संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से
स्वस्थ रहने के लिए स्वास्थ्यरक्षक कुछ नियम जान लें-
ब्रह्ममुहूर्त में उठें (सूर्योदय से लगभग दो घंटे पूर्व ब्रह्ममुहूर्त होता है।)
सुबह नींद से उठकर बासी पानी पियें। हो सके तो ताँबें के बर्तन में रखा हुआ पानी पियें। इससे पेट की तमाम बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। कब्ज अनेक बीमारियों की जड़ है, वह इस प्रयोग से दस दिन में ठीक हो जाती है। गर्मी के दिनों में पानी ज्यादा पियें। इससे लू से बचाव होता है।
सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और सर्वप्रथम अपने सिर पर पानी डालें फिर पैरों पर पानी डालें क्योंकि पहले पैरों पर पानी डालने से पैरों की गर्मी सिर पर चढ़ती है।
सदैव सूती एवं स्वच्छ वस्त्र पहनें। कृत्रिम (सिंथैटिक) कपड़े न पहनें। ये कपड़े जीवनशक्ति का ह्रास करते हैं।
चौबीस घंटों में केवल दो बार भोजन करें। अगर तीसरी बार करते हों तो बहुत सावधान रहें, हलका नाश्ता करें।
किसी को वायु और गैस की तकलीफ ज्यादा हो तो उसे आलु, चावल और चने की दाल आदि का परहेज रखना चाहिए। ये वायु करते हैं। वायु का रोगी दूध पिये तो एक-दो काली मिर्च डालकर पियें।
सामान्य रूप से भी चावल, आलू आदि ज्यादा न खायें नहीं तो आगे जाकर बुढ़ापे में जोड़ों का दर्द पकड़ लेगा। जो बीमारी होने वाली है, उससे बचने के लिए पहले से ही सावधान रहें।
चाय, काफी और नशीली वस्तुओं से बचना चाहिए। आहार ऐसा को कि आपका शरीर तंदुरुस्त रहे। विचार ऐसे करो कि मन पवित्र रहे।
एक गिलास गुनगुने पानी में थोड़ा संतकृपा चूर्ण एवं शहद डाल दें। मुँह में अदरक का टुकड़ा चबायें, ऊपर से यह शहदवाला पानी पी जायें और थोड़ा घूमें। इससे शरीर का वज़न नियंत्रित हो जायेगा।
जिनकी उम्र 40 साल से ज्यादा है उनकी रोग प्रतिकारक शक्ति बनी रहे इसके लिए ‘रसायन चूर्ण’ का सेवन करना चाहिए। आँवला, गोखरू एवं दूसरी तीन-चार चीजें मिलाकर रसायन चूर्ण बनता है।
ड्राइवर लोग जानते हैं कि रेल का फाटक आता है अथवा बंपर आता है तो उसके पहले गाड़ी की गति धीमि करनी पड़ती है। ऐसे ही कोई पीड़ा या बीमारी बंपर बनकर आये तो उसके पहले ही अपनी शरीररूपी गाड़ी को नियन्त्रित कर लो।
किसी को पित्त की तकलीफ ज्यादा है तो सप्ताह में एक बार पेठे की सब्जी बनाकर खाय और उस दिन थोड़ी अदरक भी खाये ताकि भूख लगे।
किसी को भूख नहीं लगती है तो भोजन के पहले अदरक के टुकड़ों में नीँबू और नमक मिलाकर खाये, बाद में भोजन चबा-चबाकर करे।
रात को हल्का भोजन करे और संध्या के बाद जितनी जल्दी हो सके भोजन कर लेना चाहिए।
पंद्रह दिन में एकाध उपवास करें और उपवास के दन एक दो सेब को तवे प सेंक कर खायें। प्यास लगे तो एक दो चुटकी सोंठ गुनगुने पानी में लिया करें।
रात्रि को जल्दी सोना चाहिए और देर रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए। ज्यों-ज्यों सूर्यास्त होता जाता है, त्यों-त्यों जठराग्नि मंद होती जाती है। देर रात्रि को भोजन करने वाले को मोटापा, थकान और सुस्ती घेर लेती है।
जिस कमरे में सूर्य की रोशनी अच्छी तरह से आती हो उस कमरे में शयन करना चाहिए और रात्रि में सोते हैं तब खिड़की खुली रखें ताकि ताजी हवा ठीक से मिलती रहे।
परिश्रम करने वालों को कम से कम 6 घंटे नींद करनी चाहिए और अधिक-से-अधिक सात घंटे। दिन में ज्यादा सोना नहीं चाहिए। गर्मियों के दिन हैं, बुढ़ापा है अथवा रात्रि को नहीं सो पाये हैं उनके लिए ठीक है। बाकी आम आदमी यदि दिन में सोयेगा तो त्रिदोष बढ़ेगा, मोटापा थकान, आलस्य और रोग बढ़ेंगे।
रात्रि को सोते समय पूर्व अथवा दक्षिण की तरफ सिरहाना होना चाहिए। पश्चिम अथवा उत्तर की तरफ सिर रखकर सोने से हानि होती है।
रात को सोते समय थके-माँदे होकर नमक के बोरे की नाईं मत गिरो। जब आप सोने की जगह पर जाते हो तो ईश्वर से प्रार्थना करो कि ‘हे प्रभु ! दिन भर में जो अच्छे काम हुए वह तेरी कृपा से हुए प्रभु!’ और कुछ गलत काम हो गये तो उस पर नजर डालो एवं प्रार्थना करो कि ‘हे प्रभु ! मुझे बचा ले। बुरे कर्म की आदत हो गयी है, वासना हो गयी है। तू बचा ले। आज का दिन जैसा भी हो गया तेरे चरणों में अर्पण है। कल से कोई बुरे कर्म न हों केवल अच्छे कर्म ही हों…. हे प्रभु ऐसे कर्म हों जिनसे तू प्रसन्न हो, तुझमें प्रीति बढ़े, कर्त्ताभाव मिटे तुझमें शांति मिले और हम तुझसे दूर नहीं, जुदा नहीं। इस असलियत का ज्ञान हो जाये ऐसी कृपा करना। ॐ शांति…. ॐ शांति.. ‘ ऐसा करके लेट जायें। श्वास अंदर जाता है शांति, बाहर आता है 1, अंदर जाता है ॐ, बाहर आये 2, अंदर आनंद या गुरुमंत्र या इष्टमंत्र बाहर 3, इस प्रकार श्वासोच्छवास की गिनती करते-करते सो जायें।
मैं सच कहता हूँ आपकी नींद प्रभुमय, शांतिमय योगनिद्रा हो जायेगी और उठोगे तब भी भक्तिमय होकर उठोगे। आज तक आप जैसे उठते थे उससे अलग स्वभाव और मधुरता से उठोगे। फिर सुबह जब उठो तब उस अंतर्यामी से हाथ मिलाकर उठना। ‘दायाँ मेरा, बायाँ तेरा… बिन फेरे हम तेरे प्रभु !’ इस प्रकार यह सरल स्वभाव की भगवान की भक्ति बेड़ा तारने वाली है।
विवाह करें लेकिन संयम से हें। पूनम अमावस, एकादशी, जन्मदिवस, श्राद्ध के दिनों में और पर्व तथा त्यौहार के दिनों में संसार-व्यवहार न करें। पत्नी रजस्वला हो, बीमार हो अथवा पति बीमार हो, दोनों में से किसी ने व्रत-उपवास किया हो, भूखे पेट हों, तब भी संसार व्यवहार नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार की बातें पहले लोग गुरुकुल में सीखकर आते थे तो कितने तंदुरुस्त रहते थे। अभी तो दे धमाधम…. इतनी अस्पतालें बन रही हैं फिर भी घर-घर में बीमारी। अतः स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन, सम्मानित जीवन जीने का……
लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल।
मंजिल तेरे चरण चूमेगी, आज नहीं तो कल।।
साँईं श्री लीलाशाहजी उपचार केन्द्र, संत श्री आसाराम जी आश्रम
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2002, पृष्ठ संख्या 28-30, अंक 109
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