(संस्कृत दिवसः 10 अगस्त)
देवभाषा संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। वेद भी इसी भाषा में होने के कारण इसे वैदिक भाषा भी कहते हैं। ‘संस्कृत’ शब्द का अर्थ होता है – परिष्कृत, पूर्ण एवं अलंकृत। संस्कृत में बहुत कम शब्दों में अधिक आशय प्रकट कर सकते हैं। इसमें जैसा लिखा जाता है, वैसा ही उच्चारण किया जाता है। संस्कृत में भाषागत त्रुटियाँ नहीं मिलती हैं।
भाषाविद मानते हैं कि विश्व की सभी भाषाओं की उत्पत्ति का तार कहीं-न-कहीं संस्कृत से जुड़ा है। यह सबसे पुरानी एवं समृद्ध भाषा है। विभिन्न भाषाओं में संस्कृत के शब्द बहुतायत में पाये जाते हैं। कई शब्द अपभ्रंश के रूप में हैं तो कई ज्यों-के-त्यों हैं। संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यंत परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है।
वैज्ञानिकों का भी संस्कृत को समर्थन
संस्कृत की वैज्ञानिकता बड़ी-बड़ी वैज्ञानिक खोजों का आधार बनी है। वेंकट रमन, जगदीशचन्द्र बसु, आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय, डॉ. मेघनाद साहा जैसे विश्वविख्यात विज्ञानी संस्कृत भाषा से अत्यधिक प्रेम था और वैज्ञानिक खोजों के लिए ये संस्कृत को आधार मानते थे। इनका कहना था कि संस्कृत का प्रत्येक शब्द वैज्ञानिकों को अनुसंधान के लिए प्रेरित करता है। प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने विज्ञान में जितनी उन्नति की थी, वर्तमान में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ऋषि-महर्षियों का सम्पूर्ण ज्ञान-सार संस्कृत में निहित है। आचार्य राय विज्ञान के लिए संस्कृत की शिक्षा आवश्यक मानते थे। जगदीशचन्द्र बसु ने अपने अनुसंधानों के स्रोत संस्कृत में खोजे थे। डॉ. साहा अपने घर के बच्चों की शिक्षा संस्कृत में ही कराते थे और एक विज्ञानी होने के बावजूद काफी समय तक वे स्वयं बच्चों को संस्कृत पढ़ाते थे।
संस्कृत शब्दों द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधान
एक बार संस्कृत के महापंडित आचार्य कपिल देव शर्मा ने जगदीशचन्द्र बसु से पूछाः “वनस्पतियों में प्राण होने का अनुसंधान करने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली ?”
उत्तर के बजाय बसु ने प्रश्न कियाः “आप संस्कृत का ऐसा शब्द बताइये जिससे बहुत से पेड़-पौधों का बोध हो।”
आचार्य शर्मा को ‘शस्यश्यामलां मातरम्।’ ध्यान आ गया। उन्होंने कहाः “शस्य”।
“शस्य किस धातु से बना है ?”
“शस् धातु से।”
“शस का अर्थ ?”
“हत्या करना।”
“तो शस्य का क्या अर्थ हुआ ?”
“जिनकी हत्या करना सम्भव हो।”
आचार्य शर्मा से बसु महोदय ने मुस्कराकर कहाः “यदि वनस्पतियों में प्राण न होते तो उन्हें हत्या योग्य कहा ही न जाता। संस्कृत के ‘शस्य’ शब्द ने ही मुझे इस अनुसंधान के लिए प्रेरित किया।” उन्होंने ऐसे कई संस्कृत शब्दों के बारे में आचार्य शर्मा को बताया जो उन्हें अनुसंधान में मददरूप साबित हुए।
भारतीय वैज्ञानिकों के साथ पाश्चात्य विद्वानों ने भी संस्कृत की समृद्धता को स्वीकारा है। सर विलियम जोन्स ने 2 फरवरी, 1786 को एशियाटिक सोसायटी के माध्यम से सारे विश्व में यह घोषणा कर दी थीः “संस्कृत एक अदभुत भाषा है। यह ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लैटिन से अधिक समृद्ध और दोनों ही भाषाओं से अधिक परिष्कृत है।”
आधुनिक विज्ञान के लिए संस्कृत बन सकती है वरदानरूप
वर्तमान समय में संस्कृत भाषा विश्वभर के विज्ञानियों के लिए शोध का विषय बन गयी है। यूरोप की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका ‘फोर्ब्ज’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ‘संस्कृत भाषा कम्पयूटर के लिए सबसे उत्तम भाषा है तथा समस्त यूरोपिय भाषाओं की जननी है।
आधुनिक विज्ञान सृष्टि के रहस्यों को सुलझाने में बौना पड़ रहा है। अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न मंत्र-विज्ञान की महिमा से विज्ञन आज भी अनभिज्ञ है। उड़न तश्तरियाँ कहाँ से आती हैं और कहाँ गायब हो जाती हैं – इस प्रकार की कई बातें हैं जो आज भी विज्ञान के लिए रहस्य हैं। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से ऐसे कई रहस्यों को सुलझाया जा सकता है।
विमान विज्ञान, नौका विज्ञान से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हमारे ग्रंथों से प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार के और भी अनगिनत सूत्र हमारे ग्रंथों में समाये हुए हैं, जिनसे विज्ञान को अनुसंधान के क्षेत्र में दिशानिर्देश मिल सकते हैं। आज अगर विज्ञान के साथ संस्कृत का समन्वय कर दिया जाय तो अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो सकती है। हिन्दू धर्म के प्राचीन महान ग्रंथों के अलावा बौद्ध, जैन आदि धर्मों के अनेक मूल धार्मिक ग्रंथ भी संस्कृत में ही हैं।
संस्कारी जीवन की नींवः संस्कृत
वर्तमान समय में भौतिक सुख-सुविधाओं का अम्बार होने के बावजूद भी मानव-समाज अवसाद, तनाव, चिंता और अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है क्योंकि केवल भौतिक उन्नति से मानव का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है, इसके लिए आध्यात्मिक उन्नति अत्यंत जरूरी है।
जिस समय संस्कृत का बोलबाला था उस समय मानव-जीवन ज्यादा संस्कारित था। यदि समाज को फिर से वैसा संस्कारित करना हो तो हमें फिर से सनातन धर्म के प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का सहारा लेना ही पड़ेगा। हमारे प्राचीन ग्रंथों का सहारा लेना ही पड़ेगा। हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथ शाश्वत मूल्यों एवं व्यावहारिक जीवन के अनमोल सूत्रों के भण्डार हैं, जिनसे लाभ लेकर वर्तमान समाज की सच्ची और वास्तविक उन्नति सम्भव है।
संस्कृत के शब्द चित्ताकर्षक एवं आनन्ददायक भी हैं, जैसे – सुप्रभातम्, सुस्वागतम्, ‘मधुराष्टकम्’ के शब्द आदि। बोलचाल में यदि संस्कृत का प्रयोग किया जाय तो हम आनंदित रहते हैं। परंतु अफसोस कि वर्तमान में पाश्चात्य अंधानुकरण से संस्कृत भाषा का प्रयोग बिल्कुल बंद सा हो गया है। संस्कृत के उत्थान के लिए हमें अपने बोलचाल में संस्कृत का प्रयोग शुरु करना होगा। बच्चों को पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ायी जानी चाहिए। और उन्हें इसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। विद्यार्थियों को वैदिक गणित का लाभ दिलायें तो वे गणित के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकते हैं।
संस्कृत भाषा हमारे देश व संस्कृति की पहचान है, स्वाभिमान है। हमें इस भाषा को विलुप्त होने से बचाना होगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2014, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 259
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