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Rishi Prasad 270 Jun 2015

सावधान व संगठित रहें, हौसला बुलंद रखें


भारत के हिन्दू संत-महापुरुषों को बदनाम करने की साजिश चल पड़ी है। संत कबीर जी, गुरु नानक जी, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, स्वामी विवेकानंद आदि संतों का कुप्रचार हुआ तो अब हमारा हो रहा है। मेरे को कोई फरियाद नहीं लेकिन ऐसा करने वालो ! आपको क्या मिलेगा ? जरा भविष्य सोचो। कोई चोर नहीं और आप उसको चोर कहते हैं तो आपको बड़ा भारी पाप लगता है। भइया ! तू भगवान को प्रार्थना कर तेरी बुद्धि में भगवान द्वेष नहीं, सच्चा ज्ञान दे दें। फिर तू सत्य की कमाई का उपयोग करेगा और तेरे बच्चों का भविष्य जहरी नहीं उज्ज्वल बनायेगा।
कुप्रचार के शिकार न हों
महात्मा बुद्ध को बदनाम करने वालों ने तो अपनी तरफ से पूरी साजिश की लेकिन वे कौन से नरकों में होंगे मुझे पता नहीं है, बुद्ध तो आपके, हमारे और करोड़ों दिलों में अभी भी हैं। ऐसे ही गाँधी जी के लिए अंग्रेजों के पिट्ठू कितना-कितना बोलते और कितना-कितना लिखते थे लेकिन गांधी बापू डटे रहे तो बेटे जी हार गये व भाग गये और बापू जी अब भी जिंदाबाद हैं।
जब साबरमती के बापू के लिए लोगों ने ऐसा-ऐसा बोला और वे अडिग रहे तो हम भी साबरमती के बापू जी हैं। हमारी तो किसी के प्रति नफरत नहीं है, द्वेष नहीं है और विदेशी ताकतों को भी हम कभी बुरे शब्द नहीं कहते हैं। अगर ये किसी दूसरे धर्म के गुरुओं के पीछे ऐसा पड़ते तो आज देश की क्या हालत हो जाती ! हम सहिष्णु व उदार होते-होते अपनी संस्कृति पर कुठाराघात करने दे रहे हैं। अब हम सावधान रहेंगे, सहिष्णु तो रहेंगे लेकिन सूझबूझ से और आपस में संगठित रहेंगे। हमारे भारत में अशांति फैला दें ऐसे तत्वों के चक्कर में हम नहीं आयेंगे, कुप्रचार के शिकार नहीं बनेंगे।
अपने अनुभव का आदर करें
किसी पर लांछन लगाना तो आसान है लेकिन संत-महापुरुषों का प्रसाद लेकर पना बेड़ा पार करना तो पुण्यात्माओं का काम है। इतने-इतने लांछन लगते हैं फिर भी मुझे दुःख होता नहीं और सुख मिटता नहीं। संतों के संग से दूर करने वाला वातावरण भी खूब बन रहा है। न जाने कितने-कितने रूपये देकर चैनलों के द्वारा फिल्में, कहानियाँ, आरोप ऐसी-ऐसी कल्पना करके बनाया जाता है कि लगता है कि संत ही बेकार हैं, करोड़ों रुपये लेकर जो दिखाते हैं, कुप्रचार करते हैं वे तो सती-सावित्री के हैं, उनके पास तो दूध का धोया हुआ सब कुछ है और गड़बड़ी है तो सत्संगियों में और संतों में है, ऐसा कुप्रचार भी खूब होता है। लेकिन भाई ! जिनकी बीमारियाँ मिट जाती हैं, जिनके रोग-शोक मिट जाते हैं, वे कुप्रचार के शिकार नहीं होते।
सलूका-मलूका संत कबीर जी के शिष्य थे। उन्हें कबीर जी ने कहाः “भई ! वह वेश्या बोलती है कि मैं उसके बिस्तर पर था, दारूवाला बोलता है कि मैंने दारू पिया… ये सब बोलते हैं, सब लोग जा रहे हैं, तुम क्यों नहीं जाते ?”
सलूका-मलूका कहते हैं- “महाराज ! हमारे मन, बुद्धि और तन की सारी बीमारियाँ यहाँ मिटी हैं। हम आपके सत्संग का त्याग करके नहीं जाना चाहते। लोग चाहे आपके लिए कुछ भी बोलें, लल्लू-पंजू भक्त कुप्रचार सुनकर कुप्रचार के शिकार हो जायें तो हो जायें लेकिन महाराज ! हमें आप रवाना मत करिये।”
कबीर जी ने कहाः “इतनी समझ है तुम्हारी तो बैठो।” सत्संग सुनाते-सुनाते कबीर जी ने ऐसी कृपादृष्टि की कि सलूका-मलूका को भावसमाधि में प्रेमाश्रु आने लगे। भगेड़ू भागते रहे और कौन से गर्भों में कहाँ-कहाँ भगे भगवान जानें !
मैं सत्य का पक्षधर हूँ, कानून और व्यवस्था का पक्षधर हूँ। समाज की सुन्दर व्यवस्था रहे इससे मैं प्रसन्न होने वाला व्यक्ति हूँ फिर भी क्या-क्या कुप्रचार किये जा रहे हैं, कुछ-की-कुछ सामग्री जुटाये जा रहे हैं !
वे समाज के साथ बहुत जुल्म करते हैं…..
जिनके विचार प्रखर भगवद्-ज्ञान के भगवत्-प्रसाद के हैं, ऐसे लोग भी सावधान नहीं रहते और जिस किसी के हाथ का खाते हैं, जिस किसी से हाथ मिलाते हैं तो ऐसे भक्तों की भक्ति भी दब जाती है। इसलिए संग अच्छा करना चाहिए, नहीं तो निःसंग रहना चाहिए। निंदकों की बात सुनकर, कभी हलके वातावरण में रहकर कइयों की श्रद्धा हिल जाती है, शांति और भक्ति क्षीण हो जाती है। जब सत्संगियों के वातावरण में आते हैं तो लगता है कि ‘अरे, मैंने बहुत कुछ खो दिया !’ इसलिए कबीर जी सावधान करते हैं-
कबीरा निंदक न मिलो, पापी मिलो हजार।
एक निंदक के माथे पर, लाख पापिन को भार।।
निंदक ऐसे दावे से बोलते हैं कि लगेगा, ‘अरे यही सत्य जानता है, हम इतने दिन तक ठगे जा रहे थे।’ हजारों-हजारों जन्मों के कर्म-बंधन काटकर ईश्वर से मिलाने वाली श्रद्धा की डोर जो काटते हैं, वे समाज के साथ बहुत-बहुत जुल्म करते हैं। उनको हत्यारा कहो तो हत्यारे नाराज होंगे। हत्यारा तो एक-दो को मारता है इसी जन्म में लेकिन श्रद्धा तोड़ने वाला तो कई जन्मों की कमाई नाश कर देता है।
कैसे रखें हौसला बुलंद ?
विदेशी ताकतें तो वैसे ही साधु-संतों और हमारी संस्कृति को तोड़कर देश को तोड़ने के स्वप्न देख रही है और आप उस आग में घी डालने की गलती क्यों करते हो भाई साहब ? न लड़ो न लड़ाओ। हौसला बुलंद रखो ! हौसला बुलंद उसको कहा जाता है कि न दुःखी रहो न दूसरे को दुःखी करो, न टूटो न दूसरों को तोड़ो, न खुद डरो न दूसरों को भयभीत करो, न खुद बेवकूफ बनो न दूसरों को बेवकूफ बनाओ। यह वैदिक वाणी के आधार से मैं आपको बता रहा हूँ। मैं तो साँपों के बीच रहा हूँ, रीछों के साथ मुलाकात हुई और उनके प्रति भी मेरा सद्भाव रहा तो मनुष्य के प्रति, किसी पार्टी के प्रति मैं क्यों कुभाव करूँगा ? कुभाव करने से मेरा हृदय खराब होगा। मैं तो सद्भाव की जगह पर बैठा हूँ, सत्संग की जगह पर बैठा हूँ इसलिए मेरा सत्य बात कहने का कर्तव्य है, अधिकार है कि सबको मंगल की बात कह दूँ। हम नहीं चाहते कि कोई उसको उलटा समझकर परेशान हो। हमारी इस सूझबूझ का आप आदर करेंगे तो आपके जीवन में बहुत कुछ ऊँचाइयाँ आ सकती हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 270
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एक सी कूटनीतिक साजिशों के तहत हिन्दू संतों पर प्रहार


कर्नाटक के श्री रामचन्द्रपुर मठ के प्रमुख जगदगुरु शंकराचार्य श्री राघवेश्वर भारती जी के खिलाफ लगाये गये दुष्कर्म के सभी आरोपों को गत 31 मार्च को बेंगलुरु सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया। एक 51 वर्षीय महिला ने राघवेश्वर भारती जी पर उसके साथ 161 से अधिक बार दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था।

श्री राघवेश्वर जी का मामला आँखें खोल देने वाला एक और प्रत्यक्ष उदाहरण है कि किस प्रकार छुपे तौर पर हिन्दुत्व को नष्ट करने का एक विशाल कुचक्र चलाया जा रहा है।

मा. न्यायाधीश श्री जी.बी. मुदीगौदर ने कहा कि “आरोपी(स्वामी राघवेश्वर जी) के खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है। यह मामला आरोपी को महज उत्पीड़ित और शर्मिन्दा करने की एक कोशिश के सिवाय और कुछ भी नहीं है।”

श्री राघवेश्वर जी के अलावा ऐसे कई हिन्दू संत हैं, जिन्हें झूठे आरोपों के तहत बिना किसी ठोस सबूत के वर्षों से कारागृहों में रखा गया है। पूज्य बापू जी पर चलाये जा रहे मामलों में ऐसे कई मुद्दे हैं जो राघवेश्वर भारती जी के मामले से समानता रखते हैं। आइये, उन पर दृष्टि डालें-

एफ आई आर दर्ज करवाने के पूर्व अभियोक्त्री (आरोप लगाने वाली महिला) के पति द्वारा श्री राघवेश्वर जी से 3 करोड़ रूपये की फिरौती माँगी गयी थी। इस मामले में दम्पत्ति को गिरफ्तार कर पूछताछ भी की गयी थी। इसी प्रकार 8 अगस्त 2008 को षड्यंत्रकारियों ने आश्रम में बापू जी के नाम से फेक्स किया था कि ‘एक सप्ताह के अंदर हमें 50 करोड़ रुपये दे दो अन्यथा तुम और तुम्हारा परिवार जेल की हवा खाने को तैयार हो जाओ। बनावटी मुद्दे तैयार हैं, तुम्हें पैसों की हेराफेरी में, जमीनों एवं लड़कियों के झूठे केसों में फँसायेंगे।’ एक स्टिंग ऑपरेशन में राजू चांडक नामक साजिशकर्ता ने इसी प्रकार के षड्यंत्र रचने की बात को स्वीकारा भी है।

श्री राघवेश्वर जी के मामले में न्यायालय के आदेश में उल्लेख किया गया है कि ‘आरोप लगाने वाली महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह बीच में छः महीने से भी अधिक समय तक मठ से सम्बंधित गतिविधियों से दूर रही है। यदि उसके द्वारा लगाये गये आरोप के मुताबिक उसे सचमुच यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था तो उसे पुनः मठ में वापिस नहीं आना चाहिए था। महिला का यह कृत्य उसके गुप्त, स्वार्थी उद्देश्य और स्वामी जी की छवि को धूमिल करने के लिए रची गयी सुनियोजित, भयावह रूपरेखा को स्पष्ट करता है’

पूज्य बापू जी पर आरोप लगाने वाली सूरत की महिला ने स्वयं एफ आई आर में लिखवाया है कि जब वह आश्रम में रहती थी उस दौरान उसका दूसरे शहरों में आना-जाना चालू रहता था, यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी वह कई बार गयी। अगर उसके साथ ऐसी कोई घटना घटती तो वह आश्रम में वापस क्यों आती ?

वह कहती है कि ‘उसके साथ सन् 2001 में तथाकथित घटना घटी। 2002 में उसकी छोटी बहन आश्रम में रहने के लिए आयी थी।’ अगर किसी लड़की के साथ कहीं बलात्कार हुआ हो तो क्या वह चाहेगी कि उसकी छोटी बहन भी ऐसी जगह पर रहने आये ? कदापि नहीं।

श्री राघवेश्वर जी के मामले के फैसले में एक बिंदु यह भी लिखा है कि ‘आरोपी को तो सिर्फ इस आधार पर ही बरी कर देना चाहिए कि कथित पहली घटना की तारीख से 3 वर्ष से भी अधिक की देरी के बाद इस मामले को दर्ज कराया गया एवं कथित तौर पर मामले से जुड़ी सामग्रियों को 82 दिनों बाद पेश किया गया।’

इस प्रकार अगर समयावधि किसी मामले में निर्दोषता की सिद्धि में इतनी महत्वपूर्ण है तो पूज्य बापू जी के ऊपर अहमदाबाद में और नारायण साँईं जी पर सूरत में जो मामले थोपे गये हैं, उनमें तो तथाकथित घटना 12 और 11 साल बाद एफ आई आर दर्ज करायी गयी है। ऐसे में अहमदाबाद व सूरत मामलों में पूज्य बापू जी व नारायण साँईं जी को जमानत तक नहीं मिल पायी है।

राघवेश्वर भारती जी के मामले में अभियोजन (आरोपकर्ता) पक्ष के गवाहों के बयान और अभियोक्त्री के स्वयं के बयान खुद उऩ्हीं के पक्ष के खिलाफ बोलते हैं।

इसी प्रकार बापू जी के अहमदाबाद मामले में अभियोक्त्री ने गांधीनगर कोर्ट में एक याचिका में कहा था कि “मैंने दबाव में आकर आरोप लगाया था, मैं अपना बयान बदलकर सत्य उजागर करना चाहती हूँ।” इसके अलावा पूज्य श्री के जोधपुर मामले की मुख्य गवाह सुधा पटेल ने जोधपुर सत्र न्यायालय में बताया कि ‘पुलिसवालों ने मेरे बयान लिये थे, यह गलत (झूठी बात) है। आज से पहले न मैं कभी जोधपुर आयी और न ही कभी कहीं बयान दिये थे।’

राघवेश्वर जी के मामले में महिला के मोबाइल कॉल डिटेल रजिस्टर और प्रत्यक्ष गवाह के बयान से पता चलता है कि तथाकथित घटना के समय महिला वहाँ थी ही नहीं।

ठीक उसी प्रकार पूज्य बापू जी के जोधपुर मामले में न्यायविद् डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलासा किया कि ‘लड़की के फोन रिकॉर्डस से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं ! उसी समय बापू जी सत्संग में थे और आखिर में मँगनी के कार्यक्रम में व्यस्त थे। वे भी वहाँ कुटिया में नहीं थे।”

इस प्रकार के सभी पहलुओं को देखने के बाद केवल आश्चर्य ही किया जा सकता है कि पूज्य बापू जी को पिछले 2 वर्ष 8 महीनों से अधिक समय से अभी तक जमानत तक क्यों नहीं मिल पायी ?

हिन्दू संतों पर झूठे आरोप लगवाकर उन्हें अपराधी साबित करने के लिए लगभग एक सी नीति अपनाने वाले षड्यंत्र साफ देखे जा सकते हैं। भारतीयों को अपनी संस्कृति व देश के खिलाफ इस सिलसिलेवार अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को समझने के लिए बहुत सतर्क और विचारशील रहना होगा एवं संगठित होकर इसका प्रतिकार करना होगा।

संकलकः श्री रू. भ. ठाकुर

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2016, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 281

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244 साधक निर्दोष बरी


न्यायालय ने पुलिस को लगायी फटकार

गांधीनगर (गुज.) के जिला व सत्र न्यायालय ने वर्ष 2001 में गांधीनगर में आयोजित रैली के दौरान पुलिस के साथ कथित रूप से मारपीट के मामले में 11 अप्रैल 2016 के 244 साधकों को निर्दोष बरी कर दिया।

6 साल से अधिक समय के दौरान 122 गवाहों के बयान, जिरह एवं लम्बी बहस हुई। अदालत के अनुसार ‘अभियोजन पक्ष इस मामले में साधकों के खिलाफ कोई आरोप सिद्ध नहीं कर सका। आरोप पत्र में कई विसंगतियाँ हैं। घायलों की रिपोर्ट भी सही प्रतीत नहीं होती है।’ साथ ही न्यायालय ने साधकों के खिलाफ हिंसा व हत्या के प्रयास के आरोप के तहत मामला दर्ज करने पर पुलिस की खिंचाई भी की।

यह था मामला

गुजरात के एक अख़बार द्वारा किये जा रहे अनर्गल कुप्रचार के विरोध में 16 नवम्बर 2001 को गांधीनगर में एक प्रतिकार रैली निकाली गयी थी। इस रैली में कुप्रचारकों के सुनियोजित षड्यंत्र के तहत असामाजिक तत्त्वों ने साधकों जैसे कपड़े पहनकर भीड़ में घुस के पथराव किया, जिसके प्रत्युत्तर में पुलिस ने साधकों-भक्तों एवं आम जनता पर, जिनमें अनेक महिलाएँ, वृद्ध व बच्चे भी थे, न सिर्फ बुरी तर लाठियाँ बरसायीं बल्कि आँसू गैस के गोले छोड़े और उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया।

दूसरे दिन पुलिस ने अहमदाबाद आश्रम पर अचानक धावा बोल दिया। आश्रम में भारी तोड़फोड़ की तथा साधकों को लाठियों और बंदूक के कुंदों से बुरी तरह पीटते हुए दौड़ा-दौड़ा कर पुलिस की गाड़ियों में ठूँस के जेल में डाल दिया। उन्हें 24 घंटे से ज्यादा समय तक गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा गया तथा शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया।

इस प्रकार षड्यंत्रकारियों द्वारा बद-इरादतन उपजायी गयी इस घटना के तहत निर्दोष साधकों पर आई. पी. सी. 307 (हत्या का प्रयास) व अन्य कई गम्भीर धाराओं के अंतर्गत पुलिस ने मामला दर्ज किया था।

साधकों में बच्चे , महिलाएँ व वृद्ध साधक भी शामिल थे, जिन्हें कई सप्ताह तक जेल में रहना पड़ा। पुलिस रिमांड के दौरान एवं जेल में भी खूब शारीरिक व मानसिक यातनाएँ सहन करनी पड़ीं।

गौरतलब है कि जब इन निर्दोष साधकों के ऊपर आरोप लगाया गया था, उस समय मीडिया ने इस घटना को अत्यंत विकृत रूप देकर खूब बढ़ा चढ़ा के दिखाया गया था तथा एड़ी चोटी का जोर लगाकर साधकों को गुंडे, उपद्रवी, खूनी सिद्ध करने में एवं आश्रम व पूज्य बापू जी को समाज में बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन अब जबकि सच्चाई सामने आ चुकी है तो कुछ गिने-चुने मीडिया को छोड़कर अन्य ने इस खबर को समाज तक पहुँचाने में कोई रूचि नहीं दिखायी। क्या यही है मीडिया की निष्पक्षता ? इससे तो सिद्ध होता है कि ऐसा मीडिया भी असामाजिक तत्त्वों से मिलकर समाज को गुमराह करता है। ऐसे मीडिया का सामूहिक बहिष्कार करना समाज का नैतिक कर्तव्य है।

जब असामाजिक तत्व पुलिस और मीडिया का सहयोग लेकर इतनी बड़ी आध्यात्मिक संस्था के निर्दोष साधकों को भी यातना दे सकते हैं, तब आम आदमी का कितना शोषण होता होगा यह विचारणीय है।

इस सबमें आश्रम एवं निर्दोष साधकों ने जो यातनाएँ सहीं, उन्हें जो आर्थिक व सामाजिक क्षति भुगतनी पड़ी उसकी भरपाई क्या कभी भी हो पायेगी ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2016, पृष्ठ संख्या 10,29 अंक 281

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