कर्मयोगी मस्तक की गुफा में बढ़िया-बढ़िया विचार रखकर सड़ाना
पसंद नहीं करेगा । बड़े विचार, उन्नत विचार तो तब सहायक होते हैं
जब वे मस्तक की गुफा से निकलकर कर्मयोग की स्थली पर आयें और
नृत्य करते हुए, वाणी बोलते हुए, व्यवहार करते हुए तुम्हारे दिव्य कर्मों
के रूप में उनका दर्शन हो जाय ।
एक लड़के ने अपने गुरु जी के श्रीमुख से सुना था कि काम करते
समय कोई भी विघ्न-बाधा आ जाय तो डरना नहीं चाहिए । वह लड़का
सातवीं कक्षा में पढ़ता था । उसका नाम था रोहित । उसके पिता छकड़ा
चलाने की मजदूरी किया करते थे ।
पिता का देहांत हो गया । अब घर के लोगों का पालन-पोषण
रोहित करता था । वह मेहनत से कतराता नहीं था । उसने अपने
विद्यालय में किन्हीं महापुरुष के सत्संग में सुना था कि ‘हिम्मत न
हार, अपनी शक्ति को जगा, अपने ईश्वर को पुकार ।’
एक बार वह छकड़े में नमक भर के जा रहा था । रास्ते में जोरों
की बारिश पड़ी और वह छकड़ा कीचड़ में धँस गया । बिजली चमकी
और मेघ गरजे तो बैल चौंका और भाग गया । मूसलधार वर्षा ने नमक
को बहा दिया । फिर भी वह सातवीं पढ़ा हुआ लड़का कहता है कि ‘ऐ
मेघ ! तू किसको डराता है ? ऐ बिजली ! तू किसको चौंकाती है ? मैं
बैल नहीं कि भाग जाऊँ, मैं छकड़ा नहीं कि धँस जाऊँ, मैं नमक नहीं
कि बह जाऊँ, मैं तो काले मत्थे का इंसान हूँ ! मैँ अपने अंतरात्मा की,
ॐकार की शक्ति जगाऊँगा और अपने कदम आगे बढ़ाऊँगा ! हरि
ओम्म… हरि ओम्म…’ हरि नाम के गुंजन से रोहित ने अपनी आत्मिक
शक्ति जगायी ।
थोड़ी देर में बरसात बंद हुई और वह छकड़ा लेकर नमकवाले सेठ
के पास पहुँचा । सेठ ने कहाः “तू इतना छोटा बालकर होते हुए इतना
साहसी और प्रसन्न !” उसको दुकान पर रख लिया । धीरे-धीरे उसको
भागीदार बना लिया । उस सेठ को बेटा नहीं था तो सेठ ने उसको गोद
ले लिया । सेठ की गोद में आने से वह मजदूर का बेटा सेठ तो हो गया
लेकिन उसमें सेठ होने का घमंड नहीं था ।
आगे चलकर गाँव का मुखिया हुआ, अच्छे काम करने लगा ।
‘मुखिया हो के लोगों खून चूस के महल बनाने की अपेक्षा लोगों के
आँसू पोंछ के लोगों के हृदय में भी मेरा लोकेश्वर है, उनकी सेवा में प्रभु
की प्रसन्नता है’ ऐसा समझ के उसने गाँव का अच्छा विकास कर लिया
। धीरे-धीऱे उसकी खबर राजा तक पहुँची तो राजा ने उसे राज्य का मंत्री
बना दिया और मंत्री के बाद वह राजा का खास सचिव, प्रधानमंत्री बना
। लोगों ने कहा कि “अरे रोहित ! तू छकड़ा चलाने वाला और आज तू
प्रधानमंत्री पद पर है !”
रोहितः “जो पद पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा उसका अभिमान
करना तो मूर्खों का काम है । मैं तो उस पद-परमात्मा को प्रेम करता हूँ
जो मेरे हृदय में पहले थे, अभी हैं और मरने के बाद भी रहेंगे । उन
परमेश्वर के नाते मैं मंत्री-पद सँभाल रहा हूँ ।”
छकड़ा चलाने वाले उस मजदूर के लड़के को इतनी ऊँचाई मिली
क्योंकि उसके शिक्षकों ने उसे किन्हीं ब्रह्मवेत्ता संत का सत्संग सुनवाया
था ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 363
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