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मैंने जादू नहीं किया प्रणव के जप का चमत्कार था


एक घटित घटना है । एक व्यक्ति सेल्स टैक्स विभाग के करीब 2200 अधिकारियों के संघ का अगुआ अधिकारी था । उसको हर शुक्रवार को शाम को 7 बजे हृदय में पीड़ा होती थी और वह हृदयाघात (हार्ट अटैक) हो गया ऐसा मानता था । महाराज ! उसको इतनी पीड़ा होती थी कि उसकी पीड़ा देखकर दुश्मन को भी दया आ जाय ! उसकी बच्ची और पत्नी सब रोने लग जाते । अहमदाबाद के सब मुख्य डॉक्टरों को उसने दिखा लिया, मुंबई भी दिखाने गया पर कोई लाभ नहीं हुआ । आखिर जब रोग लाइलाज ज्ञात हुआ तब उसे यह याद आया जो उसने कभी नहीं सुन रखा होगा या किसी ने सुनाया होगाः जो बात दवा से नहीं होती, वह दुआ से होती है । मुर्शिद (गुरु) अगर मिल जायें कामिल (पूर्ण), तो मुलाकात खुदा से होती है ।। किसी भी कारण से हो, वह पहुँच गया बड़ बादशाह के पास और उसने अपनी पूरी रामकथा (तकलीफ) सुनायी । मैं समझ गया कि क्या समस्या है । मैंने उसको कहाः “मेरे सामने बैठ ।” और प्रणव का जप चालू कराया । उसे प्रयोग बताया कि “शुक्रवार को पीड़ा होने के 15 मिनट पहले तू ॐकार का जप चालू कर देना । आज गुरुवार है । पिछले 7 महीने से तेरे को हर शुक्रवार को पीड़ा होती है और कल शुक्रवार है तो यह प्रयोग करना । यदि फायदा हो जाय तो प्रणव (ॐकार) की कृपा समझना और फायदा नहीं हो तो समझना बाबा बेकार है ।” जीवन में किसी बाबा को सलाम करे, नमस्कार करे ऐसे व्यक्तियों में से नहीं था वह सज्जन बेचारा । सज्जनों की भी अपनी-अपनी मान्यता होती है । जल्दी से आँख में आँसू लाने वालों में से नहीं था व । उसने कई लोगों से टक्करें ली होंगी, कई व्यापारियों के बहीखाते जब्त किये होंगे, कराये होंगे । वह कई फैसलों-वैसलों में गया होगा ऐसा व्यक्ति था । शुक्रवार को उसने प्रयोग किया और निश्चिंत हो गया । फिर आश्रम आया, बोलाः “बाबा जी ! पीड़ा नहीं हुई ।” मैंने कहाः “अब क्या संकल्प करते हो बोलो ? बड़ बादशाह को क्या देते हो ? जो कोई डॉक्टर नहीं मिटा सके, तुम्हारे साथ के जो अधिकारी – सेल्स टैक्स कमिश्नर नहीं मिटा सके, वह भगवान के नाम ने मिटाया । बड़ बादशाह की दुआ हुई, अब तुम क्या करोगे ?” बोलाः “बापू ज ! मैंने बड़ बादशाह को फेरे फिरकर मन्नत मानी है ।” मैंने कहाः “क्या” ? बोलाः “यदि रोग सोलह आना ( सौ प्रतिशत) मिट गया तो मैं 501 रूपये दूँगा इधर ।” मैं समझ गया कि यह पैसों में जीने वाले व्यक्तियों में से है । भाव भी कोई जीवन होता है ! श्रद्धा भी कुछ चीज होती है ! समपर्ण भी कुछ चीज होती है ! लेकिन उस दुनिया में वह आया नहीं बेचारा ! मैंने कहाः “ये तो बहुत कम होंगे ।” तो बोलाः “बापू ! 1001 रख दूँगा किंतु 100 प्रतिशथ फायदा होगा तो…!” मैंने कहाः “अच्छा, 1001 तुम रख देना, ठीक है परंतु कब मानोगे कि फायदा हुआ ?” बोलाः “3 शुक्रवार तक तकलीफ न हो तो मानूँगा कि ठीक हो गया ।” मैंने कहाः “3 नहीं, 30 शुक्रवार तक की गारंटी ! और जो 501 या 1001 तुम बोलते हो न, वह समझना कि बाबा को दे दिये हैं । (उस व्यक्ति की जेब की ओर इशारा करते हुए) यह हमारी जेब है, तुम रुपये अपने पास रखना ।” किंतु उसने कहा कि “मैंने जब पैसे देने का बोला है तो अच्छे काम में लगाऊँगा ।” तो कहीं उसके परिचय में कोई गाँव था जहाँ पानी की तकलीफ थी, वहाँ पर उसने हैंडपम्प लगवाया होगा या जो कुछ किया होगा मेरे को पता नहीं । फिर तो वह व्यक्ति आश्रम में आता ही रहा । फिर कभी उसको वह बीमारी नहीं आयी । मैंने जादू नहीं किया, बड़ बादशाह ने फूँक नहीं मारी, प्रणव के जप का चमत्कार था । सीधी तो बात थी । तस्य वाचकः प्रणवः । (पातंजल योगदर्शन) परमात्मा का वाचक ॐकार है । यह सब मंत्रों में राजा है । प्रोफेसर जे मॉर्गन ने खोजा है कि ॐकार के उच्चारण से पेट, सीने और मस्तिष्क में जो कम्पन्न होते हैं, आंदोलन होते हैं उनसे मृत कोशिकाएँ जीवित हो जाती हैं और जीवित कोशिकाओं में नवजीवन का संचार होता है तथा नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है । जिनको ईश्वर से लेना-देना नहीं, शरीर ही अपना है ऐसा मानते हैं, ऐसे देहाध्यासियों को भी ॐकार थेरेपी से बहुत फायदे होते हैं परंतु ॐकार का उच्चारण करने से तो ईश्वर मिलता है यह महापुरुषों का अनुभव है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13-15 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आपराधिक प्रवृत्ति छोड़कर डॉन बन गया भगत – पूज्य बापू जी


हम तो किसी का बुरा नहीं चाहते हैं । गुंडे का भी बुरा नहीं चाहते, उसका भी भला हो । संत क्यों किसी का बुरा चाहेंगे ! हाँ, किसी की गलती है तो भले हम डाँट देंगे पर डाँटेगे इसलिए कि उसका भला हो । उसकी बुराई के लिए हम नहीं डाँटते । आज से करीब 40 साल पहले की बात है । केरी पीठा अहमदाबाद में मेरा सत्संग था । ‘हरि ओऽऽऽ…म्…’ ऐसे करके सत्संग की शुरुआत होती थी । शाम को 5 बजे सत्संग शुरु हुआ, इतने में एक व्यक्ति काँच के गिलास में चाय भर के उसमें बोर्नविटा डाल के चम्मच से हिलाता हुआ आया, बोलाः “बाबा ! चाय पी लो, सत्संग फिर करना ।” मैंने कहाः “हम चाय नहीं पीते हैं ।” बोलाः “तुम्हारे लिये बनायी है और बोर्नविटा भी डाला, देखो कितनी बढ़िया है !” मैंने कहाः “हम नहीं पीते हैं, रखो ।” “लेकिन तुम्हारे लिए बनायी है न ! पी लो फिर सत्संग करना । अभी तो पब्लिक आ रही है, पी लो ।” वह खड़ा रहा । मुझे पता नहीं था कि वह डॉन है । इशारा करे तो दिनदहाड़े केरी पीठा मार्केट बंद करवा दे । सोडा की बोतलें धड़-धड़ धड़ धड़… उड़ने लग जायें ऐसा तूफान मचवा दे। उसका नाम था गुरेल रहजन । रहजन माने डॉन । वह डॉनों का भी बॉस था । उसने गिलास आगे रखा और बोलाः “अरे पी लो !” मैंने कहाः “बैठ जा !” अब उसको दम मार के बोलने वाला तो कोई मिला नहीं था । मैं बोला, ‘बैठ जा’ तो उसने यूँ (तिरछी) आँख दिखायी – अपना डॉन का रूप दिखाया । फिर सत्संग तो सुना किंतु बाजार में उसकी बेइज्जती हो गयी तो तिरछी आँख करके देखे । तो हमने भी तिरछी आँख करके कहाः “तिरछी कड़ी नज़र से क्या देखता है ? बैठ जा !” क्या पता उसकी कोई पुण्याई थी, वह चुप बैठ गया । बैठा तो ऐसा बैठा कि आखिर तक बैठा रहा और फिर डॉन का धंधा छोड़ के आश्रम में आने लगा । फिर सत्संग सुनते-सुनते उसको रंग लग गया । रसोई घर में सेवा, सत्संग में लोगों को बैठाने आदि की सेवा करने लगा । तो हम जो ठान लेते हैं फिर वह करके रहते हैं । हमने ठान लिया और उसे बैठा दिया तो वह ऐसा बैठ गया कि डॉन का धंधा छोड़ कर बैठ गया ! भगत बन गया । तो ऐसा कैसे होता है ? कि तुम्हारा अंतरात्मा ज्ञानस्वरूप है और उसमें अद्भुत योग्यताएँ अद्भुत बल छुपा है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

भगवान के पिताः मेरे गुरुदेव – पूज्य बापू जी


दृढ़ संकल्प के आगे झुकता प्रारब्ध मेरे गुरुदेव बड़े दृढ़ संकल्पवान थे । गुरुदेव जब घर में थे तब उनको एक ज्योतिषी ने बोलाः “आपको 3 बेटियाँ होंगी, 2 जमाई होंगे, एक जमाई हरामी होगा, ऐसा होगा…” परंतु गुरुदेव ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का पक्का इरादा किया तो न एक बेटी हुई, न 3 बेटियाँ हुईं, न 2 जमाई हुए… सब देखते ही रह गये ! ‘भगवान हमारा बेटा लगता है’ मेरे गुरुदेव बड़े विनोदी थे । मुंबई में समुद्र तट पर घूमने गये । वहाँ एक ज्योतिषी किसी का हाथ देखकर कुछ-का-कुछ बता रहा था तो मेरे गुरुदेव भी ज्योतिषी के भगत बन गये । हाथ जोड़कर बैठ गये । बोलेः “महाराज ! मेरा हाथ देखो । भगवान कब मिलेगा ?” ज्योतिषी बोलाः “बाबा ! तुमने मेहनत तो बहुत की है, भगवान के लिए तड़पते हो ।” तो साँईँ जी ने सिर हिलाया । ज्योतिषीः “थोड़ी मेहनत और करोगे तो इस जन्म में नहीं तो दूसरे जन्म में तो भगवान तुम्हें मिल ही जायेगा ।” गुरुदेव ने कहाः “अच्छा, अच्छा ।” सेवक को बोलाः “इनको दक्षिणा दे दो ।” ज्योतिंषी ने देखा कि ‘बाबा के ऊपर मेरा प्रभाव पड़ गया है ।’ कहीं ज्योतिषी का बुरा न हो जाय इसलिए बाबा ने कहाः “हाथ की रेखा से भगवान के मिलने का कोई संबंध नहीं होता । भगवान मेरे को इस जन्म में नहीं तो दूसरे जन्म में मिलेगा !… यह बंडल मारने की बात है फिर भी दक्षिणा ले लो । जिसको तुम भगवान बोलते हो वह हमारा बेटा लगता है ।” जो भी तुम्हारे भगवान हैं वे ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के मानसपुत्र होते हैं । ‘ओ मेरे बेटे बरसात बंद कर दे’ महापुरुषों का भगवान के प्रति कितना प्यार है कि भगवान को बेटे के रूप में मानते हैं तो भगवान बेटे की तरह उनके आदेश का पालन करते हैं । यह केवल कहने की बात नहीं है । आप अजमेर से पुष्कर जाओगे तो पुष्कर की चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते ‘ऋषि उद्यान’ का बोर्ड मिलता है । अंदर ऋषि दयानंद जी की कुटिया है । उसमें मेरे गुरुदेव जून-जुलाई के महीनों में रहते थे, बाद में मैं भी वहाँ उन्हीं दिनों में रहा हूँ । गुरुदेव वहाँ शाम को सत्संग करते थे । एक दिन शाम को बारिश आने की तैयारी थी, जरा-सी बरसात हुई लोग भागे परंतु कुछ लोग रुक गये । सत्संग पूरा हो गया, गुरुदेव अपनी कुटिया में गये । थोड़ी देर बाद गुरुदेव कुटिया से बाहर निकले, बोलेः “और लोग निकल गये, तुम लोग गये नहीं ?” बोलेः “साँईं ! बरसात बढ़ गयी है ।” कोई बड़बोला था, वह बोलाः “साँईं ! आप बोलते हैं न, भगवान तो हमारा बेटा है । अपने बेटे को बोलो बरसात बंद करे तो हम घर जायें ।” गुरुदेव आसमान की तरफ देखते हुए बोलेः “औ मेरे बेटे ! बरसात बंद कर दे ।” धड़ाक्-से बरसात बंद हो गयी और लोग घर भागे । उनके घर पहुँचते ही फिर से बारिश चालू हो गयी । यह घटित घटना है । यह अनुभव की बात उस समय जो लोग वहाँ उपस्थित थे उन्होंने स्मृति ग्रंथ ‘स्वामी लीलाशाह दर्शन’ में बतायी है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2022, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 358 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ