Monthly Archives: March 2021

जैसा चिंतन वैसा जीवन – पूज्य बापू जी


एक लड़का था । उसको डॉक्टर बनने की धुन चढ़ी, यह अक्ल नहीं थी कि डॉक्टर बनने के बाद भी आखिर क्या !

वह 12वीं कक्षा पास करके मेडिकल क्षेत्र में जाना चाहता था तो उस क्षेत्र की किताबें उसने पढ़ना चालू कर दिया । जैसा पढ़ते हैं न, वैसा चिंतन होता है । तो किताबें पढ़ते-पढ़ते उसको कुछ महसूस हुआ तो वह डॉक्टर के पास गया ।

बोलाः “डॉक्टर साहब ! मैं भोजन करता हूँ तो शरीर भारी-भारी हो जाता है और पेट में कुछ गैस का गोला-सा हिलता है, हिलचाल भी होती है और ऐसा-ऐसा होता है ।”

तो डॉक्टर बहुत हँसे ।

वह बोलाः “डॉक्टर साहब ! मेरे को तकलीफ है और आप मेरा मजाक उड़ाते हैं !”

“बेटे ! तू कौन-सी किताब पढ़ता है ?”

“मैं मेडिकल स्टूडेंट बनना चाहता हूँ तो मेडिकल क्षेत्र की पुस्तक पढ़ रहा हूँ ।”

“कौन-सा चैप्टर (पाठ) तुझे अच्छा लगा ?”

“माइयाँ जब गर्भवती होती हैं न, तब क्या-क्या होता है वह चैप्टर मैंने कई बार पढ़ा ।”

“वह चैप्टर पढ़ते-पढ़ते तू मानसिक प्रेग्नेंट (गर्भवती) हो गया है । ये जो तू लक्षण बताता है कि पेट में ऐसा-ऐसा होता है, शरीर भारी होता है, उठने-बैठने में ऐसा होता है…. वह प्रेग्नेंट बाइयों के लक्षण पढ़-पढ़ के तेरे को ऐसा हो गया है वास्तव में तुझे ऐसी तकलीफ नहीं है ।”

तो आपका मन चैतन्य-स्वभाव से उठता है इसलिए जैसा आप संकल्प करते हैं, सोचते हैं वैसा महसूस होता है । अगर ब्रह्मस्वभाव का सोचो तो आप ब्रह्म हो जायेंगे लेकिन ‘मैं बीमार हूँ’ ऐसा सोचोगे तो बीमारी बढ़ेगी । ‘मेरा यह दुश्मन है, मेरी बेइज्जती हो गयी, मेरा फलाना हो गया… ‘ ऐसा सोचोगे तो फिर ऐसा ही महसूस होता है । यदि अपने पर कृपा करें तो अभी चक्कर बदले, नहीं तो यह जीव न जाने किन-किन मुसीबतों में किन-किन कल्पनाओं में, किन-किन भावनाओं में, किन-किन योनियों में, किन-किन ब्रह्माण्डों में भटकता हुआ आया है । ‘ऐसा बन जाऊँ, ऐसा हो जाय, वैसा हो जाय’ इसके चक्कर में न पड़ें । अपने आत्मा-परमात्मा को पाकर विभु-व्याप्त हो जाओगे, चिद्घन चैतन्य में एकाकार हो जाओगे । अपने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान का आश्रय जो लेते हैं वे लोग बाजी मार जाते हैं, बाकी के तो अधः जाते हैं, ऊर्ध्व जाते हैं – ऊपर के लोकों में जाते हैं, ऊर्ध्व जाते हैं, सुख में जाते हैं, दुःख में जाते हैं, बीच में आते हैं – भटकते हैं, ऐसे कई युग बीत गये । इसलिए प्रयत्न करके अपना आत्मा-परमात्मा का ज्ञान पाना चाहिए ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 7 अंक 339

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बालक कमाल का कमाल – पूज्य बापू जी


संत कबीर जी के पुत्र हो गये कमाल । वे छोटे थे, विद्यार्थी थे तब अपने मित्रों के साथ खेल खेलते थे । खेलकूद में कभी कोई हारे, कभी कोई जीते । तो जो जीतता था उसके दाँव बन जाते थे, जैसे कि 4 दाँव लेने बाकी हैं, 2 दाँव लेने बाकी हैं । खेलना पूरा होता तो जो हार जाय उसके ऊपर दाँव बाकी रह जाते । जैसे 4 दाँव रह गये तो हारने वाला घोड़ा बनता और जीतने वाला उस पर बैठकर इधर से उधर 4 बार घुमाता ।

एक बार खेलते-खेलते शाम हो गयी, मित्र हार गया और कमाल जीत गये । तो कमाल के दाँव बाकी रह गये । दूसरे दिन कमाल गये उस लड़के को बुलाने के लिए कि ‘चलो खेलें ।’

तो देखा, लड़का तो सोया हुआ है । उसके प्राण निकल गये थे, माँ, बाप, भाई, बहन – सब रो रहे थे ।

कमाल बोलेः “ऐ ! चल उठ, कैसे सो गया ! बड़ा चालाक है ! मेरे दाँव देने पड़ेंगे इसीलिए तू सो गया है ।”

माँ-बाप ने कहाः “नहीं… अब क्या बतावें, यह तो सदा के लिए सो गया है ।”

बोलेः “क्या सदा के लिए सो गया ! मेरे दाँव बाकी हैं, उन्हें चुकाने के बदले ऐसे नीं करने का ढोंग करता है । चल रे ढोंगी ! उठ जा !”

लड़के की माँ बोलीः “नहीं ढोंग तो क्या करता है, मेरा बेटा मर गया है ।”

बोलेः “ऐसे तो हम भी मर जायेंगे, इसमें क्या बड़ी बात है । यह तो ऐसे ही पड़ा है, मरा-वरा कुछ नहीं । मेरे दाँव देने बाकी हैं न, घोड़ा बनना पड़ेगा न 4 बार इसीलिए आँखें मूँद के सो गया । ऐसे तो मैं मैं भी सो जाऊँगा ।”

“नहीं बेटे ! देखो, ये हाथ भी ठंडे हो गये, सिकुड़ गये हैं, देखो ।”

कमालः “यह तो हम भी कर लेंगे ।”

तो कमाल सो गये और वे भी उस लड़के जैसे ही हो गये । शरीर ठंडा… उनको भी देखा तो एकदम मरा हुआ । तो पहले तो अपने बेटे के लिए रोते थे पर अब ‘हाय ! कबीर का बेटा भी यहाँ मरा । हाय रे हाय ! अब क्या होगा ?’ ऐसा करके उसके लिए भी रोने लगे ।

वैद्य आये, उन्होंने भी देखा कि यह तो मर गया है । अब अपने बेटे की तो याज्ञा निकालनी है लेकिन पराये बेटे की यात्रा इधर से कैसे निकालें ? बड़े चिंतित हुए कि ‘यह क्या हो गया ! हमारा बेटा मर गया उसका दुःख तो मिटा नहीं और यह दूसरे का बेटा भी यहाँ आ के मर गया !’

बोलेः “अरे ! कमाल ! तुम क्यों मरे, कैसे मरे ? बेटा ! उठो, उठो ।” तो कमाल उठ के बैठ गये, बोलेः “लो, हमने भी तो मर के दिखाया । ऐसे ही यह भी मर के दिखा रहा है ।”

“चल बे उठ तू भी ! हम उठ गये तो तू क्यों सोता है ? चल दाँव दे ।” ऐसा करके कमाल ने उसको उठाया तो खड़ा हो गया वह भी । और फिर कमाल ने उससे 4 दाँव लिये । उसके ऊपर बैठा, ‘घोड़ा-घोड़ा… घोड़ा-घोड़ा ।’ तो आत्मशक्ति कैसी है ! यह तो बचपन था कमाल का ।

किसी की मृत्यु तब कही जाती है जब स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर विचरण करता है । कमाल के मित्र का सूक्ष्म शरीर निकल के विचरण कर रहा था तो कमाल ने खुद भी अपना सूक्ष्म शरीर निकाल के जरा विचरण किया । जैसे आप गाड़ी में बैठो फिर गाड़ी से उतर आओ तो गाड़ी खड़ी है, जड़ है, फिर आप गाड़ी को चालू करो तो चल जाय । चालक का हट जाना मतलब गाड़ी मर गयी और चालक गाड़ी चालू करे तो उसमें जान आ गयी । ऐसे ही शरीर तो अपनी गाड़ी है, साधन है । अपना आत्मा है, चेतन हैं, शरीर को चलाने वाले हैं । शरीर मरने से हम नहीं मरते हैं, शरीर बीमार होने से हम बीमार नहीं होते हैं, मन को दुःख होने से हम दुःखी नहीं होते, हम नित्य हैं । ॐ… ॐ… ॐ…

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021 पृष्ठ संख्या 6,9 अंक 339

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ब्रह्मवृक्ष से उठायें स्वास्थ्य – लाभ – पूज्य बापू जी


पलाश के वृक्ष को ब्रह्मवृक्ष भी कहा जाता है ।

कफ व पित्त के रोग, चर्मरोग, जलन, अधिक प्यास लगना, रक्त-विकार, अधिक पसीना आना तथा मूत्रकृच्छ (रुक-रुक कर पेशाब आना) आदि रोग – इन सभी में पलाश के फूल आशीर्वादरूप हैं अर्थात् ये इन रोगों को भगाते हैं । ये मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति वर्धक हैं तथा पेशाब भी साफ लाते हैं ।

संक्रामक बीमारियों से सुरक्षाः पलाश के फूलों  के रंग से कपड़ा भिगोकर शरीर पर डालने से स्नायुमंडल प्रभावशाली होता है, संक्रामक बीमारियों से रक्षा होती है । जब से पलाश के फूलों से होली खेलना शुरु किया तब से हमारे कई साधकों से संक्रामक बीमारियाँ दूर भाग गयीं, करोड़ों-करोड़ों लोगों को फायदा हुआ ।

नाक से या पेशाब में खून आना अथवा आँखें जलनाः 10 ग्राम पलाश-फूल रात को पानी में भिगो दें और सुबह छान के उस पानी में थोड़ी मिश्री डालकर 50 मि.ली. पियें । गर्मी संबंधी बीमारियों को भगाने के लिए यह रामबाण उपाय है ।

पलाश के अन्य अंगों से स्वास्थ्य-लाभ

कृमि में- पलाश के बीज का 2 से 4 ग्राम चूर्ण दिन में 2 बार छाछ से 3 दिन तक लें । चौथे दिन 1-2 चम्मच अरंडी का तेल (आवश्यकता अनुसार मात्रा बढ़ा सकते हैं) लें, इससे कृमि मरकर निकल जाते हैं ।

मिर्गी व हिस्टीरिया में– पलाश के बीज को 5-6 घंटे तक पानी में भिगो दें, फिर पीस के रस निकालकर जरा-सा रस रोगी की नाक में डालें अथवा पलाश की जड़ का रस नाक में टपकायें तो मिर्गी, हिस्टीरिया आदि बीमारियों में लाभ होता है ।

टूटी हड्डियों को जोड़ने में– अस्थियों को जोड़ने में पलाश का गोंद बहुत काम करता है । फ्रैक्चर-वैक्चर हो जाय तो पलाश के 1 ग्राम गोंद को दूध के साथ सेवन करें ।

वीर्यवृद्धि हेतुः पलाश का 1 ग्राम गोंद रगड़ के दूध में सुबह खाली पेट दो तो नामर्द भी मर्द होने लगेगा ऐसा लिखा है ।

कफ और पित्त जन्य रोगों में– पलाश के फूलों व कोमल पत्तों की सब्जी बनाकर खायें तो फायदा होता है । बवासीर वाले लोग पलाश के पत्तों की सब्जी दही के साथ खायें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 31 अंक 339

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