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एक बार भीतर की ज्योत जग जाय फिर सदा दीवाली- पूज्य बापू जी


दीपावली पर्वः 17 से 21 अक्तूबर 2017

दीवाली की रात्रि में बाहर के लाखों-करोड़ों दीये जलते होंगे और वे एक रात्रि के लिए जगमगाहट पैदा कर देते होंगे लेकिन भीतर का दीया एक हृदय में जग जाय तो वह लाखों के हृदय में जगमगाहट कर देगा। बाहर से न दिखेगा लेकिन भीतर से बड़ी स्वच्छता, निर्भयता, परम शांति का स्वाद वह जागृत पुरुष लेता है। वह प्रज्ञा का दीया होता है। प्रज्ञा माने ऋतम्भरा प्रज्ञा। जिसकी बुद्धि से मल-विक्षेप चला गया, पाप-संस्कार और चंचलता चली गयी, उसका अंतःकरण शुद्ध और एकाग्र हो जाता है। फिर किन्हीं ब्रह्मज्ञानी महापुरुष का सान्निध्य-लाभ, उनकी सम्प्रेषण शक्ति की अनुकम्पा होती है तो वह भीतर का द्रष्टाभाव का दीया, जो साक्षी, चैतन्य, शांत सच्चिदानंद स्वरूप अपने हृदय में छुपा हुआ है वह अखूट आत्मज्योति जगमगाती है।

संत भोले बाबा कहते हैं- “बाह्य दिवालियाँ मनाओ, कोई हर्ज नहीं, हम मना नहीं करते लेकिन लक्ष्य यह रखो कि तुम्हारे भीतर भी कोई ज्योति है जो केवल एक बार जग जाय…. भीतर भी एक परम मित्र है, एक खुशखबरी है जो केवल एक बार मिल जाय तो फिर उसको छोड़ना या उससे बिछुड़ना मुश्किल हो जायेगा।”

फिर वह भीतर से जागा हुआ सौभाग्यशाली दूसरों को जगाये बिना नहीं रहता। तुम्हारा भीतर का दीया एक बार जग जाये तो दूसरों के दीये जगाने में तुमको ऐसा रस आयेगा जो तुम्हें अपना दीया जगने के समय भी नहीं आया होगा।

तुम आजमाकर देखना। तुम्हारे घर में अँधेरा हो, तुम दीया जलाओ, प्रकाश हो तो हृदय में बोलोगे, ‘हाश !’ लेकिन कोई पड़ोसी है, नम्र है, उसके घर में अँधेरा है, उसकी आर्थिक परिस्थिति कुछ कमजोर है और उन दिनों में आपने कुछ उसको जरा सा आर्थिक सहयोग दे दिया, जरा सी मिठाई उसके बच्चों को दे दी, 2-4 बाह्य दीपक उसके घर में जाकर तुम जला के आये तो तुम्हारे घर के दीये और मिठाई तुम्हें जो आनंद देंगे, उससे सवाया आनंद पड़ोसी के घर जलाये दीये व दी गयी मिठाई तुम्हें देगी। वहाँ के दीये जलाने में तुम्हें होगा कि ‘हाश ! आज कुछ पुण्यकर्म किया है।’ शत्रुओं के बच्चों को या पड़ोसी के बच्चों को जो प्यार दोगे निःस्वार्थ भाव से, उसमें तुम्हारा हृदय कुछ और साक्षी देगा। जब किसी को ये लौकिक-मानसिक प्यार, हर्ष देने से, मानसिक दीये, लौकिक दीये किसी के यहाँ जलाने से तुम्हें तुम्हारे घर के दीये जलाने से ज्यादा आनंद आता है तो वह असली दीया और किसी के हृदय में जचमगा उठे तो कितना आनंद आता होगा जगाने वालों को !

आधिभौतिक, आधिदैविक दीवाली तो मिलती रहती है लेकिन जिसको आध्यात्मिक दीवाली मिलती है, जिसका अध्यात्म एक बार जग जाता है तो बस, उसने सब कुछ कर लिया। अपनी 21 पीढ़ियों को तार लिया, पितरों का तर्पण कर लिया, सारी पृथ्वी का दान उसने  दे दिया, सब यज्ञ उसने कर लिये।

नूतन वर्ष का आशीर्वाद

वर्ष प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है। हम तो चाहते हैं कि जीवन में भी ऐसा तुम्हारा प्रथम दिन आ जाय। परमात्मा का साक्षात्कार हो जाय, अंदर का दीया जल जाय। मैं तुम्हें यह थोथा आशीर्वाद नहीं देना चाहता हूँ कि ‘भगवान करे तुम धन-धान्य से सुखी रहो, ऐसे रहो….’ न, यह आशीर्वाद दूँगा तब भी प्रारब्ध-खेल जो होने वाला है, होगा। तरतीव्र प्रारब्ध से जो होने वाला है, होगा। मैं तो यह आशीर्वाद देता हूँ कि ‘कितने भी विघ्न आ जायें, कितनी भी सम्पदाएँ आ जायें, कितनी भी आपदायें आ जायें, थोड़ी आती हों तो तुम उन्हें और भी बुलाओ लेकिन साथ-साथ तुम अपने सच्चिदानंद परमात्मा को भी बुलाओ।’ ‘तुम्हारा परमात्मा तुम्हारे साथ हो, भीतर का दीया जला हुआ हो, तुम्हारा भीतर का मित्र तुम्हारे साथ हो’ – यह आशीर्वाद जरूर दूँगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2017, पृष्ठ संख्या 12, 13 अंक 298

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परम लाभ दिलानेवाले पंच पर्वों का पुंज : दीपावली


 

(दीपावली पर्व : 28 अक्टूबर से 1 नवम्बर)

आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक लाभ और परम लाभ पहुँचाने की व्यवस्था के उत्सवों का नाम है दीपावली उत्सव, पर्वों का झुमका । धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, नूतन वर्ष, भाईदूज – इन पाँच पर्वों का पुंज है दीपावली पर्व ।

धनतेरस

‘स्कंद पुराण’ में आता है कि धनतेरस को दीपदान करनेवाला अकाल मृत्यु से पार हो जाता है । धनतेरस को बाहर की लक्ष्मी का पूजन धन, सुख-शांति व आंतरिक प्रीति देता है । जो भगवान की प्राप्ति में, नारायण में विश्रांति के काम आये वह धन व्यक्ति को अकाल सुख में, अकाल पुरुष में ले जाता है, फिर वह चाहे रुपये-पैसों का धन हो, चाहे गौ-धन हो, गजधन हो, बुद्धिधन हो या लोक-सम्पर्क धन हो ।

धनतेरस का सत्संग कहता है कि आप अपने प्रकाश में जियो, अपनी सूझबूझ में जियो, अपना हौसला बुलंद करो । ‘कोई मित्र आकर रक्षा करेगा, कोई पति या पत्नी अथवा मित्र आकर सँभालेगा’ – ऐसा विचार नहीं करो । सारे ब्रह्मांडों को जो सँभाल रहा है वही सबका आत्मस्वरूप है । धनतेरस को इस आत्मधन का चिंतन करें । आत्मसुख के लिए अंतरंग साधना है । तुम धनतेरस को दीये जलाओगे… तुम भले बाहर से थोड़े सुखी हो, तुमसे ज्यादा तो पतंगे भी सुख मनायेंगे लेकिन थोड़ी देर में फड़फड़ाकर जल-तप के मर जायेंगे ।

ऐसा कोई सुख भोग नहीं,

जिसके पीछे दुःख रोग नहीं ।

भोगी बन सब पछताते हैं,

इसको सब कोई क्या जाने ।।

देख के, सूँघ के, खा के मजा लेना, काम-विकार से मजा लेना – यह सब पतंगे जैसों का रास्ता है । अपने-आपमें, परमात्मसुख में तृप्ति पाना, सुख-दुःख में सम रहना, ज्ञान का दीया जलाना – यह वास्तविक धनतेरस, आध्यात्मिक धनतेरस है ।

नरक चतुर्दशी

काली चौदस की रात, कालरात्रि साधकों के लिए तपस्या और मंत्रसिद्धि का अवसर प्रदान करनेवाली है । इस रात्रि का जागरण और जप चित्शक्ति को परमात्मा में ले जाने में बड़ी मदद करते हैं ।

16 हजार कन्याओं को नरकासुर ने अपने नियंत्रण में रखा था । राजाओं की प्रार्थना से श्रीकृष्ण ने इस दिन कन्याओं को मुक्त किया और नरकासुर को परलोक भेज दिया । ऐसे ही नरकासुर जैसा अहं परलोक पहुँचे और 16 हजार कन्या-सदृश वृत्तियाँ कृष्णस्वरूप आत्मा-परमात्मा में विराम करें तो परम मंगल हो गया ।

दीपावली

दीपावली का पर्व तो तमाम जातियों, सम्प्रदायों, लोगों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है । मनुष्य-जीवन की माँग है कि उसे खुशी, प्रकाश, पुष्टि, सहानुभूति और स्नेह चाहिए । दीपावली स्नेह का, पुष्टि का निमित्त उत्पन्न करती है । इस दिन स्वास्थ्यप्रद माल-मिठाई, प्रसाद आदि लेना-देना किया जाता है । प्रकाश की आवश्यकता है तो दीपोत्सव मनाते हैं । जैसे दीप अँधेरी अमावस्या को भी उजला कर देते हैं, ऐसे ही कैसा भी प्रारब्ध हो, ज्ञानयुक्त पुरुषार्थ उस अंधकारमय प्रारब्ध को प्रकाशमय कर देता है ।

अगर इन सामाजिक उत्सवों के साथ-साथ इनमें आध्यात्मिकता का रंग भी डाल दें तो चार चाँद लग जायें । दीपावली में 4 काम करने होते हैं । एक तो घर का कचरा निकाल देना होता है; तो आप दुःख, चिंता, भय, शोक, घृणा पैदा करें ऐसे हीनता-दीनता के, हलके विचारों को निकाल दें । दूसरा, नयी चीज लानी होती है तो आप शांति, स्नेह, औदार्य और माधुर्य पैदा करें ऐसे नये विचार अपने चित्त में अधिक भरें । तीसरी बात, दीया जलाया जाता है अर्थात् जो कुछ भी करें, आत्मज्ञान के प्रकाश में करें । काम आ गया, क्रोध, चिंता, भय आ गये लेकिन आये हैं तो अपने आत्मप्रकाश में उनको देखें, उनमें बहें नहीं तो ज्योति से ज्योति जगेगी । जैसे गुरुदेव ने अपने गुरुदेव से आत्मज्योति का प्रकाश पा लिया है, ऐसे हम भी इस दीपावली के बाह्य दीपक तो जलायें लेकिन अंदर का प्रकाशमय दीया जगाने का भी आज से पौरुष करेंगे । कोई भी परिस्थिति आ जाय तो ‘यह आयी है, हम इसको देखनेवाले हैं ।’ – ऐसा विचार करें । परिस्थिति के साथ भले थोड़ी देर मिल जायें लेकिन परिस्थिति तुम्हेें दबाये नहीं, आकर्षित न करे । चौथा काम, मिठाई खाते और खिलाते हैं अर्थात् हम प्रसन्न रहें और प्रसन्नता बाँटें । शत्रु को भी टोटे चबवाने की  अपेक्षा खीर-खाँड़ खिलाने का विचार करें तो आपके चित्त में मधुरता रहेगी ।

लक्ष्मीप्राप्ति हेतु साधना

जो धन चाहते हैं उनको यह मंत्र जपना चाहिए :

ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे ।

अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् 

स्थिर लग्न में, स्थिर मुहूर्त में जप धन को स्थिर करता है । दिवाली की रात लक्ष्मीप्राप्ति के लिए स्थिर लग्न माना गया है । लक्ष्मीप्राप्ति के लिए जापक को पश्चिम की तरफ मुँह करके बैठना चाहिए । पश्चिमे च धनागमः 

तेल का दीपक व धूपबत्ती लक्ष्मीजी की बायीं ओर, घी का दीपक दायीं ओर एवं नैवेद्य आगे रखा जाता है । लक्ष्मीजी को तुलसी, मदार (आक) या धतूरे का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए, नहीं तो हानि होती है ।

दीपावली संदेश

दिवाली की रात को छोटे स्वभाव के लोग पटाखे फोड़कर ही खुश हो जाते हैं । उससे तो प्रदूषण बढ़ता है लेकिन जो समझदार हैं वे पटाखे में ही खुश नहीं हो जाते, वे तो प्रीतिपूर्वक भगवान का भजन-सुमिरन करते हैं ।

जो भगवान को प्रीतिपूर्वक भजता है उसको वे बुद्धियोग देते हैं । बुद्धि तो सबके पास है, बुद्धि में भगवत्सुख, भगवत्-शांति का योग देते हैं – ‘समय की धारा को जो जानता है वह चैतन्य आत्मा ‘मैं’ हूँ । सुख-दुःख को, बीमारी-तंदुरुस्ती को जो जानता है वही आत्मा चैतन्य ‘मैं’ हूँ और परमात्मा का अविनाशी अंश हूँ । ॐ ॐ आनंद… ॐ ॐ शांति… ॐ ॐ माधुर्य…’

नूतन वर्ष

वर्ष प्रतिपदा के दिन सत्संग के विचारों को बार-बार विचारना । भगवन्नाम का आश्रय लेना ।

दीपावली की रात्रि को सोते समय यह निश्चय करेंगे कि ‘कल का प्रभात हमें मधुर करना है ।’ वर्ष का प्रथम दिन जिनका हर्ष-उल्लास और आध्यात्मिकता से जाता है, उनका पूरा वर्ष लगभग ऐसा ही बीतता है । सुबह जब उठें तो ‘शांति, आनंद, माधुर्य… आधिभौतिक वस्तुओं का, आधिभौतिक शरीर का हम आध्यात्मिकीकरण करेंगे क्योंकि हमें सत्संग मिला है, सत्य का संग मिला है, सत्य एक परमात्मा है । सुख-दुःख आ जाय, मान-अपमान आ जाय, मित्र आ जाय, शत्रु आ जाय, सब बदलनेवाला है लेकिन मेरा चैतन्य आत्मा सदा रहनेवाला है ।’ – ऐसा चिंतन करें और श्वास अंदर गया ‘सोऽ…’, बाहर आया ‘हम्…’, यह हो गया आधिभौतिकता का आध्यात्मिकीकरण, अनित्य शरीर में अपने नित्य आत्मदेव की स्मृति, नश्वर में शाश्वत की यात्रा ।

सुबह उठ के बिस्तर पर ही बैठकर थोड़ी देर श्वासोच्छ्वास को गिनना, अपना चित्त प्रसन्न रखना, आनंद उभारना ।

भाईदूज

यह भाई-बहन के निर्दोष स्नेह का पर्व है । बहन को सुरक्षा और भाई को शुभ संकल्प मिलते हैं । यमराज ने अपनी बहन यमी से प्रश्न किया : ‘‘बहन ! तू क्या चाहती है ? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए ।’’

यमी ने कहा : ‘‘भैया ! आज वर्ष की द्वितीया है । इस दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और इस दिन जो भाई अपनी बहन के हाथ का बना हुआ भोजन करे वह यमपुरी के पाश से मुक्त हो जाय ।’’

यमराज प्रसन्न हुए कि ‘‘बहन ! ऐसा ही होगा ।’’

भैया को भोजन कराना है तो उसमें स्नेह के कण भी जाते हैं । मशीनों द्वारा बने हुए भोजन में और अपने स्नेहियों के द्वारा बने हुए भोजन में बहुत फर्क होता है ।

(दीपावली पर्व पर आश्रम से प्रकाशित ‘सदा दिवाली’ और ‘पर्वों का पुंज : दीपावली’ पुस्तक अवश्य पढ़ें ।)

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Deepavali: A Series of Five Festivals that Bestows the Supreme Gain   

(Deepavali Festival: 28th October to 1st November)

Deepavali, a cluster of upbeat festivals, is the Vedic system to facilitate financial, social, physical, intellectual and even the Supreme gain to the people. Dhan Teras, Narak Chaturdashi, Diwali, New Year and Bhai Dooj make up this promising bunch of festivals.

Dhan Teras

It is mentioned in the Skanda Purana that a person who presents a clay lamp on Dhan Teras is saved from untimely death. Worship of the external Goddess Laxmi, i.e. the material assets, on Dhan Teras gives us wealth, joy, peace and inner love. Such assets include monetary possessions, cows, elephants, intelligence, public contact etc. The assets which are utilised towards the attainment of God, to attain repose in the essence of Lord Narayana lead one to Immortal bliss, to the Immortal Primal Being.

The Satsang on Dhan Teras teaches you to live in your own spiritual effulgence; to live in your own wisdom and keep your spirits high. Do not entertain thoughts such as: ‘Some friend will come to protect me, my husband or wife or friend will come and protect me.’ The One who is protecting the entire cosmos is verily the Spiritual Self of all beings. Reflect on this inner Spiritual Wealth of yours on Dhan Teras. This mode of Antarang (internal) Sadhana or proximate aid to liberation is meant for attaining Self-bliss. You will light lamps on Dhan Teras… and may get some
external delight too; but an even greater delight will be enjoyed by the moth (from those lamps). However, they are destined to get singed or fall into the flame and get burnt, then toss about with pain for some time and die.

ऐसा कोई सुख भोग नहीं,

जिसके पीछे दुःख रोग नहीं ।

भोगी बन सब पछताते हैं,

इसको सब कोई क्या जाने ।।

“There is no worldly pleasure that does not entail sorrow and disease. Everyone repents on taking to hedonism, which is not known to all.”

To seek pleasure by way of seeing, smelling, eating, indulging in sex is the way of the lower beings like a moth. Getting absorbed in the inner satiation by experiencing the Supreme Spiritual Bliss in one’s own Self, staying equanimous in both pain and pleasure, lighting the lamp of Knowledge do constitute the actual and spiritual mode of celebrating Dhan Teras.

Narak Chaturdashi

Kaal Ratri, The night of Kali Chaudas, provides the Sadhaks with an opportunity to do Tapasya (austerities and goal oriented worship) and accomplish Mantra Siddhi (perfection). Observing a night vigil and doing Japa greatly helps the Sadhaks to raise their Chit Shakti (inner consciousness) into the Supreme Self (Lord).

Narakaasur had kidnapped 16000 royal maidens. When the kings prayed to Lord Krishna, He freed the girls from Narakaasur’s captivity and killed him on this day. Narakaasur represents the ego and the 16000 maidens represent the Vrittis or modifications of the mind. If the ego (Narakaasur) is killed and the Vrittis take repose in the Lord Krishna personified Supreme Self (Krishna consciousness), the Supreme Good is achieved.

Deepavali

The festival of Deepavali is celebrated with great fervour and festivity by the people of all castes, creeds and sects. It is the basic need of human life to have joy, light, nutrition, sympathy and affection. Deepavali presents us with the rationale for the provision of affection and nutrition. On this day, salubrious sweets, Prasad and food items are exchanged amongst the near and dear ones. The need for light is fulfilled by the festival of lamps. Just as the lamps light up even the dark night of the no moon day (Amavasya); similarly, irrespective of howsoever dark it is, your fate too can be brightened up through self-effort made in the light of Knowledge.

If these social festivals are celebrated with the additional flavour and fervour of spirituality, it will prove all so much more beneficial. There are four main things to be done on Deepavali. The first one is to remove the entire dirt from your house; which means, you must rid your psyche of all such petty complexes of timidity and inferiority as give rise to sorrow, worry, fear, grief or hatred. The second one is to buy new things; which means, fill your heart more with such novel thoughts as may nurture peace, love, generosity and sweetness around. The third thing is to light lamps; which means, whatever you do, do it in the light of Self-knowledge. If lust, anger, worry, fear enter your mind; see them in the light of Atman (Self), don’t be carried away by them. Thus, you will be able to kindle the lamp of your heart with the flame of Knowledge (Awareness). Just as our Gurudev has attained the effulgence of Spiritual Light from his Guru, we too shall endeavour from this day to kindle the inner lamp of Knowledge besides lighting the ceremonial clay lamps. As any type of a situation arises before you, just think –‘It has come. I am the dispassionate witness to it.’ You might even get involved in that situation for some time, but you should not give in to the pressures or attractions thereof in any way. The fourth thing is to eat and distribute sweets; which means, we should keep happy ourselves and also spread happiness around. If you intend to give happiness even to your enemy instead of teaching a lesson to him, your mind will remain sweetened with inner joy.

Sadhana to Obtain Wealth

Those who want wealth should do Japa of this Mantra:

ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे ।

अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।

Om Namo Bhaagyalakshmyai Cha Vidmahe. Ashtalakshmyai Cha Dheemahi. Tanno Lakshmih Prachodayaat.

Doing Japa during a stable Lagna (period of time during which the earth remains in a single zodiacal sign) and Muhurta(auspicious hour) makes the wealth stable. The Deepavali night is considered to be a stable Lagna. While doing Japa for obtaining wealth, the Sadhak should sit facing the west. Shri Guru Gita states, “If Japa is done facing the west one acquires wealth.”
The oil lamp and incense sticks should be placed on the left side of Goddess Lakshmi, while the ghee lamp on the right, and the Naivedya (decorated plates of fruits-sweets-wet rice etc.) right in front of her. Tulsi leaves, flowers of Aaka (calotropis gigantia) or Dhatura (white thorn-apple) should not be offered to Lakshmiji, because it brings losses to the worshipper.

The Deepavali Message

The ordinary people feel elated and contented by merely blasting firecrackers on Deepavali night, whereas such fireworks only increase air pollution. The wise on the other hand aren’t satisfied therewith. They carry out religious practices and remember God with devotional love.

God grants the possession of wisdom (Buddhi Yoga) to those who worship Him with love. Everyone possesses intelligence, but God instils divine joy, peace and wisdom in it; whereupon one comes to realise: ‘I am that Consciousness personified Self who knows the flow of time. I am verily that Consciousness personified Self who knows pain and pleasure, health and sickness; and I am an eternal part and parcel of God Almighty. Om Om Bliss…. Om Om Peace… Om Om Joy…’

The New Year

On the first day of the New Year, do ponder repeatedly over the subtle points of Satsang and take recourse to (do Japa of) the Name Divine.

While going to bed on the Deepavali night, make a firm determination: ‘I have to make the next morning most pleasant and delightful.’ Those who spend their first day of the year in elation, joy and spiritual practices, the entire year passes for them more or less in the same manner. Upon waking up in the morning, repeat: ‘Peace, Bliss, Joy… I will spiritualize the material things and physical body; because I have been blessed with Satsang, the company of Truth; and the Truth is but God Himself. All dualities of happiness and sorrow, honour and insult, friend and foe coming into my life are verily subject to change; but my Consciousness personified Self is Eternal.’  Think in this manner; and when you inhale, mentally chant: ‘So’, and when you exhale, chant: ‘Ham’… (‘Soham’ = I am That) This is the spiritualization of the physical part, remembering your Permanent Self-God while being embodied in the impermanent body; the journey to the eternal in the mortal body.

Upon waking up in the morning, sit on the bed for some time and count the breaths. Keep your mind cheerful and nurture joy in your heart.

Bhai Dooj

This is the festival of innocent love between the brother and his sister. The sister gets protection and the brother gets the benefits of her auspicious resolves. Once Yamaraj, the god of death, asked his sister Yami: “Sister! What is your wish? I need an opportunity to serve my dear sister.”

Yami said, “Brother! Today is the second day of the New Year. If the brother visits his sister or the sister visits her brother on this day; and the brother eats the food prepared by his sister, he should be exempted from the noose of Yama.”

Pleased at this, Yamaraj said, “Sister! So be it.”

When the food is prepared by the sister for her brother, it is enriched with the pious vibes of her heartfelt affection. There is a huge difference between the food prepared by the machines and the food cooked by your loved ones.

(On Deepavali festival, you must take advantage of the books ‘Sada Diwali’ and ‘Parvon Ka Punja Deepavali’ published by the Ashram.)

Spiritual aspect of Diwali


 

The lamplight is hot, it may burn your things; but when a Satguru kindles the light of Knowledge in your heart; it burns not things but sins; and illumines your life, brings peace and happiness.

The worldly celebrations of Diwali give us worldly pleasure. Fortunate are the ones who through the medium of worldly Diwali, prepare themselves for the celebration of spiritual Diwali.[ Following is the extract of Pujya Asharam Ji Bapu’s Satsang. ]

Four things are done on the occasion of Diwali – the homes are cleaned; new things are purchased; lamps are lighted, and sweets are taken and given.

Just as houses are cleaned; similarly have a clear and firm resolve to attain Self-Bliss, Self-Knowledge and sweetness & joy of Self-Repose in this life only.

Second thing is buying new things. As we buy silver, clothes or utensils on Diwali, likewise we should take a divine and pious vow of mantra-jap, meditation and scripture-reading that directly helps in Self-Realization. Mahatma Gandhi had taken vows in his life – to observe complete silence one day every week, to practice Brahmacharya, to speak only truth, to say a prayer every day. You too should take some such pious vows so that you can march firmly towards your goal, and develop your divine- element.

Third thing is lighting lamps. In addition to material lamps, light the lamp of spiritual knowledge. The Pure Consciousness is called Atman when it is limited to the heart but it is all-pervading, the Supreme Self. The Self is not different from the Supreme Self as the space contained in a pot is not different from all pervading space. God is not far; He is not away; He is not difficult to attain; He is not others’; He is the real Self of all beings.

              ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ‘Om Namo Bhagwate Vaasudevaay.’

                       ‘We worship Lord Vaasudeva (the omnipresent one)’.

Wake up into your true nature, your True Self, the Vaasudeva, the Knowledge Absolute. Don’t spend money for unnecessary things, don’t be garrulous, don’t sleep more than required; don’t sleep less than required.  युक्ताहारविहारस्य… Be always moderate in eating and recreation. Light the lamp of Knowledge.

Fourth thing is eating sweets and giving them to others. Be cheerful. Early in the morning, take a deep breath; hold it for 75 seconds and contemplate, ‘I belong to God, the Bliss Absolute, and God is mine.’ With these thoughts in mind, puff out negative thoughts of sadness and disquiet with forceful exhalation. Do it ten times. You will always be sweet and joyous. You will enjoy sweets of meditation on the inner Self-God and the Vedic outlook. Those coming in contact with you too will become joyful because they will get the joy of devotional love.