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उद्गम-स्थान में बुद्धि को विश्रांति दिलाकर पुष्ट बनायें – पूज्य बापू जी


बुद्धि का उद्गम स्थान क्या है ? लोग बोलते हैं ‘पाश्चात्य जगत के विद्वानों का यह मानना है कि संसार का अनुभव करने से बुद्धि बढ़ती है, बनती है ।’ किंतु अपनी वैदिक संस्कृति व प्राचीन ऋषियों का कहना है कि ‘बुद्धि का अधिष्ठान, उद्गम-स्थान संसार नहीं है, आत्मा है और उस आत्मा-परमात्मा में से ही बुद्धि का निश्चय स्फुरित होता है ।’ बाहर से सीख-सीख के बुद्धि किसी विषय में पारंगत होती है लेकिन बुद्धि का मूल आत्मा है । भगवान को हम अपना मान के जप करेंगे तो भगवान में ज्यों-ज्यों बुद्धि विश्रांति पायेगी त्यों-त्यों पुष्ट होती जायेगी । मीराबाई के पद सुनकर जो शांति मिलती है, संत कबीर जी की साखियों से जो ज्ञान और शांति मिलती है, संत तुकाराम जी के अभंगों से और अन्य आत्मारामी संतों के वचनों से जो ज्ञान और आनंद आता है, शांति मिलती है ऐसे अभंग, पद, साखियाँ कोई विद्वान बना ले या ऐसे वचन बोल दे तो भी उनसे उतनी शांति, ज्ञान, पुण्य नहीं हो सकता है । लोग बोलते हैं तो भाषण हो जाता है, लेक्चर (व्याख्यान) हो जाता है पर संत बोलते हैं तो सत्संग हो जाता है क्योंकि वे अपनी बुद्धि को भगवान में विश्रांति दिलाकर फिर परहित की भावना से बोलते हैं । तो भगवान को अपना मानना, अपने को भगवान का मानना, ऐसे करके भगवान से प्रीति करना । इससे क्या होगा कि बुद्धि में भगवान का योग आयेगा (ज्ञाननिष्ठा आयेगी) । इससे खूब अंतःप्रेरणा मिलेगी, अंतरात्मा का आराम मिलेगा, अंतरात्मा का ज्ञान प्रकाशित होगा । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 30 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

घटता पशुधन फिर भी दूध की भरमार…


कहाँ से आ रहा है इतना दूध ? लम्पी रोग से झुलसती, मरती गायें लम्पी रोग की वजह से देश के कई राज्यों का पशुधन काफी स्तर तक प्रभावित हो चुका है । राजस्थान में इसकी भीषणता और अधिक गम्भीर रूप ले चुकी है । लम्पी रोग के कारण प्रदेश में 60 हजार गायों की मौत हो चुकी है जबकि 13 लाख से अधिक संक्रमित हुई हैं । इस कारण त्यौहारों के दिनों में दूध की कमी का संकट खड़ा हो जाना चाहिए लेकिन हैरत की बात यह है कि बाजार में दूध, पनीर और मावा की उपलब्धता में कोई कमी नहीं आयी है । दूध की कमी होने पर भी पूर्ति कहाँ से हो रही है ? बाजार का अधिकांश दूध पीने योग्य नहीं दैनिक भास्कर द्वारा कैनंस संस्था के साथ मिलकर जयपुर की दूध मंडियों, दूधियों और प्राइवेट डेयरियों से लिए 300 नमूनों की प्रतिष्ठित जाँच एजेंसी से जाँच कराने पर दूध के 200 नमूनों में से 5 नमूने ही पीने योग्य पाये गये, बाकी ‘फूड सेफ्टी एक्ट’ के मानकों के तहत खरे नहीं उतरे । फेल नमूनों में वसा, विटामिन, कैल्शियम और मिनरल्स नहीं पाये गये । दूध के नमूनों में पाम तेल, नमक और चीनी की मिलावट तथा हाई लेवल एसिडिटी पायी गयी । मावा के 50 नमूनों में से 2 तथा पनीर के 50 नमूनों में से 3 नमूने ही पास हुए । यहाँ की कुछ दूध मंडियों के दूध व पनीर के 20-20 नमूनों में से एक भी सेवन योग्य नहीं मिला । थकान, खून की कमी एवं दर्द देगा ऐसा दूध विशेषज्ञों के अनुसार शारीरिक पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और खनिज नहीं मिलने पर थकान, खून की कमी, हड्डियों और मांसपेशियों की कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं । बच्चों की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है । हाथ-पैरों में दर्द होने लगता है । शरीर पोषण के लिए आवश्यक उपरोक्त तत्त्व जो शुद्ध दूध से प्राप्त होते हैं वे तो आज बाजार में बिक रहे अधिकांश दूध में मिल नहीं रहे हैं, इसके विपरीत उसमें हानिकारक केमिकलों की मिलावट होने से उसे पीने वालों को पाचन-तंत्र की कमजोरी आदि अन्य भी समस्याएँ भोगनी पड़ रही हैं । देश में तीन में से दो लोग पीते हैं डिटेर्जेंट वाला दूध वर्ष 2016 में तत्कालीन केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्यौगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि देश में 3 में से 2 लोग डिटर्जेंट, कॉस्टिक सोडा, यूरिया और पेंट वाला दूध पीते हैं । देश में बिकने वाला 68 फीसदी दूध भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है । (देख में इतना गोधन मरने व संक्रमित होने के बाद तो स्थिति क्या हो गयी होगी अनुमान भी नहीं लगा सकते ।) जिंदगी पर भारी है यह दूध… आई. एम.ए. के अध्यक्ष डॉ. एस.एस. अग्रवाल के अनुसार मिलावटी दूध का शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है । यूरिया, कॉस्टिक सोडा और इसमें मौजूद फॉर्मेलिन के कारण आँतों की सूजन से लेकर इम्पेयरमेंट (शारीरिक या मानसिक क्षमता का आंशिक या पूरी तरह से खोना), हृदयरोग व कैंसर जैसी बीमारियाँ होने के साथ मौत तक हो सकती है । डिटर्जेंट से पाचन तंत्र की गड़बड़ियाँ और भोजन की विषाक्तता हो सकती है । इसके उच्च अल्कलाइन होने से शरीर के तंतु क्षतिग्रस्त और प्रोटीन नष्ट हो सकते हैं । इन खतरों को देखते हुए जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा जरूरी है । उपरोक्त आँकड़े एवं तथ्य यही दर्शाते हैं कि अब दूध, दूध नहीं बचा, वह तो बन गया है जहर ! लोगों की जिंदगी दाँव पर लगाकर भी अपनी जेब भरने वाले किस हद तक जा सकते हैं इसका यह उदाहरण है । शुद्ध सात्त्विक दूध व उससे बने पदार्थों का लाभ लें क्या कहीँ शुद्ध दूध मिल सकता है ? हाँ, संत श्री आशाराम जी आश्रमों के मार्गदर्शन में संचालित गौशालाओं से देशी गाय का शुद्ध एवं गुणवत्तायुक्त दूध प्राप्त हो सकता है । लोगों को शुद्ध, सात्त्विक दूध, छाछ, मक्खन, घी एवं दूध से बने सात्त्विक पदार्थ किफायती मूल्य में आसानी से मिल सकें तथा गौरक्षण-संवर्धन हो सकते इसी उद्देश्य से ये गौशालाएँ चलायी जा रही हैं । आप नकली एवं जहरीले दूध व उससे बने पदार्थों से बच के इन गौशालाओं के विभिन्न गुणकारी उत्पादों का लाभ ले के अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा व पोषण प्राप्त कर सकते हैं । यह लाभ अब जयपुर वालों को भी जयपुर में शुरु हो रहे सेवाकेन्द्रों के माध्यम से जल्द ही मिल सकेगा । (संकलकः धीरज चव्हाण )

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

मैंने जादू नहीं किया प्रणव के जप का चमत्कार था


एक घटित घटना है । एक व्यक्ति सेल्स टैक्स विभाग के करीब 2200 अधिकारियों के संघ का अगुआ अधिकारी था । उसको हर शुक्रवार को शाम को 7 बजे हृदय में पीड़ा होती थी और वह हृदयाघात (हार्ट अटैक) हो गया ऐसा मानता था । महाराज ! उसको इतनी पीड़ा होती थी कि उसकी पीड़ा देखकर दुश्मन को भी दया आ जाय ! उसकी बच्ची और पत्नी सब रोने लग जाते । अहमदाबाद के सब मुख्य डॉक्टरों को उसने दिखा लिया, मुंबई भी दिखाने गया पर कोई लाभ नहीं हुआ । आखिर जब रोग लाइलाज ज्ञात हुआ तब उसे यह याद आया जो उसने कभी नहीं सुन रखा होगा या किसी ने सुनाया होगाः जो बात दवा से नहीं होती, वह दुआ से होती है । मुर्शिद (गुरु) अगर मिल जायें कामिल (पूर्ण), तो मुलाकात खुदा से होती है ।। किसी भी कारण से हो, वह पहुँच गया बड़ बादशाह के पास और उसने अपनी पूरी रामकथा (तकलीफ) सुनायी । मैं समझ गया कि क्या समस्या है । मैंने उसको कहाः “मेरे सामने बैठ ।” और प्रणव का जप चालू कराया । उसे प्रयोग बताया कि “शुक्रवार को पीड़ा होने के 15 मिनट पहले तू ॐकार का जप चालू कर देना । आज गुरुवार है । पिछले 7 महीने से तेरे को हर शुक्रवार को पीड़ा होती है और कल शुक्रवार है तो यह प्रयोग करना । यदि फायदा हो जाय तो प्रणव (ॐकार) की कृपा समझना और फायदा नहीं हो तो समझना बाबा बेकार है ।” जीवन में किसी बाबा को सलाम करे, नमस्कार करे ऐसे व्यक्तियों में से नहीं था वह सज्जन बेचारा । सज्जनों की भी अपनी-अपनी मान्यता होती है । जल्दी से आँख में आँसू लाने वालों में से नहीं था व । उसने कई लोगों से टक्करें ली होंगी, कई व्यापारियों के बहीखाते जब्त किये होंगे, कराये होंगे । वह कई फैसलों-वैसलों में गया होगा ऐसा व्यक्ति था । शुक्रवार को उसने प्रयोग किया और निश्चिंत हो गया । फिर आश्रम आया, बोलाः “बाबा जी ! पीड़ा नहीं हुई ।” मैंने कहाः “अब क्या संकल्प करते हो बोलो ? बड़ बादशाह को क्या देते हो ? जो कोई डॉक्टर नहीं मिटा सके, तुम्हारे साथ के जो अधिकारी – सेल्स टैक्स कमिश्नर नहीं मिटा सके, वह भगवान के नाम ने मिटाया । बड़ बादशाह की दुआ हुई, अब तुम क्या करोगे ?” बोलाः “बापू ज ! मैंने बड़ बादशाह को फेरे फिरकर मन्नत मानी है ।” मैंने कहाः “क्या” ? बोलाः “यदि रोग सोलह आना ( सौ प्रतिशत) मिट गया तो मैं 501 रूपये दूँगा इधर ।” मैं समझ गया कि यह पैसों में जीने वाले व्यक्तियों में से है । भाव भी कोई जीवन होता है ! श्रद्धा भी कुछ चीज होती है ! समपर्ण भी कुछ चीज होती है ! लेकिन उस दुनिया में वह आया नहीं बेचारा ! मैंने कहाः “ये तो बहुत कम होंगे ।” तो बोलाः “बापू ! 1001 रख दूँगा किंतु 100 प्रतिशथ फायदा होगा तो…!” मैंने कहाः “अच्छा, 1001 तुम रख देना, ठीक है परंतु कब मानोगे कि फायदा हुआ ?” बोलाः “3 शुक्रवार तक तकलीफ न हो तो मानूँगा कि ठीक हो गया ।” मैंने कहाः “3 नहीं, 30 शुक्रवार तक की गारंटी ! और जो 501 या 1001 तुम बोलते हो न, वह समझना कि बाबा को दे दिये हैं । (उस व्यक्ति की जेब की ओर इशारा करते हुए) यह हमारी जेब है, तुम रुपये अपने पास रखना ।” किंतु उसने कहा कि “मैंने जब पैसे देने का बोला है तो अच्छे काम में लगाऊँगा ।” तो कहीं उसके परिचय में कोई गाँव था जहाँ पानी की तकलीफ थी, वहाँ पर उसने हैंडपम्प लगवाया होगा या जो कुछ किया होगा मेरे को पता नहीं । फिर तो वह व्यक्ति आश्रम में आता ही रहा । फिर कभी उसको वह बीमारी नहीं आयी । मैंने जादू नहीं किया, बड़ बादशाह ने फूँक नहीं मारी, प्रणव के जप का चमत्कार था । सीधी तो बात थी । तस्य वाचकः प्रणवः । (पातंजल योगदर्शन) परमात्मा का वाचक ॐकार है । यह सब मंत्रों में राजा है । प्रोफेसर जे मॉर्गन ने खोजा है कि ॐकार के उच्चारण से पेट, सीने और मस्तिष्क में जो कम्पन्न होते हैं, आंदोलन होते हैं उनसे मृत कोशिकाएँ जीवित हो जाती हैं और जीवित कोशिकाओं में नवजीवन का संचार होता है तथा नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है । जिनको ईश्वर से लेना-देना नहीं, शरीर ही अपना है ऐसा मानते हैं, ऐसे देहाध्यासियों को भी ॐकार थेरेपी से बहुत फायदे होते हैं परंतु ॐकार का उच्चारण करने से तो ईश्वर मिलता है यह महापुरुषों का अनुभव है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 13-15 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ