201 ऋषि प्रसादः सितम्बर 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

आदर तथा अनादर….


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) दुर्लभो मानुषो देहो देहीनां क्षणभंगुरः । तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम् ।। ‘मनुष्य देह मिलना दुर्लभ है । वह मिल जाय फिर भी वह क्षणभंगुर है । ऐसी क्षणभंगुर मनुष्य देह में भी भगवान के प्रिय संतजनों का दर्शन तो उससे भी अधिक दुर्लभ है ।’ यह शरीर, जो पहले …

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उन्नति चाहो तो विनम्र बनो


अनेक विद्यालयों के सूचना-पट्ट पर ये शास्त्रवचन लिखे होते हैं – विद्या ददाति विनयम् । विद्या विनयेन शोभते । अर्थात् विद्या विनय प्रदान करती है और वह विनय से ही शोभित होती है । वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति जीवनरूपी पाठशाला का एक विद्यार्थी ही है और वह सतत इस पाठशाला में कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता …

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परमात्मस्वरूप सद्गुरु


अंतर हाथ सहारि दे, बाहर मारे चोट (पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) शिष्य यदि मनमुख रहा और मन के कहने में ही चलता रहा तो वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता । उसको गुरुमुख होना ही पड़ेगा लेकिन गुरु भी ऐसे वैसे नहीं होने चाहिए । गुरु भी समर्थ होने चाहिए, जो उसको साधना …

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