जैसा चिंतन वैसा जीवन – पूज्य बापू जी

जैसा चिंतन वैसा जीवन – पूज्य बापू जी


एक लड़का था । उसको डॉक्टर बनने की धुन चढ़ी, यह अक्ल नहीं थी कि डॉक्टर बनने के बाद भी आखिर क्या !

वह 12वीं कक्षा पास करके मेडिकल क्षेत्र में जाना चाहता था तो उस क्षेत्र की किताबें उसने पढ़ना चालू कर दिया । जैसा पढ़ते हैं न, वैसा चिंतन होता है । तो किताबें पढ़ते-पढ़ते उसको कुछ महसूस हुआ तो वह डॉक्टर के पास गया ।

बोलाः “डॉक्टर साहब ! मैं भोजन करता हूँ तो शरीर भारी-भारी हो जाता है और पेट में कुछ गैस का गोला-सा हिलता है, हिलचाल भी होती है और ऐसा-ऐसा होता है ।”

तो डॉक्टर बहुत हँसे ।

वह बोलाः “डॉक्टर साहब ! मेरे को तकलीफ है और आप मेरा मजाक उड़ाते हैं !”

“बेटे ! तू कौन-सी किताब पढ़ता है ?”

“मैं मेडिकल स्टूडेंट बनना चाहता हूँ तो मेडिकल क्षेत्र की पुस्तक पढ़ रहा हूँ ।”

“कौन-सा चैप्टर (पाठ) तुझे अच्छा लगा ?”

“माइयाँ जब गर्भवती होती हैं न, तब क्या-क्या होता है वह चैप्टर मैंने कई बार पढ़ा ।”

“वह चैप्टर पढ़ते-पढ़ते तू मानसिक प्रेग्नेंट (गर्भवती) हो गया है । ये जो तू लक्षण बताता है कि पेट में ऐसा-ऐसा होता है, शरीर भारी होता है, उठने-बैठने में ऐसा होता है…. वह प्रेग्नेंट बाइयों के लक्षण पढ़-पढ़ के तेरे को ऐसा हो गया है वास्तव में तुझे ऐसी तकलीफ नहीं है ।”

तो आपका मन चैतन्य-स्वभाव से उठता है इसलिए जैसा आप संकल्प करते हैं, सोचते हैं वैसा महसूस होता है । अगर ब्रह्मस्वभाव का सोचो तो आप ब्रह्म हो जायेंगे लेकिन ‘मैं बीमार हूँ’ ऐसा सोचोगे तो बीमारी बढ़ेगी । ‘मेरा यह दुश्मन है, मेरी बेइज्जती हो गयी, मेरा फलाना हो गया… ‘ ऐसा सोचोगे तो फिर ऐसा ही महसूस होता है । यदि अपने पर कृपा करें तो अभी चक्कर बदले, नहीं तो यह जीव न जाने किन-किन मुसीबतों में किन-किन कल्पनाओं में, किन-किन भावनाओं में, किन-किन योनियों में, किन-किन ब्रह्माण्डों में भटकता हुआ आया है । ‘ऐसा बन जाऊँ, ऐसा हो जाय, वैसा हो जाय’ इसके चक्कर में न पड़ें । अपने आत्मा-परमात्मा को पाकर विभु-व्याप्त हो जाओगे, चिद्घन चैतन्य में एकाकार हो जाओगे । अपने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान का आश्रय जो लेते हैं वे लोग बाजी मार जाते हैं, बाकी के तो अधः जाते हैं, ऊर्ध्व जाते हैं – ऊपर के लोकों में जाते हैं, ऊर्ध्व जाते हैं, सुख में जाते हैं, दुःख में जाते हैं, बीच में आते हैं – भटकते हैं, ऐसे कई युग बीत गये । इसलिए प्रयत्न करके अपना आत्मा-परमात्मा का ज्ञान पाना चाहिए ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 7 अंक 339

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