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सुख-शांति, संतति व स्वास्थ्य प्रदायक गौ-परिक्रमा


(गोपाष्टमीः 16 नवम्बर 2018)

देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि से शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि कई प्रकार के लाभ होते हैं। पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता है कि “देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। सामान्य व्यक्ति की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और  बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी, बढ़ेगी।”

यह बात आभा विशेषज्ञ के.एम.जैन ने ‘यूनिवर्सल ओरा स्कैनर’ यंत्र द्वारा प्रमाणित भी की है। उन्होंने बताया कि गाय की 9 परिक्रमा करने से अपने आभामण्डल का दायरा बढ़ जाता है।

पूज्य बापू जी कहते हैं- “संतान को बढ़िया, तेजस्वी बनाना है तो गर्भिणी अलग-अलग रंग की 7 गायों की प्रदक्षिणा करके गाय को जरा सहला दे, आटे-गुड़ आदि का लड्डू खिला दे या केला खिला दे, बच्चा श्रीकृष्ण के कुछ-न-कुछ दिव्य गुण ले के पैदा होगा। कइयों को ऐसे बच्चे हुए हैं।”

विशेष लाभ हेतु

सप्तरंगों की गायों की 108 परिक्रमा कर अधिक लाभ उठा सकते हैं। गर्भवती महिला द्वारा सामान्य गति से प्रदक्षिणा करने पर शरीर पर कोई तनाव न पड़ते हुए श्वास द्वारा रक्त एवं हृदय का शुद्धीकरण होता है। इससे गर्भस्थ शिशु को भी लाभ होता है। गर्भिणी सद्गुरुप्रदत्त गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करते हुए परिक्रमा करे, यह अधिक लाभदायी होगा।

यदि अनुकूल हो तो गर्भाधान से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा चालू रखे। इससे गर्भिणी का प्रतिदिन लगभग 2 किलोमीटर चलना होगा, जिससे प्रसूति नैसर्गिक होगी, सिजेरियन की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी। 7वें महीने से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा रुक-रुक कर पूरी करे। परिक्रमा करते समय गोबर का तिलक करे। गोमय (गोबर का रस) व गोमूत्र के मिश्रण में पाँव भिगोकर परिक्रमा करने से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है।

सावधानीः परिक्रमा अपने और गाय के बीच सुरक्षित अंतर रखते हुए करें। यदि पेटदर्द आदि तकलीफ हो तो परिक्रमा आश्रम के  वैद्य की सलाह से करें।

उत्तम संतान व मनोवांछित फल पाने हेतु

विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार तिल, जौ, व गुड़ के बने लड्डू 9 गायों को खिलाने व उनकी परिक्रमा करने से उत्तम संतान एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव या क्लेश रहता हो तो दोनों गठजोड़ करके गाय की परिक्रमा करें तथा रोटी में तिल का तेल चुपड़कर गुड़ के साथ उन नौ गायों को खिलायें। इससे घर में सुख-शांति बनी रहेगी।

महाभारत (अनुशासन पर्वः 83.50) में आता है कि ‘गोभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त होती हैं। स्त्रियों में जो भी गौ की भक्त हैं, वे मनोवांछित कामनाएँ प्राप्त करती हैं।’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2018, पृष्ठ संख्या 29, अंक 310

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पायें देशी गायों से उनके रंगानुसार विशेष लाभ


वैसे तो सभी देशी गायों का दूध पुष्टीदायी तथा स्वास्थ्य, बल, बुद्धि व सात्त्विकता वर्धक होता है परंतु कैसी सूक्ष्म दृष्टि है भारत के संतों-महापुरुषों की, जिन्होंने अलग-अलग रंगों की गायों में पायी जाने वाली भिन्न-भिन्न विशेषताएँ भी खोज निकालीं !

सफेद रंग की गाय

श्वेत (सफेद) रंग की गायों में धी, धृति, स्मृति वर्धक सत्त्व सविशेष रहता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि आदि ज्यादातर श्वेत गौ के दूध का सेवन करते थे क्योंकि उससे अध्यात्म बल एवं विद्या की अभिवृद्धि होती है।

प्राचीन गुरुकुलों में विद्यार्थियों को श्वेत गौ के गो-रस (गाय का दूध, दही आदि) का सेवन कराया जाता था, जिससे उनकी बुद्धि वेदादि विद्या का कंठस्थ करने में समर्थ बनती थी।

इनका दूध कफकारक तथा पचने में भारी होता है पर उसमें सोंठ, काली मिर्च, पिप्ली, पिप्पलीमूल, हल्दी आदि डालकर पीने से वह त्रिदोषशामक व सुपाच्य हो जाता है।

सगर्भा  माताएँ अगर श्वेत बछड़ेवाली श्वेत गाय के दूध का चाँदी के पात्र में सेवन करें तो उन्हें दीर्घायु, गौरवर्ण की तथा ओजस्वी, तेजस्वी एवं निरामय संतान की प्राप्ति होती है।

यदि श्वेत गौ के दूध को मंडूकपर्णी, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि मेधाजनक औषधियों से सिद्ध करके उसका सेवन मनोरोगियों को कराया जाय तो उनका मानसिक रोग शांत होता है।

लाल रंग की गाय

लाल गाय सूर्यकिरणों का सेवन कर शौर्यशक्ति को अपने दूध में प्रवाहित करती है। ऐसी गायों का दूध वायु तथा कफशामक होता है वह शरीर को बलिष्ठ बनाता है। इनके दूध में शौर्यशक्ति सविशेष रहती है इसलिए क्षत्रिय युद्ध के लिए जाते समय भी अपने साथ लाल गायों के झुंड-के-झुंड ले जाते थे।

पीले रंग की गाय

पीले रंग की गाय का दूध वात-पित्तशामक होता है। इसके सेवन से व्यवहार पालन, व्यापार-वाणिज्य व नैतिकता की वृद्धि होती है। अतः वैश्य ऐसी गायें रखते थे।

चितकबरी गाय

इसका दूध वातशामक होता है, जिसे पीने से सेवाकार्यों में कुशलता आती है। इसीलिए चतुर्थ वर्ण के लोग चितकबरी गायें पालते थे।

काली गाय

काली गायों का दूध अन्य गायों की अपेक्षा अधिक गुणकारी होता है। इनका दूध अग्निमांद्यजनित रोग-नाशक व उत्तम वातशामक है। पंचगव्य-निर्माण में काली गौ के गोबर का रस लेना सबसे श्रेष्ठ माना  जाता है।

वर्तमान समय में गौ-हत्या में बढ़ोतरी और गौ-पालन हेतु लोगों की घटती हुई रूचि के कारण हमारे ऋषि-मुनियों की ऐसी महान खोजों का लाभ उठाना सबके लिए सम्भव नहीं हो पा रहा है। अतः आज गौ-सेवा, गौ संरक्षण व संवर्धन हेतु सभी को अवश्य प्रयास करना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 27 अंक 309

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गौरक्षा में है मानवता, स्वास्थ्य व संस्कृति की रक्षा-पूज्य बापू जी


गाय की रक्षा करने वाले हम कौन होते हैं ? अरे ! गाय तुम्हारी-हमारी और पर्यावरण की रक्षा करती है। चौरासी लाख प्राणी हैं किंतु देशी गाय के अलावा किसी का मल और मूत्र पवित्र नहीं माना जाता। चाहे कोई महाराजा हो, ब्राह्मण हो या तपस्वी हो फिर भी उसका मलमूत्र लीपने के काम नहीं आता। जब कोई व्यक्ति मरने की स्थिति में होता है तब भूमि को देशी गाय के गोबर व मूत्र से लीपन कर उस पर उस व्यक्ति को लिटाते हैं ताकि उसकी सद्गति। देशी गाय के दूध, दही, घी, मूत्र में सुवर्णक्षार होते हैं। अगर किसी महिला को प्रसूति नहीं हो रही हो तो देशी गाय के गोबर का 10 ग्राम ताजा रस पिलाने से सरलता से प्रसूति हो जाती है। किसी को कैंसर की बीमारी है तो प्रतिदिन गौ का मूत्र सेवन कराओ, ठीक हो जायेगा। राजतिलक के समय राजा को पंचगव्य (देशी गाय का दूध, दही, घी, मूत्र व गोबर-रस) पिलाने व उससे राजतिलक करने से राजा राज्य अच्छा चलायेगा।

किसी भी खेत में थोड़े दिन देशी गाय को रखो फिर देखो वह खेत कितना फसल उत्पादन देता है। गाय को सानी (पानी में भिगोयी हुई खली व भूसा), चारा आदि रखो या न रखो, केवल उसके सामने उसका बछड़ा लाने पर वह दूध देने लगेगी जबकि भैंस तो ऐसी स्वार्थी होती है कि सानी देखकर ही दूध देती है। यदि आप चाहते हो कि आपके बच्चे आगे चलकर अति स्वार्थी, अहंकारी बन के आपस में झगड़े नहीं, भाई-भाई आपस में स्वार्थ, सम्पदा के कारण न लड़ें तो बच्चों को देशी गाय का दूध पिलायें। भैंस के पाड़े आपस में लड़ते हैं तो ऐसे लड़ते हैं कि छोड़ते ही नहीं, चाहे कितने ही डंडे मारो। डंडे टूट जायें तो भी वे लड़ना नहीं छोड़ते, भिड़े रहते हैं दो-दो दिन तक। बच्चे भैंस का दूध पीते हैं तो आगे चलकर वे सम्पत्ति, जमीन-जायदाद के लिए मुकद्दमेबाजी करते हैं व हथियार उठाते हैं लेकिन यदि गाय का दूध पीते हैं तो जैसे भगवान राम कहते हैं- ‘भरत राज्य करे।’ और भरत जी कहते हैं- ‘नहीं, राम जी राज्य करें।’ – इस प्रकार भाई, भाई के चरणों में राज्य अर्पित कर देते हैं। औरंगजेब भैंस का दूध पीकर ऐसा हो गया था कि अपने बाप को ही जेल में डाला व राज्य करने लगा।

गौ सेवा करने वाले के दिल में खुशी होती है। गाय पालने वाले के घर में जितनी तंदुरुस्ती होगी उतनी गाय का मांस खाने वाले के घर में नहीं होगी, बिल्कुल पक्की बात है ! जो भी गौ-पालक हैं, उनको मैं धन्यवाद देता हूँ, प्रणाम करता हूँ।

दुर्भाग्यवश आज के लोग गाय का दर्शन, गाय के दूध व गौ-किरणों का प्रभाव भूल गये हैं। इसी कारण घर-घर में लोग बीमार पड़े हैं, शल्यक्रिया (ऑपरेशन) करा रहे है। आज कहीं अकाल पड़ रहा है, कहीं अतिवृष्टि हो रही है और कहीं मुकद्दमें हो रहे हैं। धन-धान्य भी इतना ठीक नहीं होता, मानो पृथ्वी ने रस खींच लिया है और फूलों ने खिलना भी कम कर दिया है।

यह कहना बिल्कुल गलत है कि हम गाय की रक्षा करते हैं। हम गाय की नहीं बल्कि गाय हमारी रक्षा करती है। गौ रक्षा हमारी आधारभूत आवश्यकता है। हम अपनी रक्षा के लिए गौरक्षा करते हैं, गौ तो कभी नहीं बोलती कि ‘मेरी रक्षा करो।’ बुद्धिमान समझते हैं कि गाय की रक्षा में स्वास्थ्य, मानवता, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 27 अंक 299

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