जन्माष्टमी 30 अगस्त 2021
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ !
जन्माष्टमी महापर्व है । परात्पर ब्रह्म, निर्गुण-निराकार, पूर्णकाम, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर, परमेश्वर, देवेश्वर, विश्वेश्वर…. क्या-क्या कहें… वही निराकार ब्रह्म नन्हा-मुन्ना होकर मानवीय लीला करते हुए मानवीय आनंद, माधुर्य, चेतना को ब्रह्मरस से सम्पन्न करने के लिए अवतरित हुआ जिस दिन, वह है जन्माष्टमी का दिन ।
श्रीकृष्ण मध्यरात्रि को और श्रीराम मध्याह्न को अवतरित हुए । तप्त मध्याह्न में धर्म की मर्यादा का प्रसाद बाँटकर चित्त में शीतलता, शांति और स्व का साम्राज्य देने के लिए जो अवतार हुआ वह रामावतार है और अंधाधुध कालिमा को अपने प्रेम-प्रकाश से प्रकाशित करने के लिए जो अवतार हुआ वह श्रीकृष्णावतार है । श्रीकृष्णावतार की बधाइयाँ हों !
ये अवतार नहीं होते तो….
सर्वेश्वर, परमेश्वर आप्तकाम (पूर्णकाम, इच्छारहित) होते हुए भी हजारों-लाखों के दिलों की पुकार से प्रसन्न होकर उस-उस समय के अनुरूप नर-तन धारण कर लेता है तो उसे ‘अवतार’ कहते हैं ।
अवतरति इति अवतारः
अगर धरती पर श्रीकृष्ण अवतरण नहीं होता तो भारतवासी भी विदेशियों की तरह हो जाते । जैसे विदेशी बेचारे इंजेक्शन व कैप्सूल लेने के बावजूद रात को ठीक से नींद नहीं ले पाते हैं और इतनी सुविधा व व्यवस्था होने पर भी उनके जीवन में कोई सुमधुर गीत नहीं, संगीत नहीं, माधुर्य नहीं । हाँ, वहाँ रॉक-पॉप और डिस्को-विस्को, वाइन है, सम्भोग है और सम्भोग से समाधि बकने वाले के प्रेरक फ्रायड का मनोविज्ञान है लेकिन यहाँ परमात्मा की प्रीति से समाधि यह भारतीय अवतारों के लीलामृत का प्रसाद है ।
इस प्रेमावतार को आप पूजो या उसकी जय बोलो यह मैं नहीं कहता । भले उसको गाली दे दो, भले उससे उठ-बैठ कराओ या ओखली से बाँधो फिर भी वह यशोदा का मंगलकारी है तो तुम्हारा अहित कैसे करेगा ! वह प्यारा कन्हैया कैसा है यह तो वही जाने ! थोड़ा-थोड़ा भक्त और संत जानें !
श्रीकृष्ण की दिनचर्या अपना कर तो देखो !
श्रीकृष्ण सुबह उठकर जो करते थे वह आप करो । आप उनकी नकल तो करो ! अरे, कृष्ण की नकल से भी तुम्हारा कृष्ण-तत्त्व उभरेगा । श्रीकृष्ण नींद में से उठते तो शांत होकर अपने स्वभाव में बैठ जाते, थोड़ा विश्रांति पाते और सोचते कि ‘यह दिखने वाला शरीर और संसार बदलता है परंतु देखने वाला मैं अमर आत्मा हूँ । इस मोहमाया और क्रियाकलाप का मुझ चैतन्य पर कोई असर नहीं होता ।’ नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त अपने आत्मस्वभाव का श्रीकृष्ण अमृतपान करते थे ।
फिर सोचते थे कि आज के दिन मुझे क्या-क्या शुभ कर्म करने हैं ? फलाने ब्राह्मणों के समाज को इतनी गौएँ भेजनी हैं और गौओं के सींगों पर यह लगा दिया जाये तथा साथ में यह-यह दक्षिणा हो…..।
अब मैं आपको बोलूँ कि गौएँ भेजने का सोचो तो अनुचित होगा, फिर भी कुछ तो सोचो । सुबह-सुबह आप उठो, थोड़े शांत रहो । बिस्तर, खटिया या पलंग के पास 2 बर्तन पड़े रहें । एक बर्तन में चावल, चने, जौ, तिल या और कोई अनाज हो अथवा कोई तुम्हारी प्रिय वस्तु हो, दूसरा बर्तन खाली हो, उसमें 4 दाने डाल दो – श्रीकृष्णार्पणमस्तु… समाजरूपी कृष्ण की सेवा में लगें । फिर वे 4 दाने चाहे पक्षियों या कीड़ियों को डाल दो, चाहे कहीं और उनका सदुपयोग करो । सत्यस्वरूप ईश्वर की प्रीति के लिए आप सुबह देना शुरु करो । 4 दाने तो आप दे सकते हैं, आप इतने कंजूस या कंगाल नहीं हैं । आप तो मुट्ठी भरकर भी डाल दोगे, 2 मुट्ठियाँ भी डाल दोगे, 4 पैसे ही डाल दो ईश्वरप्रीत्यर्थ… ‘ऐ प्रेमी ! ऐ पिया (परमात्मा) ! तेरे प्यारवश तेरे को यह अर्पण करता हूँ ।’ मुझे लगता है कि इससे आपका बड़ा मंगल होगा !
फिर 4 मिनट आप शांत बैठ जाओ । घर में कलह है, नौकरी में समस्या है, शरीर में बीमारी है तो उसका उपाय क्या है ? 1-1 मिनट तीनों प्रश्नों पर दृष्टि डालो और चौथे मिनट में उसका समाधान अंदर से जो आयेगा वह आपको दिनभर तो क्या, वर्षोंभर मदद करेगा ।
इस प्रकार का प्रयोग आप करो तो आपको बहुत लाभ होगा । फिर क्या करोगे ?
हैं तो दोनों हाथ उसी के, सारा शरीर, जीवन उसी का है पर हम बेईमानी करते हैं कि ‘यह मैं हूँ और यह मेरा है ।’ कम-से-कम सुबह तो बेईमानी का हिस्सा आधा कर दो । ‘एक हाथ तुझ प्यारे का और एक हाथ मेरा, मिला दे हाथ !’ ऐसा करके दोनों हाथ आपस में मिला दो और प्रभु से कहोः ‘बिन फेरे हम तेरे ! हजारों शरीर मिले और मर गये लेकिन तू नहीं मिटा…. दूर नहीं हुआ मेरे से । हजारों पिता-माता, पति-पत्नियाँ, मित्र मिले, धन-दौलत मिली… ये आये और गये किंतु उसको देखने वाला तू और मैं वहीं के वही ! मेरे प्रभु ! मेरे गुरुदेव ! बिन फेरे हम तेरे !’ आप सुबह-सुबह हस्तमिलाप कर लीजिये । आपकी सुबह बहुत सुहावनी हो जायेगी, आपका दिन सुहावना हो जायेगा, आपका मन, मति और गति सुहावनी हो जायेगी ।
परमात्मा से रोज प्रीति करो
आप रोज उसकी शरण में जाओ । ऐसा नहीं कि समस्या आये तब जायें… जैसे आप समस्या आने पर ही अपने अधिकारी के पास जाते हैं तो वह समझ आता है कि यह तो स्वार्थी है किंतु आप उससे मिलते-जुलते रहते हो और कभी कुछ समस्या आ जाती है तो वह उसको सहानुभूतिपूर्वक सुनता है उसे दूर करने में अपनी सहायता भी देता । ऐसे ही आप परमात्मा से रोज प्रीति करते जाइये । कभी कोई कष्ट, विघ्न-बाधा आये तो उसे प्रेम से कह दीजिये कि ‘प्रभु ! अब ऐसा है ।’ वह सुनेगा और भीतर से सत्प्रेरणा और सामर्थ्य भी देगा ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2021, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 344
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