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Brahmcharya

सफल व महान बनने की कुंजीः संयम


हे नौजवानो ! जीवन की नींव है संयम-सदाचार । संयम नहीं तो फिर अच्छे विद्यार्थी, अच्छे नागरिक भी नहीं बन सकते । संयम से एकाग्रता आदि सद्गुण विकसित होते हैं । संयम ही सफलता की सीढ़ी है । भगवान को पाना हो, सिद्धि-प्रसिद्धि पाना हो, कुछ कर दिखाना हो – सभी में इसकी आवश्यकता है । यह सबका मूल है । मनःशक्ति एवं स्मरणशक्ति की, महान बनने की महान कुंजी संयम ही है । इसमें अदभुत सामर्थ्य है । इसके बल से तुम संसार के सभी कार्य सफलतापूर्वक कर सकते हो । जितने भी महापुरुष इस दुनिया में हैं या हो चुके हैं, उनका जीवन संयमपूर्ण रहा है ।

आज हमारी युवा पीढ़ी को षड्यंत्रकारी झकझोर रहे हैं । हमारी स्वर्णिम संस्कृति को वे अत्याचारी नष्ट करना चाहते हैं । वे देश के भावी कर्णधारों को भटका रहे हैं । उन्हें मादक द्रव्य, अश्लील साहित्य, विदेशी चैनलों व गंदी फिल्मों के माध्यम से असंयमी, कुसंगी व दुर्व्यसनी बना रहे हैं ताकि देश की रीढ़ की हड्ड़ी टूट जाय । वे नवयुवकों को पथभ्रष्ट करके हमारी सच्चरित्रता-प्रधान संस्कृति पर कुठाराघात करके उसे भी कलंकित कर डालना चाहते हैं ताकि वे एक बार फिर हमारे ऊपर शासन कर सकें, देश व समाज के ऊपर अत्याचार कर सकें । आज हर युवा को ऐसा संकल्प करना चाहिए कि ‘हम विदेशी ताकों की इस गंदी, अनैतिक व अमानवीय कुचाल को कभी सफल नहीं होने देंगे । अपना जीवन संतों व शास्त्रों के अनुरूप बनायेंगे ।’

हे विद्यार्थियो ! हे वीरो ! याद करो अपनी उस वैदिक परम्परा को, उस गौरवमय अतीत को, नैतिक आध्यात्मिक वैभव को और अपने चरित्र व संयमनिष्ठा से विफल कर दो इन मलिन उद्देश्य रखने वालों के दुःस्वप्न को । मानसिक परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ दो, विदेशी चैनलों, सिनेमा और गंदे साहित्य से दूर रहो । अपनी गौरवमयी भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को अपना के संयमी, सदाचारी व चरित्रवान बन अपने देश की खोयी हुई गरिम को एक बार फिर से स्थापित कर दो । आलस्य-प्रमाद से रहित, स्फूर्तिदायक संयम, नियम, ब्रह्मचर्य आदि से ओतप्रोत हो शांतिमय जीवन बनाओ ।

हे विद्यार्थी ! तू निष्कामता, प्रसन्नता, असंगता की महक फैलाता जा । असंयम, निर्लज्जता, अश्लीलता, पाश्चात्य अंधानुकरण को छोड़कर संयम, सदाचार व सेवा के ऊँचे मानवीय आदर्शों को अपना के अपनी संस्कृति की मधुर रसमयी सुवास को विश्वभर में महका । सभी युवक-युवतियाँ तेजस्वी हों, संयम-ब्रह्मचर्य की महिमा समझें ।

तुम्हारे भीतर असीम सामर्थ्य का भंडार छुपा पड़ा है । बस, आत्मज्ञानी महापुरुषों के सत्संग व सत्साहित्य से, उनकी करूणा-कृपा से संयम का पाठ पढ़ लो, फिर देखो तुम्हारा जीवन कैसा चमकता है !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 20 अंक 316

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युवाओं की एक बड़ी समस्या व उसका समाधान


भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज

कई नौजवान यह पूछ रहे हैं कि हम प्रयत्न करते हुए भी स्वप्नदोष को रोक नहीं पाते हैं, इसके लिए क्या करना चाहिए ?’ पहले यह समझना चाहिए कि स्वप्नदोष क्या है ? स्वप्नदोष का अर्थ है नींद में स्वयं को रोक न पाना तथा वीर्य का पात होना अथवा निकल जाना, जिसे एहतिलाम भी कहते हैं। कई नौजवान भूलवश या कुसंग में पड़कर गुप्त ताकत को व्यर्थ गँवाने की आदत डालते हैं तो कई थोड़ा आनंद लेने हेतु अपनी अनमोल वस्तु वीर्य हाथ द्वारा व दूसरी बुरी आदतों द्वारा व्यर्थ बरबाद करते हैं। उसके बाद धीरे-धीरे स्वप्नदोष होना शुरु होता है, जिसमें पहले तो रात को कभी-कभी स्वप्नदोष होता है परंतु फिर सप्ताह में कोई दिन खाली नहीं जाता है।

बच्चे पैदा करने वाली शक्ति को बचपन में ही नष्ट करने से कमर, नसें, दिल, दिमाग, आँतें आदि कमजोर होने से भोजन पूरी तरह हजम नहीं होता। फिर आजकल का समय तो ऐसा आ गया है कि बीमार होते हुए भी सारा दिन दुकान आदि पर बैठे रहते हैं। सुबह-शाम एक-दो मील पैदल चलना या व्यायाम करना भी लोगों से नहीं होता, और तो और रात को सोने से कुछ समय पहले घर के आँगन में ही घूमना फिरना भी नहीं होता, जिस कारण अच्छी नींद नहीं आती है। परंतु फिल्में व नाटक देखना, अश्लील गाने सुनना, रजोगुणी राग सुनना, गंदी तस्वीरें देखना, अश्लील बातें करना व उन्हें बार-बार दोहराना, अपने मन व दिमाग में काम-वासना की बातें सोचते रहना अथवा मासूम बच्चों के दिलों पर ऐसी बुरी बातों का बीज बोना ही अपना कर्तव्य समझ रहे हैं। आजकल सोते समय सबको बिस्तर नर्म चाहिए तथा भोजन भी तामसी चाहिए, फिर यदि स्वप्नदोष हुआ तो कौन सी बड़ी बात है ? स्वप्नदोष को रोकने के लिए पूरे-पूरे सदाचार की आवश्यकता है। कहावत है कि संग (सत्संग) तैरावे, कुसंग डुबोवे। कुसंग करने के कारण व्यक्ति न सिर्फ बदनाम होता है बल्कि बीमार भी होता है, उसे गुप्त रोग होते हैं। व्यर्थ, अश्लील पुस्तक पढ़ने व चित्र देखने से उनका मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है अतः घर में सुंदर धार्मिक पुस्तकें व महात्माओं के, संयमी पुरुषों के चित्र लगाने चाहिए, जिससे सुंदर विचार प्रकट हों। संगदोष अर्थात् बुरे संग ने बड़े-बड़ों को बरबाद कर दिया है। याद रखना चाहिए कि अच्छा संग वह वस्तु है जो मनुष्य को देवता बना देती है तथा कुसंग मनुष्य को हैवान से भी बुरा बना देता है। हम जो बुरा व्यवहार करते हैं, उससे न सिर्फ स्वयं के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी परेशानी पैदा करते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2018, पृष्ठ संख्या 20 अंक 308

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मन को शान्त करने के उपाय-पूज्य बापू जी


किसी भी प्रकार का व्याधि होने पर उस व्याधि की औषधि लेने के साथ मन को भी शान्त करने के प्रयास करने चाहिए। वर्तमान समय में बहुत सारे रोगों का कारण अशांत मन है। स्वप्नदोष, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिक धर्म, अनियंत्रित रक्तदाब (Uncontrolled B.P.), मधुमेह (Diabetese), दमा, जठर में अल्सर, मंदाग्नि, अम्लपित्त (Hyper Acidity), अतिसार, अवसाद (Depression), मिर्गी, उन्माद (पागलपन) और स्मरणशक्ति का ह्रास जैसे अनेक रोगों का कारण मन की अशांति है।

चित्त (मन) में संकल्प-विकल्प बढ़ते हैं तो चित्त अशांत रहता है, जिससे प्राणों का लय अच्छा नहीं रहता, तालबद्ध नहीं रहता। अनेक कार्यों में हमारी असफलता का यही कारण है।

हमारे देश के ब्रह्मवेत्ता, जीवन्मुक्त संतों ने मन को शांत करने के विभिन्न उपाय बतलाये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख, चुनिंदा उपाय इस प्रकार हैः

1.उचित आहारः मन को वश करने के लिए, शांत करने के लिए सर्वप्रथम आहार पर नियंत्रण होना आवश्यक है। जैसा अन्न खाते हैं, हमारी मानसिकता का निर्माण भी वैसा ही होता है। इसलिए सात्त्विक, शुद्ध आहार का सेवन करना अनिवार्य है। अधिक भोजन करने से अपचन की स्थिति निर्मित होती है, जिससे नाड़ियों में कच्चा रस ‘आम’ बहता है, जो हमारे मन के संकल्प-विकल्पों में वृद्धि करता है। फलतः मन की अशांति में वृद्धि होती है। अतएव भूख से कम आहार लें। भोजन समय पर करें। रात को जितना हो सके, अल्पाहार लें। तला हुआ, पचने में भारी व वायुकारक आहार के सेवन से सदैव बचना चाहिए। साधक को चाहिए कि वह कब्ज का निवारण करके सदा ही पेट साफ रखे।

2.अभ्यास, वैराग्य व ब्रह्मचर्यः भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैः

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।

अभ्यास और वैराग्य से मन शान्त होता है। वैराग्य दृढ़ बनाने के लिए इन्द्रियों का अनावश्यक प्रयोग न करें, अनावश्यक दर्शन-श्रवण से बचें। समाचार पत्रों की व्यर्थ बातों व टी.वी., रेडियो या अन्य बातों में मन न लगायें। ब्रह्मचर्य का दृढ़ता से अधिकाधिक पालन करें।

3.आसन-प्राणायामः इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है। प्राण जितने अधिक सूक्ष्म होंगे, मन उतना ही अधिक शांत रहेगा। प्राण सूक्ष्म बनाने के लिए नियमित आसन-प्राणायाम करें। पद्मासन, सिद्धासन, पादपश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन, मयूरासन, ताड़ासन, वज्रासन एवं अन्यान्य आसनों का नियमित अभ्यास स्वास्थ्य और एकाग्रता के लिए हितकारी है, सहायक है। आसन-प्राणायाम के 25-30 मिनट बाद ही किसी आहार अथवा पेय पदार्थ का सेवन करें। प्राणायाम का अभ्यास खाली पेड़ ही करें अथवा भोजन के 3-4 घंटे के बाद ही करें। प्राणायाम का अभ्यास आरम्भ में किन्हीं अनुभवनिष्ठ योगी महापुरुष के मार्गदर्शन में करना चाहिए।

(विभिन्न आसनों की सचित्र जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘योगासन’। – संकलक)

4.श्वासोच्छवास की गिनतीः सुखासन, पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर श्वासोच्छवास की गिनती करें। इसमें न तो श्वास गहरा लेना है और न हो रोकना है। केवल जो श्वास चल रहा है, उसे गिनना है। श्वास की गणना कुछ ऐसे करें-

श्वास अंदर जाय तो ‘राम….’, बाहर निकले तो ‘1’… श्वास अंदर जाय तो ‘आनंद’…. बाहर निकले तो ‘2’…. श्वास अंदर जाय तो ‘शांति’…. बाहर निकले तो ‘3’…. इस प्रकार की गणना जितनी शांति, सतर्कता से करेंगे, हिले बिना करेंगे उतनी एकाग्रता होगी, उतना सुख शांति, प्रसन्नता और आरोग्य का लाभ होगा।

5.त्राटकः मन को वश करने का अगला उपाय है त्राटक। अपने इष्टदेव, स्वास्तिक, ॐकार अथवा सदगुरु की तस्वीर को एकटक देखने का अभ्यास बढ़ायें। फिर आँखें बंद कर उसी चित्र का भ्रूमध्य में अथवा कंठ में ध्यान करें।

6.जप-अनुष्ठानः मंत्रजप का अधिक अभ्यास करें। वर्ष में 1-2 जपानुष्ठान करें तथा पवित्र आश्रम, पवित्र स्थान में थोड़े दिन निवास करें।

7.क्षमायाचना करना एवं शांत होनाः मन की शांति अनेक जन्मों के पुण्यों का फल है अतएव जाने-अनजाने में हुए अपराधों के बदले में सदगुरु या भगवान की तस्वीर अपने पास रखकर अथवा ऐसे ही मन-ही-मन प्रायश्चितपूर्वक उनसे क्षमा माँगना एवं शांत हो जाना भी एक चिकित्सा है।

8.आत्मचिंतनः आत्मचिंतन करते हुए देहाध्यास को मिटाते रहें। जैसे कि मैं आत्मस्वरूप हूँ…. तंदुरुस्त हूँ…. मुझे कोई रोग नहीं है। बीमार तो शरीर है। काम, क्रोध जैसे विकार तो मन में हैं। मैं शरीर नहीं, मन नहीं, निर्विकारी आत्मा हूँ। हरि ॐ…. आनंद…. आनंद….

9.प्रसन्नताः हर रोज प्रसन्न रहने का अभ्यास करें। किसी बंद कमरे में जोर से हँसने (देव-मानव हास्य प्रयोग) और सीटी बजाने का अभ्यास करें।

इन 9 बातों का जो मनुष्य दृढ़तापूर्वक पालन करता है, वह निश्चय ही अपने मन को वश में कर लेता है। आप भी अपने मन को सुखमय, रसमय, अनासक्त, एकाग्र करते हुए अपने सदा रहने वाले आत्मस्वरूप में जग जाओ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2018, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 308

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