आत्मा-परमात्मा को जोड़ने का सिमकार्डः गुरुमंत्र

आत्मा-परमात्मा को जोड़ने का सिमकार्डः गुरुमंत्र


पूज्य बापू जी

संत कबीर जी ने कहाः

सदगुरु मेरा शूरमा, करे शब्द की चोट।

मारे गोला प्रेम का, हरे भरम की कोट।।

जब सदगुरु के द्वारा मंत्रदीक्षा मिलती है तो आधी साधना तो उसी दिन सम्पन्न हो जाती है। जैसे तुम्हारे घर बिजली का साधारण तार आये या मोटा तार भी हो लेकिन उतना फायदा नहीं होगा परंतु जब वही तार बिजली-घर (पावर हाउस) के खम्भे से जुड़कर आता है तो वह चाहे पतला तार हो फिर भी तुम्हारे घर का अँधेरा मिटा देगा। तुम पानी गर्म करना चाहते हो तो हीटर जोड़ दो और ठंडा करना चाहते हो तो उन छेड़ों को फ्रिज से जोड़ दो। छेड़े तो साधारण दिख रहे हैं लेकिन उनमें पावर हाउस का  प्रवाह है। ऐसे ही गुरुमंत्र दिख रहा है साधारण शब्द लेकिन सदगुरु के आत्मा-परमात्मा का उसके साथ प्रवाह जुड़ा है फिर चाहे तुम योगी बनो, चाहे ध्यानी बनो, चाहे प्रसिद्धि बनो, वह प्रवाह काम देता है। बाहर की विद्युत लाने के लिए तो तुम्हारे घर में बिजली घर से जुड़े हुए छेड़े चाहिए लेकिन विज्ञान ने भी विकास कर लिया है, अभी तो मोबाइल फोन से बात होती है, बिना छेड़े के भी छेड़े जुड़ जाते हैं। जब यंत्र के युग में छेड़े जोड़े बिना भी छेड़े जुड़ जाते हैं तो हमारा प्राचीन मंत्र-विज्ञान तो उससे बहुत ज्यादा विकसित है, जरूरी नहीं कि बाहर के तार दिखें।

गुरु मंत्रदीक्षा देते समय ऐसी कुछ आध्यात्मिक तरंगे, आध्यात्मिक तार जोड़ देते हैं कि शिष्य हजार मील दूर हो, दस हजार मील दूर हो और शिष्य को कोई समस्या है, कोई प्रश्न है या कोई मुसीबत आ गयी है तथा वह गुरु का सच्चे हृदय से सहज चिंतन करता है तो उसी समय वहाँ सूक्ष्मरूप से मदद पहुँच जाती है। जैसे मोबाइल छोटा-सा यंत्र है, यहाँ बटन दबाओ तो अमेरिका में रिंग बजती है और बात हो सकती है। यह तो यंत्र है, यंत्र से तो मंत्र की बड़ी महान शक्तियाँ हैं।

ये मंत्र-विज्ञान और संकल्पशक्ति आपके अंतःकरण में भी बीजरूप में छुपी है। जैसे वटवृक्ष के बीज में वटवृक्ष छुपा है, ऐसे ही जीवात्मा में सारे ब्रह्माण्ड का परमात्मा छुपा है। बीज को तोड़ोगे, उसका जर्रा-जर्रा मेज पर रख दोगे, कतरा-कतरा कर दोगे और सूक्ष्मदर्शक (माइक्रोस्कोप) उठाकर देखोगे तो भी उसमें पत्ते नहीं दिखेंगे, जटाएँ नहीं दिखेंगी, डालियाँ नहीं दिखेंगी, फल नहीं दिखेंगे, फूल नहीं दिखेंगे लेकिन उसमें सब छुपा है, बस, उसे धरती मिल जाय, खाद और पानी मिल जाय, थोड़ी देखभाल मिल जाय। ऐसे ही तुमने साधना की तो धरती मिल रही है और सत्संग व संयम का खाद-पानी भी तुम पा रहे हो। कभी-कभार गुरु के द्वार आ जाओ देखरेख करवाने के लिए। कहीं गलती होगी तो गुरु की कड़ी नजर होगी और ठीक होगा तो गुरु की प्रसन्नता से पता चल जायेगा कि सही मार्ग में आगे बढ़ रहे हैं, वास्तव में उन्नत हो रहे हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2014, पृष्ठ संख्या 23, अंक 259

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *