Monthly Archives: May 2024

सब रोगों में लाभकारी सर्वसुलभ महौषधि – पूज्य बापू जी



भगवन्नाम सहित हास्य
मनुष्य के मन में 14 प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं । उनमें 13 प्रकार
की वृत्तियाँ तो पशुओं में भी हैं परंतु 14वें प्रकार की हँसने की वृत्ति
उनमें नहीं है । हास्य भी एक प्रकार की औषधि है । जो हँस नहीं
सकते, भगवत्सुमिरन करते समय हास्य नहीं कर सकते उनका यकृत
(लिवर), पाचन-तंत्र और पेट ठीक भी नहीं रहता । हँसने वाले के फेफड़ों
से विजातीय द्रव्य चले जाते हैं । हँसने वाला व्यक्ति खुद तो प्रसन्न
रहता है, आसपास भी प्रसन्नता फैलाता है । जो ठीक से हँस नहीं पाता,
तनाव में जीता है, उसको नजला, सर्दी, जुकाम, दमा पकड़ लेता है,
उसकी जवानी भी बुढ़ापे में बदल जाती है । परंतु जो ठीक से हँस पाता
है उसका बुढ़ापा भी सदा जवानी की ऩाँईं चमकता रहता है । भगवन्नाम
उच्चारण करके हँसने वाले के शरीर में लाभप्रद हार्मोन्स पैदा होते हैं ।
वह गठिया जैसे वात-रोगों तथा एलर्जी से मुक्ति पाता है और नजला,
सर्दी, जुकाम, दमे से बच जाता है ।
डॉक्टर विलियम ने कहाः “खुलकर हँसने से, सदैव प्रसन्न रहने से
पाचन-संस्थान ठीक रहता है, रक्ताणुओं में वृद्धि होती है, तंत्रिका तंत्र
(नर्वस सिस्सटम) ताजा होता है और स्वास्थ्य बढ़ता है । मनुष्य के
व्यक्तित्व की मोहिनी शक्ति उसकी प्रसन्नता ही है ।”
मुस्कराना, हँसना टॉनिकों का भी टॉनिक है ! यह सबसे विलक्षण
गुण मनुष्य में है । ईर्ष्या, कुटिलता, दुर्भाव, विषय-लोलुपता आदि दोष
तो कम-ज्यादा मात्रा में प्रायः सभी में होते हैं परंतु भगवन्नाम लेकर
हँसने वाला इन दोषों से जल्दी मुक्ति पा लेता है । अमृततुल्य है
भगवन्नाम चिंतन करते हुए भीतर का प्रीति रस पाना और हास्य प्रसाद

लेना । निर्दोष हँसी से ऐसे हार्मोन्स स्रावित होते हैं जो दर्दनाशक,
एलर्जी-उपचारक एवं रोगों से मुक्ति दिलाने वाले होते हैं । छोटे-मोटे
रोगों को हँसी ऐसे ही मारा भगाती है जैसे सूर्य अंधकार को भगा देता है
। हँसना एक आंतरिक, मानसिक-बौद्धिक व्यायाम है । कोलेस्ट्रॉल की
समस्यावाला भी अगर ठीक से हँसे तो कोलेस्टॉल नियंत्रित होता है,
हृदयरोग में भी लाभ होता है ।
दिन की शुरुआत में कुछ समय हँसने से आप दिन भर स्वयं को
तरोताजा एवं ऊर्जा (स्फूर्ति) से भरपूर अऩुभव करेंगे । हास्य से फेफड़ों
का बढ़िया व्यायाम हो जाता है, श्वास लेने की क्षमता बढ़ जाती है,
रक्त का संचार कुछ समय के लिए तेज हो जाता है और शरीर में
लाभकारी परिवर्तन होने लगते हैं ।
भगवन्नाम ले के हँसने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है अतः हँसकर
फिर भोजन करने से वह शीघ्रता से पच जाता है । खूब हँसने से रस,
रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं वीर्य की वृद्धि होती है । चिंता,
क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आद विषाक्त मनोभावों से हमारे शरीर में जिन विषों
की उत्पत्ति होती रहती है, हास्य उनका परिशोधक है । अतः सबको ‘देव
मानव हास्य प्रयोग’ का लाभ उठाना चाहिए । परमात्मदेव के नाम का
पुनरावर्तन चालू करें, कुछ देर बात हाथ ऊपर करके जोर से ठहाका मार
के हँसे – हरि ॐ, हरि ॐ… ॐ गुरुदेव ! ॐ लीलाशाह जी प्रभु ! ॐ
आत्मदेव ! ॐ ॐ माधुर्यदाता ! ॐॐ सुखस्वरूपा ! ॐॐ चैतन्यरूपा !
ॐॐॐ… हाऽऽहाऽऽहाऽऽ…
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 365
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सद्गुरु के बिना जीव का कल्याण नहीं है – संत देवराहा बाबा



गुरु तत्त्व बड़ा ही विलक्षण और रहस्यमय है । इस तत्तव की कृपा
से लोक और परलोक – दोनों ही प्राप्त हो सकते हैं । शास्त्रों में गुरु
तत्त्व को ईश्वर तत्त्व से भी बढ़कर बताया गया है परंतु शिष्य के साधन
और अधिकार के अनुसार ही गुरुकृपा की उपलब्धि होती है ।
गुरु तत्त्व और भगवद तत्त्व एक ही तत्तव के दो रूप हैं । भगवद्
तत्त्व ऐश्वर्यमय है तथा गुरु तत्त्व साधनामय है । इसीलिए भगवद्-तत्त्व
को अविद्या माया के अधिष्ठातृ रूप में माना जाता है तथा गुरु-तत्त्व को
विद्या माया (ब्रह्मविद्या) के अधिष्ठातृ रूप में । भगवद्-तत्त्व
जगतनियंता है, कर्मों के अनुसार ही जीव को भोग प्रदान करता है परंतु
गुरु-तत्त्व असीम दया और करुणा का सागर है । उसकी कृपा अहैतुकी है

गुरु-तत्त्व की सम्पूर्ण शक्ति गुरुमंत्र में निहित है । गुरु प्रदत्त
बीजमंत्र जो एक अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण होता है, वह शिष्य के
हृदय में अनंत प्रकाश प्रज्वलित कर देता है परंतु वह शिष्य की योग्यता
पर निर्भर है ।
सद्गुरु में भगवद्बुद्धि होना आवश्यक है
गुरुमंत्र मानव-मन को अंतर्मुख कर देता है । यों तो ब्रह्मतत्त्व
सर्वत्र व्याप्त है पर उसके साक्षात्कार के लिए गुरुमंत्र अपेक्षित है । जिस
प्रकार काष्ठ में निहित अग्नि का साक्षात्कार घर्षण से होता है इसी
प्रकार मंत्र द्वारा हृदय से ब्रह्माग्नि का साक्षात्कार होता है । गुरुमंत्र का
जप किसी भी रूप में किया जाय, उसका फल अवश्य मिलता है । गुरु
में भगवद्बुद्धि होना आवश्यक है । यह सम्पूर्ण समर्पण भाव से ही
सम्भव है । सद्गुरु के मार्गदर्शन के बिना विषय-त्याग, तत्त्व-दर्शन एवं

सहजावस्था कुछ भी सम्भव नहीं है । सद्गुरु के बिना जीव का कल्याण
नहीं है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 21 अंक 365
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वास्तविक संजीवनी



ईरान के बादशाह नशीखान ने संजीवनी बूटी के बारे में सुना ।
उसने अपने प्रिय हकीम बरजुए से पूछाः “क्या तुमने कभी संजीवनी
बूटी का नाम सुना है ?”
हकीमः “जी बादशाह सलामत ! यह हिन्दुस्तान की एक मशहूर
बूटी है, जो मुर्दे को भी जिंदा कर देती है ।”
“तुम हिन्दुस्तान जाकर उस बूटी को इस मुल्क में ले आओ ।”
हकीम हिन्दुस्तान आकर संजीवनी की तलाश में खूब घूमा । कई
जगह गया । यहाँ का रहन-सहन, सांस्कृतिक रीति-रिवाज, किसी भी
जीव को दुःख न देने की भावना, आपसी सहयोग व परोपकार की
भावना से ओतप्रोत व्यवहार ने उसे बहुत प्रभावित किया । उसे
हिन्दुस्तान में जो-जो बेशकीमती लगा वह उसे ईरान ले जाने के लिए
इक्ट्ठा करता गया ।
अपनी खोज पूरी करने के बाद बरजुए अपने वतन पहुँचा । जब
वह दरबार में पहुँचा तो बादशाह ने बड़ी उत्सुकता से पूछाः “बरजुए !
जल्दी दिखाओ, कहाँ वह संजीवनी बूटी जो तुम्हें इतने दिनों तक
हिन्दुस्तान के चप्पे-चप्पे की सैर करके बड़ी मेहनत से मिली है ?”
हकीम ने बेशकीमती हीरे-मोतियों से जड़ित एक सजा-धजा चंदन
का संदूक पेश किया । बादशाह नशीखान की उत्सुकता अब सातवें
आसमान को छूने लगी । वह तख्त से उठकर स्वयं उस संदूक को
खोलने के लिए उसके पास पहुँचा । उसने वह संदूक खोला तो देखा कि
उसमें रेशम के वस्त्रों में लपेटकर कुछ वस्तुएँ रखी हुई हैं । उसने कहाः
बरजुए ! तुम तो एक बूटी लाने गये थे… लेकिन लगता है तुम्हें तो

उसका खजाना ही हाथ लगा है ! अब तुम्हें ही अपने पाक हाथों और
जबान से इसका राज खोलना पड़ेगा ।”
बरजुए ने एक-एक उपहार बाहर निकालते हुए कहाः “बादशाह
सलामत ! यही है वह संजीवनी बूटी ! ये वेद, पुराण, उपनिषद्, गीता
और संतों की वाणियाँ… इन्हीं में सिमटी हुई है मौत को जिंदगी में
बदलने की ताकत ! हिन्दुस्तान वह महान देश है जहाँ नूरानी निगाहों से
निहाल करने वाले ऐसे अलमस्त अलख के औलिया रहते हैं जिनके
दीदार और पैगाम से लोगों के गम, दुःख-दर्द दूर होते हैं और उन्हें
सच्चा सुकून मिलता है । असली संजीवनी बूटी तो उन मुर्शिदों के
कदमों में ही मिलती है । उसका कुछ अंश इन ग्रंथों में भी है । इन
पाक किताबों को पढ़ने-सुनने से हमारा सारा मुल्क संजीवनी प्राप्त कर
सकेगा । मैं बहुत परखकर यह अनमोल खजाना ले के आया हूँ बादशाह
!
बादशाह नशीखान ने उन सद्ग्रन्थों को ससम्मान सिर-आँखों को
लगाया, चूमा एवं स्वीकार किया और उनसे लाभान्वित हुआ ।
धन्य है वैदिक संस्कृति के सद्ग्रंथ ! धन्य है उनके ज्ञान से
समजा को आनंद शांति देने व ले भारत के ब्रह्मवेत्ता महापुरुष ! और
बरजुए जैसे पुण्यात्मा भी धन्य हैं, जो उनकी महिमा को कुछ जान पाते
हैं एवं स्वयं व औरों को लाभ दिला पाते हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 17 अंक 365
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