भगवन्नाम सहित हास्य
मनुष्य के मन में 14 प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं । उनमें 13 प्रकार
की वृत्तियाँ तो पशुओं में भी हैं परंतु 14वें प्रकार की हँसने की वृत्ति
उनमें नहीं है । हास्य भी एक प्रकार की औषधि है । जो हँस नहीं
सकते, भगवत्सुमिरन करते समय हास्य नहीं कर सकते उनका यकृत
(लिवर), पाचन-तंत्र और पेट ठीक भी नहीं रहता । हँसने वाले के फेफड़ों
से विजातीय द्रव्य चले जाते हैं । हँसने वाला व्यक्ति खुद तो प्रसन्न
रहता है, आसपास भी प्रसन्नता फैलाता है । जो ठीक से हँस नहीं पाता,
तनाव में जीता है, उसको नजला, सर्दी, जुकाम, दमा पकड़ लेता है,
उसकी जवानी भी बुढ़ापे में बदल जाती है । परंतु जो ठीक से हँस पाता
है उसका बुढ़ापा भी सदा जवानी की ऩाँईं चमकता रहता है । भगवन्नाम
उच्चारण करके हँसने वाले के शरीर में लाभप्रद हार्मोन्स पैदा होते हैं ।
वह गठिया जैसे वात-रोगों तथा एलर्जी से मुक्ति पाता है और नजला,
सर्दी, जुकाम, दमे से बच जाता है ।
डॉक्टर विलियम ने कहाः “खुलकर हँसने से, सदैव प्रसन्न रहने से
पाचन-संस्थान ठीक रहता है, रक्ताणुओं में वृद्धि होती है, तंत्रिका तंत्र
(नर्वस सिस्सटम) ताजा होता है और स्वास्थ्य बढ़ता है । मनुष्य के
व्यक्तित्व की मोहिनी शक्ति उसकी प्रसन्नता ही है ।”
मुस्कराना, हँसना टॉनिकों का भी टॉनिक है ! यह सबसे विलक्षण
गुण मनुष्य में है । ईर्ष्या, कुटिलता, दुर्भाव, विषय-लोलुपता आदि दोष
तो कम-ज्यादा मात्रा में प्रायः सभी में होते हैं परंतु भगवन्नाम लेकर
हँसने वाला इन दोषों से जल्दी मुक्ति पा लेता है । अमृततुल्य है
भगवन्नाम चिंतन करते हुए भीतर का प्रीति रस पाना और हास्य प्रसाद
लेना । निर्दोष हँसी से ऐसे हार्मोन्स स्रावित होते हैं जो दर्दनाशक,
एलर्जी-उपचारक एवं रोगों से मुक्ति दिलाने वाले होते हैं । छोटे-मोटे
रोगों को हँसी ऐसे ही मारा भगाती है जैसे सूर्य अंधकार को भगा देता है
। हँसना एक आंतरिक, मानसिक-बौद्धिक व्यायाम है । कोलेस्ट्रॉल की
समस्यावाला भी अगर ठीक से हँसे तो कोलेस्टॉल नियंत्रित होता है,
हृदयरोग में भी लाभ होता है ।
दिन की शुरुआत में कुछ समय हँसने से आप दिन भर स्वयं को
तरोताजा एवं ऊर्जा (स्फूर्ति) से भरपूर अऩुभव करेंगे । हास्य से फेफड़ों
का बढ़िया व्यायाम हो जाता है, श्वास लेने की क्षमता बढ़ जाती है,
रक्त का संचार कुछ समय के लिए तेज हो जाता है और शरीर में
लाभकारी परिवर्तन होने लगते हैं ।
भगवन्नाम ले के हँसने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है अतः हँसकर
फिर भोजन करने से वह शीघ्रता से पच जाता है । खूब हँसने से रस,
रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं वीर्य की वृद्धि होती है । चिंता,
क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आद विषाक्त मनोभावों से हमारे शरीर में जिन विषों
की उत्पत्ति होती रहती है, हास्य उनका परिशोधक है । अतः सबको ‘देव
मानव हास्य प्रयोग’ का लाभ उठाना चाहिए । परमात्मदेव के नाम का
पुनरावर्तन चालू करें, कुछ देर बात हाथ ऊपर करके जोर से ठहाका मार
के हँसे – हरि ॐ, हरि ॐ… ॐ गुरुदेव ! ॐ लीलाशाह जी प्रभु ! ॐ
आत्मदेव ! ॐ ॐ माधुर्यदाता ! ॐॐ सुखस्वरूपा ! ॐॐ चैतन्यरूपा !
ॐॐॐ… हाऽऽहाऽऽहाऽऽ…
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2023, पृष्ठ संख्या 34 अंक 365
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