भारतीय संस्कृति के पुजारियों ने, ऋषि-मुनियों ने, मनीषियों ने बुद्धिमत्ता का, बड़ी दूरदर्शिता का परिचय दिया है । जिसका नाम सुनते ही भय और क्रोध पैदा हो जाय उसी का पूजन करके निर्भयता और प्रेम जगाने की व्यवस्था का नाम है – नाग पंचमी उत्सव । ऋषियों ने कितनी सुन्दर मति का परिचय दिया कि सावन के महीने में नाग पंचमी का उत्सव रखा । बरसात के दिनों में बिल में रहने वाले साँप बिल में पानी भर जाने से असहाय, निराश्रित हो जाते हैं, जिससे और दिनों में साँप दिखे न दिखे परन्तु बारिश में तो गाँवों में, खेत के आसपास दिखने लगते हैं । साँप को देखकर द्वेष और भय न हो अपितु उसके प्रति प्रेम और ज्ञानदृष्टि जगे ऐसी हितकारी, मंगलकारी व्यवस्था ऋषियों ने की ।
साँप को सुगंध बहुत प्रिय है, चंदन के वृक्ष को लिपट के रहता है, केवड़े आदि से भी बड़ा प्रेम करता है ऐसे सर्प को भगवान शिवजी ने अपने श्रृंगार की जगह पर रख दिया है अर्थात् जिसके जीवन में सद्गुणों की सुवास का आदर है, प्रीति है उन्हें अपने पास रखेंगे तो आपके जीवन की भी शोभा बढ़ेगी ।
शिवजी के गले में साँप, भुजाओं में साँप… विषधर को अपने गले और भुजाओं में धारण करना यह भारतीय संस्कृति के मूर्धन्य प्रचारक भगवान शिवजी का बाह्य श्रृंगार भी पद-पद पर प्रेरणा देता है । भले विषधर है परंतु उसके गुण भी देखो । विषधर ऐसे ही किसी को नहीं काट लेता है, उसको कोई सताता है, परेशान करता है अथवा उसके प्राण खतरे में हैं ऐसी नौबत जब वह महसूस करता है तब वह अपना बनाया हुआ विष प्राण सुरक्षा के लिए खर्च करता है । ऐसे ही मनुष्य को चाहिए कि सेवा, सुमिरन, तप से उसे जो ऊर्जा मिली है उसको वह जरा-जरा बात में खर्च न करे, उसको यत्न करके सँभाल के रखे, क्रुद्ध होकर अपना तप नाश न करे ।
कुछ दैविक साँपों के फन पर मणि होती है । विषधर में भी प्रकाशमय मणि इस बात की ओर संकेत करती है कि समाज में कितना भी जटिल, दुष्ट, तुच्छ दिखने वाला व्यक्ति हो पर उसमें भी ज्ञान-प्रकाशरूपी आत्म-मणि है, उस मणि का आदर करें । पाप से नफरत करो, पापी से नहीं क्योंकि पापी की गहराई में भी वही आत्मारूपी मणि छुपी है, परमात्मारूपी प्रकाश छुपा है । द्वेष से द्वेष बढ़ता है किंतु क्षमा से, उदारता से द्वेष प्रेम में बदलता है । द्वेषावतार साँप… उसके प्रति भी नाग पंचमी के दिवस को निमित्त बनाकर प्रेम और सहानुभूति रखते हुए उसकी पूजा करने से उसके चित्त का द्वेष शांत होता है । चूहे और इतर जीव-जंतुओं को सफा करके खेत-खलिहान की रक्षा करने में सहयोगी सिद्ध होता है, तो उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भी नाग पंचमी का उत्सव ठीक ही है । द्वेष और भय से बचने के लिए भी नाग पंचमी का उत्सव चाहिए ।
तुझमें राम मुझमें राम सब में राम समाया है ।
कर लो सभी से प्यार जगत में कोई नहीं पराया है ।।
कैसी है सनातन धर्म की सुन्दर व्यवस्था !
अमृतबिन्दु – पूज्य बापू जी
ऐसा चिंतन न करो जिससे दुःख पैदा हो, आसक्ति और लोभ पैदा हो, ऐसा चिंतन करो कि चिंतन जहाँ से होता है उसका चिंतन हो जाय ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 11 अंक 355
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