संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से
भगवान बुद्ध कहते थेः ‘हे भिक्षुको ! अनन्त जन्मों में तुमने जो आँसू बहाये वे अगर इकट्ठे कर दिये जायें तो वे सरोवर को भी मात कर दें। यह बड़ा पर्वत दिख रहा है, उसके आगे यदि तुम्हारे सभी जन्मों की हड्डियाँ एकत्रित की जायें तो यह पर्वत भी छोटा-सा लगेगा। तुम इतने जन्म ले चुके हो।’
और इन जन्मों के पीछे प्रयत्न क्या है ? दुःखों को हटाना और सुखों को पाना। सुबह से शाम तक, जीवन से मौत तक, जन्म से जन्मांतर तक, युग से युगांतर तक सभी जीवों की यही कोशिश है कि ऐसा सुख मिले जो कभी मिटे नहीं। यदि किसी को कहें- ‘भगवान करे दो दिन के लिए आप सुखी हो जाओ, फिर मुसीबत आये।’ तो वह व्यक्ति कहेगाः
“अरे, बापू जी ! ऐसा न कहिये।”
“अच्छा, दस साल के लिए आप सुखी हो जाओ, बाद में कष्ट आये।”
“ना-ना।”
“जियो तब तक सुखी रहो, बाद में नरक मिले।”
“ना, ना…. नहीं चाहते। दुःख नहीं चाहते।”
प्राणिमात्र सुखाय प्रवृत्ति…. प्राणिमात्र सुख के लिए प्रवृत्ति करता है। आप यह सिद्धान्त समझ लो कि सभी सदा सुख चाहते हैं। मिट न जाय – ऐसा सुख चाहते हैं क्योंकि सभी का मूल उद्गम स्थान वह सच्चिदानंद, शाश्वत, अमिट आत्मा है। जब तक उसमें पूरी स्थिति नहीं हुई तब तक कितना भी कुछ कर लो, पूर्ण तृप्ति नहीं होती।
कभी न छूटे पिंड दुःखों से जिसे ब्रह्म का ज्ञान नहीं।
इस आत्मा के ज्ञान में विश्रान्ति पाने की व्यवस्था को प्रभु-भजन कह दो, अल्लाह की बंदगी कह दो, गॉड की प्रेयर कह दो, साधना कह दो, ये सब एक ही है। सारी साधना, सारी प्रार्थना, सारी सेवा, सारे कर्मों के पीछे उद्देश्य यही है कि हम सुखी हो जायें।
‘हमारा नाम हो जाय।’ तो क्या दुःख चाहते हो नाम से ? ना, सुखी हो जायें। ‘हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहे।’ तो क्या स्वास्थ्य से दुःख चाहते हो ? ना, सुखी हो जायें। ‘हमको कुछ नहीं चाहिए, हम मर जायें।’ तो किसलिए ? सुखी होने के लिए।
चोर चोरी करता है तो उद्देश्य सुख होता है। साहूकार साहूकारी करता है तो उद्देश्य सुख होता है। लेकिन ये कर्म क्षणिक परिणाम देने वाले हैं, दुःखरूपी वृक्ष के मूल को काटे बिना दुःख का अंत नहीं होता। डालियाँ कितनी भी काटो, पत्ते कितने भी तोड़ो लेकिन जब तक दुःखरूपी वृक्ष की अज्ञानरूपी जड़ है तब तक दुःखरूपी वृक्ष का अंत नहीं होता। फिर चाहे कितने जन्म बीत जायें….। कई जन्मों तक प्रयत्न करते-करते व्यक्ति थक जाते हैं, निराश हो जाते हैं, बुरी तरह दुःखी हो जाते हैं।
कुछ वर्ष पहले अमेरिका के आठ व्यक्तियों की सूची बनायी गयी, जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक धनाढ्य थे, करोड़पति नहीं अरबोंपति-खरबोंपति थे। 25 साल के बाद उनकी क्या स्थिति है ? इसकी जाँच हुई। जाँच कमेटी ने बतायाः
दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कम्पनी के मालिक अमेरिका का चार्ल्स श्काब कंगाल होकर मर गया।
दुनिया की सबसे बड़ी गैस कम्पनी के अध्यक्ष हॉवर्ड हब्सन पागल हो गये।
एक बहुत बड़े व्यापारी आर्थर कटन दिवालिया होकर मर गया।
न्यूयार्क स्टॉक एक्स्चेंज के अध्यक्ष रिचर्ड व्हीटनी को जेल जाना पड़ा।
अमेरिका के राष्ट्रपति के कैबिनेट सदस्य अल्बर्ट फाल को जेल से इसलिए छोड़ दिया गया ताकि वे अपने जीवन के अंतिम दिन घर पर बिता सकें।
वॉल स्ट्रीट की सबसे बड़े सट्टेबाज जेसी लिवरमोर ने आत्महत्या कर ली।
संसार के सबसे बड़े एकाधिकार बाजार के अध्यक्ष लीयोन फ्रेजर ने भी आत्महत्या कर ली।
ऐसे ही जो पच्चीस साल पहले के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अध्यक्ष रहे होंगे उनकी अभी स्थिति क्या होगी ?
क्या करिये क्या जोड़िये, थोड़े जीवन काज।
छोड़ी-छोड़ी सब जात हैं, देह गेह धनराज।।
25 वर्ष पहले जो धनाढ्यों की सूची में थे, 25 साल बाद उनकी स्थिति क्या रही ॐ धन के ऊँचे शिखरों ने भी उन्हें पूरी संतुष्टि, पूरी तृप्ति और पूरी प्रीति नहीं दी।
कितनी भी सम्पत्ति हो, मृत्यु के समय न चाहते हुए भी बैंक के गुप्त खाते दूसरे को बताने पड़ते हैं, छिपाकर रखी हुई सम्पत्ति किसी को बता कर जाना पड़ता है, नहीं तो, प्रेत होकर भटकना पड़ता है।
मुसोलिनी सन् 1942 की लड़ाई में बुरी तरह हार गया। किसी तरह जान बचा कर स्विटज़रलैंड की प्रेयसी के साथ ट्रक में छुपकर इटली से स्विटज़रलैंड की तरफ भागा। लेकिन रास्ते में पकड़ा गया। धड़…. धड़… धड़….. गोलियाँ चलीं। दोनों मारे गये और दोनों की लाश वापिस लायी गयी। जूतों के हार पड़े, बुरी तरह उनका अंतिम संस्कार हुआ।
लेकिन हीरे जवाहरात और विदेशी करेंसी से भरी ट्रक… लाख नहीं, करोड़ नहीं, अरब नहीं, खरब के मूल्य की वह ट्रक कहाँ गयी ? कई जाँच समितियाँ बैठीं, कई सरकारें आयीं और नाक रगड़कर बैठ गयीं। आज तक उसका पता नहीं चला…. 1942 से 2001, कुल 59 वर्ष हो गये।
जाँच समिति ने देखा कि गाड़ी खाली कैसे हो गयी ? क्या पुलिस के केवल दो जवान पूरी गाड़ी हड़प कर गये ? नहीं, वे भी वहाँ मरे हुए पाये गये। ट्रक ड्राइवर भी मरा हुआ।
इस मामले की जाँच कराने हेतु कमेटियों की नियुक्ति करते गये। कमेटियों पे कमेटियाँ विफल होती गयीं। उसके वरिष्ठ अधिकारियों में कोई पागल हो जाता था तो कोई अपने-आप बाथरूम में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर लेता….1,2,3,…. करते-करते 72 वरिष्ठ अधिकारी मर गये।
एक बार मध्यरात्रि को एक वरिष्ठ अधिकारी ने देखाः ‘मुसोलिनी घूम रहा है !’
अधिकारी ने कहाः “अरे, मुसोलिन तू यहाँ ?”
मुसोलिनी का प्रेत हँसाः “हा, हा, हा….. मेरा शरीर मर गया लेकिन मेरी वासना नहीं मरी है। मैं संपत्ति सम्भालूँगा, तुम क्या करोगे ?”
72 अधिकारियों की बलि ले ली और वह मुसोलिनी अभी भी प्रेत होकर भटकता होगा या नहीं, वह मुझे पता नहीं है। लेकिन उस सम्पत्ति का अभी तक पता नहीं चला।
जो बाहर से संतुष्ट होना चाहते हैं, बाहर से तृप्त होना चाहते हैं, वे कैसे भी क्रूर कर्म करें लेकिन अतृप्त ही रह जाते हैं।
अमेरिका के अखबारों से पता चलता है कि अभी भी व्हाईट हाऊस में कभी-कभी अब्राहम लिंकन की प्रेतात्मा दिखाई देती है। मानवतावादी लिंकन ऊँची योग्यता के धनी तो थे परंतु ऊँचे-में ऊँचा आत्मा-परमात्मा के साक्षात्कार का रास्ता पकड़ा होता तो वे भी कृष्ण, बुद्ध, कबीर की नाँईं आत्मानुभव पाते।
ऐ गाफिल ! न समझा था, मिला था तन रतन तुझको।
मिलाया खाक में तूने, ऐ सजन ! क्या कहूँ तुझको ?
अपनी वजूदी हस्ती में, तू इतना भूल मस्ताना….
करना था किया वो न, लगी उलटी लगन तुझको।
जो करना था, जहाँ पूर्ण संतुष्टि थी, पूर्ण तृप्ति थी वहाँ तू न गया।
पूर्ण संतुष्ट तो केवल वे ही हैं जिन्होंने अपने स्वरूप को जान लिया है, जिन्होंने आत्मरति, आत्मप्रीति और आत्मसंतुष्टि को पा लिया है। और यह मिलती है सत्संग से, संत-शरण से जाने से, संतों द्वारा बताये गये मार्ग का अनुशरण करने से….
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2002, पृष्ठ संख्या 13,14 अंक 110
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