Monthly Archives: March 2022

शंखनाद व शंखजल पवित्र क्यों ?


हमारी संस्कृति में पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, स्वागत सत्कार आदि शुभ अवसरों पर शंख बजाया जाता है, जो विजय समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना जाता है । मंदिरों में प्रातःकाल और सायं-संध्या के समय शंख बजाना, शंख में जल भरकर पूजा स्थल पर रखना और पूजा-पाठ अनुष्ठान आदि समाप्त होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़कना यह परम्परा अनादि काल से चली आ रही है ।

अथर्ववेद ( कांड 4 सूक्त 10, मंत्र 1 ) में कहा गया है कि ‘शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिर्मण्डल एवं सुवर्ण से उत्पन्न हुआ है ।’

शंख की ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है । इस संदर्भ में श्रीकृष्ण का ‘पांचजन्य’ व अर्जुन का ‘देवदत्त’ आदि शंख प्रसिद्ध हैं ।

भारत के महान वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने अपने प्रयोगों से सिद्ध करके बताया कि ‘एक बार शंख फूँकने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि जाती है वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणु मूर्च्छित हो जाते हैं । यदि यह क्रिया निरंतर जारी रखी जाय तो कुछ ही समय में वायुमंडल इस प्रकार के कीटाणुओं से सर्वथा रहित हो जाता है ।’

शंख दो प्रकार के होते हैं- दक्षिणावर्ती और वामावर्ती । अधिकतर शंख वामावर्ती ही मिलते हैं परंतु शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख की विशेष महत्ता बतायी गयी है ।

पूज्य बापू के सत्संग-वचनामृत में आता हैः ″संध्या के समय आरती होती है और शंख बजाया जाता है । शंख युद्ध के मैदान में भी बजाया जाता है । बोलते हैं कि ‘संध्या के समय राक्षस, दैत्य आते हैं ।’ दैत्य-राक्षस तो क्या हानिकारक जीवाणुरूपी राक्षस ही संध्या के समय आते हैं । प्रभातकाल में सूर्योदय के पहले और संध्या के समय स्वास्थ्य को नुकसान करने वाले जीवाणुओं का प्रभाव ज्यादा हो जाता है । तो आरती जलाओ, शंख बजाओ, जिससे श्वासोच्छ्वास में हानिकारक जीवाणु आक्रमण न करें ।

आधुनिक विज्ञान को भी होना पड़ा ऋषियों की खोज के साथ सहमत

भारत के ऋषियों ने शरीर की तंदुरुस्ती, आरोग्यता और मन की प्रसन्नता के लिए जो हजारों वर्ष पहले खोजा है उस बात पर आज के विज्ञानियों को सहमत होना पड़ा है ।

बर्लिन विश्वविद्यालय ( जर्मनी ) में अनुसंधान से सिद्ध हुआ कि 27 घन फीट प्रति सेकेण्ड वायु शक्ति से शंख बजाने से 2200 घन फीट दूरी तक के हानिकारक जीवाणु ( बेक्टीरिया ) नष्ट हो जाते हैं और 2600 घन फीट दूरी तक के मूर्च्छित हो जाते हैं । हैजा, मलेरिया और गर्दनतोड़ ज्वर के कीटाणु भी शंखध्वनि से नष्ट हो जाते हैं ।

शिकागो के डॉ. डी. ब्राइन ने 1300 बहरे लोगों को शंख ध्वनि से ठीक किया था लेकिन भारत के ऋषियों ने तो करोड़ों-करोड़ों जीवों को कल्याण के, परमात्मा के पथ पर लगाने के लिए शंखध्वनि मंदिरों में सुबह-शाम बजवाकर बड़ा उपकार कर दिया है । युद्ध के आरम्भ में शंखध्वनि, युद्ध की समाप्ति में शंखध्वनि, पूजा के समय शंखध्वनि, मंगलाचरण के समय शंखध्वनि… जहाँ लाभ हुआ वहाँ वह लाभ सबको पहुँचे, यह हमारे ऋषियों की कैसी सर्वहितदृष्टि है !

शंखध्वनि को धार्मिक परम्परा में नियुक्त करने वाले उन ऋषियों को हमारा प्रणाम है । यह भारतीय ऋषियों की खोज है । धर्म के नाम से भी शरीर में आरोग्यता और प्रसन्नता का संचार करने की उन्होंने व्यवस्था की । इस बात पर आप लोगों को गर्व होना चाहिए कि विश्व में शोध करने वाले आधुनिक वैज्ञानिक पैदा ही नहीं हुए थे उसके पहले ही जिन ऋषियों ने शोध करके शंखनाद की व्यवस्था की उनकी समझ कितनी बढ़िया होगी ! वैज्ञानिकों के दिमाग में बैक्टीरियाओं का गणित है, वे बैक्टीरिया बताते हैं कि हमारे ऋषियों ने बताया की सात्त्विकता का संचार होता है, रजो और तमो गुण क्षीण होता है । शंख से वीर ध्वनि पैदा होती है इसलिए श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में शंख फूँका ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 22, 23 अंक 351

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लोभ करना हो तो इसका करो… – पूज्य बापू जी


प्रतिदिन हजार बार भगवन्नाम लेने से जीवात्मा के पतन का द्वार बन्द हो जाता है । कितनी भी उन्नति हो जाय पर 10 माला भूलना मत, सारस्वत्य मंत्र, गुरुमंत्र की कम-से-कम 10 माला जरूर करना । और 10 माला ही करके रुकना मत, अधिकं जपं अधिकं फलम् । तुकाराम महाराज केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते थे, दिनभर लेते थे । हम केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते या केवल 10 माला नहीं करते… बहुत करना चाहिए । जैसे जो नहीं कमाता है उसको तो माँ-बाप बोलेंगे कि ‘चलो भाई ! इतना कमा लो ।’ लेकिन जो कमाने वाला है उसको बोलेंगे कि ‘और कमाओ ।’ तो यह रुपया पैसा जो यहीं छोड़कर जाने वाली चीज है उसकी कमाई में लोभी लगता है और उससे माँ-बाप खुश होते हैं तो भक्त भगवान की ( भगवन्नाम-जप, सत्संग, ध्यान, भगवत्प्रीत्यर्थ सत्कर्म आदि की ) कमाई में लोभ करेगा तो भगवान खुश होते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 351

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बहादुर माँ का वह बहादुर बच्चा ! – पूज्य बापू जी


लाल बहादुर शास्त्री के पिता मर गये थे तब विधवा माँ ने सोचा कि ‘मेरा कर्तव्य है बच्चे को पढ़ाना ।’ पैसे तो थे नहीं । अपने घर से कोसों दूर किसी पैसे वाले रिश्तेदार के यहाँ हाथाजोड़ी करके लाल बहादुर को रख दिया । पैसे वाले तो पैसे वाले ही होते हैं, उन्होंने लाल बहादुर से जूठे बर्तन मँजवाये, झाड़ू लगवायी । घर का तीसरे-चौथे दर्जे का व्यक्ति जो काम करता है वे सब काम करवाये । और उनके घर के कुछ लोग ऐसे उद्दण्ड थे कि लाल बहादुर को बड़े कठोर वचन भी सुना देते  थे – ‘हराम का खाता है, ऐसा है विधवा का लड़का, फलाना, ढिमका, हमारे माथे पड़ा है, ऐसा करता है – वैसा करता है… ।’ सहते-सहते बालक की सहनशक्ति की हद हो गयी । वह उस अमीर का घर छोड़ के माँ की गोद में आकर फूट-फूट के रोया ।

लेकिन कैसी है भारत की माँ ! बेटे का सारा हाल-हवाल सुना, फिर बोलती हैः ″बेटा लालू ! तेरा नाम बहादुर है । मेरे में क्षमता नहीं कि मैं पैसे इकट्ठे करके तुझे पढ़ा सकूँ और खिला सकूँ । माँ का कर्तव्य है बेटे को सयाना बनाना, होशियार बनाना । बेटा ! तुझे मेहनत करनी पड़ती है तो तेरी अभी उम्र है, थोड़ा परिश्रम कर ले और तुझे जो सुनाते हैं उसके बदले में तू पढ़ेगा-लिखेगा, विद्वान होगा, कइयों के काम आयेगा मेरे लाल ! बेटा ! और तो मैं तुझसे कुछ नहीं माँगती हूँ, तेरी माँ झोली फैलाती है मेरे लाल ! तेरे दुःख को मैं जानती हूँ, उन लोगों के स्वभाव को भी मैंने समझ लिया किंतु मैं तेरे से माँगती हूँ बेटे !″

″माँ ! क्या माँगती है ?″

″बेटे ! तू मेरे को वचन दे !″

″माँ ! बोलो, क्या माँगती हो ? मैया ! मेरी मैया !! क्या माँगती है ?″

″बेटे ! वे कुछ भी कहें, कितना भी कष्ट दें, तू थोड़ा सह के शास्त्री बन जा बस !″

″माँ ! तेरी ऐसी इच्छा है, मैं सब सह लूँ ?″

″हाँ बेटे ! सह लो और शास्त्री बन जाओ ।″

बहादुर बच्चा सचमुच सब सहते हुए शास्त्री बना । दुनिया जानती है कि वही लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने थोड़े माह ही राज्य चलाया परंतु लोगों के हृदय में उनकी जगह अब भी है । जातिवाद, यह वाद-वह वाद आदि के नाम पर लड़ाना-झगड़ाना, झूठ-कपट करना, एक-दूसरे की निंदा करना – ऐसी गंदी राजनीति से वे बहुत दूर थे । उन्होंने माँ की बात रखी और माँ के दिल का वह सत्-चित्-आनंदस्वरूप ईश्वर बरसा ।

माँ के हृदय का सच्चिदानंद और लाल बहादुर शास्त्री का सच्चिदानंद, मेरा और तुम्हारा सच्चिदानंद एक ही तो है ! वह अपनी तरफ बुलाने के लिए न जाने क्या-क्या दृष्टांत और क्या-क्या किस्से-कहानियाँ सुनवा-समझा देता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 18 अंक 351

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