिन चुन लो और मुझे बताओ उस समय वे स्वस्थ और खुश रहेंगे। शिष्य ने थोड़ा सोचा और कहा अगर ऐसा है तो बसंत, ग्रीष्म, शिशिर और हेमंत इन चारो ऋतुओं मे वे खुश रहे।
गुरुदेव शिष्य की समझदारी से खुश हुए। उन्होंने आगे कहा कि यदि तुम्हे तीन दिन चुनने हो तो तुम कौन से तीन दिन चुनोगे? इस बार शिष्य ने फिर चतुराई से जवाब दिया। मैं आज, कल और अगला दिन चुनूँगा । गुरुदेव उसकी चतुराई पर हँसते हुए बोले तब तो तुम केवल दो दिन को ही चुनो और बताओ। अब शिष्य अधिक सतर्क होकर बोला यदि ऐसा ही है तो मे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का चुनाव करना चाहूंगा। गुरु सवाल पूछ पूछ कर उसकी समझ और सजगता की परीक्षा लिए जा रहे थे और शिष्य भी अधिक सतर्कता से जवाब दिए जा रहा था अबकी बार गुरुदेव ने कहा यदि तुम्हे एक ही दिन का चुनाव करना हो तो कौन सा दिन चुनोगे? शिष्य ने तुरंत ही जवाब दिया गुरुदेव वर्तमान दिन। शिष्य की सतर्कता देखकर गुरुदेव प्रसन्न हुए, मुस्कराए और उसे कहा कि अपने सभी प्रियजनों को कह दो कि वे सत्संग नित्य करे रोज करे इससे इनका वर्तमान सुधर जाएगा और वर्तमान सुधर गया तो भविष्य भी सुधर जाएगा वे भविष्य मे सुखी और सदैव प्रसन्न रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे। वर्तमान मे ही आनंद है भूत और भविष्य मे गोते लगाकर वर्तमान के क्षण भी खो देता है हर इंसान वर्तमान मे जी सकता है लेकिन जीता नहीं है आधे लोग तो अतीत को याद करते रहते है कि हमारे साथ ऐसा हुआ उसने हमारे साथ ऐसा किया, उनका पूरा जीवन या तो अतीत की सुनहरी यादों मे खोया रहता है या फिर अतीत की बूरी बातो पर अफसोस करता है। पश्चाताप और ग्लानि, अफसोस मे वे अपने सारे वर्तमान, अमूल्य वर्तमान पल बरबाद कर लेते है। लोग अपने दुखो का उपाय भविष्य मे ढूंढ़ते है उसे इस बात का ज्ञान नहीं कि सुंदर भविष्य का निर्माण वर्तमान मे हो सकता है कुछ लोग शेख चिल्ली की तरह भविष्य की कल्पनाओं मे लोट पलोट लगाते रहते है जिससे उनके वर्तमान का समय भी निकल जाता है जिस काम को आज करना था वह छूट जाता है।
इस तरह ये लोग बड़ी मुसीबत, निराशा और तनाव मे फंस जाते है। साधक को भूतकाल और भविष्य काल दोनों से मुक्त होना है, साधना ऐसी हो जो अतीत है वह भी कभी वर्तमान पल था, और जो भविष्य है वह भी कभी वर्तमान पल ही होगा । इस तरह हे साधक देखो ! न तो कोई अतीत है और न कोई भविष्य है सेवा, साधना, सत्संग, सुमिरन से वर्तमान पल को संवारो। उज्ज्वल भविष्य वर्तमान के क्षणो मे है। वर्तमान मे जो भी हो रहा है अच्छा,बुरा जो भी लग रहा है वह वर्तमान की सच्चाई है।उसका दृष्टा बन जाओ। वर्तमान जिंदा है, अभी है, यही है और चैतन्य है। इसमे जीना सीखो,वर्तमान मे जीने से बेहोशी टूट जाएगी,वर्तमान स्वीकार करो। समस्याओ से ना घबराओ, वर्तमान सुधरा तो भविष्य सुनहरा है ।