वैदिक संस्कृति में गायों को विशेष महत्त्व दिया जाता रहा है । गायों के पूजन, आदर-सत्कार एवं श्रृंगार हेतु जैसे गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है वैसे ही पूज्य बापू जी द्वारा प्रेरित ‘विश्वगुरु भारत कार्यक्रम’, जो 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक होता है, उसमें गायों की सेवा, पूजन आदि का विशेष कार्यक्रम होता है । गाय पूजनीय क्यों ? बृहत् पराशर स्मृति में आता है कि ‘गाय के सींग की जड़ में ब्रह्मा, सींग के मध्य में विष्णु एवं शरीर में सारे देवता विद्यमान हैं ।’ ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- गौओं के अंगों में समस्त देवता निवास करते हैं, उनके चरणों में समस्त तीर्थ और उनके गुह्य स्थानों (मल-मूत्र के स्थानों) में स्वयं लक्ष्मी जी निवास करती हैं । गौओं के खुर की धूल का जो मस्तक पर स्नान करने का फल पाता है और पग-पग पर उसकी जय होती है । तीर्थस्थानों में जाकर स्नान-दान करने, ब्राह्मण-भोजन कराने, समस्त व्रत-उपवास, समस्त तप, महादान, श्रीहरि की आराधना करने, सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदवाक्यों के स्वाध्याय तथा समस्त यज्ञों की दीक्षा ग्रहण करने पर मनुष्य जिस पुण्य को पाता है, वही पुण्य केवल गायों को हरी घास खिलाने मात्र से पा लेता है ।’ महाभारत के दानधर्म पर्व में आता है कि ‘गौएँ सम्पूर्ण प्राणियों की माता कहलाती हैं अतः उनकी सदैव पूजा करनी चाहिए ।’ गाय की महिमा समझें पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “जीवन में गीता और गाय का जितना आदर करेंगे उतने स्वस्थ, समतावान और आत्मवान बन जायेंगे । बच्चों को देशी गाय का दूध पिलाओ, गाय पालो, गायों की सेवा करो । जैसे वृद्ध माँ की सेवा करते हैं ऐसे बूढ़ी गायों की भी सेवा करो, इससे आपको कोई घाटा नहीं पड़ेगा । तो आप लोग गोदुग्ध से, गौ-गोबर से, गोमूत्र से स्वास्थ्य लाभ उठाइये । कसाईखाने में गाय जाय उसकी अपेक्षा गाय पालना शुरु कर दो । गाय जहाँ बँधती है उधर टी.बी. और दमे कीटाणु नहीं पनपते हैं । आपके घर-मोहल्ले में गाय का जरा चक्कर लगवा दो तो भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी की बाधा दूर हो जाती है ऐसा कहा गया है । गौ की पूँछ से श्रीकृष्ण को झाड़ दिया, बोलो ! ‘हमारे कन्हैया को पूतना राक्षसी ने छुआ है तो कहीँ उसकी नज़र न लग जाय, उपद्रव न हो जाय, स्वास्थ्य न बिगड़ जाय’ ऐसी आशंका से गोपियों ने श्रीकृष्ण का गाय की पूँछ से उतारा किया, गोमूत्र से स्नान कराया और गाय के गोबर से तिलक किया । भागवत में ऐसा वर्णन आता है । स्वास्थ्य के लिए गाय और आपके लिए गीता – इन दो चीजों का आप जितना सदुपयोग करेंगे उतने आप स्वस्थ रहेंगे । विदेशी (जर्सी, होल्सटीन आदि) गायों के दूध, घी से कोई बरकत नहीं होती, हानि अवश्य होती है । उनके दर्शन से भी कोई आनंद नहीं होता । देशी गाय के घी का रोज़ सुबह दर्शन करिये, देखिये आप कितने प्रसन्न रहते हैं ! यह तो कर सकते हैं । तो गौ के दूध, घी, गोमूत्र आदि का उपयोग करो, गौशालाएँ खोलो ।” स्रोतः ऋषि प्रसाद दिसम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13,20 अंक 360 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
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सुख-शांति, संतति व स्वास्थ्य प्रदायक गौ-परिक्रमा
(गोपाष्टमीः 16 नवम्बर 2018)
देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि से शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि कई प्रकार के लाभ होते हैं। पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता है कि “देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। सामान्य व्यक्ति की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी, बढ़ेगी।”
यह बात आभा विशेषज्ञ के.एम.जैन ने ‘यूनिवर्सल ओरा स्कैनर’ यंत्र द्वारा प्रमाणित भी की है। उन्होंने बताया कि गाय की 9 परिक्रमा करने से अपने आभामण्डल का दायरा बढ़ जाता है।
पूज्य बापू जी कहते हैं- “संतान को बढ़िया, तेजस्वी बनाना है तो गर्भिणी अलग-अलग रंग की 7 गायों की प्रदक्षिणा करके गाय को जरा सहला दे, आटे-गुड़ आदि का लड्डू खिला दे या केला खिला दे, बच्चा श्रीकृष्ण के कुछ-न-कुछ दिव्य गुण ले के पैदा होगा। कइयों को ऐसे बच्चे हुए हैं।”
विशेष लाभ हेतु
सप्तरंगों की गायों की 108 परिक्रमा कर अधिक लाभ उठा सकते हैं। गर्भवती महिला द्वारा सामान्य गति से प्रदक्षिणा करने पर शरीर पर कोई तनाव न पड़ते हुए श्वास द्वारा रक्त एवं हृदय का शुद्धीकरण होता है। इससे गर्भस्थ शिशु को भी लाभ होता है। गर्भिणी सद्गुरुप्रदत्त गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करते हुए परिक्रमा करे, यह अधिक लाभदायी होगा।
यदि अनुकूल हो तो गर्भाधान से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा चालू रखे। इससे गर्भिणी का प्रतिदिन लगभग 2 किलोमीटर चलना होगा, जिससे प्रसूति नैसर्गिक होगी, सिजेरियन की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी। 7वें महीने से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा रुक-रुक कर पूरी करे। परिक्रमा करते समय गोबर का तिलक करे। गोमय (गोबर का रस) व गोमूत्र के मिश्रण में पाँव भिगोकर परिक्रमा करने से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है।
सावधानीः परिक्रमा अपने और गाय के बीच सुरक्षित अंतर रखते हुए करें। यदि पेटदर्द आदि तकलीफ हो तो परिक्रमा आश्रम के वैद्य की सलाह से करें।
उत्तम संतान व मनोवांछित फल पाने हेतु
विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार तिल, जौ, व गुड़ के बने लड्डू 9 गायों को खिलाने व उनकी परिक्रमा करने से उत्तम संतान एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव या क्लेश रहता हो तो दोनों गठजोड़ करके गाय की परिक्रमा करें तथा रोटी में तिल का तेल चुपड़कर गुड़ के साथ उन नौ गायों को खिलायें। इससे घर में सुख-शांति बनी रहेगी।
महाभारत (अनुशासन पर्वः 83.50) में आता है कि ‘गोभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त होती हैं। स्त्रियों में जो भी गौ की भक्त हैं, वे मनोवांछित कामनाएँ प्राप्त करती हैं।’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2018, पृष्ठ संख्या 29, अंक 310
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पायें देशी गायों से उनके रंगानुसार विशेष लाभ
वैसे तो सभी देशी गायों का दूध पुष्टीदायी तथा स्वास्थ्य, बल, बुद्धि व सात्त्विकता वर्धक होता है परंतु कैसी सूक्ष्म दृष्टि है भारत के संतों-महापुरुषों की, जिन्होंने अलग-अलग रंगों की गायों में पायी जाने वाली भिन्न-भिन्न विशेषताएँ भी खोज निकालीं !
सफेद रंग की गाय
श्वेत (सफेद) रंग की गायों में धी, धृति, स्मृति वर्धक सत्त्व सविशेष रहता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि आदि ज्यादातर श्वेत गौ के दूध का सेवन करते थे क्योंकि उससे अध्यात्म बल एवं विद्या की अभिवृद्धि होती है।
प्राचीन गुरुकुलों में विद्यार्थियों को श्वेत गौ के गो-रस (गाय का दूध, दही आदि) का सेवन कराया जाता था, जिससे उनकी बुद्धि वेदादि विद्या का कंठस्थ करने में समर्थ बनती थी।
इनका दूध कफकारक तथा पचने में भारी होता है पर उसमें सोंठ, काली मिर्च, पिप्ली, पिप्पलीमूल, हल्दी आदि डालकर पीने से वह त्रिदोषशामक व सुपाच्य हो जाता है।
सगर्भा माताएँ अगर श्वेत बछड़ेवाली श्वेत गाय के दूध का चाँदी के पात्र में सेवन करें तो उन्हें दीर्घायु, गौरवर्ण की तथा ओजस्वी, तेजस्वी एवं निरामय संतान की प्राप्ति होती है।
यदि श्वेत गौ के दूध को मंडूकपर्णी, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि मेधाजनक औषधियों से सिद्ध करके उसका सेवन मनोरोगियों को कराया जाय तो उनका मानसिक रोग शांत होता है।
लाल रंग की गाय
लाल गाय सूर्यकिरणों का सेवन कर शौर्यशक्ति को अपने दूध में प्रवाहित करती है। ऐसी गायों का दूध वायु तथा कफशामक होता है वह शरीर को बलिष्ठ बनाता है। इनके दूध में शौर्यशक्ति सविशेष रहती है इसलिए क्षत्रिय युद्ध के लिए जाते समय भी अपने साथ लाल गायों के झुंड-के-झुंड ले जाते थे।
पीले रंग की गाय
पीले रंग की गाय का दूध वात-पित्तशामक होता है। इसके सेवन से व्यवहार पालन, व्यापार-वाणिज्य व नैतिकता की वृद्धि होती है। अतः वैश्य ऐसी गायें रखते थे।
चितकबरी गाय
इसका दूध वातशामक होता है, जिसे पीने से सेवाकार्यों में कुशलता आती है। इसीलिए चतुर्थ वर्ण के लोग चितकबरी गायें पालते थे।
काली गाय
काली गायों का दूध अन्य गायों की अपेक्षा अधिक गुणकारी होता है। इनका दूध अग्निमांद्यजनित रोग-नाशक व उत्तम वातशामक है। पंचगव्य-निर्माण में काली गौ के गोबर का रस लेना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
वर्तमान समय में गौ-हत्या में बढ़ोतरी और गौ-पालन हेतु लोगों की घटती हुई रूचि के कारण हमारे ऋषि-मुनियों की ऐसी महान खोजों का लाभ उठाना सबके लिए सम्भव नहीं हो पा रहा है। अतः आज गौ-सेवा, गौ संरक्षण व संवर्धन हेतु सभी को अवश्य प्रयास करना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 27 अंक 309
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